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रविवार, 30 जून 2019

जीना मरना

कोई कहता रूप तुम्हारा है कातिल
तुम जालिम हो ,तुमने लूट लिया है दिल
कोई कहता अदा तेरी  मतवाली है
चुरा लिया दिल,तूने नींद  चुराली है
कोई कहता ,तेरा हुस्न निराला है
जादूगरनी हो,जादू कर डाला है
बहेलिया हो ,रूपजाल में फंसा लिया
मुझे कैद कर ,अपने दिल में बसा लिया
तू है तीरंदाज ,तेरे नयना चंचल
चला चला कर तीर किया मुझको घायल
कोई कहता तू है पूरी मधुशाला
बूँद बूँद में नशा रूप तेरा हाला
रात रात भर ,सपनो में है तू आती
रूप,अदा से मेरे दिल को तड़फ़ाती  
सच्चे दिल से तुझे प्यार मैं करता हूँ
तेरी याद में ठंडी आहें भरता हूँ
तू कातिल है ,जालिम और लुटेरी है
जादूगरनी ,चोर बड़ी अलबेली है
तीर चला नैनों से घायल कर देती
रूपजाल में फंसा ,कैद दिल कर लेती
तेरे संग जीने की चाहत करता हूँ
फिर भी कहता हूँ मैं तुझ पर मरता हूँ

घोटू 
इच्छाओं का अंत नहीं है

महत्वकांक्षाये मत पालो ,हर दिन बढ़ती ही जाती है
बहुत हृदय को दुःख देती है ,पूर्ण नहीं जब हो पाती है
सुख दुःख आते ऋतुओं जैसे  ,हर ऋतू सदा बसंत नहीं है
इच्छाओं का अंत नहीं है
कभी किसी से करो न आशा ,चाहे अपने हो कि पराये
निकले पंख ,सीख कर उड़ना ,नीड छोड़ ,बच्चे उड़ जाये
कोई किसी का साथ निभाता ,है जीवन पर्यन्त  नहीं है
इच्छाओं का अंत नहीं है
तुम चाहे कितना भी धो लो,किन्तु सफ़ेद न होता काजल
श्वान पूंछ सीधी  ना होती ,रखो नली में लाख दबाकर
सुन्दर पुष्प दिखे  कागज के ,आती मगर सुगन्ध नहीं है
इच्छाओं का अंत नहीं है
कभी एक को ,दो को दस को ,तो तुम मुर्ख बना सकते हो
ऊंचे ऊंचे  सपन दिखा कर ,तुम बहला फुसला  सकते हो
किन्तु तुम्हारा बड़बोलापन ,करता कोई पसंद नहीं है
इच्छाओं का अंत नहीं है
बात बात पर पंगा मत लो ,कहीं कोई दंगा ना करदे
पोल तुम्हारी हाथ आगयी ,तो  तुमको  नंगा ना करदे
मिलजुल रहो ,प्रेम से बढ़ कर ,कहीं कोई आनंद नहीं है
इच्छाओं का अंत नहीं है
तुम्हारी एक एक हरकत को ,नज़र हरेक की देख रही है
समझे ना तुम्हारी मंशा ,दुनिया इतनी   मुर्ख नहीं है
जो भी बोलो ,तौल मोल कर,गप्पों पर  प्रतिबंध नहीं है
इच्छाओं का अंत नहीं है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '          
आज गरीबी फैशन में है

तेल विहीन केश है सूखे ,  दाढ़ी बढ़ी ,नहीं कटवाते
फटी हुई और तार तार सी ,जीन्स पहन कर है इतराते
कंगालों सा बना हुलिया ,जाने क्या इनके मन में है
                                  आज गरीबी फैशन में है  
खाली जेब ,पास ना पैसा ,बात बात में करें उधारी
 क्रेडिट कार्ड ,बैंक का कर्जा ,लोन चुकाओ ,मारामारी
घर और कार ,फ्रिज ,फर्नीचर ,सभी बैंक के बंधन में है
                                       आज गरीबी फैशन में है
पूरा दिन भर ,पति और पत्नी ,ड्यूटी पर जाते रोजाना
जंक  फ़ूड से पेट भर  रहे, ना नसीब में ताज़ा  खाना
,अस्त व्यस्त और पस्त जिंदगी नहीं कोई सुख जीवन में है
                                         आज गरीबी फैशन में है

मदन मोहन बाहेती'घोटू '

