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गुरुवार, 31 दिसंबर 2020

स्वर्ग में न्यू ईयर पार्टी

कोरोना की बंदिश मारे ,हम सारे 'इन डोर 'हैं
मगर स्वर्ग में नये वर्ष  की दावत का अब दौर है
जब से महाशय धर्मपाल जी ,हुए स्वर्ग के वासी है
एम डी एच मसालों की वहां रौनक अच्छी खासी है
सभी सब्जियों में खुशबू और स्वाद नया अब आता है
चाट मसाला ,रम्भा और उर्वशी मन ललचाता है

घोटू 

बुधवार, 30 दिसंबर 2020

वो रविवार

जवानी में ,
जब मन में एक ही धुन थी सवार
इतना बढ़ाऊं अपना कारोबार ,
कि अपने परिवार को दूँ संवार
इसलिये सोमवार से शनिवार ,
सिर्फ व्यापार ही व्यापार
पर हफ्ते में सिर्फ एक बार
जब आता था रविवार
तो मेरे संग होता था पूरा परिवार
जिनके साथ वक़्त बिताकर ,
नहीं रहता था ख़ुशी का पारावार
किन्तु अब बढ़ती हुई उमर में ,
जब मैं हूँ  बेकार
बच्चे संभालते है कारोबार
हर दिन छुट्टी है ,हर वार है रविवार
पर बिखर गया है परिवार
बच्चों ने बसा लिया है अपना अपना घर
अब मैं और मेरी पत्नी है केवल
तब याद आते है बार बार
वो रविवार
जब मस्ती में साथ रहता था सारा परिवार

घोटू 
आया सन इक्कीस रे

मन तड़फाकर ,हमे सताकर ,गया बीत सन बीस रे
अब है मन में चाह ,नया उत्साह ,लाये इक्कीस  रे

कोरोना ने कहर मचाया ,कितनो के ही प्राण हरे
नौ महिने से अधिक बिताये ,घर में घुस कर ,डरे डरे
दशहत मारे ,हम बेचारे ,सब इतने मजबूर रहे
बना दूरियां ,अपनों से ही ,उनसे दो गज ,दूर रहे
मुंह पर पट्टी बंधी ,कभी ना हटी ,रही मन खीस रे
अब है मन में चाह ,नया उत्साह ,लाये इक्कीस रे

हुआ प्रकृती का कोप ,बढ़ गए रोग आपदायें आई
आये कहीं भूकंप ,कहीं तूफ़ान ,बाढ़ भी दुखदायी
सीमाओं पर सभी पडोसी देश ,मचा आतंक रहे
बंद रहे बाज़ार ,लोग कुछ ,बेकारी से तंग रहे
खस्ता हुई व्यवस्था ,मन में ,सबके उठती टीस रे
सबके मन में चाह,नया उत्साह, लाये इक्कीस रे  

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
२०२० का साल

कितनो की बज गयी ढपलियाँ,नहीं रहा सुरताल
कितने ही बीमार हो गए ,कई हुए बदहाल
दुनिया को आतंकित करने ,चली चीन ने चाल
सबके मन में टीस दे गया ,बीस बीस का साल

कोरोना ने कहर मचाया ,पड़े कई बीमार
शहर शहर तालाबंदी थी ,बन्द हुआ व्यापार
लोगों ने दूरियां बनाली ,मुंह पर पट्टी डाल
सबके मन में टीस दे गया ,बीस बीस का साल

बंद फैक्टरी ,कामकाज सब ,लोग हुए बेकार
किया गाँव की ओर पलायन ,होकर के लाचार
मीलों पैदल चले बिचारे ,परेशान ,बदहाल
सबके मन में टीस  दे गया ,बीस बीस का साल

बंद होगये मंदिर ,मस्जिद ,सभी धर्म स्थान  
कोरोना डर ,गर्भगृहों में, छुप बैठे भगवान
अस्तव्यस्त सब ,चली वक़्त ने ऐसी उलटीचाल
सबके मन में टीस दे गया ,बीसबीस का साल

अब आया इक्कीस करेगा,हम सबका उपचार
आशा है सबको 'किस 'देकर ,फैलाएगा प्यार
यही प्रार्थना है ईश्वर से ,सभी रहे खुशहाल
सबके मन में टीस दे गया ,बीसबीस का साल

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

रविवार, 27 दिसंबर 2020

बेचारे गरीब किसान

बेचारे गरीब किसान
अपना सब सामान
ट्रालियों में लाद  कर लाये  है
दिल्ली में आंदोलन करने आये है
उनके तथाकथित शुभचिंतक नेता ,
उन्हें भटकाने में लगे है
अपनी लूटी हुई नेतागिरी की दूकान ,
फिर से चमकाने में लगे है
इन्ही की बातों से  बरगलाये ,
बिचारे किसान जिद पर अड़े है
सर्दी में सड़कों पर खुल्ले में पड़े है
कोई इन्हे सब सुविधा मुहैया करवा रहा है
सर्दी है तो कम्बल बंटवा रहा है
काजू किशमिश लूट रही है
बादाम घुट रही है
लड्डू है ,जलेबियाँ है
दिन भर चाय की चुस्कियां है
खाने के लिए लंगर चल रहे है
मशीनों में कपडे धुल  रहे है
पैर दबाने के लिये मशीने मंगाई है
फ्री में हजामत बनाता नाइ है
मशीनों से रोटियां बन रही है
अच्छी मस्ती छन रही है
क्योंकि सब सुविधाएँ मुफ्त है
बस सर्दी का कुफ्त है
अलाव के लिए लकड़ियों का इंतजाम है
हर तरह का  आराम है
इसलिये जल्दी नहीं ,हटने में देर है
क्योंकि अभी फसल कटने में देर है
नेताजी कहते है क़ानून काले है
जब तक वापस नहीं होते,
 हम नहीं जानेवाले है
हम नेताजी की बात मानते है
काला क्या है ,नहीं जानते है
बस थोड़ी सी नारेबाजी कर लेते है
दिन भर मौजमस्ती से पेट भर लेते है
कौन  क्यों कर रहा है ये सारे इंतजाम
इस बात से अनजान
बेचारे किसान
ये नहीं  जानते कि उनके नेताओं के
मापदंड दोहरे है
वो तो इस राजनीति के खेल के ,
सिर्फ मोहरे है
रोज रोज ये जो इतनी हलचल दिख रही है
कई भूले बिसरे नेताओं की
राजनैतिक रोटियां सिक रही है
फिर भी इनकी बातें मान
सर्दी में परेशान
बेचारे गरीब किसान

