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सोमवार, 31 दिसंबर 2012

जवानी पर,चढ़ गयी है सर्दियाँ

 जवानी पर चढ़ गयी है सर्दियां

रात की ठिठुरन से बचने, भूल सब शिकवे ,गिले
शाम ,डर  कर,उलटे पैरों,दोपहर  से जा  मिले
ओढ़ ले कोहरे की चादर ,धूप ,तज अपनी अकड़
छटपटाये चमकने को ,सूर्य पीला जाये     पड़ 
हवायें जब कंपकंपाये ,निकलना मुश्किल करे
चूमने को चाय प्याला ,बारहां जब दिल करे
जेब से ना हाथ निकले ,दिखाये कन्जूसियाँ
पास में बैठे रहे बस ,लगे मन  भाने  पिया
लिपट तन से जब रजाई ,दिखाये हमदर्दियाँ
तो समझ लो ,जवानी पर,चढ़ गयी है सर्दियाँ
घोटू

बुधवार, 26 दिसंबर 2012

ख्वाब क्या अपनाओगे ?

प्रत्यक्ष को अपना न सके, ख्वाब क्या अपनाओगे;
बने कपड़े भी पहन न पाये, नए कहाँ सिलवाओगे |

दुनिया उटपटांगों की है, सहज कहाँ रह पावोगे,
हर हफ्ते तुम एक नई सी, चोट को ही सहलाओगे |

सारे घुन को कूट सके, वो ओखल कैसे लावोगे,
जीवन का हर एक समय, नारेबाजी में बिताओगे |

जीवन भर खुद से ही लड़े, औरों को कैसे हराओगे,
मौके दर मौके गुजरे हैं, अंत समय पछताओगे |

गमों को हंसी से है छुपाया, आँसू कैसे बहाओगे,
झूठ का ही हो चादर ओढ़े, सत्य किसे बतलाओगे |

सीख न पाये खुद ही जब, क्या औरों को सिखलाओगी,
बने हो अंधे आँखों वाले, राह किसे दिखलाओगे |

व्यवस्था यहाँ की लंगड़ी है, क्या लाठी से दौड़ाओगे,
बोल रहे बहरे के आगे, दिल की कैसे सुनाओगे |


हक खुद का लेने के लिए भी, हाथ बस फैलाओगे,
भीख मांगने के ही जैसा, हाथ जोड़ गिड़गिड़ाओगे |

लोकतन्त्र के राजा तुम हो, प्रजा ही रह जाओगे,
कृतघ्न हो जो वो प्रतिनिधि, खुद ही चुनते जाओगे |

मंगलवार, 25 दिसंबर 2012

कृष्ण हूँ मै

                कृष्ण हूँ मै
बालपन में गोद जिसकी खूब खेला
छोड़ कर उस माँ यशोदा को अकेला
नन्द बाबा ,जिन्होंने गोदी खिलाया
और गोपी गोप ,जिनका प्यार पाया
फोड़ कर हांडी,किसी का दधि  लूटा
बना माखन चोर मै ,प्यारा  अनूठा 
स्नान करती गोपियों के वस्त्र चोरे
राधिका संग ,प्रीत करके ,नैन जोड़े
रास करके,गोपियों से दिल लगाके
गया मथुरा ,मै सभी  का ,दिल दुखाके
मल्ल युद्ध में,हनन करके ,कंस का मै
बना था ,नेता बड़ा ,यदुवंश  का मै
और इतना मुझे मथुरा ने लुभाया
लौट कर गोकुल ,कभी ना लौट पाया
बन सभी से ,गयी इतनी दूरियां थी
क्या हुआ ,ये कौनसी मजबूरियां थी
रहा उन संग,अनुचित  व्यवहार मेरा
 अचानक क्यों,खो गया था प्यार मेरा  
जो भी है ,ये कसक मन में आज भी है,
सुलझ ना पाया ,कभी वो प्रश्न हूँ मै
कृष्ण हूँ मै
और मथुरा भी नहीं ज्यादा टिका मै
जरासंध से हार भागा द्वारका  मै
रुकमणी  का हरण करके कभी लाया
सत्यभामा से कभी नेहा लगाया
कभी मै लड़ कर किसी से युद्ध जीता
उसकी बेटी ,बनी मेरी परिणीता
आठ पट रानी बनी और कई रानी
हर एक शादी की निराली थी कहानी
महाभारत का हुआ संग्राम था जब
साथ मैंने पांडवों का दिया था तब
युद्ध कौशल में बड़ा ही महारथी था
पार्थ रथ का बना केवल ,सारथी  था
देख रण में,सामने ,सारे परिचित
युद्ध पथ से ,हुआ अर्जुन,जरा विचलित
उसे गीता ज्ञान की देकर नसीहत
युद्ध करने के लिए फिर किया उद्यत
और रणनीति बता कर पांडवों को
महाभारत में हराया कौरवों को
अंत,अंतर्कलह से ,लेकिन रुका  ना,
था कभी उत्कर्ष पर यदुवंश हूँ मै
कृष्ण हूँ मै 
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'


