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शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012

हवायें

                हवायें
हमारी हर सांस में बसती हवायें
सांस ही तो सभी का जीवन चलाये
देह सबकी ,पंचतत्वों से बनी है
तत्व उन में ,एक होती, हवा भी है
कभी शीतल मंद बहती है  सुहाती
कभी लू बन ,गर्मियों में तन जलाती
है बड़ी बलवान ,जब होती खफा है
विनाशक तूफ़ान लाती हर दफा  है
पेट ना भरता हवा से ,सभी जाने
घूमने ,सब मगर जाते,हवा  खाने
चार पैसे ,जब किसी के पास ,जुड़ते
बात करते है हवा में, लोग उड़ते
मगर जब तकदीर अपना रंग दिखाती
हवा ,अच्छे अच्छों की है खिसक जाती
चली फेशन की हवा तो घटे कपडे
लगी पश्चिम की हवा तो लोग बिगड़े
नहीं दिखती ,हर जगह ,मौजूद है पर
चल रहा जीवन सभी का ,हवा के बल
             घोटू 

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