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
नीला आसमान खो गया

नीला आसमान खो गया
उगलती काला धुंवां है ,फैक्टरी की चिमनियां
कार,ट्रक ,डीज़ल ,प्रदूषित कर रहे सारी हवा
खेत में जलती पराली
पटाखों वाली दिवाली
नीला आसमान खो गया

वृक्ष ,जंगल कट रहे है बन रहे नूतन भवन
बिगड़ता जाता दिनोदिन ,प्रकृति का संतुलन
सांस लेने में घुटन है
बहुत ज्यादा प्रदूषण है
नीला आसमान खो गया

सरदियों  में धुंध कोहरा,गरमियों में आंधियां
बनी दूरी चाँद तारों और  इंसान  ,दरमियां
टिमटिमाते थे जो तारे
नज़र आते नहीं  सारे
नीला आसमान खो गया

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

शुक्रवार, 25 दिसंबर 2020

बुढ़ापा और प्यार

तेरे गेसू भले ही अब गजब नहीं ढाते ,
श्वेत है ,सादगी है ,साधुओं से रहते है
नयन तेरे नहीं अब तीर चला पाते है ,
मोतियाबिंद से ढक ,बुझे बुझे रहते है
गुलाबी गाल का भी हाल बड़ा खस्ता है
लरजते होंठ हंसी हँसते है ,फीकी ,सादी
कसाव जिस्म का ,जाता है दिनबदिन ढलता
उफनता जिस्म भी अब रहा नहीं उन्मादी
न रही वो पुरानी शोखियाँ और वो जलवे ,
न बची जिस्म में  बाकी  वो पुरानी गरमी
न अदाओं में  ही बचा  है  वो पुराना जादू ,
नहीं बातों में बेतकल्लुफी और बेशरमी
मगर फिर भी न जाने क्यों ये हुआ जाता है ,
दिनों दिन बढ़ती ही जाती है मोहब्बत अपनी
तू मेरे साथ है और पास है ये क्या कम है ,
खुदा के ख़ैर से जोड़ी है सलामत  अपनी
मोहब्बत तन की ना बस मन की हुआ करती है ,
ये ही अहसास उमर ढलती है ,तब  होता है
 प्यार तो रहता है कायम सदा मरते दम तक,
करना पड़ता मगर हालात से समझौता  है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
मैं और मेरी रजाई

मैं और मेरी रजाई
अक्सर ये बातें करते है ,
तुम ना होती तो क्या होता
मैं सरदी में कैसे सोता

बैठ धूप  में दोपहरी तो
जैसे तैसे कट भी जाती
ठिठुरन भरी सर्द रातों में,
नींद मुझे पर कैसे आती
नरम ,मुलायम और रेशमी ,
ये कोमल आगोश तुम्हारा
जैसे चाहूँ ,तुम्हे  दबा  लूँ ,
पर रहना खामोश तुम्हारा
नहीं तकल्लुफ  हममें तुममें ,
हुआ प्यार का है समझौता
मै  और मेरी रजाई ,
अक्सर ये बातें करते है ,
तुम ना होती तो क्या होता

तभी रजाई ,हुई रुआंसी ,
करी शिकायत ,कसक कसक के
क्यों ये झूंठा प्यार दिखाते ,
तुम हो यार बड़े मतलब के
तुम्हारा ये प्यार मौसमी ,
मौसम बदला ,तुम बदलोगे
नहीं सुहाउंगी मै तुमको ,
दबा मुझे बक्से में दोगे
मैं बरसों तक साथ निभाती ,
लेकिन प्यार तुम्हारा थोथा
मैं और मेरी रजाई,
अक्सर ये बातें करते है ,
तुम ना होती तो क्या होता

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

सोमवार, 21 दिसंबर 2020

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मंगलवार, 15 दिसंबर 2020

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बुधवार, 9 दिसंबर 2020

कोरोना के साइड इफेक्ट


कोरोना काल के संग
बदल गए है यूं रंग ढंग
कि कुछ प्रचलित व्यंग ,
होने लग गये  है साकार

चूहा चिन्दियाँ  पाकर ,
बजाज तो नहीं बना ,पर
'मास्क' बनाने का आजकल ,
करने लगा है व्यापार

कोरोना के पहले
हसीनो के चेहरे
बड़े मतवाले होते थे
सुंदर सुहानेअधर
 लिपस्टिक लगाकर
रस भरे प्याले होते थे

पर कोरोना से डर  
मास्क में छिपे अधर ,
लिपस्टिक की बिक्री पर
 असर पड़ा है भारी
आई इस तरह मन्दी
करनी पड़ी तालाबंदी  
 कोरोना की मारी
लिपस्टिक इंडस्ट्री बेचारी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

बुधिया रोए हाय किसानी

 

झर झर झरते आंख से आंसू

बुधिया रोए हाय किसानी....