कुछ तो ख्याल किया होता

    कुछ तो ख्याल किया होता

जिनने जीवन भर प्यार किया ,
                उन्हें कुछ तो प्यार दिया  होता
मेरा ना मेरी बुजुर्गियत ,
                का कुछ तो ख्याल  किया होता
छोटे थे थाम  मेरी उंगली ,  
                   तुम पग पग चलना सीखे थे,
मै डगमग डगमग गिरता था,
                   तब मुझको  थाम लिया होता
जब तुम पर मुश्किल आई तो ,
                     मैंने आगे बढ़ ,मदद करी,
जब मुझ पर मुश्किल आई तो,
                       मेरा भी साथ दिया होता
मैंने तुमसे कुछ ना माँगा ,
                        ना मांगू ,ये ही कोशिश है,
अहसानों के बदले मुझ पर,
                        कुछ तो अहसान किया होता


मदन मोहन बाहेती'घोटू'

आप आये

       आप  आये

सर्द मौसम,आप आये
अकेलापन ,आप आये
दुखी था बमन,आप आये
बड़ी तडफन ,आप आये
खिल उठा मन,आप आये
हुई सिहरन,आप आये
मिट गया तम,आप आये 
रौशनी बन ,आप आये
खनका आँगन,आप आये
बंधे बंधन,आप आये
बहका ये तन,आप आये
महका जीवन आप आये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

ये मन बृन्दावन हो जाता

    ये मन बृन्दावन  हो जाता

तेरी गंगा, मेरी यमुना ,
                              मिल जाते,संगम हो जाता
 तन का ,मन का ,जनम जनम का,
                                  प्यार भरा बंधन हो जाता 
जगमग दीप प्यार के जलते ,
                                    ज्योतिर्मय  जीवन हो जाता
रिमझिम रिमझिम प्यार बरसता ,
                                     हर मौसन सावन हो जाता
प्यार नीर में घिस घिस ये तन,
                                     महक भरा चन्दन  हो जाता
इतने पुष्प प्यार के खिलते ,
                                      जग नंदनकानन  हो जाता
श्वास श्वास के मधुर स्वरों से,
                                      बंसी का वादन  हो जाता
रचता रास ,कालिंदी तीरे ,
                                    ये मन वृन्दावन  हो जाता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

ये प्यारा इन्कार तुम्हारा

       ये प्यारा  इन्कार तुम्हारा

पहले तो ये सजना धजना ,
                      मुझे लुभाना और रिझाना
 बाँहों में लूं ,छोडो छोडो ,
                        कह कर मुझसे  लिपटे  जाना
ये प्यारा  इन्कार  तुम्हारा ,
                     रूठ  रूठ कर के मन   जाना
वो प्यारी सी मान मनोवल ,
                      आकर  पास ,छिटक फिर जाना
इन्ही अदाओं का जादू तो,
                      मन की तड़फ ,आग भड़काता
अगर ना नुकर तुम ना करती ,
                       कैसे मज़ा  प्यार का  आता

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

रविवार, 23 दिसंबर 2012

बलात्कार

           बलात्कार
एक बलात्कार ,ka
पांच छह उद्दंड दरिंदों ने ,
एक बस में,
एक निरीह कन्या के साथ किया
और जब इसके विरोध में,
देश की जनता और युवाओ ने ,
इण्डिया गेट पर शांति पूर्ण प्रदर्शन किया ,
तो दूसरा बलात्कार ,
दिल्ली पुलिस के सेकड़ों जवानो ने ,
हजारों प्रदर्शनकारियों के साथ किया ,
जब आंसू गेस से आंसू निकाले ,
लाठियों से पीटा,
और सर्दी में पानी की बौछारों से गीला किया
कौनसा बलात्कार ज्यादा वीभत्स था? 
क्या एक अबला लड़की के साथ ,
हुए अन्याय के विरुद्ध ,
न्याय मांगना ,एक आम आदमी का ,
अधिकार नहीं है या जुर्म है ?
ये कैसा प्रजातंत्र है?
ये कैसी व्यवस्था है?
हम शर्मशार है कि ऐसी घटनाओं पर ,
एक तरफ तो नेता लोग ,
मौखिक सहानुभूति दिखलाते है ,
और दूसरी और ,प्रदर्शनकारियों को,
लाठी से पिटवाते है
      घोटू 

हाँ, मुद्दा यही है


हाँ,
मुद्दा यही है,
पर क्या ये सही  है,
वास्तविकता का कोई अंश है,
या सब ढपोरशंख है,
एक तरफ चीर हरण है,
फिर अनशन आमरण है,
क्या वाकई हृदय का जागरण है ?
हाँ, तावा वस्तुतः गरम है,
कई सेंक रहे रोटी नरम है,
चाह सबकी एक नई दिशा है,
पर दिखती दूर-दूर तक निशा है |
ओज है, साहस है,
पर मिलता सिर्फ ढाढ़स है |
चोर ही चौकीदार है,
कौन वफादार है ?

शनिवार, 22 दिसंबर 2012

जीवन पथ

               जीवन पथ 

जीवन की इतनी  परिभाषा
कभी धूप है,कभी कुहासा
      आते मौसम यहाँ सभी है
      पतझड़ कभी ,बसंत कभी है
      कभी शीत से होती सिहरन
       लू से गरम ,कभी तपता तन
देता पावस कभी दिलासा
जीवन की इतनी परिभाषा
             जीवन में संघर्ष बहुत है
             पीड़ा भी है,हर्ष बहुत है
             सुख दुःख दोनों का ही संगम
              होता है जीवन का व्यापन
कभी खिलखिला ,कभी रुआंसा
जीवन की इतनी परिभाषा 
             फूल खिलेंगे ,कुम्हलाएँगे
              भले बुरे सब दिन आयेंगे
              पथ है दुर्गम,कितनी मुश्किल
             चलते रहो ,मिलेंगी  मंजिल
बुझने मत दो ,मन की आशा
जीवन की इतनी परिभाषा 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
      

