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एक सन्देश-
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शनिवार, 29 जून 2013
शुक्रवार, 28 जून 2013
संगत का असर
संगत का असर
हम रहते है जिनके संग मे
हमे रंगना पड़ता है,उनही के रंग मे
हमारे सोचने का ढंग,
उनके जैसा ही हो जाता है
और उनके सुख दुख का ,
हम पर भी असर आता है
नेताओं के साथ साथ ,चमचे भी पूजे जाते है
पति और पत्नी ,
एक दूसरे के साथ,हँसते गाते है
आपने देखा होगा ,मंदिर मे,
शिवलिंग पर जब लोग जल चढ़ाते है
तो पास मे बैठी हुई ,
अच्छी ख़ासी चूनरी ओढ़े ,
पार्वती जी को भी भिगाते है
और तो और ,उनके बेटे गणेशजी और
कार्तिकेय के साथ साथ,
उनके वाहन नंदी को भी नहलाते है
सारा परिवार जब साथ साथ रहता है
तो सारे सुख और दुख,संग संग सहता है
इसलिए ये बात हमे ठीक ठीक समझना चाहिए
हमे किसी का भी साथ,
सोच समझ कर ही करना चाहिए
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
एक कवि पत्नी की व्यथा
एक कवि पत्नी की व्यथा
एक हनुमान जी थे,
जो अपने बॉस के दोस्त की,
बीबी को ढूँढने के लिए
समुंदर भी लांघ गए थे
एक तुलसी दास जी थे,
जो बीबी से मिलने को बेकल हो,
उफनती नदी को पार कर,
साँप को रस्सी समझ लटक गए थे
और एक हमारे हनुमान भक्त ,
कविराज पति जी है,
जो करते तो है बड़ी बड़ी बातें
पर रात को बिस्तर पर पड़ा ,
एक तकिया तक नहीं लांघ पाते
कविजी की पत्नी ने ,
अपनी व्यथा सुनाई,शर्माते,शर्माते
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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गुरुवार, 27 जून 2013
बुढ़ापे की पीड़ा-चार मुक्तक
बुढ़ापे की पीड़ा -चार मुक्तक
1
क्या गज़ब का हुस्न था,वो शोख थी,झक्कास थी
धधकती ज्वालामुखी के बीच जैसे आग थी
देख कर ये,कढ़ी बासी भी उबलने लग गयी,
मन मचलने लग गया,नज़रें हुई गुस्ताख़ थी
2
हम पसीना पसीना थे,हसीना को देख कर
पास आई ,टिशू पेपर ,दिया हमको ,फेंक कर
बोली अंकल,यूं ही तुम क्यों,पानी पानी हो रहे ,
किसी आंटीजी को ताड़ो,उमर अपनी देख कर
3
जवानी की यादें प्यारी,अब भी है मन मे बसी
बड़े ही थे दिन सुहाने,और रातें थी हसीं
बुढ़ापे ने मगर आकर,सब कबाड़ा कर दिया ,
करना चाहें,कर न पाये,हाय कैसी बेबसी
4
घिरते तो बादल बहुत हैं,पर बरस पाते नहीं
उमर का एसा असर है ,खड़े हो पाते नहीं
देखकर स्विमिंगपूल को,मन मे उठती है लहर,
डुबकियाँ मारे और तैरें,कुछ भी कर पाते नहीं
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
दास्ताने बुढ़ापा
दास्ताने बुढ़ापा
बस यूं ही बेकार मे और खामखाँ
रहता हूँ मै मौन ,गुमसुम,परेशां
मुश्किलें ही मुश्किलें है हर तरफ,
बताओ दिन भर अकेला करूँ क्या
वक़्त काटे से मेरा कटता नहीं,
कब तलक अखबार,बैठूँ,चाटता
डाक्टर ने खाने पीने पे मेरे ,
लगा दी है ढेर सी पाबंदियाँ
पसंदीदा कुछ भी का सकता नहीं,
दवाई की गोलियां है नाश्ता
टी.वी, के चेनल बदलता मै रहूँ,
हाथ मे रिमोट का ले झुनझुना
एक जैसे सीरियल,किस्से वही ,
वही खबरें,हर जगह और हर दफ़ा
नींद भी आती नहीं है ठीक से ,
रात भर करवट रहूँ मै बदलता
तन बदन मे ,कभी दिल मे दर्द है,
नहीं थमता ,मुश्किलों का सिलसिला
जो लिखा है मुकद्दर मे हो रहा ,
करूँ किससे शिकवे ,मै किससे गिला
मन कहीं भी नहीं लगता ,क्या करूँ,
खफा खुद से रहता हूँ मै गमजदा
'घोटू' लानत,उम्र के इस दौर पर,
बुढ़ापे मे ,ये सभी की दास्ताँ
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
Mahesh Prasad added you to his circles and invited you to join Google+
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|
You received this message because Mahesh Prasad invited baheti.mm.tara1@blogger.com to join Google+. Unsubscribe from these emails. Google Inc., 1600 Amphitheatre Pkwy, Mountain View, CA 94043 USA |
बुधवार, 26 जून 2013
हाले चमन
था खूबसूरत ,खुशनुमा,खुशहाल जो चमन ,
भंवरों ने रस चुरा चुरा ,बदनाम कर दिया
कुछ उल्लुओं ने डालों पे डेरे बसा लिए,
कुछ चील कव्वों ने भी परेशान कर दिया
था खूबसूरत,मखमली जो लॉन हरा सा ,
पीला सा पड गया है खर पतवार उग गये ,
माली यहाँ के बेखबर ,खटिया पे सो रहे ,
गुलजार गुलिस्ताँ को बियाबान कर दिया
मदन मोहन बाहेती'घोटू' -
था खूबसूरत ,खुशनुमा,खुशहाल जो चमन ,
भंवरों ने रस चुरा चुरा ,बदनाम कर दिया
कुछ उल्लुओं ने डालों पे डेरे बसा लिए,
कुछ चील कव्वों ने भी परेशान कर दिया
था खूबसूरत,मखमली जो लॉन हरा सा ,
पीला सा पड गया है खर पतवार उग गये ,
माली यहाँ के बेखबर ,खटिया पे सो रहे ,
गुलजार गुलिस्ताँ को बियाबान कर दिया
मदन मोहन बाहेती'घोटू' -
Re: नामाक्षर गण्यते
Exellent and nice tbougbt
Sent from Samsung Mobile
madan mohan Baheti <baheti.mm@gmail.com> wrote:
नामाक्षर गण्यते
दुशयंत ने,शकुंतला से गंधर्व शादी रचाई
उसे भोगा ,और,
अपने नाम लिखी एक अंगूठी पहनाई
और राजधानी चला गया,यह कह कर
'नामाक्षर गण्यते' याने,
मेरे नाम के तुम गिनना अक्षर
इस बीच मै आऊँगा
और तुम्हें महलों मे ले जाऊंगा
गलती से शकुंतला की अंगूठी खो गई
और कई दिनो तक,जब दुष्यंत आया नहीं
तो शकुंतला गई राज दरबार
पर दुष्यंत ने पहचानने से कर दिया इंकार
जब भी चुनाव नजदीक आता है
मुझे ये किस्सा याद आ जाता है
क्योंकि ,आज की सत्ता ,दुशयंत सी है,
जो चुनाव के समय,
शकुंतला सी भोली जनता पर,
प्रेम का प्रदर्शन कर ,
सत्ता का सुख भोग लेती है
और फिर उसे कभी अंगूठा ,
या आश्वासन की अंगूठी पहना देती है
साड़ेचार अक्षरों का नाम लिखा होता है जिस पर
सत्ता सुख की मछली ,
उस अंगूठी को निगल जाती है ,पर
और गुहार करती ,जनता,जब राजदरबार जाती है
पहचानी भी नहीं जाती है
हाँ,नामाक्षर गण्यते का वादा निभाया जाता है
उसके नाम का एक एक अक्षर,
एक एक वर्ष सा हो जाता है
और तब कहीं साड़े चार साल बाद
उसे आती है जनता की याद
क्योंकि पांचवें साल मे,
आने वाला होता है चुनाव
और सत्ताधारियों को याद आने लगता है,
जनता के प्रति अपना लगाव
जब भी चुनाव नजदीक आता है
मुझे ये किस्सा याद आता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
मंगलवार, 25 जून 2013
बैंड बज गया
बैंड बज गया
भारत की क्रिकेट टीम ने,
इंगलेंड को हरा कर ,
चेम्पियन ट्रॉफी को जीत लिया
टी.वी.चेनल की हेड लाइन थी,
'भारत ने इंगलेंड का बैंड बजा दिया'
जब भी कोई होता है परास्त
या उसे मिलती है मात
तो उसका बैंड बज गया ,
एसा कहा जाता है
क्या शादी के अवसर पर ,
इसीलिए बैंड बजाया जाता है?