छुट भैये कुछ नेता आए

डांट डपट कर उन्हें मनाए

हंडिया बर्तन खाली करके

मंगरू काका गठरी बांधे

ठंड ठिठुरते आंख में आंसू

छोड़ गांव घर बेमन भागे

झर झर झरते आंख से आंसू....


चार दिना आंदोलन ठानी

अमृत वर्षा सब  बेईमानी

लल्ली की थम गई पढ़ाई

बिन सींचे जल गई किसानी

साहूकार रोज घर झांके

गिद्ध सरीखा बैठे ताके

झर झर झरते आंख से आंसू....


भूसा जैसे भर ट्राली में

दो टुकड़े डाले थाली में

भालू बंदर और मदारी 

सर्कस खेल दिखाए रहे हैं

तम्बू और मशाल साथ लेे

चिंगारी भड़काय रहे हैं 

झर झर झरते आंख से आंसू....


बाराती से सज कुछ बैठे

काजू मेवा खाय रहे 

भोंपू माइक अख बा रन मा

फोटू रोज खिंचाइ रहे

वो दधीचि की हड्डी खातिर

खीस निपोर रिझाय रहे


झर झर झरते आंख से आंसू 

 बुधिया रोए हाय किसानी....


कुछ पाएं या छिन सब जाए

मेरे ' वो ' सकुशल घर आएं

मंगल सूत्र रहे गर मेरे 

दो गज माटी मिल ही जाए

प्रेम प्रीति सपने संग छौना

घास फूस का रहे बिछौना


झर झर झरते आंख से आंसू 

 बुधिया रोए हाय किसानी....

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर5

प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश

भारत

मंगलवार, 8 दिसंबर 2020

re: Rank top 5 in the Google maps

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शनिवार, 5 दिसंबर 2020

हरिद्वार -एक प्रतिक्रिया

गंगा के तीर बसा ,इसीलिये तीरथ है ,
तीरथ में आकर के पैसे तर जाते है
भगत लोग आते है ,भाव लिए भक्ति का ,
इसीलिये चीजों के भाव बढे  जाते है
आओ तो दान करो ,जाओ तो दान करो ,
पंडे पुजारी सब ,दान गीत गाते है
नाम बड़ा सच्चा है ,हरद्वार आने पर ,
खर्चे के सभी द्वार ,खुद ही खुल जाते है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
बुढ़ापे की आशिक़ी

एक दिन मैं छत पर धूप खा रहा था
जवानी का बीता जमाना याद आरहा था
'अभी तो मैं जवान हूँ ' ये ख्याल आने लगा
बासी कढ़ी में उबाल आने लगा
जागृत होने लगी मन में तम्मनायें
सोचा चलो ,बुढ़ापे में  इश्क़ लड़ाया जाये
बस निकालने मन की ये ही भड़ास
करने लगा किसी हमउम्र नाजनी की तलाश
घूमने जाने लगा पार्क में
मॉर्निग वाक में
रहता था इस ताक में
कि कोई साठ  पारी
सुन्दर ,सुमुखी अकेली नारी
मिल जाये तो भाग्य जग जाए
अंधे के हाथ बटेर लग जाए
किस्मत से एक हसीना का हुआ दीदार
आँखें हुई चार
उमर उसकी भी साठ के आसपास थी
शायद उसे भी कोई मुझ जैसे की तलाश थी
नज़रें लड़ी
बात आगे बड़ी
हमारी आपस में लगी  पटने
पार्क में ,गपशप में समय लगा कटने
ये बुढ़ापे का रोमांस
भी होता है बाय चांस
हम दोनों बासी उमर के लोग ,
ताज़ी मोहब्बत का मज़ा लूटने लगे
मन में मिलन के लड्डू फूटने लगे
वो भी पुरानी खायी  खेली थी
पर उसकी बातें बड़ी अलबेली थी
कभी कभी फरमाइशें करती थी  ऊलजलूल
एक दिन बोली जैसे कली बनती है फूल
वैसी ही कोई चीज खिलाओ  तो जाने
हम भी खिलाड़ी थे पुराने
हमने उसके आगे पॉपकॉर्न का पैकेट
कर दिया पेश
देख कर हमारी बुद्धि और ज्ञान
वो  हम पर हो गयी कुरबान
अब आपको क्यों बताएं हमें क्या मिला इनाम
एक दिन उसका मन चंचल
खाने को हुआ विकल
कोई ऐसी चीज जो फूल भी हो और फल
हमने अपना दिमाग भिड़ाया
और  उसको गुलाब जामुन खिलाया
और उसका ढेर सा प्यार पाया
उसकी फरमाइशें बड़ी निराली होती थी
पहेली सी उलझी ,पर प्यारी होती थी  
जैसे एक दिन बोली ,ऐसा कुछ खाया जाये
जो मन को भाये पर शुगर ना बढ़ाये
इतनी लिज्जत हो की तबियत हो जाए तर
और पेट भी जाए भर
उसकी इस फरमाइश पर
शुरू में तो हम हुए भौंचक्के
फिर उसे चाट के ठेले पर ले गए ,
खिलाने गोलगप्पे
वो एक एक गोलगप्पा मुंह में धरती थी
सी सी करती थी  
चटखारे भरती थी
तबियत हो गयी तर
पेट भी गया भर
और बढ़ी भी नहीं शुगर
 जब हम पूर्ण करते थे उसकी फरमाइशें
पूर्ण होती थी हमारी भी ख्वाइशें
पर उसकी पिछले हफ्ते वाली ,
फरमाइश थी अजब
उसे जलेबी खाने की लगी थी तलब
जलेबी ,उसे लगती बड़ी लजीज़ थी
पर उसे डाइबिटीज थी
जलेबी और वो भी शुगर फ्री
हमारे आगे मुश्किल थी बड़ी
पर हमारी अनुभवी आशिक़ी ने जोर मारा
जरा सोचा और विचारा
और छोटी छोटी जलेबी लेकर आये
आधी जलेबी को अपने होटों पर लगाए
और उसकी चाशनी चूस डाली
और रसहीन पोर्शन वाली जलेबी उसके मुंह में डाली
और उसका आधा रसीला भाग हम चूसने लगे
ऐसा स्वाद आया की हम रह गए ठगे के ठगे
एक तो जलेबी का रस और उसपर
उनके गुलाबी होठों के चुंबन का स्वाद
जिंदगी भर रहेगा याद
और वो भी मुस्करा रही थी
बिना शुगर की जलेबी का मज़ा उठा रही थी
हमारी नजदीकियां बढ़ती ही जारही थी
तो दोस्तों,हम आजकल इसतरह ,
बुढ़ापे के इश्क़ का मज़ा उठा रहे है
जब भी मौका मिलता है ,जलेबियाँ खा रहे है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