शुक्रवार, 21 दिसंबर 2012

जूताचोर

              जूताचोर
यूरोप के चर्चों में देखा ,सब जूते पहने जाते है
तुर्की की मस्जिद में जूते ,संग थैली में ले जाते है
हम तो मंदिर के बाहर ही,है जूते खोल दिया करते
एसा लगता उन देशों में ,हैं जूते चोर बहुत बसते
              घोटू 

आत्मज्ञान

            आत्मज्ञान
फोन से अपना ही नंबर ,मिला कर देखो कभी
टोन       तुमको  सुनाई देगी सदा इंगेज   की 
दूसरों बात करने में तो सब ही  मस्त है
खुद से बातें करने की पर सभी लाईन व्यस्त है 
         घोटू

कर्म और धर्म

            कर्म और धर्म
लक्ष्मी पूजन कभी भी ,ना किया बिल गेट्स ने,
फिर भी वो संसार का सबसे धनी  इंसान है
सरस्वती पूजन किया ना,कभी आइन्स्टीन ने,
मगर उसके ज्ञान से ,उपकृत हुआ विज्ञान है 
 देख कर इनकी सफलता ,यही लगता मर्म है
धर्म अपनी जगह पर है,सबसे बढ़  कर कर्म है 
          घोटू 
 

बुधवार, 19 दिसंबर 2012

परिधान-पर दो ध्यान

          परिधान-पर दो ध्यान

आदमी का पहनावा ,आदमी के जीवन में,
                       काफी महत्त्व रखता है
कसी जींस या सूट पहन कर,आदमी जवान ,
                     और फुर्तीला दिखता  है  
ढीले ढाले से वस्त्र पहनने से ,ढीलापन और,
                   सुस्ती सी छा जाती है
जैसे नाईट सूट पहनने पर सोने को मन करता
                  और नींद सी आजाती है
,सजधज कर रहने वाले,न सिर्फ जवान दिखते  है,
                    ज्यादा दिन टिकते है
अच्छी तरह पेक किये गए सामान,कैसे भी हों,
                    पर मंहगे   बिकते है 
इसीलिये,लम्बा सुखी जीवन जीना है तो श्रीमान,
                  अपने परिधान पर दो ध्यान
सजेधजे रहोगे तभी खींच पाओगे सबका ध्यान ,
                   और पाओगे सन्मान
              घोटू

चाँद और अमावास

                  चाँद और अमावास
भोलाभाला ,शांत,शीतल,     और बन्दा नेक मै
करते सब बदनाम मुझको ,कि बड़ा दिलफेंक मै
पर बड़ा ही शर्मीला हूँ,और घबराता  बहुत,
बादलों में जाता हूँ छुप, हसीनो को देख मै
चमचमाती तारिकाओं से घिरा मै रात भर ,
सभी मेरा साथ चाहें,और बन्दा  एक  मै
अमावस को थके हारे ,चंद्रमा ने ये कहा ,
महीने भर में ,एक दिन का,चाहता हूँ ,ब्रेक मै

          घोटू 

चुनौती वक़्त के साथ चलने की

देखो बू आ रही है ये दुनिया जलने की,
आज राह देखता सूरज शाम ढलने की,
जिंदगी हर एक की यहाँ पशोपेश में "दीप",
आज एक चुनौती है वक़्त के साथ चलने की |

बिखर रही मानवता माला से टूटे मोती जैसी,
रंग दिखा रही हैवानियत जाने कैसी-कैसी,
तार-तार होती अस्मिता आज सरेआम ऐ "दीप",
नैतिकता और सभ्यता की हो रही ऐसी-तैसी |

दो पल का शोक मनाने को हर कोई है खड़ा,
सच्चाई और सहानुभूति की बात करने को अड़ा,
हैवान तो है बैठा हम सबके ही बीच ऐ "दीप",
पूरा का पूरा समाज ही आज है हासिये में पड़ा |

कीमत जिंदगी और इज्ज़त की दो पैसे भी नहीं,
मौत का ही मंजर तो दिखता है अब हर कहीं,
एक-दूसरे को लूटने में ही लगे हैं सभी ऐ "दीप",
कौफजदा-सा होकर सब जी रहे हैं वहीं के वहीं |

मंगलवार, 18 दिसंबर 2012

माचिस की तिली

           माचिस की तिली
पेड़ की लकड़ी से बनती,कई माचिस  की तिली ,
सर पे जब लगता है रोगन,मुंह में बसती  आग है 
जरा सा ही रगड़ने पर ,जलती है तिलमिला कर,
और कितने दरख्तों को ,पल में करती खाक   है
                       घोटू

सम्बन्ध

      सम्बन्ध
हमारे संबंध क्या हैं ?पारदर्शी  कांच है
खरोंचे उस पार की भी,नज़र आती साफ़ है
जरा सा झटका लगे तो,टूट कर जाते बिखर ,
सावधानी से बरतना ,ही अकल की बात है
          घोटू

अजब बात

    अजब बात

देख सकते आप जिसको ,आपके जो साथ है
प्यार उसको  कर न पाते,पर अजब ये बात है
नहीं देखा कभी जिसको ,उस प्रभू के नाम का,
जाप करते रोज है और पूजते दिन रात है
           घोटू