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
सवेरे की सैर
सवेरे की सैर
सवेरे सवेरे ,
प्राची के एक कोने से,
झाँकता हुआ सूरज ,
देखता है ये सारे नज़ारे
अपने हालातों से परेशान,
फिर भी अट्ठ्हास लगाते हुये ,
लाफिंग क्लब के,सदस्य सारे
सासों के शिकवे ,बहुओं के गिले
सुनाई देते है,कभी न खतम होने वाले,
अंत हीन सिलसिले
लकड़ी के सहारे ,धीरे धीरे टहलते ,
बुजुर्गों की व्यथाएं
बढ़ती हुई उमर की,पीड़ा की कथाएँ
प्राम मे बैठा कर ,अपने नन्हें पोते,पोतियाँ
घुमाती हुई,घुटनो के दर्द से ,
पीड़ित उनकी दादियाँ
अपने नाजुक कंधों पर,
ढेर सारी किताबों का बोझ लादे ,
भविष्य के सपने सँजोये ,
स्कूल बस पकड़ने भागते बच्चेऔर बच्चियाँ
और हाथ मे सेंडविच लिए,
बच्चों को खिलाती हुई ,
उनके संग संग भागती ,उनकी मम्मियाँ
अपने लाडले को झूला झुलाते हुये पिता
और हर पेंग पर ,उसकी मम्मी ,
उसे केले का एक बाइट खिलाती जाये
फोन पर प्रवचन या पुराने गाने सुनते,
सेहत के प्रति जागरूक ,
पुरुष और महिलायें
अपनी बुझती हुई आँखों मे ,
भरे हुये लाचारी
हरी हरी घाँस पर ,
नंगे पैर घूमते नर नारी
मै भी सुबह सुबह की सैर के बाद,
ठंडी ठंडी हवाओं के झोंकों से,
ठंडी सी सांस भर , एक बार
थका थका ,अपने घर की तरफ लौटता हूँ,
जहां पर चाय का प्याला बना,
मेरी बीबी ,कर रही होगी मेरा इंतजार
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
रविवार, 23 जून 2013
नामाक्षर गण्यते
नामाक्षर गण्यते
दुशयंत ने,शकुंतला से गंधर्व शादी रचाई
उसे भोगा ,और,
अपने नाम लिखी एक अंगूठी पहनाई
और राजधानी चला गया,यह कह कर
'नामाक्षर गण्यते' याने,
मेरे नाम के तुम गिनना अक्षर
इस बीच मै आऊँगा
और तुम्हें महलों मे ले जाऊंगा
गलती से शकुंतला की अंगूठी खो गई
और कई दिनो तक,जब दुष्यंत आया नहीं
तो शकुंतला गई राज दरबार
पर दुष्यंत ने पहचानने से कर दिया इंकार
जब भी चुनाव नजदीक आता है
मुझे ये किस्सा याद आ जाता है
क्योंकि ,आज की सत्ता ,दुशयंत सी है,
जो चुनाव के समय,
शकुंतला सी भोली जनता पर,
प्रेम का प्रदर्शन कर ,
सत्ता का सुख भोग लेती है
और फिर उसे कभी अंगूठा ,
या आश्वासन की अंगूठी पहना देती है
साड़ेचार अक्षरों का नाम लिखा होता है जिस पर
सत्ता सुख की मछली ,
उस अंगूठी को निगल जाती है ,पर
और गुहार करती ,जनता,जब राजदरबार जाती है
पहचानी भी नहीं जाती है
हाँ,नामाक्षर गण्यते का वादा निभाया जाता है
उसके नाम का एक एक अक्षर,
एक एक वर्ष सा हो जाता है
और तब कहीं साड़े चार साल बाद
उसे आती है जनता की याद
क्योंकि पांचवें साल मे,
आने वाला होता है चुनाव
और सत्ताधारियों को याद आने लगता है,
जनता के प्रति अपना लगाव
जब भी चुनाव नजदीक आता है
मुझे ये किस्सा याद आता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
हे गंगाधर!
हे शिव शंकर!
श्रद्धानत भक्तों की भारी भीड़ देख कर,
आप इतने द्रवीभूत हो गए,
कि आपका दिल बादल सा फट पड़ा
आपने तो अपनी जटाओं मे ,
स्वर्ग से अवतरित होती गंगा के वेग को,
वहन कर लिया था ,
पर हम मे इतना सामर्थ्य कहाँ,
जो आपकी भावनाओं के वेग को झेल सकें,
आपने बरसने के पहले ये तो सोचा होता
भस्मासुर कि तरह वरदान देकर ,
कितनों को भस्म कर दिया
मंद मंद बहनेवाली मंदाकिनी को,
वेगवती बना दिया
अपनी ही मूर्ती को ,गंगा मे बहा दिया
हे गंगाधर !
आपने ये क्या किया ?
मदन मोहन बाहेती'घोटू '
मै ना बदला,तुम ना बदली
सब कुछ बदल गया दुनिया मे ,
मै ना बदला ,तुम ना बदली
मै तुम पर पहले सा पगला,
और तुम भी पगली की पगली
साइकिल अब कार बन गई,काला फोन बना मोबाइल
और रेडियो ने बन टी वी ,जीत लिया है ,सबका ही दिल
मटके और सुराही फूटे ,अब घर घर मे रेफ्रीजरेटर
ए सी ,पंखे,और अब कूलर,गर्मी मे करते ठंडा घर
लालटेन और दिये बुझ गए ,
अब घर रोशन करती बिजली
सब कुछ बदल गया दुनिया मे ,
मै ना बदला,तुम ना बदली
प्रेमपत्र अब लिखे न जाते,इंटरनेट चेट होती है
आपस मे अब लुल्लू चुप्पू,मीलों दूर,बैठ होती है
इस युग मे ,पति पत्नी ,लेकर,इक दूजे का नाम बुलाते
पर तुम्हारे'ए जी 'ओ जी',अब भी मुझको बहुत सुहाते
मेरे आँगन बरसा करती,
बन कर प्यार भरी तुम बदली
सब कुछ बदल गया दुनिया मे,
मै ना बदला,तुम ना बदली
बेटा बेटी ,बदल गये सब,अपना घर परिवार बसा कर
अपने अपने घर मे खुश है ,कभी कभी मिल जाते आकर
भाई बहन ,व्यस्त अपने मे,सबकी है अपनी मजबूरी
बस अब हम तुम बचे नीड़ मे,और बनाई सब ने दूरी
बंधा हुआ मै तुम्हारे संग ,
और तुम भी मेरे संग बंध ली
सब कुछ बदल गया दुनिया मे,
मै ना बदला ,तुम ना बादली
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
शनिवार, 22 जून 2013
सवाल है ईश्वर से....
और एक बार फिर से
दिखा कुदरत का कहर
एक बार फिर से दिखी
हल्की सी एक झलक
प्रलय की - कयामत की....
एक बार फिर से
असहाय सा हुआ मनुष्य
धरी रह गयी सारी गणित
सारा विज्ञान - सारी तकनीक...
हजारों मरे - इतने ही लापता
लाखों को बेघर
न जाने कितने गावों
न जाने कितनी बस्तियों का
एक झटके में सफाया....
लेकिन बहुत कम लोगों पर असर
ज्यादातर मस्त और व्यस्त
(सभी की बात नहीं कर रहा)....
नेता व्यस्त ज्यादा से ज्यादा
मीडिया पर दिखने में
हवाई सर्वेक्षणों मे
अपनी पार्टी की प्रशंसा में
दूसरे की कमियां गिनाने में
राहत के लिये जारी धन में से
कुछ अपनी ओर खिसकाने में...
मीडिया व्यस्त खबर के पोस्टमार्टम में
उसको पूरी तरह से भुनाने में
अपने को सबसे आगे और
सबसे तेज बताने में....
बाबू लोग व्यस्त बला टालने में
काम कम लेकिन स्वयं को
परेशान ज्यादा दिखाने में...
व्यापारी इस बहाने जितना हो सके
तमाम चीजों के दाम बढाने में,
बुद्धिजीवी लोग टीवी देखने और
हर खबर पर अपना गाल बजाने में...
बोलबाला है हर तरफ सिर्फ
दिखावे का - मक्कारी का
बेइमानी का - चालाकी का
दिल तो है सिर्फ कहने के लिये
चलता है सिर्फ दिमाग हमेशा
ताकि निकल जायें सब से आगे
जमा सकें दूसरे पर अधिकार
ताकि बने रहें हमेशा शासकों में
शासितों में नहीं.....