शुक्रवार, 4 दिसंबर 2020

गुरुवार, 26 नवंबर 2020

सूखे स्विमिंग पूल के आंसू

कोई मेरा  दरद  न जाने ,मैं 'कोविड 'का मारा
अबकी बरस ,मैं रहा तरस ,पाया ना दरस तुम्हारा

मेरा दिल जो कभी लबालब ,भरा प्रीत से रहता
एक  बरस से सूना है ये ,पीर   विरह की सहता
सूखा सूखा पड़ा हृदय है ,प्रेम नीर का प्यासा
दुःख केआंसू, खुद पी लेता ,रहता सदा उदासा
ना उठती अब मन में लहरें ,ना कोई हलचल है
ना ही शोर मचाते बच्चों की कुछ चहलपहल है
ना ही कपोत ,गुटरगूँ करते ,पिये चोंच भर पानी
ना किलोल करती जलपरियों की वह छटा सुहानी
याद आते वो सुबह शाम,वो रौनक,वो जलक्रीड़ा
सूने तट ,सूना अन्तरघट अब घट घट में पीड़ा
 मैं तुम्हारा ,तरणताल हूँ ,दीन  ,हीन  ,बेचारा
अबके बरस मैं रहा तरस ,पाया ना दरस तुम्हारा

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

मंगलवार, 24 नवंबर 2020

अतिथि ,तुम कब जाओगे

मैंने कोरोना से पूछा ,सुनो अतिथी तुम कब जाओगे
अब तक सबको बहुत सताया ,कितना और सताओगे

जब भी आते मेहमान है ,घर में रौनक छाती है
खुश हो जाते है घरवाले ,चहल पहल हो जाती है
लेकिन जब से मेहमान बन ,हुआ आगमन तुम्हारा
घर भर में छाई ख़ामोशी ,हर कोई दहशत मारा
लोग सभी घर में घुस बैठे ,सन्नाटा सा  फेल  रहा
तरह तरह की कई मुसीबत ,हर कोई है झेल रहा
मिलनसारिता दूर हुई ,लोगों ने दूरी  बना रखी
अपने मुंह पर पट्टी बांधे ,लोग हो रहे बहुत दुखी
अपना डेरा कितने दिन तक ,अब तुम और जमाओगे
मैंने कोरोना से पूछा ,सुनो अतिथि तुम अब जाओगे

बहुत दुष्ट प्रकृति तुम्हारी ,हरकत बहुत कमीनी है
कितनो के घरबार उजाड़े ,कितनी रोजी छीनी है
तुम छोटे पर कितने खोटे,सबको ये अहसास हुआ
 बने गले की फांस इस तरह ,मुश्किल लेना सांस हुआ
होली से ले दीवाली तक छटा गयी त्योंहारों की
शादी ,उत्सव भूल गए सब ,रौनक गयी बाजारों की
लेकिन अब 'वेक्सीन 'आगया ,निश्चित अंत तुम्हारा है
तुम्हे  भगा कर ही छोड़ेंगे  ,यह संकल्प हमारा है
सुनो समेटो अपना बोरी बिस्तर ,बच ना पाओगे
मैंने कोरोना से पूछा  सुनो अतिथि तुम कब जाओगे

मदन मोहन बाहेती'घोटू '