गुरुवार, 27 जून 2019

गर्मी की छुट्टियां -तब और अब

एक जमाना था जब
जैसे ही बच्चों की परीक्षायें निपटती थी
और गर्मी की छुट्टी लगती थी
हमारी पत्नीजी ,बच्चों के साथ ,
सीधे अपने मायके भगती थी
वैसा ही प्रोग्राम उनकी बहनो का भी होता था
जो देर सबेर अपने बच्चों के साथ ,
मायके आ धमकती थी
और जब सब बहने इकट्ठी हो जाती थी
तो ससुराल की व्यस्त जिंदगी से दूर ,
बच्चों की छुट्टियों के साथ साथ ,
खुद भी छुट्टियां मनाती थी
बस दिन भर खाना पीना और  गप्पे मारना
इनका शगल होता था
बच्चे मिलजुल कर ,धमाल चौकड़ी मचाते थे ,
घर में खूब कोलाहल होता था
जब पूरा कुनबा जुड़ता था
तो उनकी माँ का भी पूरा प्यार उमड़ता था
रोज बनाये जाते थे तरह तरह के पकवान
और मंगाये जाते थे टोकरे भर आम
जिन्हे सब रात को छत पर बैठ कर खाया करते थे
देर तक गप्पे मारते और
रात को वहीँ सो जाया करते थे
मायके में बीबियां मनाती थी टोटल छुट्टी
भाई बहन से मेलमिलाप और पतिदेव से कुट्टी
बेचारे पतिदेव ,अकेले ,रूखी सूखी
या जैसी भी बन पड़ती ,खाया करते थे
और छुट्टियों के दिन गिनते हुए ,
कैसे भी तन्हाई में अपना काम चलाया करते थे
तब की छुट्टियां और आजकल की छुट्टिया ,
इनमे होता था बड़ा फर्क
तब आजकल की तरह नहीं होता था
छुटियों के लिए कोई होमवर्क या प्रोजेक्ट वर्क
वर्ना आजकल की छुट्टियों में तो बच्चों का
हो जाता है बेड़ा गर्क
बस कहीं कहीं ,आठ दस दिन के लिए ,
'समरकेम्प 'लगाए जाते है
जहाँ थोड़े खेलकूद और कुछ हुनर सिखाये जाते है
निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार ,
अनुशासन में रहने को कहा जाता है
और इसमें भी बड़ा खर्चा आता है
पर उन दिनों  छुटियों में बेफिक्र ,
दादा दादी या नाना नानी के घर जाना
परिवार के अन्य बच्चों के साथ मिल कर
मस्तियाँ  करना और मजे उठाना
दरअसल ये भी एक तरह के 'समरकेम्प 'होते थे
जहाँ चचेरे ,ममेरे और फुफेरे भाई बहन ,
साथ साथ रह कर ,भाईचारे के बीज बोते थे
एक दुसरे से अच्छी पहचान और प्यार बढ़ाया जाता  था
ये वो समरकेम्प होते थे जहाँ ,
संयुक्त परिवार के सुख और
रिश्तेदारी निभाने का पाठ पढ़ाया जाता था
इनमे बच्चे ,खेल खेल में  या स्पर्धा में
या नानी  दादी से शाबाशी पाने
बहुत कुछ सीख जाया करते थे
रिश्तों की अहमियत पहचान जाया करते थे
मौसियों,भुआओ  और मामियो से प्यार बढ़ता था
इस मेलजोल से उनका व्यक्तित्व निखरता था
बचपन में हर वर्ष ,कुछ दिन ,
साथ साथ रहने से ,रिश्ते इतने पनपते थे
कि वो ताउम्र अच्छी तरह निभते थे
वरना आज के कई बच्चे अपने ,
चचरे ,ममेरे और फुफेरे भाई बहनो को ,
जिन्हे आजकल 'कजिन ' कहते है ,
अच्छी तरह जानते तक नहीं है  
पहचानते तक नहीं है
इसका कारण हम आजकल पहले जैसी ,
गर्मी की छुट्टियां नहीं मना रहे है
इसलिए भाईचारे के पौधे सूखते जारहे है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

बुधवार, 26 जून 2019

मन तो करता है
 
कहीं कोई सुन्दर सी लड़की ,जो दिख जाती है ,
कैसे भी हम उसे पटायें ,मन तो करता  है
वस्त्र चीर कर ,रूप रश्मि जब ,झलक दिखाती है ,
बार बार हम दर्शन पायें ,मन तो करता है
नीला अम्बर ,मस्त पवन और दूप सुनहरी है ,
बन विहंग ,हम भी उड़ जायें ,मन तो  करता है
सिकते हो भुट्टे और सौंधी खुशबू आती हो  ,
चबा न पायें ,लेकिन खाएं ,मन तो करता है
शुगर बढ़ी ,मिष्ठान मना पर गरम जलेबी है ,
जी ललचाये ,खा ना पाएं ,मन तो करता है
उम्र बढ़ गयी ,शिथिल हुआ तन ,हिम्मत नहीं रही ,
पर यौवन सुख ,फिर से पाएं ,मन तो करता है
चार कदम चल लेने पर भी ,सांस फूलती है ,
कभी कभी हम दौड़ लगाएं ,मन तो करता है
दीवाना ,मतवाला लोभी मचला करता है ,
कैसे, कौन इसे समझाए मन तो करता है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
 
आईने के पीछेवाला शख्स

मन  विदीर्ण
तन जीर्ण शीर्ण
आईने के पीछे वो कौन शख्स खड़ा है
उम्र में लगता ,मुझसे बहुत बड़ा है
 रह रह कर
पीड़ाये सह सह कर
उसकी  आँखें  पथरा  गयी है
चेहरे पर उदासी छा गयी है
मायूसियों ने उसे  घेर लिया है
खुशियों ने मुंह फेर लिया है
देखो चेहरा कैसा मुरझाया पड़ा है
आईने के पीछे वो कौन शख्स खड़ा है
क्या वो मैं हूँ या मेरा अक्स है
नहीं नहीं ,वो मैं नहीं हो सकता ,
वो तो कोई दूसरा ही शख्स है
मैं तो हँसता हूँ ,गाता हूँ
हरदम मुस्काता हूँ
चौकन्ना और चुस्त हूँ
एकदम दुरुस्त हूँ
मेरे मन में सबके लिए प्यार बसा है
मुझमे जीने की लालसा है
उदासियाँ मुझसे कोसों दूर है
मेरी जिंदादिली मशहूर है
उम्र कितनी भी हो जाय ,
मैं खुशियां खो नहीं सकता
इसके जैसा मेरा हाल  हो नहीं सकता
इस पर  तो मनहूसियत का रंग चढ़ा है
आईने के पीछे ,वो कौन शख्स खड़ा है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' ,