काश....इन सब लोगों पर गिरती गाज
काश...ये लोग आते चपेट में
सुलझ जाती बहुत सी समस्यायें
बदल जाता दुनिया का नक्शा
और महौल हो जाता स्वर्ग जैसा...
लेकिन ऐसा होता नहीं है
महंगाई में पिसता है आम आदमी
हर आपदा में मरता है आम आदमी
यहां तक कि पैदा होने के बाद से ही
रोज किसी न किसी वजह से
तिल - तिल करके मरता है आम आदमी
क्यों........आखिर क्यों ???
ये सवाल है ईश्वर से
ये सवाल है प्रकृति से
ये सवाल है कुदरत से
ये सवाल है कायनात से
क्यों........आखिर क्यों ???
गुरुवार, 20 जून 2013
भेदभाव
भेदभाव
किसी भी वृक्ष में ,
जब फल लगते है ,
सभी का लगभग एक सा आकार ,
और एक सा स्वाद होता है
कोई पौधा ,
जब पुष्पित होता है,
तो सभी पुष्पों का समान रूप ,
और एक सी महक होती है
ये सभी वृक्ष और पौधे तूने ही बनाए है
और इंसान को भी तूने ही बनाया है
तो फिर क्यों ,
तेरे ही बनाये मानव की संताने ,
अलग अलग लिंग,
अलग अलग रूप रंग ,
और अलग अलग स्वभाव लिए होती है ?
भाई भाई या बहन भाई के स्वभाव में ,
इतनी भिन्नता क्यों होती है ?
भगवान ने इंसान के साथ ,
यह भेदभाव क्यों किया है?
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
उत्तराखंड की त्रासदी पर
उत्तराखंड की त्रासदी पर
हे महादेव!
ये तो हम सब जानते हैं ,
कि आप संहार के देवता है
लेकिन हे केदार !
आप तो हैं बड़े उदार ,
आप तो भोलेनाथ भी कहाते है
अपने भक्तों को ,
दुःख और पीड़ा से बचाते है
तो फिर क्यों,
श्रद्धा से आपको सर नमाने ,
आये हुए भक्तों की भीड़ पर ,
मौत का तांडव दिखा दिया
आप इतने स्वार्थी कब से हो गये ,
कि कितनो का ही घर उजाड़ दिया ,
और अपना घर बचा लिया
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
सबके कैसे कैसे वाहन
सबके कैसे कैसे वाहन
श्री गणेश बैठे चूहे पर,कार्तिकेय मोर पर उड़ते
शंकर जी बैठें नंदी पर,और विष्णु जी उड़े गरुड पे
सूर्य देवता सात अश्व के,रथ पर चढ़ है घूमा करते
और यमराज चढ़े भैसे पर,आता देख सभी है डरते
गदहा शीतल माँ का वाहन ,शनि देव का वाहन हाथी
इंद्र देवता एरावत पर,ख़ुद उड़ते है हनुमान जी
दुर्गा करती सिंह सवारी ,उल्लू है लक्ष्मी का वाहन
सरस्वती जी हंसवाहिनी ,सबके कैसे कैसे वाहन
घोटू
बुधवार, 19 जून 2013
सूरज -दो कविताएँ
सूरज-दो कविताएँ
1
सूरज और हम
होता सूरज लाल,प्रात जब निकला करता
धीरे धीरे तेज प्रखर हो ऊपर चढ़ता
और साँझ,बुझते दीये सा पीला पड़ता
देखो दिन भर मे वो कितने रंग बदलता
सुबहो शाम ,उसे ढकने को आते बादल
पर बादल को चीर ,सदा जाता आगे बढ़
उसकी ऊष्मा और ऊर्जा ,कायम रहती है
सर्दी,गर्मी,बारिश,हर मौसम रहती है
एसा ही होता अक्सर मानव जीवन मे
बचपन मे है लाली और प्रखर यौवन मे
और बुढ़ापे मे शीतल ,ढलने लगता जब
बादल परेशनियों के ,ढकते है जब ,तब
सूरज जैसे चीर मुश्किलों को जो बढ़ते
वो ही अपना नाम जगत मे रोशन करते
2
सूरज और बादल
नीर से तुम भरे बादल,और सूरज चमकते हम
हमारे ही तेज से ,उदधि गर्भ से पैदा हुये तुम
क्षार सारा समंदर का ,छोड़ कर ,निर्मल बदन से
तुम हवा के साथ ऊपर,उड़े थे स्वच्छंद मन से
देख निज मे नीर का ,इतना विपुल धन जब समाया
तुम्हारे मन मे कलुषता का घना अँधियार छाया
घुमुड़ नभ मे छा गए तुम,लगे गर्वित हो गरजने
नीर धन ,मद चूर होकर,लगे बिजली से कड़कने
और सारे गगन मे,स्वच्छंद होकर तुम विचरने
अहम इतना बढ़ गया कि पिता को ही लगे ढकने
पर समय और हवा रुख पर,ज़ोर कोई का न चलता
आज या कल ,समय के संग,है हरेक बादल बरसता
नीर की बौछार बन कर ,समाओगे ,उदधि मे कल
मै पिता ,फिर प्यार देकर ,उठाऊँगा ,बना बादल
सृष्टि के आरंभ से ही,प्रकृती का चलता यही क्रम
नीर से तुम भरे बादल ,और सूरज चमकते हम
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
मंगलवार, 18 जून 2013
सागर तीरे
सागर तीरे
समुंदर के किनारे ,निर्वसन,लेटी धूप मे
लालिमा पर कालिमा को ला रही निज रूप मे
सूर्य की ऊर्जा तुम्हारे ,बदन मे छा जाएगी
रजत तन पर ताम्र आभा ,सुहानी आ जाएगी
चोटियाँ उत्तंग शिखरों की सुहानी,मदभरी
देख दीवाने हुये हम,मची दिल मे खलबली
रजत रज पर ,देख बिखरी,रूप रस की बानगी
हो गया पागल बहुत मन,छा गई दीवानगी
समुंदर से अधिक ऊंची ,उछालें ,मन भर रहा
रूप का मधु रस पिये हम,हृदय बरबस कर रहा
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
कवि की पीड़ा
कवि की पीड़ा
एक जमाना था हम रहते बहुत बिज़ी थे
आज यहाँ,कल वहाँ तीसरे रोज कहीं थे
कविसम्मेलन मे निशदिन भागा करते थे
दिन मे चलते,रात रात जागा करते थे
थे शौकीन लोग,कविता के कदरदान थे
बड़े बड़े आयोजन मे हम मेहमान थे
रोज रोज तर माल मिला करता था खाने
और सुरा भी मिल जाती दो घूंट लगाने
उस पर वाह वाह का टॉनिक मिल जाता था
श्रोताओं की भीड़ देख ,दिल खिल जाता था
और बाद मे पत्र पुष्प से जेब भरे हम
महीने मे अच्छी ख़ासी होती थी इन्कम
और होली पर इतने कविसम्मेलन थे होते
जैसे श्राद्धों मे ,पंडित को मिलते न्योते
हर वरिष्ठ कवि का अपना ही ग्रुप होता था
और ठेका लेकर के कविसम्मेलन होता था
टाइम कब था,नई नई कविता गढ़ने का
एक कविता हिट ,तो सदा वो ही पढ़ने का
जब से टी.वी.पर कामेडी सर्कस आया
लोगों ने ,कविसम्मेलन करवाना भुलवाया
भूले भटके कभी कभी मिलता आमंत्रण
वाह वाह और भीड़ देखने तरसे है मन
और बड़ी मुश्किल से घर का चले गुजारा
वो दिन गए,फाकता ,मियां करते मारा
बंद हुये अखबार ,कविताए कम छपती
और छपास की भी भड़ास अब नहीं निकलती
बहुत कुलबुलाता,कविसम्मेलन का कीड़ा है
मेरी नहीं,हरेक कवि की ये पीड़ा है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
बरसात
बरसात
जब ना आती ,तो तरसाती,आती,रस बरसाती हो
रसवन्ती निज बौछारों से ,जीवन को सरसाती हो
मगर तुम्हारा अधिक प्यार भी,परेशानियाँ लाता है
जब लगती है झड़ी प्यार की ,तो यह मन उकताता है
संयम से जो रहे संतुलित ,वही सुहाता है मन को
पत्नी कहूँ,प्रियतमा बोलूँ ,या बरसात कहूँ तुमको
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
सोमवार, 17 जून 2013
कथनी और करनी
कथनी और करनी
बड़े जोश से,ये कर देंगे,वो कर देंगे ,कहते थे
और हमेशा ,बड़े बड़े ,जो वादे करते रहते थे
हमने उन्हे चमन सौंपा था,उसकी रखवाली करने
लेकिन बेच,फूल और फल वो,अपनी जेब लगे भरने