सोमवार, 23 नवंबर 2020

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गुरुवार, 19 नवंबर 2020

आज की बात

आज सुबह से ही पत्नीजी,  मुंह फुलाये  थी बैठी
ना खुद ने ही कुछ खाया ना मुझको  खाने को देती
मेरा बस कसूर था  इतना ,सजा हूं जिसकी भुगत रहा
तुम सुन्दर हो आज लग रही ,मैंने उनको सुबह कहा
मेरा 'आज 'शब्द कहना ही ,मेरी बहुत बड़ी गलती
इसका मतलब बाकी दिन मैं ,सुन्दर तुम्हे नहीं लगती
ऐसा ही है तो क्यों मुझको लाये थे तुम शादी कर ,
 जबसे आयी नयी पड़ोसन ,उस पर रहती गढ़ी नज़र
वो लगती है कनक छड़ी सी ,मैं तुमको तंदुरुस्त लगूं
वो लगती है चुस्त तुम्हे और मैं  थोड़ी सी सुस्त लगूं
मैं भी दुबली और छरहरी ,शादी पहले ,थी होती
तुम्हारे ही लाड प्यार ने मुझको बना दिया मोटी
मैं बोला स्वादिष्ट भोज नित्य मुझको पका खिलाती हो
रोज प्रेम से  खाता पर जब मटर पनीर बनाती हो
उस दिन तारीफ़ कर यदि कहता ,खाना बड़ा लजीज़ बना
कर मनुहार दुबारा देती ,मैं कर पाता नहीं मना
वैसी मटर पनीर की तरह  ,नज़र आयी तुम आज मुझे
 कहा  इसलिए ही सुन्दर था ,ऐसा था अंदाज मुझे
अपनी रूप प्रशंसा सुन तुम  बाग़बाग़ हो जाओगी
मटर पनीर की तरह दूना मुझ पर प्यार लुटाओगी
लेकिन मेरी मंशा को तुम समझ नहीं पायी डिअर
बात सुनी पत्नी ने मुझको ,लिया बांह में अपनी भर

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
बड़े न बनने के उपाय

अगर बड़ा बनना नहीं ,आता तुमको रास
बूढ़े माता पिता को ,सदा रखो तुम पास
सदा रखो तुम पास करो उनको सन्मानित
लो अनुभव का लाभ ,पाओ आशीषें अगणित
उनका भी मन लगे ,उमर वो लम्बी पायें
रहें  बड़े जो   साथ  ,आप छोटे कहलायें

घोटू 

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बुधवार, 18 नवंबर 2020

आया बुढ़ापा -बिछड़े साथी

कहते जब वक़्त बुरा आता
साया भी साथ छोड़ जाता
ये ही सब गुजरी ,मेरे संग
जब देख बुढ़ापे के रंग ढंग
मेरे अंगों ने रंग बदला
कुछने छोड़ाऔर मुझे छला
वो जो थे मेरे बालसखा
जिनको मैंने सर चढ़ा रखा
जीवन भर जिनका रखा ख्याल
की सेवा अच्छी ,देखभाल
वो भूल गये सब नाते को
और आता देख बुढ़ापे को
उनने रंग बदला ,बुरे वक़्त
उनका सफ़ेद हो गया रक्त
जो काले थे और मतवाले
हो गए श्वेत अब वो सारे
रंग बदल ,बताते है ये सब
ये बूढा जवां नहीं है अब
मन को लगता है ठगा ठगा
जब अपनों ने दे दिया दगा
वे  परम मित्र कुछ बचपन के
जो सदा रहे प्रहरी बनके
मेरे मुख  में था  वास किया
मेरे संग संग हर स्वाद लिया
जैसा जब जब भी हुआ वक़्त
जो कुछ भी पाया नरम,सख्त
हमने मिलजुल कर, था काटा
 आपस में स्वाद ,सभी बांटा
जो दोस्त ,सखा ,हमराही थे
मेरे मजबूत सिपाही थे
उन सबकी भी हिल गयी जड़ें
जब वृद्ध उमर के पैर पड़े
वह शान ,अडिगता वीरोचित
अब नहीं बची उनमे किंचित
कुछ टूट गए ,कुछ है जर्जर
मैं नकली दांतो पर निर्भर
वैसे ही बचपन की साथी
दो आँखें प्यारी ,मुस्काती
जिनमे मैंने ,देखे सपने
और रखे बसा कर थे अपने
देखा जो बुढ़ापा ,घबराई
अब है धुंधलाई ,धुंधलाई
वह तनी त्वचा ,मेरे तन की
चिकनी और कोमल ,मख्खन सी
पर जब आयी वृद्धावस्था
उसकी भी हालत है खस्ता
वह जगह जगह से सिकुड़ गयी
झुर्री बन कर के उभर गयी
तो बचपन के साथी जितने
जिन पर हम गर्वित थे इतने
उनने जो बुढ़ापे को देखा
उसके आगे माथा टेका
वो सब जो मित्र कहाते है
व्यवहार विचित्र दिखाते है
अपनों का रंग बदलता है
बस मन को ये ही खलता है
बेटी बेटे ,नाती ,पोते
जो सगे  तुम्हारे है होते
बूढा होता जब हाल जरा
वो भी ना रखते ख्याल जरा
व्यवहार सभी का बदलाया
मैंने भी त्यागी  मोह माया
हिल गए दांत ,मैं नहीं हिला
ना ही बालों सा रंग बदला
आँखों जैसा ना धुंधलाया
और ना ही त्वचा सा झुर्राया
सब रिश्ते नाते गया भूल
और परिस्तिथि केअनुकूल
समझौता कर हालातों से
लड़ कर अपने जज्बातों से
अपने मन माफिक ,ठीक किया
खुश रह कर जीना सीख लिया
कोई की भी परवाह नहीं
अब रहे अधूरी ,चाह नहीं
मस्ती से खाता पीता  हूँ
इस तरह बुढ़ापा जीता हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू '
लक्ष्मी जी की प्रिय मिठाई