सोमवार, 24 जून 2019

सास बहू संवाद

सास बोली बहू से कि ,तू  नई है
बुरे अच्छे का पता तुझको नहीं है
जो भी करती आई मैं ,वो ही सहीहै  
मुझसे अच्छा ,घर में  कोई भी नहीं है
मुझको मालुम ,घर को कैसे सजाते है
 मुझको मालुम,पैसा कैसे बचाते  है
तू नयी ,नौसिखिया ,तूने न जाना
कितना मुश्किल ,सफलता से घर चलाना
जवानी के गर्व में इठला न किंचित
मोहल्ले के सभी है  मेरे परिचित
बात मेरी ,गाँव सारा मानता है
तुझको मुश्किल से ही कोई जानता है
मैं बड़ी हूँ ,तुझे यदि ना भान होगा
सासपन मेरा यूं ही कुरबान होगा
चुप न रह पाती भले आराम में हूँ
ढूंढती कमियां तेरे हर काम में हूँ
कहीं ऐसा न हो तू गर्वान्वित हो
लोगों का दिल जीत ले,लाभान्वित हो
भूल मत ,मैंने बहू तुझको बनाया
भूल मत ,सर पर तुझे मैंने चढ़ाया
क्या पता था ,बजा तू यूं बीन देगी
मुझसे ही तू मेरा बेटा छीन लेगी
इसलिए सुन ,बढ़ न तू मुझसे अगाडी
तू अनाडी ,और पुरानी  मैं खिलाड़ी
अनुभव और ज्ञान का अहसास हूँ मैं
बात मेरी मान ,तेरी सास हूँ मैं
बहू बोली ,सास बलिहारी तुम्हारी
तुम्हारे पद चिन्ह पर चल रही सारी
सिर्फ मेरी सोच में है कुछ समर्पण
पाएं घरवाले ख़ुशी ,कर रही अर्पण
तन और मन से ,जो भी मुझसे बन सका है
फिर भी माथा आपका क्यों ठनकता है
भूल सकता कौन है तुम्हारी हस्ती
बहुत दिन तक चलाई तुमने गृहस्थी
थक  गयी  होगी ,जरा आराम देखो  
शांति से मैं कर रही वो काम देखो
लालसा सत्ता की है जो भी हटा दो
मन में लालच है अगर ,उसको घटा दो
आपने की सेवा ,पाया खूब मेवा
छोड़ गृहसेवा ,करो अब प्रभु सेवा

घोटू

गुजरे दिन

अब दीवारें फांदने के दिन गये
हसीनो को साधने के दिन गये गये

हुआ जो तुमको किसी से प्यार है
पहुँचने के लिए घर का द्वार  है
खिड़कियों से झाँकने के दिन गये
अब दीवारें फांदने के दिन गये

ढला ही करती सभी की उमर है
दिल का आना पर न कोई जुरम है
प्यार के अधिकार तो ना  छिन  गये
अब दीवारें फांदने के दिन गये

सब के मन में मचलता रोमांस है
हरेक को पर नहीं मिलता चांस है
ढूंढ लो तुम,मिलन के पल छिन नये
अब दीवारें फांदने के दिन गये

खुल अब ना खेलने  की है उमर
मिले जितना ,करो उससे ही सबर
अब छलांगे मारने के दिन गये
अब दीवारें फांदने के दिन गये

घोटू 

रविवार, 23 जून 2019

इज्जत

किसी ने मुझसे पूछा यार ये इज्जत क्या है
सभी की नाक में दम ,इसने कर के रख्खा है
कहा हमने किसी के, जब भी छुए जाते चरण
इसका मतलब है कि उसकी इज्जत करते हम
कोई धनवान है तो उसकी बड़ी इज्जत है  
कोई बलवान है तो उसकी बड़ी इज्जत है
कोई सत्ता में है तो लोग करते है  इज्जत
कोई को दिलवाता इज्जत है उसका ऊंचा पद
देश की इज्जत को  सैनिक शहीद हो  जाते
बढ़ती इज्जत ,खिलाड़ी ,जीत पदक जब लाते
किसीको सर झुकाओ ,नमस्कार प्रणाम करो
कहो आदाब अर्ज ,झुक के या सलाम करो
ये तो इज्जत के प्रदर्शन के सब तरीके है
जो कि सब हमने अपने बुजुर्गों से सीखे है
ये इज्जत क्या है और ये रहती कहाँ पर है
किसी के सर की पगड़ी इज्जत का उसकी घर है
कोई की नाक ऊंची ,याने कि इज्जत उसकी
गयी इज्जत तो समझो नाक कट गयी उसकी
कभी घटती है इज्जत तो  नज़र झुक जाती
पकड़ के कान ,बनो मुर्गा तो  इज्जत जाती  
कोई की इज्जत उसकी मूछों में नज़र आती
मूंछ बाल हुआ बांका ,इज्जत घट जाती
टेकना घुटने ,किसी आगे ,घटाता  इज्जत
आपके हाथों में रहती है आपकी इज्जत
आपके वस्त्र भी इज्जत को ढका करते है
गलती की ,दाग फिर इज्जत पे लगा करते है
काम अच्छे करो ,इज्जत कमाई जाती है
गलत हो काम तो इज्जत गमाई जाती है
कहीं  नीलाम होती और कहीं बेचीं जाती
धूल हो जाती कहीं मिट्टी  में ये मिल जाती
जरा  सी भूल से इज्जत पे बट्टा लग जाता
डूब जाती है या फिर उसपे पानी फिर जाता
कभी उतारी कभी लूटी जाती है इज्जत ,
ये घटित होता है माँ और बहनो संग जब तब
फेल बेटा  हुआ ,माँ बाप की इज्जत जाती
अच्छे कॉलेज में पढता है तो इज्जत आती
ये इज्जत अहम् है ,व्यवहार की प्रक्रिया है
बड़ा मुश्किल है समझना कि ये इज्जत क्या है
छोड़ दो शान झूठी ,जड़ है जो फ़जीहत की
चैन से जियो ,खाओ ,दाल रोटी इज्जत की

मदन मोहन बाहेती ;घोटू '
जवानी के बीते दिन


हमें वो प्यार की बातें पुरानी याद आती है
एक राजा याद आता है एक रानी याद आती है
जवानी में कभी ना ख्याल तक आया बुढ़ापे का ,
बुढ़ापा आगया तो अब जवानी  याद आती है
सुनहरे होते थे दिन और रंगीली रात होती थी ,
हवा में उड़ते थे ,साँझें सुहानी याद आती है
बहुत पुश्तैनी दौलत थी,उड़ादी यूं ही मस्ती में ,
अब करना काम पड़ता है तो नानी याद आती है
सुनु में माँ की या फिर बात अपनी बीबी की मानूँ ,
मुसीबत मेरी ,उनकी खींचातानी याद आती है  
बुढ़ापे में सहारे की ,बड़ी उम्मीद थी जिनसे ,
न पूंछें ,बच्चों की हरकत ,बेगानी याद आती है
 तभी कोने से एक दिल के ,आई आवाज ये 'घोटू '
नहीं ये मेरी, घर घर की ,कहानी याद आती है