हो जाता बर्बाद,सूखता,नूर चमन सब खोता है
खाने लगती बाड़ खेत को,तब एसा ही होता है
और उस पर ये सितम ,गर्व से,चीख चीख ये बतलाते
जो कुछ उनने किया उसे ,अपनी उपलब्धी बतलाते
हमको फिर सत्ता मे लाओ,सस्ता अन्न तुम्हें देंगे
पिछली बार खा लिया हमने,अब तुमको खाने देंगे
बहुत दुखी कर,भरमाया है,इनके गोरखधंधों ने
लूटा बहुत देश है मेरा,इन मतलब के अंधों ने
अब हम को जो भी करना है,हम कर के दिखला देंगे
जनता को धोखा देने का,फल तुमको सिखला देंगे
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
डालर का इकोनोमिक्स
डालर का इकोनॉमिक्स
जब चुनाव नजदीक आता है ,
डालर का भाव बढ़ जाता है
क्योंकि भ्रष्ट राज नेताओं का ,
डालरों मे जमा किया काला धन
जब विदेशी बेंकों से निकाल कर ,
हवाले से जब हमारे देश मे आता है
तो चुनाव मे खर्च करने को ,
ज्यादा रुपैया मिल जाता है
घोटू
बुढ़ापा
बुढ़ापा- जीवन का संडे
जीवन भर संधर्ष किया है ,गुजरें है तूफानो से ,
हम मे ऊर्जा भरी हुई है,ये न समझना ठंडे है
दिखने मे बेजान काठ से,दुबले पतले लगते है,
अगर पड़े तो खाल उधेड़े ,हम तो एसे डंडे है
हमको मत कमजोर समझना,देख हमारी काया को,
हमने दुनिया देखी,आते ,हमको सब हथकंडे है
ये जीवन,सप्ताह एक है,हमने छह दिन काम किया,
अब आराम बुढ़ापे मे है,ये जीवन का संडे है
'घोटू '
फादर'स डे
फादर'स डे
विदेशों का चलन आजकल ,
भारत मे भी बढ़ता जाता है
एक साल मे एक बार ,
पिताजी का दिन भी आता है
जिसे लोग फादर'स डे कह कर बुलाते है
और अपने पिता को,हेप्पी फादर'स डे के,
कार्ड,तोहफे और शुभकामना संदेश भिजवाते है
बहुत व्यस्त रहते हुये भी कुछ
समय निकाल कर याद कर लेते है
शुभकामना संदेश एस एम एस कर देते है
कोई फोन पर बात करते है,
कोई उपहार या कोई फूल भिजवाता है
और इस तरह बाप का कर्ज चुकाता है
हमने जब ये बात अपने बेटे से बोली
तो उसने बड़े गर्व से अपनी जुबान खोली
कहा बच्चे साल मे कम से कम एक दिन तो,
फादर'स डे मना कर के,
अपने पिता का एहसान चुकाते है
पर क्या आप कभी,
'सन'स डे' या'डाटर'स डे 'मनाते है ?
हमने कहा हमारा तो हर दिन ही ,
बच्चों का दिन हुआ करता है
अब तुम्हें क्या बताएं ,
माँ बाप का दिल तो हमेशा,
अपने बच्चों की खुशी की दुआ करता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
रविवार, 16 जून 2013
गुजरा हुआ जमाना
गुजरा हुआ जमाना
सूरज रोशन करता है दिन,चाँद चाँदनी बिखराता
बहती सुंदर हवा सुहानी ,बादल पानी बरसाता
ये सारे उपहार प्रकृति के ,देता है ऊपर वाला
सब उपकार मुफ्त ,पैसे ना लेता है ऊपर वाला
लेकिन हम सब दुनिया वाले जब थोड़ा कुछ करते है
नहीं मुफ्त मे कुछ भी मिलता ,पैसे देना पड़ते है
करे रात को घर रोशन तो बिजली का बिल है बढ़ता
पानी की बोतल पीने को ,दस रुपया देना पड़ता
और हवा के झोंके ए सी ,कूलर ,पंखों से आते
एक तो मंहगे दाम और फिर है दूनी बिजली खाते
जब ये सब उपकरण नहीं थे ,रात छतों पर सोते थे
ठंडी मस्त हवा के झोके ,बड़े सुहाने होते थे
मटकी और सुराही मे भर,पीते थे ठंडा पानी
रोटी ,चटनी सब्जी खाते ,और मीठी सी गुडधानी
बड़ा मस्तमौला जीवन था ,ना थी चिंता कोई फिकर
न थी आज सी भागदौड़ी और काम करना दिन भर
बहुत तरक्की की पर खोया ,मन का चैन पुराना वो
हमे याद आता है अक्सर ,गुजरा हुआ जमाना वो
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
चढ़ावा
चढ़ावा
दुनिया भर को रोशन करता ,बिना कुछ पैसे लिये
ताल,कुवे,नदियां सब भरता ,बिना कुछ पैसे लिये
मस्त हवा के झोंके लाता , बिना कुछ पैसे लिये
धूप,चाँदनी से नहलाता ,बिना कुछ पैसे लिये
खेतों मे है अन्न उगाता ,बिना कुछ पैसे लिये
एक बीज से वृक्ष बनाता , बिना कुछ,,पैसे लिये
मन था उपकृत,एहसानों से,और मैंने इसलिये
गया मंदिर ,उसके दर पर, चढ़ा कुछ रुपए दिये
था बड़ा एहसानमंद मै,उसे कहने शुक्रिया
एक डब्बा मिठाई का, चढ़ा मंदिर मे दिया
कहा उसने खुश रहो तुम,मेरा आशीर्वाद है
ये मिठाई तू ही खाले, ये मेरा परशाद है
था बड़ा एहसानमंद मै,उसे कहने शुक्रिया
एक डब्बा मिठाई का, चढ़ा मंदिर मे दिया
कहा उसने खुश रहो तुम,मेरा आशीर्वाद है
ये मिठाई तू ही खाले, ये मेरा परशाद है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
बिजली
कभी जाती हो चली और कभी आ जाती हो तुम
मुझसे आँख मिचौली करती ,बहुत तड़फाती हो तुम
जब भी मै छूता तुझे ,तो झटका देती हो मुझे ,
दिलरुबा बोलूँ की या फिर ,कहूँ मै बिजली तुझे
'घोटू '
बुधवार, 12 जून 2013
घडी
ये घडी,
एक स्थान पर पड़ी
सबसे टिक टिक कहती रहती
और खुद रहती,
एक जगह पर टिक कर ,
लेकिन हरदम चलती रहती
जब तक इसमे बेटरी या सेल है
तभी तक इसका खेल है
आदमी की जिंदगी से ,
देखो कितना मेल है
इसकी टिक टिक ,आदमी की सांस जैसी ,
बेटरी सी आदमी की जान है
जब तक बेटरी मे पावर है
साँसो का आना जाना उसी पर निर्भर है
बेटरी खतम,
घडी भी बंद,साँसे भी बंद
घडी मे होते है तीन कांटे ,
सेकंड का काँटा ,बड़ी तेजी से चलता रहता है
बचपन की तरह ,उछलता रहता है
मिनिट का काँटा,
जवानी की तरह ,थोड़ा तेज तो है,
पर संभल संभल कर चलता है
और घंटे का कांटा ,
जैसे हो बुढ़ापा
बाकी दोनों कांटो के चलने पर निर्भर
बड़े आराम से ,धीरे धीरे ,
बढ़ाता है अपने कदम
क्या पता ,कब घड़ी ,जाय थम
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
उतार चढाव
उतार चढाव
उठता है जो कोई तो फिर गिरता भी कोई है,
डालर चढ़ा तो रुपैया धडाम हो गया
मोदीजी की पतंग जो ऊपर को उड़ गयी ,
अडवानी जी का थोड़ा नीचा नाम हो गया
गुस्से में बौखला के उनने स्तीफा दिया ,
सपना पी एम बनने का ,तमाम हो गया
मोहन ने ऐसी भागवत है कान में पढी,
फिर से पुराना वो ही ताम और झाम हो गया
मदन मोहन बाहेती'घोटू '
उठता है जो कोई तो फिर गिरता भी कोई है,
डालर चढ़ा तो रुपैया धडाम हो गया
मोदीजी की पतंग जो ऊपर को उड़ गयी ,
अडवानी जी का थोड़ा नीचा नाम हो गया
गुस्से में बौखला के उनने स्तीफा दिया ,
सपना पी एम बनने का ,तमाम हो गया
मोहन ने ऐसी भागवत है कान में पढी,
फिर से पुराना वो ही ताम और झाम हो गया
मदन मोहन बाहेती'घोटू '
मंगलवार, 11 जून 2013
बिल्लियों की लड़ाई में मज़े बन्दर लूटता --
बिल्लियों की लड़ाई में मज़े बन्दर लूटता
कह रहा हूँ बात ये सच ,नहीं बिलकुल झूंठ है