आगर की माटी

        आगर की माटी

मालव प्रदेश की भरी मांग ,
                           इसमें  सिन्दूरी लाली है
है सदा  सुहागन यह धरती ,
                            मस्तानी है,मतवाली है
जोड़ा है लाल,सुहागन सा,
                           महकाता  इसका  कण कण है
माथे पर इसे लगाओ तुम,
                            आगर  की माटी  चन्दन है
है ताल तले भैरव बाबा ,
                            जिसकी रक्षा करने तत्पर
और तुलजा मात भवानी का,
                             है वरद हस्त जिसके सर पर
बन बैजनाथ ,कर रहे वास                    ,
                             उस महादेव का  वंदन है
माथे पर इसे लगाओ तुम,
                              आगर की माटी चन्दन है
मैने जब आँखें खोली थी ,
                            और ली पहली अंगडाई थी
नंदबाबा से बाबूजी थे ,
                             और मात यशोदा   बाई थी 
ये ही गोकुल है ,नंदगाँव ,
                               ये ही मेरा वृन्दावन  है
माथे पर इसे लगाओ तुम ,
                                आगर की माटी  चन्दन है
  है मुझे गर्व ,इस धरती  पर,
                               इस माटी  पर,इस आगर पर 
 मै इस माटी  का बेटा हूँ,
                                करता  प्रणाम इस को  सादर
इसमें है कितना वात्सल्य ,
                                कितनी  ममता अपनापन है
माथे पर इसे लगाओ तुम,
                                आगर  की माटी  चन्दन है

मदन मोहन  बाहेती'घोटू'
             

रविवार, 16 दिसंबर 2012

गम लिया करते हैं


दाव में रखकर अपनी जिंदगी को हर वक़्त हर घड़ी,
सहम-सहम के लोग आज ये जिंदगी जिया करते हैं |

सौ ग्राम दिमाग के साथ दस ग्राम दिल भी नहीं रखते लोग,
विरले हैं जो आज भी हर फैसला दिल से किया करते हैं |

बच्चे को आया के हवाले कर, पिल्ले को रखते हैं गोद में,
कहते हैं आज के बच्चे माँ-बाप का साथ नहीं दिया करते हैं |

एक दिन फेंकी थी तुमने जो चिंगारी मेरे घर की ओर,
आग बना कर उसे हम आज भी हवा दिया करते हैं |

अपनी अपनी कर के जी लेते हैं जिंदगी किसी तरह,
स्वार्थ की बनी चाय ही सब हर वक़्त पिया करते हैं |
अब तो ये चाँद भी आता है लेकर सिर्फ आग ही आग,
फिर क्यों सूरज से शीतलता की उम्मीद किया करते हैं |


सब हैं खड़े यहाँ कतार में जख्म देने के लिए ऐ "दीप",
कोई भरता नहीं हम खुद ही जख्मों को सिया करते हैं |

अपना तो जिंदगी जीने का फंडा ही अलग है ऐ "दीप",
कोशिश रहती खुशियाँ देने की और गम लिया करते हैं |

ढलती उमर का प्रणय निवेदन


 ढलती उमर  का प्रणय निवेदन

मै जो भी हूँ ,जैसा भी हूँ,तुमसे बहुत प्यार करता हूँ,
मेरी ढलती उमर देख कर ,तुम मुझको ठुकरा मत देना
माना तन थोडा जर्जर है ,लेकिन मन में जोश भरा है
इन धुंधली आँखों में देखो,कितना सुख संतोष  भरा है
माना काले केश घनेरे,छिछले और सफ़ेद हो रहे,
लेकिन मेरे मन का तरुवर,अब तक ताज़ा ,हराभरा है
तेरे उलझे बाल जाल में,मेरे नयना उलझ गए है,
इसीलिये शृंगार समय तुम,उलझी लट सुलझा मत लेना
मै जो भी हूँ,जैसा भी हूँ,तुमसे बहुत प्यार करता हूँ,
मेरी ढलती उमर देख कर,तुम मुझको ठुकरा मत देना
चन्दन जितना बूढा होता ,उतना ज्यादा महकाता है
और पुराने चांवल पकते ,दाना दाना खिल जाता है
जितना होता शहद पुराना ,उतने उसके गुण बढ़ते है,
'एंटीक 'है चीज पुरानी,उसका  दाम सदा  ज्यादा है
साथ उमर के,अनुभव पाकर ,अब जाकर परिपक्व हुआ हूँ,
अगर शिथिलता आई तन में,उस पर ध्यान जरा मत देना 
मै जो भी हूँ,जैसा भी हूँ,तुमसे बहुत प्यार करता हूँ,
मेरी ढलती उमर देख कर ,तुम मुझको ठुकरा  मत देना
साथ उमर  के ,तुममे भी तो,है कितना बदलाव आ गया
जोश,जवानी और उमंग में ,अब कितना उतराव  आ गया
लेकिन मेरी नज़रों में तुम,वही षोडसी  सी रूपवती  हो,
तुम्हे देख कर मेरी बूढी,नस नस में उत्साह   आ गया
बासी रोटी ,बासी कढ़ी   के,साथ,स्वाद ,ज्यादा लगती है ,
सच्चा प्यार उमर ना देखे,तुम इतना बिसरा मत देना
मै  जो भी हूँ,जैसा भी हूँ,तुमसे बहुत प्यार करता हूँ,
मेरी ढलती उमर देख कर,तुम मुझको ठुकरा मत देना 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


 