घोटू 
बचपन की यादें

हमें बचपन की वो बातें सुहानी याद आती है
बेफिकर छुट्टी गरमी की मनानी याद आती है  
जहाँ हम खेलते  थे कंचे और लट्टू घुमाते थे ,
पेड़ की छाँव, वो पीपल पुरानी याद आती है
वो पानी के पताशे ,आलू टिक्की ,दही के भल्ले ,
चाट वो भरती  थी जो मुंह में पानी ,याद आती है
तली जो देशी घी में ,चासनी में डूब इतराती ,
जलेबी वो रसीली और सुहानी याद आती है
तपिश मुंह की मिटाते ,रंगबिरंगे बर्फ के गोले ,
मलाई दूध की कुल्फी जमानी याद आती है
चौकड़ी खेलते थे रोज पत्ते पीसते जिसके ,
हमें वो ताश की  गड्डी ,पुरानी याद आती है
कभी हम तोड़ते थे दूर से ही मार कर पत्थर ,
कभी वो पेड़ पर चढ़ ,जामुन खानी याद आती है
कोई कपडा न बचता ,जिसपे ना हो आम के धब्बे ,
रोज वो डाट  हमको माँ की खानी याद आती है
हमारे हाथ में पकड़ाती थी चुपके से दुअन्नी ,
उमड़ता प्यार आँखों में ,वो नानी याद आती है
वो छत पर पागलों सा भीगना ,बरसात होने पर ,
नाव कागज़ की ,पानी में तैरानी याद आती है
वो लंगड़े भूत के किस्से ,जिन्हे सुनसुन के डर लगता,
चाव से सुनते दादी की ,कहानी याद आती है  
झपकते ही पलक ,छुट्टी का मौसम बीत जाता था ,
खुलते स्कूल ,बढ़ती परेशानी  याद आती है

घोटू 

शनिवार, 22 जून 2019

अनोखा प्यार

प्यार लैला ने मजनू से  किया
शीरी ने फरहाद से किया
सोहनी ने महिवाल से किया
इन सबका प्यार था लाजबाब
फिर भी ये मिलने में रहे नाकामयाब
एक दुसरे से सदा के लिए दूर हो गए
पर उनके प्यार के किस्से मशहूर हो गए
प्यार राधा ने कृष्ण से किया ,
पर पूरी नहीं हो पायी उसकी चाह
कृष्णजी ने उसे छोड़ ,
आठ आठ पटरानियों से किया विवाह
और सभी के साथ ,
कुशलता से किया था निर्वाह
एक पति द्वारा कई पत्नियों को रख पाना
राजा रजवाड़ों का प्रचलन है पुराना
मुस्लिम धर्म में भी वाजिब है तीन निकाह
पर हिन्दू कानूनन कर सकते है एक ही विवाह
क्योंकि हमने जन्म से पाए है ऐसे संस्कार
चाहते न चाहते हुए भी ,
एक पत्नी के साथ जिंदगी देते है गुजार
पर एक पत्नी के कई पति होना ,
ऐसा किंचित ही होता पाया था
वो तो महाभारत काल में ,
एक मात्र द्रौपदी थी ,
जिसने पांच पांच पतियों का साथ ,
बखूबी निभाया था
पर हमारे जीवन में आज भी एक अद्भुत मिसाल है
एक नाजुक सी मुलायम पत्नी ,
जिसे अपने बत्तीस पतियों से प्यार है
सभी पति सख्त है ,बाँध कर रखते है ,
उसे अपने घेरे में  
बेचारी मुश्किल से ही निकल पाती है ,
कभी नहीं रह पाती अकेले में
पर फिर भी उनका प्यार है  बेमिसाल
ये सब रखते है एक दुसरे का कितना ख्याल
आप यकीन कीजिये मेरी बातों का
ये किस्सा है आपकी जिव्हा और बत्तीस दाँतों का


ये बत्तीस पति बेचारे ,
मेहनत कर ,खाना चबाने के बाद
अपनी नाजुक पत्नी जिव्हा को ,
देते है खाने का पूरा स्वाद
अपनी प्यारी पत्नी को खिलाते है ,
खुद नहीं चखते है
देखो अपनी पत्नी का कितना ख्याल रखते है
नाजुक से प्यारी पत्नी के प्रति
बहुत प्रीत है उनके मन में
पत्नी चंचल और बातूनी है ,
रखते है उसे अपने नियंत्रण में
ख्याल रखते है उसका पल पल
सख्त है ,औरों को चुभते भी है ,
पर बीच में रहती हुई पत्नी को ,
कभी भी नहीं करते घायल
पत्नी भी अपने पतियों पर ,
लुटाती है ढेर सारा प्यार
सभी का रखती है पूरा पूरा ख्याल
कहीं से भी कोई कतरा दाँतों में यदि फंसता है
तो वह जिव्हा के मन को बहुत खटकता है
बार बार जा जा कर ,धकेलती है उसे बाहर
कैसे भी निकल जाय ,करती है कोशिश जी भर
ये उसका ,अपने पतियों के प्रति ,
सच्चे प्रेम का परिचायक  है
पति और पत्नी ,दोनों ही कितने लायक है
हम पति पत्नियों को भी ,
इनसे कुछ सबक लेना चाहिए
एक दुसरे की तरफ पूरा ध्यान देना चाहिए

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
तुझको छूकर

तुझको छूकर सारे दर्द भुला देता मैं
तुझको छूकर ,मौसम सर्द भुला देता मैं
तुझको छूकर ,मन मेरा हो जाता चंचल
तुझको छूकर ,तन में कुछ हो जाती हलचल
तुझको छू कर ,मुझे सूझती है शैतानी
तुझ छूकर ,करने लगता ,मैं मनमानी
मादक तेरी नज़रें जब मुझसे मिलजाती
हो जाता है मेरा मन ज्यादा  उन्मादी
और छुवन जब ,मिलन अगन बन लगती जलने
साँसों के स्वर ,जोर जोर से लगते चलने
पहुंच शिखर पर ,जब ढल जाती ,सब चंचलता
छा जाती है तन में मन में एक शिथिलता
थम जाता सारा गुबार ,उफनाते तन का
ऐसे ही तो होता है बस  अंत छुवन का