बुजुर्गों को दो तबज्जो ,वरना जाते रूठ है
उनकी इज्जत और उनका मान रखना चाहिये ,
वरना उनका दिल दुखी होता है,जाता टूट है
लाभ उनके अनुभव का हमको लेना चाहिये ,
वर्ना घर के सदस्यों में ,जाती है पड़ फूट है
दो अलग खेमो में बंट जाता सकल परिवार है,
एक दूजे के विरोधी ,बन जाते दो गुट है
बिल्लियों की लडाई में मज़े बन्दर उठाता ,
और सारी रोटियां ,जाता मज़े से लूट है
मन की चाही बहू ,बेटा लाया है ,स्वागत करो,
नयी पीड़ी को ज़रा तो देनी पड़ती छूट है
दौर तुम्हारा है गुजरा , हाथ से छूटी पकड़,
नहीं अच्छा ,छोड़ना घर ,और जाना रूठ है
रूठने और मनाने का ,खेल सारा छोड़ दो ,
सफलता तब मिलेगी जब ,सब के सब एकजुट है
कमान्डर बन करके उनका पथ प्रदर्शन कीजिये ,
मोरचे पर जोश से लड़ता नया रंगरूट है
हो अगर मकसद बड़ा तो अहम् पड़ता त्यागना ,
बताओ ये बात मेरी ,सत्य है या झूंठ है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
सोमवार, 10 जून 2013
जब पसीना गुलाब था
वो दिन भी क्या थे ,जब कि पसीना गुलाब था
हम भी जवान थे और तुममे भी शबाब था
तुम्हारा प्यार मदभरा जामे-शराब था
उस उम्र का हर एक लम्हा ,लाजबाब था
बेसब्रे थे और बावले ,मगरूर बहुत थे
और जवानी के नशे में हम चूर बहुत थे
पर जोशे-जिन्दगी से हम भरपूर बहुत थे
लोगों की नज़र में हम नामाकूल बहुत थे
जब इन तिलों में तेल था ,वो दिन नहीं रहे
अरमान दिल के हमारे आंसू में सब बहे
अपने ही गये छोड़ कर ,अब किससे क्या कहे
टूटा है दिल, उम्मीद के ,सारे किले ढहे
हमने था जिन्दगी को बड़े चाव से जिया
आबे-हयात उनके लबों से था जब पिया
बढ़ती हुई उम्र ने है ऐसा सितम किया
वो दिन गए जब मारते थे ,फ़ाक़्ता मियां
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
जिन्दगी बस ऐसे ही चलती है
जिन्दगी बस ऐसे ही चलती है
शुरू शुरू में बड़ा चाव होता है
मन में एक नया उत्साह होता है
जीवन में छा जाते है नए रंग
नए नए सपने,नई नई उमंग
और फिर धीरे धीरे ,रोज का चक्कर
कभी कभी सुहाता,कभी बड़ा दुःख कर
ढलती है जवानी और उमर है बढ़ जाती
इसी तरह जीने की ,आदत पड़ जाती
कभी कच्ची रहती,कभी दाल गलती
जिन्दगी सारी ,बस ऐसे ही चलती
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
पथ्य
पथ्य
लूखी रोटी,सब्जी पतली
चांवल लाल,दाल भी पतली
और सलाद,मूली का गट्टा
और साथ में फीका मट्ठा
डाक्टर ने जो बतलाया था
कल मैंने वो ही खाया था
या बस अपना पेट भरा था
सच मुझको कितना अखरा था
एक तरफ पकवान,मिठाई
देख देख नज़रें ललचाई
मगर बनायी इनसे दूरी
बीमारी की थी मजबूरी
कई बार ये आता जी में
इतना सब कुछ दिया विधी ने
सब इन्जोय करो,कहता मन
तो फिर क्यों है इतना बंधन
खाना चाहें,खा न सके हम
कब तक खुद को रोकेंगा मन
हम सब है खाने को जीते
या जीने को खाते,पीते
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
एक ही थैली के चट्टे बट्टे
एक ही थैली के चट्टे बट्टे
खुद है गंदे ,और हमको साफ़ करने आ गये
देखो बगुले,भक्त बन कर,जाप करने आ गये
कोर्ट में लंबित है जिनके ,गुनाहों का मामला ,
अब तो मुजरिम भी यहाँ,इन्साफ करने आ गये
भले मंहगाई बढे और सारी जनता हो दुखी ,
भाड़ में सब जाये ,खुद का लाभ करने आ गये
यूं ही सब बदहाल है ,टेक्सों के बढ़ते बोझ से,
हमको फिर से नंगा ये चुपचाप करने आ गये
रोज बढ़ती कीमतों से,फट गया जो दूध है,
उसके रसगुल्ले बना ये साफ़ करने आ गये
एक ही थैली के चट्टे बट्टे,मतलब साधने ,
कौरवों से पांडव ,मिलाप करने आ गये
पाँव लटके कब्र में है,मगर सत्ता पर नज़र,
बरसों से देखा ,वो पूरा ख्वाब करने आ गये
बहुत हमको रुलाया,अब तो बकश दो तुम हमें,
सता करके फिर हमें ,क्यों पाप करने आ गये
बहुत झेला हमने 'घोटू',वोट हमसे मांग कर ,
फिर से शर्मिन्दा हमें ,क्यों आप करने आ गये
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
रविवार, 9 जून 2013
प्रणय निवेदन-एक डाक्टरनी से
प्रणय निवेदन-एक डाक्टरनी से
दर पे तेरे आये है हम ,तुझसे कहने के लिये
क्या तेरे दिल में जगह है ,मेरे रहने के लिये
महबूबा डाक्टर थी,हंस के ये बोली डीयर
मेरा दिल तो छोटा सा है,एक मुट्ठी बराबर
और तुम तो छह फुटे हो,समा कैसे पाओगे
तोड़ दोगे ,दिल मेरा, यदि उसमे बसने आओगे
हमने बोल ठीक है,एहसान इतना कीजिये
दिल नहीं तो कम से कम ,दिमाग में रख लीजिये
'क्या मेरा दिमाग खाली'खफा हो उसने कहा
डाक्टरी पढ़ ली तो फिर दिमाग क्या खाली रहा
कहा हमने चाहते हम ,कहना दिल की बात है
तुम मेरी लख्ते -जिगर,ये प्यार के जज्बात है
कहा उसने जिगर फिर तो तुम्हारा बेकार है
टेस्ट लीवर का कराने की तुम्हे दरकार है
हमने बोल प्यार जतलाने का ये अंदाज है
मेरी हर धड़कन में डीयर ,बस तुम्हारा वास है
धडकता दिल,सांस से जब ,आती जाती है हवा
मै हवा ना ,हकीकत हूँ,पलट कर उसने कहा
हमने बोला ,ये हमारे इश्क का पैगाम है
मेरे खूं के हरेक कतरे में तुम्हारा नाम है
कहा उसने ,सीरियस ये बात है,कहते हो क्या
टेस्ट ब्लड का कराना ,अब तो जरूरी हो गया
हमने बोला ,बस करो,मत झाड़ो अपनी डाक्टरी
प्यार का इकरार करदो,झुका नज़रे मदभरी
हंस वो बोली,बात दिल की,मेरे पापा से कहो
हमारी शादी करादे ,साथ फिर मेरे रहो
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
शनिवार, 8 जून 2013
इस हाथ देना -उस हाथ लेना
इस हाथ देना -उस हाथ लेना
हम गाय को घास डालते है ,
ये सोच कर कि दूध मिलेगा
शादी में बहू को गहने चढाते है,
इस उम्मीद से कि वंश बढेगा
बीबी की हर बात मानते है ,
क्योंकि उससे प्यार है पाना
कुछ पाने की आशा में ,कुछ चढ़ाना ,
ये तो है चलन पुराना
अब आप इसे रिश्वत कह दो ,
या दे दो कोई भी नाम
पर ये तो इन्वेस्मेंट है ,
जिससे हो जाते है बड़े बड़े काम
जब हम मंदिर में चढ़ावा चढाते है ,
या कोई दान करते है
भगवान् हमें कई गुना देगा,
ये अरमान रखते है
और काम हो जाने पर,
भगवान को परसाद चढाते है
भगवान को दो प़ेडे,
और बाकी प्रशाद खुद खाते है
जिस मंदिर में मनोकामना पूर्ण होती है ,
वहीँ पर लोग उमड़ते है
सब इन्वेस्टर है,जहाँ अच्छा रिटर्न है,
वहीँ इन्वेस्ट करते है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
अन्दर की बात
अन्दर की बात
समुन्दर का हुआ मंथन ,निकले थे चौदह रतन ,
उनमे से एक चाँद भी था ,वो कहानी याद है