मैंने बड़ी गौर से देखा ,अबकी बार दिवाली में
कई मिठाइयां सजी हुई थी ,पूजा वाली थाली में
लड्डू ,बर्फी, काला जामुन ,गुझिया और जलेबी थी
बातें करती, बता रही सब ,अपनी अपनी खूबी थी
लड्डू बोला ,मैं लक्ष्मी प्रिय ,रहता सदा लुढ़कता हूँ
मैं भी लक्ष्मीजी के जैसा ,एक जगह ना टिकता हूँ
बरफी बोली ,मैं सुन्दर हूँ ,सबसे अलग निराली हूँ
नये नोट की गड्डी जैसी ,लक्ष्मी जी की प्यारी हूँ
कालाजामुन बोला ,लक्ष्मी ,का एक रूप मेरे जैसा
सभी जगह पर राज कर रहा ,मुझ जैसा काला पैसा
गुझिया बोलै ,मावा मिश्री ,मेरे अंदर स्वाद छिपा
जैसे पैसा छिपा तिजोरी में,प्रतीक मैं लक्ष्मी का
कहा जलेबी ने सुडौल सब ,अष्टावक्र मेरी काया
लेकिन जिसने मुझको खाया ,मज़ा स्वाद का है पाया
सीधी  राह न आये लक्ष्मी ,टेढ़ी मेढ़ी चाल चलो
तभी लक्ष्मी का सुख पाओ ,खुद को आप निहाल करो
लक्ष्मी पाने का पथ मुझसा ,तब रस मिलता सुखदायी
लक्ष्मी के प्रिय पकवानो में ,जीत जलेबी ने पायी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '



 

शुक्रवार, 13 नवंबर 2020

प्रकृति का चक्र -बुढ़ापा

यह प्रकृति का चक्र बुढ़ापा ,इसको कोई रोक ना पाया
लाख कोशिशें की ना आये ,पर जब आना था ,ये आया

प्राणायाम किया कसरत की ,सुबह शाम ,मैं भागा ,दौड़ा
खान पान  पर किया नियंत्रण मीठा और तला सब छोड़ा
रोज रोज जिम में जाकर के ,बहा पसीना ,ये कोशिश  की ,
मेरे तन पर ,चढ़ ना पाए ,चर्बी और मोटापा  थोड़ा
मैंने सभी प्रयास कर लिए
भूखे रह उपवास कर लिए
तरह तरह के योगआसन कर ,अपने तन को बहुत सताया
लाख कोशिशें की ,ना आये, पर जब आना था ये आया

कामनियों की संगत छोड़ी ,भले कामनाएं ना छूटी
मैं अब भी जवान हूँ,मन को ,देता रहा तसल्ली झूंठी
लेकिन तन में धीरे धीरे ,पैठ बनाता रहा बुढ़ापा ,
किया भले ही च्यवनप्राश का सेवन ,खाई जड़ी और बूटी
मैंने स्वर्ण भस्म भी खाई
खिली न पर काया मुरझाई
किये सभी उपचार लगन से ,लोगों ने जो भी बतलाया
लाख कोशिशें की ना आये ,पर जब आना था ,ये आया

अब जल्दी आती थकान है ,बात बात होती झुंझलाहट
कंचन काया पिघल रही है ,तनी त्वचा में है कुम्हलाहट
तन का जोश हुआ सब गायब ,और व्याधियां आसपास सब ,
याददाश्त कमजोर हो रही ,वृद्धावस्था की ये आहट
मन में रहती सदा विकलता
अब बच्चों पर रौब न चलता
इतनी जल्दी भूल गए सब ,मेरा इतना करा कराया
लाख कोशिशें की ना आये ,पर जब आना था ये आया

बेहतर होगा खुल्ले दिल से ,करें बुढ़ापे का हम स्वागत
बहुत कर लिया सब के खातिर ,अब अपने से करें मोहब्बत
काम धाम की तज चिंताएं ,मस्ती काटें ,मौज मनाएं
सैर सपाटा करके देखें ,दुनिया में है कितनी रंगत
अपनी मनचाही सब करले
जीवन को खुशियों से भर लें
अपने पर भी खर्च करें हम ,जीवन में इतना जो कमाया
लाख कोशिशें की ना आये ,पर जब आना था ये आया

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
 

 

मंगलवार, 10 नवंबर 2020

घर की रोटी

आप भले माने ना माने ,पर ये सच्ची ,खरी बात है
कितना इधरउधर मुंह मारो ,घर की रोटी लगे स्वाद है

यूं तो इस सारी दुनिया में ,पकवानो की कमी नहीं है
कई दावतें हमने खाई ,लेकिन उतनी जमी नहीं है
बाकी सब तो ललचाते है ,पर जो रोज रोज मुंह लगती
घर की रोटी ही सच पूछो ,तो है पेट हमारा  भरती
खालो तुम पकवान सैंकड़ो ,पर मिलता आल्हाद नहीं है
दुनिया में घर की रोटी से  ,बढ़ कर कोई स्वाद नहीं है
नरम नरम हाथों से बीबी ,देती गरम गरम जब फुलके
बिना कोई संकोच ,सलीके ,हम खाया करते है खुल के
घर के भोजन में मिलता है ,स्वाद प्यार का ,अपनेपन का
तन मन को तृप्ति देता है ,क्या कहना घर के भोजन का
सुख मिलता जब मियां बीबी ,मिल कर खाते साथ साथ है
कितना इधर उधर मुंह मारो ,घर की रोटी लगे स्वाद है