घोटू    
         राजनीती का चलन

मैं  रख्खुँ  ख्याल तुम्हारा ,तुम मेरा ख्याल रखो
तारीफ़ करे जो अपनी ,कुछ चमचे पाल रखो
हम राजनीती चमकायें ,रह कर के अलग दलों में
टोपी सफ़ेद मैं पहनू ,तुम टोपी लाल  रखो

हम एक दुसरे दल के ,हो खुले आम आलोचक
पर आपस में मिल जाएँ ,यदि सिद्ध हो रहा मतलब
पाँचों ऊँगली हो घी में ,जब ऐसा मौका  आये ,
तुम आधा माल मुझे दो खुद आधा माल रखो        
मैं रख्खुँ ख्याल तुम्हारा ,तुम मेरा ख्याल रखो

हम तुम दोनों के दल में ,कोई भी हो पावर में
लोगों का काम करा कर ,बरसायें लक्ष्मी घर में
कोई भी घोटाले में ,ना आये नाम किसी का ,
ये लूटपाट का धंधा ,कुछ सोच सम्भाल रखो
मैं रख्खुँ ख्याल तुम्हारा ,तुम मेरा ख्याल रखो

है कमी कौन इस दल की उस दल की भी कमजोरी
थोड़ी तुमको मालुम है ,मालुम है मुझको थोड़ी
हम इसका लाभ उठायें ,ऊँचे पद पर चढ़ जाये ,
जब जरूरत हो मैं सीधी ,तुम उलटी चाल  रखो
मैं  रख्खुँ ख्याल तुहारा ,तुम मेरा ख्याल रखो

मदन मोहन बाहेती ;घोटू ' 
एक ऐसा भी हो रविवार

एक ऐसा भी हो रविवार
दिन भर हो मस्ती ,प्यार प्यार
रत्ती भर भी ना काम करें
बस हम केवल आराम करें
इतनी सी इस  दिल की हसरत
पूरा दिन फुरसत ही फुरसत
जब तक इच्छा ,तब तक सोयें
सपनो की दुनिया  में  खोयें
हों चाय ,पकोड़े ,बिस्तर पर
घर  बैठें मज़ा करें  दिन भर
ना जरुरत जल्द नहाने की
ना फ़िक्र हो दफ्तर जाने की
रख एक रेडियो ,सिरहाने
बस सुने पुराने हम गाने
या बैठ धूप में हम छत पर
हम खाये मूंगफली तबियत भर
या बाथरूम में चिल्ला कर
गाना हम गायें ,जी भर कर
मस्ती में गुजरे दिन सारा
मिल जाय प्यार जो तुम्हारा
सोने में सुहागा  मिल जाए
हमको मुंह माँगा मिल जाए
तुम मुझमे ,मैं तुम में खोकर  
बस  एक दूसरे के होकर
हम उड़े एक नयी दुनिया में
एक दूजे की बाहें थामे
जो इच्छा हो, खाये  पियें
एक दिन खुद के खातिर जियें
कम से कम महीने में एक बार
एक ऐसा भी हो रविवार
भूलें सब चिंता और रार
दिन भर बरसे बस प्यार प्यार

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '





 



शुक्रवार, 21 जून 2019

ये प्यार बुढ़ापे वाला भी

ये प्यार बुढ़ापे वाला भी
करता हमको मतवाला भी
कहते देती दोगुना मज़ा ,
हो अगर पुरानी हाला भी

इतने दिन यौवन की संगत
लाती है बुढ़ापे में रंगत
आ जाता  रिश्तों में मिठास,
दिन दिन दूनी बढ़ती चाहत
 
कर रोज रोज  भागादौड़ी
कौड़ी  कौड़ी माया  जोड़ी
बच्चे घर बसा दूर जाते ,
सब उम्मीदें जाती तोड़ी

वो भरा हुआ घर ,चहल पहल
होता है खाली एक एक कर
सब सूना होता ,बचते है ,
घर में पति पत्नी ही केवल

जो साथ निभाते जीवन भर
रहते है आपस में निर्भर
अपने मन का सब बचा प्यार ,
देते उंढेल ,एक दूजे पर

थे बहुत व्यस्त ,जब था यौवन
संग रहने मिलते थे कुछ क्षण
अब पूरा समय समर्पित है,
हम रहते एक दूजे के बन

संग बैठो ,मिल कर बात करो
बीते किस्सों को याद करो
अपने ढंग से जीवन जियो ,
मस्ती ,खुशियां ,आल्हाद करो

ये साथ समर्पण वाला भी
सब अर्पण करने वाला भी
हम तुम मिल कर गप्पे मारे ,
हो हाथ चाय का प्याला भी