छोड़ कर निज पिता का घर,आसमां में जा बसा ,
समुन्दर तो है पिताजी ,और बेटा चाँद है
पूर्णिमा को पास दिखता ,तो हिलोरें मारता ,
बाप का दिल करता है की जाकर बेटे से मिले
और अमावस्या के दिन जब वो नज़र आता नहीं,
परेशां होता समुन्दर ,बढती दिल की हलचलें
चाँद के संग ,समुन्दर से ही थी प्रकटी लक्ष्मी ,
वारुणी ,अमृत,हलाहल,भाई और बहना हुये
पत्नी जी गृहलक्ष्मी है ,चाँद उनका भाई है ,
इसी कारण चंद्रमाजी ,बच्चों के मामा हुये
वारूणी ,साली हमारी ,है बड़ी ही नशीली ,
पत्नीजी ने भाई बहनों से है उनका गुण लिया
होती है नाराज तो लगती हलाहल की तरह,
प्यार करती,ऐसा लगता ,जैसे अमृत घट पिया
ससुरजी ,खारे समुन्दर ,रत्नाकर कहते है सब,
पर बड़े कंजूस है ,देते न कुछ भी माल है
बात ये अन्दर की है पर आप खुद ही समझ लो,
जिसके तेरह साले ,साली,कैसा उसका हाल है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
शुक्रवार, 7 जून 2013
मियानी
सफ़ेद कुर्ता और कसा पायजामा
आप पर बहुत फबता है ये जामा
खींसे निपोर और हाथ जोड़ ,
आप जब मुस्कराते है
रंगे हुये सियार नज़र आते है
बाहर से तो दिखते है बड़े चगे
पर आप भी जानते है और हम भी,
कि आप अन्दर से है कितने नंगे
आपको एक मशवरा है ,
अच्छा लगे तो मान जाइयेगा
ज्यादा पैर मत फ़ैलाइयेगा
वरना आपके तंग पायजामे की ,
मियानी उधड़ जायेगी
और आपकी नंगई ,
सबके सामने नज़र आ जायेगी
घोटू
दुनिया के रंग
दुनिया के रंग
इस दुनिया के कई रंग है
कोई का दिल बड़ा तंग है
कोई के मन में उमंग है
सबके अपने पृथक ढ़ंग है
बाहर से दिखता सफ़ेद पर
देखो यदि त्रिपार्श्व लगा कर
सतरंगी दिखता है मंज़र
खूब मज़ा लो इसका जी भर
ये दुनिया तो सतरंगी है
तृप्त कभी,भूखी नंगी है
कभी अजब है ,बेढंगी है
दानी भी है,भिखमंगी है
कोई मुहब्बत में है डूबा
तो कोई नफरत में डूबा
कोई इस दुनिया से ऊबा
सबका अलग अलग मंसूबा
कोई लगा कमाने में है
कोई लगा लुटाने में है
कोई लगा बनाने में है
कोई लगा गिराने में है
कोई मालामाल बहुत है
तो कोई कंगाल बहुत है
कोई तो खुशहाल बहुत है
तो कोई बदहाल बहुत है
कोई भूखा रहे बिचारा
तो फिर कोई अपच का मारा
खा न सके ,तरसे बेचारा
कोई फिरता मारा मारा
तो कोई बीमार बहुत है
दुखी और लाचार बहुत है
तो कोई दमदार बहुत है
बहुरंगी संसार बहुत है
मीठा मीठा सबसे बोलो
अंतर्मन की आँखें खोलो
सबके मन में प्यार संजोलो
सबको एक तराजू तौलो
सदविचार का चश्मा पहनो
संस्कार का चश्मा पहनो
सदा प्यार का चश्मा पहनो
सदाचार का चश्मा पहनो
धुन्धलाहट सब मिट जायेगी
दुनिया साफ़ नज़र आयेगी
प्रेम लगन जब लग जायेगी
सदा जिन्दगी मुस्कायेगी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
जिन्दगी -चार मुक्तक
जिन्दगी-चार मुक्तक
१
जिन्दगी थी ,खूबसूरत ,जिन पलों में
रहे उलझे,सांसारिक , सिलसिलों में
फेर में नन्यान्वे के रहे फंस कर ,
फायदे ,नुक्सान की ही अटकलों में
२
हमें अच्छा या बुरा कुछ दिख न पाया
भटकता ही रहा ये मन, टिक न पाया
अभी तक हिसाब ये हम कर न पाये ,
हमने क्या क्या खोया और क्या क्या कमाया
३
जिन्दगी का मुल्य हम ना जान पाये
आपाधापी में यूं ही बस दिन बिताये
व्यर्थ की ही उलझनों में रहे उलझे ,
अधूरी रह गयी मन की कामनायें
४
सांझ आयी ,सूर्य ढलने लग गया है
उम्र का ये दौर ,खलने लग गया है
जितना भी हो सके,जीवन का मज़ा लें,
ख्याल मन में ये मचलने लग गया है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
बुढापे की खुराक
बुढापे की खुराक
खा लिया करते थे 'घोटू',पाच छह गुलाब जामुन ,
उम्र का एसा असर है ,सिर्फ जामुन खा रहे है
दिल जलाया ,जलेबी ने,और रसगुल्ला हुआ गुल,
खीर खाना अब मना है,सिर्फ खीरा खा रहे है
भूल करके गर्म हलवा ,करेले का ज्यूस कड़वा ,
लूखी रोटी ,फीकी सब्जी, कैसे भी गटका रहे है
तली चीजों पर है ताला ,चाय ,काफी पड़ी फीकी ,
शुगर ना बढ़ जाए तन में,इसलिये घबरा रहे है
'घोटू'
बुजुर्गों का आशीर्वाद
बुजुर्गों का आशीर्वाद
प्रगति पथ पर जब भी बढ़ता आदमी ,
चढ़ने लगता तरक्की की सीढियां
एक उसके कर्म से या भाग्य से ,
जाती है तर ,कई उसकी पीड़ियाँ
बनाता पगडंडियो को है सड़क ,
साफ़ होती राह जिसके काम से
उसकी मेहनत का ही ये होता असर ,
सबकी गाडी चलती है आराम से
बीज बोता ,उगाता है सींचता ,
वृक्ष होता तब कहीं फलदार है
खा रहे हम आज फल ,मीठे सरस ,
ये बुजुर्गों का दिया उपहार है
आओ श्रद्धा से नमाये सर उन्हें ,
आज जो कुछ भी है,उनकी देन है
उनके आशीर्वाद से ही हमारी ,
जिन्दगी में अमन है और चैन है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
गुरुवार, 6 जून 2013
प्यार की बरसात करदे
प्यार की बरसात करदे
छा रहे बादल घनेरे
पास आकर मीत मेरे
घन भले ,बरसे न बरसे ,प्यार की बरसात कर दे
चाँद बादल में छुपा है
मुख तुम्हारा चंद्रमा है
चांदनी में नहा कर हम,सुहानी ये रात कर दें
उष्म मौसम है ,उमस है
बड़ी मन में कशमकश है
पास आओ,साथ मिल कर,पंख फैला कर उड़े हम
मै हूँ पानी ,तुम हो चन्दन
बाँध कर बाहों का बंधन
एक दूजे में समायें, एक दूजे संग जुड़े हम
हर तरफ बस प्यार बरसे
प्रीत की मधु धार बरसे
हवाएं शीतल बहे और हो हरेक मौसम सुहाना
पुष्प विकसे,मुस्कराये
बहारे हर तरफ छाये
और भवरे गुनगुनाये ,प्यार का मादक खजाना
मिलन रस में माधुरी है
जिन्दगी खुशियाँ भरी है
जिन्दगी महके सभी की ,कोई ऐसी बात कर दें
छा रहे बादल घनेरे
पास आकर मीत मेरे
घन भले बरसे न बरसे ,प्यार की बरसात कर दें
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
आज तुम जब नहाई होगी
आज तुम जब नहाई होगी
आज तुम जब नहाई होगी
देख खुद को आईने में ,मुदित हो मुस्काई होगी
आज तुम जब नहाई होगी
विधी ने तुम पर् लुटाया ,रूप का अनुपम खजाना
किया घायल सैकड़ों को ,बनाया पागल दीवाना
गुलाबों की मधुर आभा ,गाल पर तेरे बिखेरी
बादलों की कालिमा सी ,सजाई जुल्फें घनेरी
और अधरों में भरी है,सुधा संचित प्रेम रस की,
आईने में स्वयं का चुम्बन किया ,शरमाई होगी
आज तुम जब नहाई होगी
कदली के स्तंभ ऊपर ,देख निज चंचल जवानी
डाल चितवन,स्वयं पर तुम हो गयी होगी दीवानी
देख अमृत कलश उन्नत,बदन की शोभा बढाते
झुका करके नज़र देखा उन्हें होगा ,पर लजाते
भिन्न कोणों से निहारा होगा निज तन के गठन को ,