इसी तरह गोरी या काली ,दुबली पतली हो या हथिनी
इस दुनिया में प्यारी लगती सबको अपनी अपनी पत्नी
क्योंकि एक वो ही जो तुमको ,प्यार करे है सच्चे दिल से
इतना अधिक चाहने वाला ,नहीं मिल सकेगा मुश्किल से
जो निर्जल रह कर व्रत करती ,करवा चौथ ,तुम्हारे खातिर
ताकि सुहागन बनी रहे वो ,लम्बी उम्र तुम्हे हो हासिल
तुम्हारे सुख दुःख में शामिल ,साथ निभाती जो जीवन भर
जो तुम्हारी पूजा करती ,तुम्हे मान कर  पति परमेश्वर
ऐसा सच्चा जीवन साथी ,पा सबको होता गरूर है
मिले ना मिले जन्नत में पर, इस जीवन में वही हूर है
सुन्दर लोग कई दिखते है ,पर पत्नी की अलग बात है
प्यारी लगती घरवाली ज्यों ,घर की रोटी लगे स्वाद है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
 
आयुष की प्रेम गाथा

सीधा सादा हमारा ,यह आयुष कुमार
बैंगलोर में  जा हुए  ,इसके नयना चार
इसके नयना चार ,किसी ने ऐसा लूटा
मन में पहली बार ,प्रेम का लड्डू फूटा
दिल को भायी दीपिका काजू कतली जैसी
इन्दौरी पोहे संग  आयी  गरम जलेबी

आयुष के मन में खिले ,फूलझड़ी के फूल
प्रेम पटाखा बज गया ,मौसम के अनुकूल
मौसम के अनुकूल ,आयी ऐसी दीवाली
दिल मे दीप  प्रेम का जला गयी दिलवाली
प्रेम रश्मि से किया दीपिका ने दिल रोशन
'घोटू 'जगमग आज हो रहा मन का आंगन

मंजू मन उल्लास है ,बनी बहू की सास
बेटा घोड़ी चढ़ेगा ,आया मौका ख़ास
आया मौका ख़ास ,बहुत जगदीश प्रफुल्लित
बेटे का घर बसा ,बहुत मन है आनंदित
रितू ने भाभी पायी ,रिया ने पायी मामी
हर्षित चाचा ,ताऊ ,और खुश नाना नानी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
 

शुक्रवार, 6 नवंबर 2020

नेताजी और कुर्सी

मैं  बोला  यह  नेताजी से
कब तक चिपकोगे कुर्सी से
देखो अपनी बढ़ी उमर को
किसी और को भी अवसर दो

बात सुनी ,बोले नेताजी
इससे चिपक ,रहूँ मैं राजी
मुझे सुहाती इसकी संगत
चेहरे पर रहती है  रंगत

इसके कारण ,सांझ सवेरे
चमचे मुझको रहते घेरे
ये छूटी ,सब मुंह फेरेंगे
मुझको बिलकुल भाव न देंगे

परम भक्त हूँ ,मैं कुर्सी का
इसी भावना से हूँ चिपका
इससे मुझको बहुत मोहब्बत
मुझे चिपकने की है आदत

बचपन चिपक रहा मैं  माँ से
और जवानी ,मेहबूबा से
अब कुर्सी से रहता चिपका
ये ही माँ ,ये ही मेहबूबा

चिपक रहूंगा ,इससे तब तक
हो जाता तैयार न जब तक
मेरा बेटा ,वारिस बन कर
जो बैठेगा ,इस कुर्सी पर

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

बुधवार, 4 नवंबर 2020

प्रभु ,बुढ़ापा ऐसा देना

प्रभु ,बुढ़ापा ऐसा देना
हलवा पूरी गटक सकूं और चबा सकूं मैं चना चबैना
प्रभु ,बुढ़ापा ऐसा देना

मेरे तन की शुगर ना बढे ,रहे मिठास जुबाँ की कायम
तन का लोहा ठीक रहे और मन में लोहा लेने का दम
चलूँ हमेशा ही मैं तन कर ,मेरी कमर नहीं झुक पाये
यारों के संग,हंसी ठिठौली ,मिलना जुलना ना रुक पाये
जियूं मस्त मौला बन कर मैं ,काटूँ अपने दिन और रैना
प्रभु ,बुढ़ापा ऐसा देना

भले आँख पर चश्मा हो पर टी वी और अखबार पढ़ सकूं
जवाँ हुस्न ,खिलती कलियों का,छुप छुप कर दीदार कर सकूं
चाट पकोड़ी ,पानी पूरी ,खा पाऊं ,लेकर चटखारे
बिमारियां और कमजोरी ,फटक न पाये पास हमारे
सावन सूखा ,हरा न भादौ ,रहे हमेशा मन में चैना
प्रभु ,बुढ़ापा ऐसा देना

मेरी  जीवन की शैली पर ,नहीं कोई प्रतिबंध लगाये
जीवनसाथी साथ रहे और संग संग हम दोनों मुस्काये
नहीं आत्म सन्मान से कभी ,करना पड़े कोई समझौता
बाकी तो फिर ,लिखा भाग्य में ,जो होना है ,वो ही होता
करनी ऐसी करूँ ,गर्व से ,मिला सकूं मैं सबसे नैना
प्रभु ,बुढ़ापा ऐसा देना