घोटू 

सोमवार, 17 जून 2019

दीवाली के उपहार

दीवाली पर दिये जाने वाले उपहार
के होते है चार प्रकार
एक त्वरित खानेवाले
दूसरे  अलमारी में जानेवाले
तीसरे काम में  आनेवाले
और चौथे निपटानेवाले
त्वरित खानेवाली श्रेणी में
आते है फल और मिठाई
जो दो तीन दिन में जाना चाहिए खाई
वर्ना आसपास पड़ोसियों को देकर
जा सकती है निपटाई
सिर्फ सोहनपपड़ी का डब्बा इसका अपवाद है
जो काम में आ सकता काफी समय बाद है
दूसरी श्रेणी में चाँदी के सिक्के या बर्तन
या लक्ष्मी गणेश की मूर्तियां आती है
जो सीधी अलमारी में जाती है
और कोई ख़ास मौकों पर
जरुरत पड़ने पर काम में आती है
पुष्पगुच्छ ,मोमबत्तियां ,दीपक ,
रंगोली बंदरवार आदि तीसरी श्रेणी में आती है
जो दिवाली पर ही साजसजावट के काम में आती है
इस श्रेणी में कुछ रसोई के उपकरण ,बर्तन
और क्रॉकरी आदि भी आते है
जिन्हे लोग इसलिए बचाते है कि ये बाद में
कभी भी काम में आ जाते है  
चौथी श्रेणी याने निपटानेवाली श्रेणी के उपहार
होते है बेशुमार
बेचारे कई वर्षों से इसी श्रेणी में पाए जाते है
और तीन चार घर घूम कर आपके यहाँ आते है
आपकी कोशिश होती है कि इनमे से ,
जितने भी निकल सके,निकालो
और जल्दी से छुटकारा पा  लो
जब न चाहते हुए भी किसी को उपहार देना पड़े
ये काम आते है बड़े
पर ऐसे अटपटे उपहार देकर ,
आप इनसे छुटकारा तो पा लेते है
पर अक्सर ये आपको ,
उपहास का पात्र बना देते है
जैसे एक बच्चे के जन्मदिन पर ,
एक टोकरी में मोमबत्ती और कुछ सूखा मेवा ,
अगर है उपहार दिया जाता
तो ये कहीं से भी उपहार का ओचित्य नहीं बताता
तो ऐसे निपटाने वाले उपहारदाता बंधू जन ,
आपसे है मेरा एक नम्र निवेदन
ऐसे उपहार देने की औपचारिता मत पालो
अटपटे उपहार के बदले ,
एक गुलाब के फूल से ही काम चलालो
क्योकि आपके ऐसे निपटाने वाले उपहार
नहीं दर्शाते है आपका प्यार
बल्कि एक बला टालना कहलाता है
उपहार पानेवाले को किँचित ही प्रसन्नता दे पाता है
लोग आपके उपहार और मनोवृत्ति का मजाक उड़ाते है
उपहार देकर आप उपहास के पात्र बन जाते है
इसलिए आप समझदार बन
बंद करो ये निपटाने वाले उपहार का चलन

घोटू 
आत्मअवलोकन
 
मेरे मन में पूरे जीवन भर ये ही संताप रहा
या तो बच्चे नालायक या मैं नालायक बाप रहा

मेरे दो दो ,काबिल बेटे ,होनहार और पढ़ेलिखे
मैंने लाख करी कोशिश पर दोनों घर पर नहीं टिके
शादी करके फुर्र हो गये ,नीड़ बसा अपना अपना
मैं तन्हा रह गया अकेला ,टूट गया मेरा सपना
भूले भटके याद न करते ,ऐसा मुझको भुला दिया
तोड़ दिया उनने मेरा दिल अंतर्मन से रुला दिया
मैं फिर भी वो सुखी रहें यह ,करता प्रभु से जाप रहा
या तो  बच्चे नालायक या मैं नालायक बाप रहा

मेरी एक नन्ही गुड़िया सी प्यारी प्यारी है बेटी
मन उलझाया एक विदेशी को अपना दिल ,दे बैठी
बड़ा चाव था धूमधाम से उसका ब्याह रचाऊँगा
मुझको छोड़ विदेश जा बसी ,कैसे मन समझाऊंगा
संस्कार जो मैंने डाले ,सारे यूं ही फिजूल गये
उड़ना सीख ,उड़ गए सारे ,बच्चे मुझको भूल गए
उनका यह व्यवहार बेगाना ,सहता मैं चुपचाप रहा
या तो बच्चे नालायक या मैं नालायक बाप रहा

कई बार रह रह कर है एक हूक उठा करती मन में
कुछ ना कुछ तो कमी रह गयी ,मेरे लालन पोषण में
वर्ना आज बुढ़ापे में है ये एकाकीपन ना रहता
मेरे सारे अरमानो का ,किला इस तरह ना ढहता
फिर भी लेखा मान विधि का ,खुश हूँ मैं जैसा भी हूँ
सदा रहा उनका शुभचिंतक ,चाहे मैं कैसा भी हूँ
हरेक हाल में ,ख़ुशी ढूंढता ,मैं तो अपनेआप रहा
या तो बच्चे नालायक या मैं नालायक बाप रहा

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

मस्ती का जीवन

ना व्हिस्की ,रम या कोई बियर पी रहा हूँ मैं
फिर  भी नशे की मस्ती में अब जी रहा हूँ मैं

थोड़ा सा नशा दोस्तों के साथ ने दिया
थोड़ा नशा बेफिक्री के हालात ने दिया
बीबी का बुढ़ापे में है कुछ  प्यार बढ़ गया  
इस वजह से भी थोड़ा नशा और चढ़ गया
मन मस्तमौला बन के लगा फिर से फुदकने
बुझता हुआ अलाव लगा फिरसे धधकने
अंकल हसीना कहती ,मगर बोलती तो है
कानो में मीठी बोली अमृत घोलती तो है
आँखों से उनके हुस्न का रस ,पी रहा हूँ मैं
फिर भी नशे में मस्ती के अब जी रहा हूँ मैं

ना उधो से लेना है कुछ ना माधो का देना
ना कोई सपन देखते ,धुंधले से ये नैना
कर याद बीते अच्छे बुरे वाकिये सारे
कुछ वक़्त गुजर जाता है यादों के सहारे
क्या क्या गमाया और क्या क्या कर लिया हासिल
किसने लुटाया प्यार किसने तोड़ दिया दिल
कर कर के याद बीते दिन ,सुख दुःख में जो काटे
दिल के तवे पे सिकते है यादों के परांठे
दिल पे जो लगे जख्म ,सारे सी रहा हूँ मैं
फिर भी नशे में मस्ती के अब जी रहा हूँ मैं