चुम्बक

       चुम्बक
तुझे देख पागल हो जाता
तेरी ओर खिंचा मै  आता
तुझसे मिलता लपक लपक मै
तुझसे जाता चिपक चिपक  मै
नहीं अगाथा मै  तुमको तक
पर मै समझ न पाया अबतक
मै लोहा हूँ और तुम चुम्बक
या तुम लोहा और मै  चुम्बक
      घोटू

शनिवार, 15 दिसंबर 2012

कटु सत्य

         कटु सत्य

वैज्ञानिक बताते है
कि औसतन हम अपने जीवन के ,
पांच साल खाने  में बिताते है
और  अपने  वजन का ,
सात हज़ार गुना खाना खाते है
जब ये बात मैंने एक नेताजी को बतलाई
तो बोले,सच कह रहे हो मेरे भाई
एक बार जब हमें ,आप चुनाव जितलाये  थे 
पूरे पांच साल ,हमने खाने में  बिताये  थे 
आपसे क्या छुपायें,कितना ,क्या कमाया था ,
अपनी औकात से ,सात हज़ार गुना खाया था
        घोटू 
   
      सपनो को क्या चाटेंगे

तुम भी मुफलिस ,हम भी मुफलिस,आपस में क्या बाटेंगे
बची खुची जो भी मिल जाए ,     बस वो       खुरचन  चाटेंगे 
एक कम्बल है ,वो भी छोटा,और सोने वाले  दो  हैं,
यूं ही सिकुड़ कर,सिमटे ,लिपटे,  सारा  जीवन  काटेंगे
लाले पड़े हुये खाने के,  जो भी दे  ऊपरवाला ,
पीस,पका  कर ,सब खा  लेंगे ,क्या बीनें,क्या छाटेंगे
झोंपड़ पट्टी और बंगलों के बीच खाई एक ,गहरी है,
झूंठे आश्वासन ,वादों से       ,कैसे इसको    पाटेंगे 
क्या धोवेगी और निचोडेगी ,ये किस्मत नंगी है,
यूं ही फांकामस्ती में  क्या  ,बची जिन्दगी काटेंगे
पेट नहीं भरता बातों से ,तुम जानो,हम भी जाने,
मीठे सपने,मत पुरसो  तुम,सपनो को क्या चाटेंगे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

गुरुवार, 13 दिसंबर 2012

जम्बू फल प्रियं

       जम्बू फल प्रियं 
( गजाननं भूतगणादी  सेवकं ,
कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणं ....)
 लम्बोदर है श्री  विनायक
आगे भरे थाल में  मोदक
मोदकप्रिय ,स्थूल देह है
शायद  इनको मधुमेह है
इसीलिए प्रिय फल है जामुन
जो करता है मधुमेह कम
मधुमेह उपचार कहाता
जामुन उनके  मन को भाता
      घोटू 

वकील या श्री कृष्ण

         वकील या श्री कृष्ण 

झगडा जोरू ,जमीन और ज़र का
ये  किस्सा तो है  हर घर का
भाई भाई के परिवार
जब हो आपस में लड़ने को तैयार
और किसी के मन में ये ख्याल आ जाय
भाई और रिश्तेदारों से क्यों लड़ा जाय
ऐसे में जो लडाई करने को उकसाता है 
वो या तो वकील होता है,
या श्री कृष्ण कहलाता है
        घोटू

pate ki baat


पक्षपात

      पक्षपात
जब होता है समुद्र मंथन
तो दानव और देवता गण
करते है बराबर की मेहनत
पर जब निकलता है अमृत
तो विष्णु भगवान,मोहिनी रूप धर
सिर्फ देवताओं को अमृत बाँट कर
स्पष्ट ,करते पक्षपात है
बरसों से चली आ रही ये बात है 
जो सत्ता में है,राज्य करते  है
अपने अपनों का घर भरते है
अपनों को ही ठेका और प्रमोशन
टू जी ,या कोल ब्लोक का आबंटन
देकर परंपरा निभा रहे है
तो लोग क्यों हल्ला मचा रहे है ?
          घोटू

मधुर मिलन की पहली रात

  मधुर मिलन की पहली रात

मेंहदी से तेरे हाथ रचे ,और प्यार रचा मेरे मन में
मुझको पागल सा कर डाला ,तेरी शर्मीली चितवन में
तेरे कंगन की खन खन सुन ,
                         है खनक उठी  मेरी नस नस
तेरी मादक,मदभरी महक,
                         है खींच रही मुझको बरबस 
नाज़ुक से हाथों को सहला ,
                         मन बहला नहीं,बदन दहला
हूँ विकल ,करू किस तरह पहल,
                         यह मिलन हमारा है पहला 
मन हुआ ,बावला सा अधीर,है ऐसी अगन लगी तन में
मेंहदी से तेरे हाथ रचे, और प्यार रचा मेरे   मन में
मन का मयूर है नाच रहा,
                             हो कर दीवाना  मस्ती में
तुमने निहाल कर दिया मुझे,
                               बस कर इस दिल की बस्ती में
चन्दा सा मुखड़ा दिखला दो,
                                क्यों ढका हुआ  घूंघट पट से
मतवाली ,रूप माधुरी का,
                                रसपान करूं ,अमृत घट से
सब लाज,शर्म को छोड़ छाड़ ,आओ बंध  जाये  बंधन में
मेंहदी से तेरे  हाथ रचे ,और प्यार रचा  मेरे मन   में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 
                      

शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012

हवायें

                हवायें
हमारी हर सांस में बसती हवायें
सांस ही तो सभी का जीवन चलाये
देह सबकी ,पंचतत्वों से बनी है
तत्व उन में ,एक होती, हवा भी है
कभी शीतल मंद बहती है  सुहाती
कभी लू बन ,गर्मियों में तन जलाती
है बड़ी बलवान ,जब होती खफा है
विनाशक तूफ़ान लाती हर दफा  है
पेट ना भरता हवा से ,सभी जाने
घूमने ,सब मगर जाते,हवा  खाने
चार पैसे ,जब किसी के पास ,जुड़ते
बात करते है हवा में, लोग उड़ते
मगर जब तकदीर अपना रंग दिखाती
हवा ,अच्छे अच्छों की है खिसक जाती
चली फेशन की हवा तो घटे कपडे
लगी पश्चिम की हवा तो लोग बिगड़े
नहीं दिखती ,हर जगह ,मौजूद है पर
चल रहा जीवन सभी का ,हवा के बल
             घोटू 

PATE KI BAAT


गुरुवार, 6 दिसंबर 2012

सब कुछ गुम हो गया

        पते  की बात
  सब कुछ  गुम  हो गया

रात की नीरवता ,ट्रक और बसों की ,
                   चिन्धाड़ों  में  गुम  हो गयी 
दादी नानी की कहानियां,टी वी के,
                      सीरियलों में गुम  हो गयी 
बच्चों के चंचलता ,स्कूल के ,
                     होमवर्क के बोझ  से गुम  हो गयी
परिवार की हंसीखुशी ,बढती हुई ,
                     मंहगाई के बोझ से  गुम   हो  गयी
आदमी की भावनाएं और प्यार ,
                       भौतिकता के भार तले गुम हो गया
घर के देशी खाने का स्वाद ,
                      पीज़ा और बर्गर के क्रेज़ में गुम हो गया
   अब तो बस,मशीनवत ,जीवन सब जीते है
   भरे हुए दिखते  है ,अन्दर से रीते     है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'


 
 

बुधवार, 5 दिसंबर 2012

गिरावट

          गिरावट

मंहगाई गिरती है,लोग खुश होते है
 संसेक्स गिरता है कई लोग रोते है 
पारा  जब गिरता है,हवा सर्द होती है
पाला जब गिरता है ,फसल नष्ट होती है 
सरकार गिरती है तो एसा होता है
कोई तो हँसता है तो कोई रोता है
आंसू जब गिरते है,आँखों से औरत की
शुरुवात होती है ,किसी महाभारत  की
लहराते वो आते  ,पल्लू  गिराते है
बिजली सी गिरती जब वो मुस्कराते है
शालीनता गिरती है,वस्त्र घटा करते है
आदर्श गिरते जब वस्त्र  हटा करते है
लालच और लिप्सा से ,मानव जब घिरता है 
पतन के गड्डे में,अँधा हो गिरता  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

पेन्सिल मै

  पेन्सिल मै 

प्रवृत्ति उपकार की है,भले सीसा भरा दिल में
                                       पेन्सिल   मै
मै  कनक की छड़ी जैसी हूँ कटीली
किन्तु काया ,काष्ठ सी ,कोमल ,गठीली
छीलते जब मुझे ,चाकू या कटर  से
एक काली नोक आती है निकल  के
जो कि कोरे कागजों पर हर्फ़  लिखती
भावनाएं,पहन जामा, शब्द   दिखती
प्रेम पत्रों में उभरता ,प्यार मेरा
नुकीलापन  ही बना श्रृगार  मेरा
मोतियों से शब्द लिखती,काम आती बहुत,छिल, मै
                                                  पेन्सिल   मै 
शब्द लिखना ,सभी को मैंने सिखाया 
साक्षर कितने निरक्षर  को बनाया
कविता बन,कल्पनाओं को संवारा
ज्ञान का सागर ,किताबों में उतारा
कलाकृतियाँ ,कई ,कागज़ पर बनायी
आपके हित,स्वयं की हस्ती मिटाई
बांटने को ज्ञान, मै , घिसती रही हूँ
छिली,छिलती रही  पर लिखती रही हूँ
कर दिया उत्सर्ग जीवन,नहीं कोई कसक दिल में
                                               पेन्सिल मै

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

भगवान और गूगल अर्थ

    भगवान और गूगल अर्थ

'फेसबुक 'की तरह होता खुदा का दीदार है,
मंदिरों में हमें दिखता  ,देव का दरबार  है
बजा कर मंदिर में घंटी,फोन करते है उसे ,
बात सबके दिल की सुनता ,वो बड़ा दिलदार है
मन्त्र से और श्लोक से हम ,'ट्विट ' करते है उसे ,
आरती 'यू ट्यूब 'से करता सदा स्वीकार है
भले 'गूगल अर्थ'बोलो या कि तुम 'याहू'कहो,
'अर्थ'ये उसने रची है, उसी का संसार  है

घोटू

परछाई

         परछाई
सुबह हुई जब उगा सूरज ,मै  निकला ,मैंने देखा ,
       चली आ रही ,पीछे पीछे ,वो मेरी परछाईं थी
सांझ हुई और सूरज डूबा ,जब छाया अंधियारा तो,
     मैंने पाया ,साथ छोड़ कर ,चली गयी परछाईं थी 
रात पड़े ,जब हुई रौशनी ,सभी दिशा में बल्ब जले,
     मैंने देखा ,एक नहीं,अब चार चार परछाईं थी
मै  तो एक निमित्त मात्र था,सारा खेल रौशनी का,
    जब तक जितनी रही रौशनी ,तब उतनी परछाईं थी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

मंगलवार, 4 दिसंबर 2012

जब से जागो तभी से सबेरा.....

