संगेमरमर सा सुहाना ,बदन लख, इतराई होगी
आज तुम जब नहाई होगी
पडी ठंडी जल फुहारें ,मगर ये तन जला होगा
स्वयं अपने हाथ से जब बदन अपना मला होगा
स्निग्ध कोमल कमल तन से बहा होगा जल फिसल कर
चाहता था संग रहना ,मगर टिक पाया न पल भर
रहा सूखा तौलिया ,तन रस न पी पाया अभागा ,
किन्तु खुश स्पर्श से था ,तुमने ली अंगडाई होगी
आज तुम जब नहाई होगी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
बुधवार, 5 जून 2013
आओ पर्यावरण बचाएं
पर्यावरण दिवस पर विशेष
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आओ पर्यावरण बचाएं
जबसे भार्या वरण किया है,
और बंधा वैवाहिक बंधन
मस्ती भरे स्वच्छ जीवन में ,
चिंताओं का बढ़ा प्रदूषण
धुल धूसरित हुई हवाएं,
मुश्किल लेना सांस हो गया
खर्चे है हो गए चोगुने ,
जीवन में अब त्रास हो गया
नित्य नित्य नूतन फरमाईश ,
मेरी जेब प्रदूषित करती
कितनी करे सफाई कोई,
मुश्किल हर दिन दूनी बढ़ती
लोभ मोह और कपट क्रोध का,
इतना कचरा इसमें डाला
निर्मल स्वच्छ धार गंगा की,
आज रह गयी बन कर नाला
मुक्त करें इसको कचरे से ,
निर्मल,सुन्दर, स्वच्छ बनाएं
आओ,पर्यावरण बचाएं
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
मंगलवार, 4 जून 2013
रसीले रिश्ते
रसीले रिश्ते
पत्नी
पत्नियाँ ,फ्रिज में रखी ,घर की मिठाई
जब भी जी चाहे ,गरम कर,जाए खायी
प्यार करती तो लगे मख्खन मलाई
सर्दियों से बचाती ,बन कर रजाई
साली
सालियाँ तो जलेबी ,गरमागरम है
स्वाद पाने,बनना पड़ता ,बेशरम है
टेडी मेडी ,रस भरी है, अटपटी है
मगर सुन्दर,शोख ,चंचल,चटपटी है
साला
पत्नी जी का भाई जो होता है साला
बड़ा तीखा ,तेज है इसमें मसाला
अनुभवी जो लोग है ,सब ये कहे है
इसे खुश रख्खो तो बीबी खुश रहे है
सास-ससुर
सास का अहसास होता बड़ा प्यारा
जिसे है दामाद ,बेटी से दुलारा
और ससुर के साथ सुर में सुर मिलाओ
पत्नी भी खुश,लुफ्त जीवन का उठाओ
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
सोमवार, 3 जून 2013
शुक्रिया
शुक्रिया
आपने हमको दिये ,दो पल ख़ुशी के ,
तहे दिल से आपका है शुक्रिया
चंद लम्हे ,मुस्कराहट और खुशी के,
तहे दिल से आपका है शुक्रिया
पोंछ आंसू सभी डाले ,बेबसी के,
तहे दिल से आपका है शुक्रिया
और बिखेरे रंग सुन्दर जिन्दगी के ,
तहे दिल से आपका है शुक्रिया
हम हैं जो भी,आपकी ही है बदौलत ,
तहे दिल से आपका है शुक्रिया
आप ही जीवन की पूँजी और दौलत,
तहे दिल से आपका है शुक्रिया
आपने दी है हमें सच्ची महोब्बत ,
तहे दिल से आपका है शुक्रिया
आपका अहसान हम पर उमर भर तक,
तहे दिल से आपका है शुक्रिया
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
उलझनों में फंसा जीवन
उलझनों में फंसा जीवन
बिना भोजन ,भजन कोई क्या करेगा
ह्रदय चिंतित,कोई चिंतन क्या करेंगा
आग की है तपन जब तन को तपाती,
हाथ जलते, हवन कोई क्या करेगा
मूर्तियां परसाद जो खाने लगे तो,
चढ़ा व्यंजन,कोई पूजन ,क्या करेगा
पास ना धन और यदि ना कोई साधन ,
तीर्थ में जा ,कोई वंदन क्या करेगा
गंगा में डुबकी लगा कर पाप धुलते ,
पुण्य और सत्कर्म कोई क्या करेगा
आजकल के गुरु,गुरुघंटाल है सब,
कोई निज सर्वस्व अर्पण क्या करेगा
हाथ में माला ,सुमरनी , पढ़े गीता,
मगर चंचल ,भटकता मन ,क्या करेगा
इधर जाऊं,उधर जाऊं,क्या करूं मै ,
उलझनों में फंसा जीवन,क्या करेगा
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
रविवार, 2 जून 2013
अंगूठा -सबसे अनूठा
बंद कर मुट्ठी को,ऊपर अंगूठा करो,
इसे कहते थम्स अप ,मतलब सब ठीक है
बंद कर मुट्ठी को,नीचे अंगूठा करो,
लिफ्ट तुमको चाहिए ,ये इसका प्रतीक है
उंगली ,अंगूठे साथ ,होता जब चोडा हाथ,
या तो मारे झापट या फिर मांगे भीख है
काम निकल जाने पर,अंगूठा दिखाते सब,
किसी पे भरोसा नहीं करो ये ही सीख है
'घोटू '
स्वर
स्वर
हर उमंग में स्वर होता है
हर तरंग में स्वर होता है
उड़ पतंग ऊपर जाती है
बीच हवा में इठलाती है
आसमान में चढ़ी हुई है
पर डोरी से बंधी हुई है
डोर थाम देखो तुम कुछ क्षण
उंगली पर तुम उसकी थिरकन
कर महसूस ,जान पाओगे ,
हर पतंग में स्वर होता है
जब आती यौवन की बेला
ये मन रह ना पाए अकेला
प्यार पनपता है जीवन में
कोई बस जाता है मन में
जीवन में छा जाते रंग है
और मन में उठती तरंग है
प्रीत किसी से कर के देखो,
प्रियतम संग में ,स्वर होता है
छोटी ,लम्बी लोह सलाखें
अगर ढंग से रखो सजाके
या फिर लेकर सात कटोरी
पानी से भर भर कर थोड़ी
अगर बजाओगे ढंग से तुम
उसमे से निकलेगी सरगम
लोहे में,जल में, बसते स्वर,
जलतरंग में स्वर होता है
नन्ही जूही,श्वेत चमेली
पुष्पों की खुशबू अलबेली
मस्त मोगरा,खिलता चम्पा
रात महकती ,रजनीगन्धा
और गुलाब की खुशबू मनहर
मन में देती है तरंग भर
किसी भ्रमर के दिल से पूछो ,
हर सुगंध में स्वर होता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
अंगूठा
अंगूठा
उंगलिया छोटी बड़ी है
साथ मिल कर सब खड़ी है
मगर गर्वान्वित अकेला,
है नज़र आता अंगूठा
उंगलियाँ पहने अंगूठी
जड़ी रत्नों से अनूठी
नग्न सा ,सबसे अलग पर,
हमें दिखलाता अंगूठा
एक जैसे दिखे सब है
मगर रेखायें अलग है
हरेक दस्तावेज ऊपर ,
लगाया जाता अंगूठा
तिलक मस्तक पर लगाता
उँगलियों के संग उठाता
चुटकी भर सिन्दूर लेकर ,
मांग भर जाता अंगूठा
स्वार्थ हो तब किये जाते
कई कसमे ,कई वादे
निकल जब जाता है मतलब ,
दिखाया जाता अंगूठा
उँगलियों का साथ पाता
तब कलम वो पकड़ पाता
गीत,कवितायें ,कथाएं,
तभी लिख पाता अंगूठा
गुरु गुड़ ,चेले है शक्कर
शिष्य ना एकलव्य बनकर
दक्षिणा में है चढ़ाता ,
मगर दिखलाता अंगूठा
बंधी मुट्ठी लाख की है
खुल गयी तो खाक की है
एकता और संगठन का ,
पाठ सिखलाता ,अंगूठा
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
उंगलिया छोटी बड़ी है
साथ मिल कर सब खड़ी है
मगर गर्वान्वित अकेला,
है नज़र आता अंगूठा
उंगलियाँ पहने अंगूठी
जड़ी रत्नों से अनूठी
नग्न सा ,सबसे अलग पर,
हमें दिखलाता अंगूठा
एक जैसे दिखे सब है
मगर रेखायें अलग है
हरेक दस्तावेज ऊपर ,
लगाया जाता अंगूठा
तिलक मस्तक पर लगाता
उँगलियों के संग उठाता
चुटकी भर सिन्दूर लेकर ,
मांग भर जाता अंगूठा
स्वार्थ हो तब किये जाते
कई कसमे ,कई वादे
निकल जब जाता है मतलब ,
दिखाया जाता अंगूठा
उँगलियों का साथ पाता