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
बुढ़ापा आने लगा है


थे कभी जो बाल काले
सजा करते थे निराले
उम्र के संग हाल उनका ,ज़रा छितराने लगा है
                                 बुढ़ापा आने  लगा है    
हौंसले थे बुलंदी पर ,पस्त अब होने लगे है
शारीरिक कमजोरियों से ग्रस्त हम होने लगे है
काम मेहनतवाला कोई,अब नहीं हो पाता हमसे
फूलने लगती है सांसे ,ज़रा से भी परिश्रम  से  
और उस पर नौकरी से भी रिटायर कर दिया है
हो गए है हम निकम्मे ,भाव मन में भर दिया  है
नहीं वो मौसम रहा अब
थी नसों में बिजलियाँ जब
जवानी के नये नुस्खे ,मन ये आजमाने लगा है
                                 बुढ़ापा आने लगा है
हमें आता याद रह रह ,जवानी का बावरापन
सुनहरी  रातें रंगीली ,प्यार का उतावलापन
और अब हालात ये है ,इस तरह पड़ रहा जीना
प्यार की जब बात चलती छूटने लगता  पसीना
मगर ये दिल लालची है ,नहीं बिलकुल मानता है
उम्र की अपनी हक़ीक़त ,भले  ही  पहचानता है
आज तन और मन शिथिल है  
समस्याये अब जटिल  है
 था खिला जो जवानी का कमल कुम्हलाने लगा है
                                       बुढ़ापा आने लगा है
आदतें बिगड़ी हुई जो नहीं पीछा छोड़ पाती
दिखे अब भी जब जवानी ,उधर नज़रें दौड़ जाती
कई घोड़े कल्पना के ,दौड़ते है मन के अंदर
गुलाटी ना भूल पाता ,कितना ही बूढा हो बन्दर
क्षीण सी होने लगी है जवानी की वो धरोहर  
बुढ़ापे के चिन्ह सारे ,लगे होने दृष्टीगोचर
याद कर आल्हाद के दिन
वो मधुर  उन्माद के दिन
उम्र का अवसाद मुझ पर ,अब कहर ढाने लगा है
                                       बुढ़ापा आने लगा है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

गुरुवार, 13 जून 2019

एक लड़की  को देखा तो ऐसा लगा

कल मैंने फिर एक लड़की देखी
पचास साल के अंतराल के बाद
मुझे है याद
पहली ल ड़की तब देखी थी जब मुझे करनी थी शादी
ढूंढ रहा था एक कन्या सीधी सादी
मैं उसके घर गया
मेरे लिए ये अनुभव था नया
वैसे तो कॉलेज के जमाने में खूब लड़कियों को छेड़ा था
काफी किया बखेड़ा था
पर उस दिन की बात अलग थी इतनी
मैं ढूंढ रहा था अपने  लिए एक पत्नी
थोड़ी देर में ,
हाथ में एक ट्रे में  चाय के कप लिए ,
वो शरमाती हुई आई
थोड़ी डगमगाती हुई आई
चाय के कप आपस में टकरा कर छलक रहे थे
उसके मुंह पर घबराहट के भाव झलक रहे थे
थोड़ी देर में वो सेटल हुई और चाय का कप मेरी ओर बढ़ाया
मैं भी शरमाया,सकुचाया और मुस्काया
फिर चाय का कप होठों से लगाया  
तो उसकी मम्मी ने फ़रमाया
चाय बेबी ने है खुद बनाई ,
आपको पसंद आई
बेसन की बर्फी लीजिये बेबी ने ही बनाया है
इसके हाथों में स्वाद का जादू समाया है
मैंने लड़की से पूछा और क्या क्या बना लेती हो ,
लड़की घबरा गयी ,भोली थी
बोली कृपया क्षमा करना ,मम्मी झूंठ बोली थी
मम्मी ने कहा था की लड़का अगर पूछे किसने बनाया ,
तुम झूंठ बोल देना ,पर मेरा मन झूंठ नहीं बोल पाता
पर सच ये है कि किचन का काम मुझे ज्यादा नहीं आता
ये चाय मैंने नहीं बनाई है
और बर्फी भी बाजार से आई है
उसकी इस सादगी और सच्चाई पर मैं रीझ गया
प्रेम के रस भीज गया
उसकी ये अदा ,मेरा मन चुरा गयी
और  वो मेरे मन भा  गयी
और एक दिन वो मेरी बीबी बन कर आ गयी
बाद में पता लगा कि ये सच और झूंठ का खेल ,
सोचा समझा प्लान था
जिस पर मैं हुआ कुर्बान था
जिसने लड़की की कमजोरी को खूबसूरती से टाल दिया
और उस पर सादगी का पर्दा डाल दिया
पचास वर्षों के बाद  ,
मैं अपने बेटे के लिए लड़की देखने गया था कल
मिलने की जगह उसका घर नहीं ,
थी एक पांच सितारा होटल
न लड़की डगमगाती हुई हाथ में चाय की ट्रे लाइ
न शरमाई
बल्कि आर्डर देकर वेटर से कोल्ड कोफ़ी मंगवाई
अब मेरा कॉफी किसने बनाई पूछना बेकार था
पर मैं उसके कुकिंग ज्ञान को जानने को बेकरार था  
जैसे तैसे मैंने खानपान की बात चलाई पर
इस फील्ड के ज्ञान में भी वो मुझसे भारी थी
उसे 'मेग्गी' से लेकर 'स्विग्गी' की पूरी जानकारी थी  
फिर मैंने ऐसे मौको पर पूछे जानेवाला,
 सदियों पुराना प्रश्न दागा
क्या तुम पापड़ सेक सकती हो जबाब माँगा
उसने बिना हिचकिचाये ये स्पष्ट किया
वो जॉब करती है और प्रोफेशनल लाइफ के दरमियाँ
बेलने पड़ते है कितने ही पापड़
तभी पा सकते हो तरक्की की सीढ़ी चढ़
जब ये पापड़ बेलने की स्टेज निकल जायेगी
पापड़ सेकने की नौबत तो तब ही आएगी
जबाब था जबरजस्त
मैं हो गया पस्त
मैंने टॉपिक बदलते हुए पूछा 'तुम्हारी हॉबी '
उसने अपने माँ बाप की तरफ देखा
और उत्तर फेंका
मैं किसी को भी अपने पर हॉबी नहीं होने देती हूँ
घर में सब पर मैं ही हाबी रहती हूँ
और शादी के बाद ये तो वक़्त बताएगा
कौन किस पर कितना हॉबी रह पायेगा
हमने कहा हॉबी से हमारा मतलब तुम्हारे शौक से है
वो बोली शौक तो थोक से है
देश विदेश घूमना ,लॉन्ग ड्राइव पर जाना
मालों में शॉपिंग ,होटलों  में खाना
सारे शौक रईसी है
उनकी लिस्ट लंबी है
हमने कहा इतने ही काफी है
इसके पहले कि मैं कुछ और पूछता ,
उसने एक प्रश्न मुझ पर दागा
और मेरा जबाब माँगा
आप अपने बेटे बहू के साथ रहेंगे
या उन्हें अपनी जिंदगी अपने ढंग से जीने देंगे
और बात बात में उनकी लाइफ में इंटरफियर करेंगे
ये प्रश्न मेरे दिमाग में इसलिए आया है
क्योंकि मुझे देखने जिसे शादी करनी है वो नहीं आया है
आपको भिजवाया है
प्रश्न सुन कर मैं सकपकाया
क्या उत्तर दूँ ,समझ में नहीं आया
मैंने कहा ये सोच नाहक है
हर एक को स्वतंत्रता से जीने का हक़ है
हम भला बच्चों की जिंदगी में टांग क्यों अड़ायेगे
अपने अपने घर में अपनी अपनी मल्हार जाएंगे
हम भी अपनी आजादी और सुख देखेंगे
और किसी को अपने पर हॉबी नहीं होने देंगे
वो तो उत्सुकता वश हम तु म्हे देखने आ गए ,
वर्ना अंतिम निर्णय तो हमारा बेटा ही ले पायेगा
जो किसी के साथ अपना घर बसाएगा
खैर हम लड़की देख कर
आ गए अपने घर
लड़की तब भी देखी  थी
लड़की अब भी देखी है
पर पचास साल बाद आया है इतना अंतर
पहले लड़कियां लूटती थी भोली बन कर
आजकल लूटती है तन कर
पहले शादी के बाद अपनी चलाती थी
अब शादी के पहले से अपनी  चलाती है
क्योंकि खुद नौकरी करती है ,कमाती खाती है
इसलिए खुद को 'इंडिपेंडेंट 'समझती है
अपनी मन मर्जी से चलती है
सकुचाने शरमाने का फैशन हो गया है ओल्ड
आज की लड़कियां हो गयी है बोल्ड
उनका अहम् प्रबल हो गया है
उनका 'आई ' केपिटल ' हो गया है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