होता है कभी - कभी यूँ भी कि
इंसान बिना जाने - समझे
मान बैठता है दिल की बात,
पकड़ लेता है एक ऐसी राह जो
नहीं होती उसके लिए उपयुक्त
नहीं पहुँचती किसी मंजिल तक,
लेकिन चूंकि होता है एक जूनून
होते हैं ख्वाब जिनका पीछा करते
निकल जाता है बहुत दूर - बहुत आगे,
तब अचानक लगती है एक ठोकर,
बहुत तेज़ - बहुत ज़ोरदार कि
खुल जाती है जैसे उसकी आँख
हो जाता है अपनी गलती का एहसास,
लेकिन अब ?......क्या करे - क्या न करे
पीछे लौटे - आगे जाए - ठहर जाए
या फिर कोई नयी राह ली जाए......
अब टूट चुके होते हैं सारे ख्वाब
पूरी तरह से बुझ चुका होता है दिल
और हो चुका होता है एकदम निराश....
तभी एकाएक याद आती है उसे
बुजुर्गों से अक्सर ही सुनी हुई ये बात
कि जो होता है अच्छे के लिए होता है,
कुछ छूट जाने - कुछ खो जाने से
सब कुछ ख़त्म नहीं होता है.....
नहीं थी वो राह तुम्हारे लिए ठीक
अच्छा हुआ जो अभी लग गयी ठोकर
वर्ना आगे होती और ज्यादा तकलीफ,
उठो - खड़े होओ - और पकड़ो एक नयी राह,
अभी कुछ भी नहीं है बिगड़ा मत होओ निराश
क्योंकि जब से जागो तभी से सबेरा होता है......

- VISHAAL CHARCHCHIT

सोमवार, 3 दिसंबर 2012

मानसिकता

    पते की बात
मानसिकता
तुम्हे नीचे खींचने की ,कोई गर कोशिश करे ,
करो खुद पर गर्व मन में ,बिना कोई से डरे
उनसे तुम ऊपर बहुत है ,बात ये तय मानलो
और उनकी मानसिकता ,गिरी है ये जान लो
घोटू

मुश्किलें

     पते की बात
   मुश्किलें
जब भी हो मुश्किल में तुम या परेशां,अवसाद में
 खड़े तुम हो जाओ जाकर आईने के सामने
आईने में आपको एक नज़र चेहरा आएगा
कैसे मुश्किल से निकलना ,आपको बतलायेगा
घोटू

बटन

    पते की बात

बटन
कदम पहला ठीक हो तो काम सब बन जायेंगे
सही यदि पहला बटन ,तो सब सही लग जायेंगे
घोटू

जिंदगी और मज़ा

पते की बात
जिंदगी और मज़ा

मैंने माँगा खुदा से ऐ खुदा दे सब कुछ मुझे,
जिंदगी का मज़ा पूरा उठा मै  जिससे सकूं
खुदा बोला 'बन्दे मैंने दी है तुझको जिंदगी ,
सभी कुछ का मज़ा ले ले ,जितना मन में आये तू
घोटू

हथियार

     पते की बात
 हथियार
दो हथियार है ,बड़े खतरनाक और धाँसू
एक लड़की की मुस्कराहट,दूसरा उसके आंसू
घोटू

भगवत उचाव

      पते की बात
भगवत उचाव
 तू वही करता है जो तू चाहता
मगर होता वही जो मै  चाहता
तू वही कर ,जो की मै हूँ चाहता
फिर वही होगा जो है तू चाहता
घोटू

डस्ट बिन

       पते की बात          

        डस्ट बिन
नोट दस रूपये का मुझको ,मिला,मैंने ये कहा ,
 इस तरह इतराओ मत ,कागज़ का एक टुकड़ा हो तुम
मुस्कराया नोट बोला ,दोस्त सच कहते  हो तुम ,
मगर अब तक नहीं देखी ,मैंने कोई  'डस्ट  बिन '
घोटू

प्यार और मौत

  पते की बात
प्यार और मौत
प्यार और मौत ,है ऐसे  मेहमान,जो आ जाते ,बुलाये बिन
एक  दिल ले जाता है और  एक दिल की  धड़कन
घोटू

मुश्किलें

      पते की बात
   मुश्किलें
जिंदगी में ,आधी मुश्किल ,आती है इस वास्ते ,
बिना सोचे और समझे ,काम कुछ करते है हम
और बाकी आधी मुश्किल ,आती है इस वास्ते ,
सोचते ही रहते है और कुछ नहीं करते है हम
घोटू

जेब

    पते की बात
   जेब
है अजब ये जिंदगानी ,जब थे हम पैदा हुए ,
पहले ,पहनी ,लंगोटी,उसमे न कोई जेब था
जिंदगी भर जेब भरने की कवायद में लगे,
मरे तो ओढा कफ़न, उसमे न कोई जेब था
घोटू

साहस

    पते की बात
   साहस
मै  बड़ा दुस्साहसी था,चला दुनिया बदलने
जब समझ आई तो अब मै ,लगा खुद को बदलने
घोटू

रिश्ते

 
पते की बात
 रिश्ते
कभी रिश्ते निभाने में,रास्ते हो जाते गुम
कभी रस्ते चलते चलते ,नए रिश्ते जाते बन
घोटू

समय

      पते की बात
    समय
आपकी गलती लतीफा,जब समय अनुकूल हो
लतीफा भी गलती बनता ,जो समय प्रतिकूल हो
घोटू