तब कलम वो पकड़ पाता
गीत,कवितायें ,कथाएं,
तभी लिख पाता अंगूठा
गुरु गुड़ ,चेले है शक्कर
शिष्य ना एकलव्य बनकर
दक्षिणा में है चढ़ाता ,
मगर दिखलाता अंगूठा
बंधी मुट्ठी लाख की है
खुल गयी तो खाक की है
एकता और संगठन का ,
पाठ सिखलाता ,अंगूठा
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
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कम्बल और भोजन वितरण के साथ "अपंगता दिवस" संपन्न हुआ - *नई दिल्ली: विगत 3 दिसम्बर 2014 दिन-बधुवार को सुबह 10 बजे, स्थान-कोढ़ियों की झुग्गी बस्ती,पीरागढ़ी, दिल्ली में गुरु शुक्ल जैन चैरिटेबल ट्रस्ट (पंजीकृत) दिल...9 वर्ष पहले
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जून 2014 के बाद की गज़लें/गीत (21) चलो-चलो यह देश बचायें ! (‘शंख-नाद’ से) - (सारे चित्र' 'गूगल-खोज' से साभार) चुपके-खुल कर अमन जलाते | खिलता महका चमन जलाते || अशान्ति की जलती ज्वाला से- सुखद शान्ति का भवन जलाते || हिंसा के दुर्दम प...9 वर्ष पहले
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झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (14) आधा संसार (नारी उत्पीडन के कारण) (क) वासाना-कारा (vi) कुबेर-सुत | - (सारे चित्र' 'गूगल-खोज' से साभार) दरिद्रता-दुःख-दीनता, निर्धनता की मार ! कितना पीड़ित विश्व में, है आधा संसार !! पुत्र कुबेरों के कई, कारूँ के कुछ लाल ! ज...9 वर्ष पहले
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आहटें ..... - *आज भोर * *कुछ ज्यादा ही अलमस्त थी ,* *पूरब से उस लाल माणिक का * *धीरे धीरे निकलना था * *या * *तुम्हारी आहटें थी ,* *कह नहीं सकती -* *दोनों ही तो एक से...9 वर्ष पहले
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झाँसी की रानी पर आधारित "आल्हा छंद" - झाँसी की रानी पर आधारित 'अखंड भारत' पत्रिका के वर्तमान अंक में सम्मिलित मेरी एक रचना. हार्दिक आभार भाई अरविन्द योगी एवं सामोद भाई जी का. सन पैंतीस नवंबर उ...9 वर्ष पहले
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हम,तुम और गुलाब - आज फिर तुम्हारी पुरानी स्मृतियाँ झंकृत हो गई और इस बार कारण बना वह गुलाब का फूल जिसे मैंने दवा कर किताबों के दो पन्नों के भूल गया गया था और उसकी हर पंखुड़िय...9 वर्ष पहले
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गाँव का दर्द - गांव हुए हैं अब खंढहर से, लगते है भूल-भुलैया से। किसको अपना दर्द सुनाएँ, प्यासे मोर पप्या ? आंखो की नज़रों की सीमा तक, शहरों का ही मायाजाल है, न कहीं खे...9 वर्ष पहले
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संघर्ष विराम का उल्लंघन - जम्मू,संघर्ष विराम का उल्लंघनकरते हुए पाकिस्तानी सेना ने रविवार को फिर से भारतीय सीमा चौकियों पर फायरिंग की। इस बार पाकिस्तान के निशाने पर जम्मू जिले के का...10 वर्ष पहले
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प्रतिभा बनाम शोहरत - “ हम होंगें कामयाब,हम होंगें कामयाब,एक दिन ......माँ द्वारा गाये जा रहे इस मधुर गीत से मेरे अन्तःकरण में नए उत्साह का स्पंदन हो रहा था .माँ मेरे माथे को ...10 वर्ष पहले
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आवरण - जानती हूँ तुम्हारा दर्प तुम्हारे भीतर छुपा है. उस पर मैं परत-दर-परत चढाती रही हूँ प्रेम के आवरण जिन्हें ओढकर तुम प्रेम से भरे सभ्य और सौम्य हो जाते हो जब ...11 वर्ष पहले
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OBO -छंद ज्ञान / गजल ज्ञान - उर्दू से हिन्दी का शब्दकोश *http://shabdvyuh.com/* ग़ज़ल शब्दावली (उदाहरण सहित) - 2 गीतिका छंद वीर छंद या आल्हा छंद 'मत्त सवैया' या 'राधेश्यामी छंद' :एक ...11 वर्ष पहले
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इंतज़ार .. - सुरसा की बहन है इंतज़ार ... यह अनंत तक जाने वाली रेखा जैसी है जवानी जैसी ख्त्म होने वाली नहीं .. कहते हैं .. इंतज़ार की घड़ियाँ लम्बी होती हैं ख़त्म भ...11 वर्ष पहले
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यार की आँखों में....... - मैं उन्हें चाँद दिखाता हूँ उन्हे दिखाई नही देता। मैं उन्हें तारें दिखाता हूँ उन्हें तारा नही दिखता। या खुदा! कहीं मेरे यार की आँखों में मोतियाबिंद...11 वर्ष पहले
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आज का चिंतन - अक्सर मैं ऐसे बच्चे जो मुझे अपना साथ दे सकते हैं, के साथ हंसी-मजाक करता हूँ. जब तक एक इंसान अपने अन्दर के बच्चे को बचाए रख सकता है तभी तक जीवन उस अंधकारमय...11 वर्ष पहले
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क्राँति का आवाहन - न लिखो कामिनी कवितायें, न प्रेयसि का श्रृंगार मित्र। कुछ दिन तो प्यार यार भूलो, अब लिखो देश से प्यार मित्र। ……… अब बातें हो तूफानों की, उम्मीद करें परिवर्तन ...11 वर्ष पहले
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कल रात तुम्हारी याद - कल रात तुम्हारी याद को हम चाह के भी सुला न पाये रात के पहले पहर ही सुधि तुम्हारी घिर कर आई अहसास मुझको कुछ यूँ हुआ पास जैसे तुम हो खड़े व्याकुल हुआ कुछ मन...12 वर्ष पहले
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HAPPY NEW YEAR 2012 - *2012* *नव वर्ष की शुभकामना सहित:-* *हर एक की जिंदगी में बहुत उतार चढाव होता रहता है।* *पर हमारा यही उतार चढाव हमें नया मार्ग दिखलाता है।* *हर जोखिम से ...12 वर्ष पहले
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"भइया अपने गाँव में" -- (बुन्देली काव्य-संग्रह) -- पं० बाबूलाल द्विवेदी - We're sorry, your browser doesn't support IFrames. You can still <a href="http://free.yudu.com/item/details/438003/-----------------------------------------...12 वर्ष पहले
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अपनी भाषाएँ - *जैसे लोग नहाते समय आमतौर पर कपड़े उतार देते हैं वैसे ही गुस्से में लोग अपने विवेक और तर्क बुद्धि को किनारे कर देते हैं। कुछ लोगों का तो गुस्सा ही तर्क...12 वर्ष पहले
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