बुधवार, 12 जून 2019


                              पत्नी अष्टक  

 ब्याह समय सही लक्ष लियो और फूल को हार गले मोरे डारो
तबसे बंध्यो ,बंधुवा मजदूर सो ,पत्नी इशारों पे  नाचूँ  बिचारो
ऐसो वो पहनयो  है हार गले ,कभी जीत न पायो ,सदा मैं हारो
को नहीं जानत  जग में भामिनि,संकट दायिनी  नाम  तिहारो -१
हाथ में हाथ मिलाय पुरोहित ,बांध्यो है  बंधन ,ऐसो  हमारो
कोशिश लाख करी पर कबहुँ भी ,भाग नहीं मैं पायो बिचारो  
भाग्य लिखी है जो भाग्यविधाता ने ,मान  वो ही सौभाग्य हमारो
को नहीं जानत  जग में भामिनि  संकटदायिनी  नाम  तिहारो -२
मंत्र  पढाय कराय के पंडित ,पावन यज्ञ  को  फेरा थो  डारो
हर फेरन संग ,एक वचन दई ,सात वचन  पत्नी संग  हारो
फेर में फेरन के ऐसो ,फस्यो फिर ,शादीशुदा भयो ,रह्यो न कंवारों
को नहीं जानत  जग में भामिनि ,संकट दायिनी नाम  तिहारो -३
लछमी  बन करती छम छम तुम आई प्रसन्न हुयो घर सारो
नैनन से, मृदु बैनन से अरु अधरन से इहि  जादू सो डारो
रूप के जाल में ,ऐसो मैं उलझयो कि निकल न पायो ,वासना मारो
को नहीं जानत  जग में  भामिनि, संकट दायिनी  नाम  तिहारो -४
चार दिनन की रही मस्ती फिर ऐसो गृहस्थी  को बंधन  डारो
कोल्हू को बैल बन्यो दिन भर फिर ,काम में उलझ्यो रहुँ मैं बिचारो
मै दिन रेन ,करूँ विनती प्रभु ,लौटा दो फिर से तुम चैन हमारो
को नहीं जानत है जग में भामिनि , संकट दायिनी नाम  तिहारो -५
नाच नचाय ईशारन पर नित  ,रोज मैं  नाच नाच प्रभु  हारो
देवी की सेवा करूं इतनी सब ,देवीदास कह ,मोहे  पुकारो
स्वर्णाभूषण भेंट करूं जब ,तब ही लगूं ,उनके मन प्यारो
को नहीं जानत, जग में भामिनि , संकट दायिनी  नाम  तिहारो -६
कौन कला तुम्हे आये रमापति ,कौन सो जादू  रमा पर डारो    
शेष की शैया पे आप बिराजो ,लक्ष्मीजी पाँव दबाय  तुम्हारो
वो ही कला प्रभु मोहे सिखला दो ,मानूंगा मैं उपकार हजारों
को नहीं जानत , जग में भामिनि , संकट दायिनी नाम  तिहारो -७
काज कियो बड़ देवन के तुम ,हे हनुमान ,मोहे भी उबारो
शादी के फेरे में आप फंसे नाही ,तबही रह्यो वर्चस्व तुम्हारो
त्रिया त्रसित प्रभु दास तुम्हारो ,पत्नी को अब स्वभाव  सुधारो
को नहीं जानत  जग में भामिनि, संकट दायिनी नाम  तुम्हारो -८
                       दोहा
      स्वर्ण देह ,जादू बसे ,नैनन में भरपूर
     कृपा करो पत्नी प्रिया ,रहे न मद में चूर

घोटू

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