गलतियां

      पते की बात
  गलतियां 
गलतियाँ कर सुधारो ,मत करो इतनी गलतियाँ
पेंसिल से पहले ही तो ये रबर  घिस जाए ना
घोटू

मील का पत्थर

  पते की बात
मील का पत्थर

जिंदगानी के सफ़र में,कितने ही पत्थर मिले,
बिना उनकी किये परवाह ,आगे हम बढ़ते गए
मील के पत्थर बने वो,रास्ते के चिन्ह है,
बाद में पहचान रस्ते की वो पत्थर  बन गए
घोटू

हम अब भी दीवाने है

         हम  अब भी दीवाने है

बात प्यार की जब भी निकले ,हम तो इतना जाने है
हम पहले भी दीवाने थे ,हम अब भी दीवाने  है
प्यार ,दोस्ती से यारी है ,नफरत है गद्दारी से ,
डूबे रहते है मस्ती मे ,हम तो वो  दीवाने  है
ना तो कोई लाग  लगावट,नहीं बनावट बातों में,
ये सच है ,दुनियादारी से,हम थोड़े अनजाने  है
कल की चिंता में है खोया ,हमने मन का चैन नहीं,
नींद चैन की लेते है हम ,सोते खूँटी  ताने  है
सीधा सादा सा स्वभाव है ,छल प्रपंच का नाम नहीं ,
पंचतंत्र और तोता मैना के बिसरे  अफ़साने है
खाने और पकाने में भी ,काम सभी के आये थे , 
मोच पड़ गयी,भरे हुए पर,बर्तन भले पुराने है 
जिनके प्यारे स्वर उर अंतर ,को छू छू कर जाते है,
राग रागिनी  रस से  रंजित,हम वो पक्के गाने है
दाना दाना खिल खिल कर के ,महकेगा,खुशबू देगा ,
कभी पका कर तो देखो ,चावल बड़े पुराने है
काफी कुछ तो बीत गयी है ,बीत जायेगी बाकी भी ,
हँसते गाते ,मस्ती में ही ,बाकी दिवस बिताने है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

शनिवार, 1 दिसंबर 2012

तेरे ईश्क़ में जालिम बदनाम हो गए


बेपर्दा तो अब हम सरेआम हो गए,
तेरे ईश्क़ में जालिम बदनाम हो गए |

सम्मोहन विद्या तूने ऐसी चलाई,
दो पल में हम तेरे गुलाम हो गए |

छोड़ दिया खाना जब याद में तेरे,
दो हफ्तों में ही चूसे हुए आम हो गए |

चुराया था तूने जबसे चैन को मेरे,
रात सजा और दिन मेरे हराम हो गए |

जुदाई तेरी मुझसे जब सही न गई,
खाली कितने जाम के जाम हो गए |

गम में तेरे कुछ इस कदर रोया,
हृदय के भीतर कोहराम हो गए |

सोचता रहा मैं दिन-रात ही तुझे,
खो दिया सबकुछ, बेकाम हो गए |

समझा था मैंने, तुझे सारे तीरथ,
सोचा था तुम ही मेरे धाम हो गए |

पता नहीं क्या-क्या सपने सँजो लिए,
फोकट में ही इतने ताम-झाम हो गए |

चक्कर में तेरे जिस दिन से पड़ा,
उल्टे-पुल्टे मेरे सारे काम हो गए |

फेसबुक में देखा तो हूर थी लगी,
मिला तो अरमाँ मेरे धड़ाम हो गए |

कस जो लिया तूने बाहों में अपने,
लगने लगा जैसे राम नाम हो गए |

एक बार तो मुझको ऐसा भी लगा,
चाहतों के मेरे क्या अंजाम हो गए |

टॉप-अप जो तेरा बार-बार करवाया,
कपड़े तक भी मेरे नीलाम हो गए |

चाहकर तुझको शायद पाप कर लिया,
नरक में जाने के इंतजाम हो गए |

चबाया है तूने ऐसे प्यार को मेरे,
प्यार न हुआ, काजू-बादाम हो गए |

आंसुओं से तूने कुछ ऐसे भिगाया,
बार बार मुझको जुकाम हो गए |

घेरे से छुटकर अब लगता है ऐसे,
आम के आम, गुठलियों के दाम हो गए |

बेपर्दा तो अब हम सरेआम हो गए,
तेरे ईश्क़ में जालिम बदनाम हो गए |

माँ का त्याग

      पते की बात
    माँ का त्याग
घर में पांच लोग होते थे,,
          पर जब  चार सेव   आते 
तब माँ ही होती जो  कहती ,
          मुझे सेव फल ना भाते   
घोटू

सिक्के और नोट

      पते की बात
  सिक्के और नोट
सिक्के जो छोटे होते ,आवाज  हमेशा करते है ,
               वैसे ही छोटे लोगों में, बड़ा छिछोरापन  होता
नोट बड़े होते है पर ,खामोश हमेशा  रहते है,
              इसी तरह से बड़े लोग में ,बड़ा ,बड़प्पन है होता
घोटू

भगवान और मंदिर

         पते की बात 
  भगवान और मंदिर
उनने बोला 'हर जगह भगवान है मौजूद तो,
          मंदिरों की क्या जरूरत है ,हमें बतलाईये
हमने बोला 'हर जगह मौजूद कमरे में हवा ,
       फिर क्यों पंखे चलाते हो ,हमको ये समझाईये
घोटू

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