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
करारापन लिए तन है
भरा मिठास से मन है
सुनहरी इसकी रंगत है
बड़ी माशूक तबियत है
नज़र पड़ते ही ललचाती
हमारे मन को  उलझाती
बहुत ही प्रिय ये सबकी है
गरम हो तो गजब की है
बड़ा इसमें है आकर्षण
लुभा लेती है सबका मन
हसीना ये बड़ी दिलकश
टपकता तन से यौवन रस
बड़ी कातिल ,फरेबी है
मेरी दिलवर ,जलेबी है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

मंगलवार, 3 नवंबर 2020

थोंपा गया नेता

पिताश्री के नाना की ,आखिरी विरासत
बार बार जनता नकारती ,मैं हूँ आहत
जो भी मेरे मन में आता ,मैं बक देता
थोंपा गया पार्टी पर जो, मैं वह  नेता

 कुछ चमचे है ,भीड़ सभा में जुड़वा  देते
कुछ चमचे है ,जो ताली है ,बजवा देते
कुछ चमचे ,क्या कहना है ,ये सिखला देते
कुछ चमचे ,टी वी पर खबरे ,दिखला देते
कुछ चमचे ,मस्जिद और दरगाहें ले जाते
कुछ चमचे मंदिर में है जनेऊ पहनाते
मैं पागल सा ,जो वो कहते ,सब करता हूँ
भरी धूप  और गरमी में ,पैदल चलता हूँ
मुझको कैसे भी रहना 'लाइम लाईट 'में
किन्तु हारता ही आया हूँ ,मैं  'फाइट'  में
आज इससे गठजोड़ और कल और किसी से
आज जिसे दी गाली ,कल है प्यार उसीसे
राजनीती में ,ये सब तो रहता है चलता
जब तक मन में है सत्ता का सपना पलता
कहता कोई अनाड़ी ,कोई पप्पू  कहता
लोगो का क्या ,जो मन चाहे ,कहता रहता  
किया नहीं है ब्याह ,अभी तक रहा छड़ा हूँ
कुर्सी खातिर ,घोड़ी पर भी नहीं चढ़ा हूँ
रोज रोज मैं कार्टून ,बनवाता अपना
मुझको पूरा करना है ,मम्मी का सपना
जब तक ना प्रधान बन जाऊं ,देश का नेता
तब तक कोशिश करता रहूँ ,चैन ना लेता
राजवंश में जन्म लिया  ये  ,मेरा हक़  है
क़ाबलियत पर मेरी लोगो को क्यों शक है
लोग मजाक उड़ाते,पर ना मन पर लेता
थोंपा गया पार्टी पर  जो , मैं वह नेता  

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
घर की मुर्गी -दाल बराबर

मैं तो  तुम पर प्यार लुटाऊँ ,रखूँ तुम्हारा ख्याल बराबर
तुमने मुझको समझ रखा है ,घर  की मुर्गी दाल बराबर  

मैं तो करूं  तुम्हारी पूजा ,तुम्हे मान कर ,पति परमेश्वर
और तुम हरदम ,रूद्र रूप में ,रहो दिखाते ,अपने तेवर
मैं लक्ष्मी सी चरण दबाऊं ,तुम खर्राटे ,भर सो जाते
मुझे समझ ,चरणों की दासी , कठपुतली सी मुझे नचाते
करवा चौथ करूं मैं निर्जल ,और तुम खाते ,माल बराबर
तुमने मुझको समझ रखा है ,घर की मुर्गी ,दाल बराबर

चाय पत्तियों सी मैं उबलू ,मुझे छान तुम स्वाद उठाओ
मैं अदरक सी कुटूं और तुम ,अपनी 'इम्युनिटी 'बढ़ाओ
फल का गूदा,खुद खाकरके,फेंको मुझे समझ कर छिलका
प्यार के बदले ,मिले उपेक्षा ,बुरा हाल होता है दिल का
नहीं सहन अब मुझसे होता ,अपना ये अपमान सरासर
तुमने मुझको समझ रखा है ,घर की मुर्गी ,दाल बराबर

दाल बराबर नहीं सजन मैं ,रहना चाहूँ ,बराबर दिल के
इसीलिये 'इन्स्टंट कॉफी 'सी रहूँ तुम्हारे संग हिल मिल के
मैं बघार की हींग बनू ,चुटकी भर में ,ले आऊं लिज्जत
'स्टार्टर'से'स्वीटडिशों 'तक,मिले 'डिनर 'में ,मुझको इज्जत
चटखारे लेकर हम खाएं ,और रहें खुशहाल  बराबर
तुमने मुझको ,समझ रखा है ,घर की मुर्गी ,दाल बराबर

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

सोमवार, 2 नवंबर 2020

मैं कौन हूँ ?

मैं दुबली पतली और छरहरी हूँ
क्षीणकाय जैसे कनक की छड़ी हूँ
बाहर से होती नरम बड़ी हूँ
लेकिन अंदर से मैं बहुत कड़ी हूँ
मेरा दिल भले ही काला है
पर हर कोई मुझे चाहने वाला है
क्योंकि जब मैं चलती हूँ अपनी चाल
मेरा हर चाहनेवाला भावना में बहता है
कोरा कागज भी कोरा नहीं रहता है
आप जैसा भी चाहें ,
मुझको नचायें
क्योंकि मेरी लगाम आपके हाथ है
जीवन के हर पल में ,मेरा आपका साथ है
गिनती में ,हिसाब में
लाला की किताब में
दरजी की दूकान पर
मिस्त्री के कान पर
बनिये  के खातों में
मुनीमजी के हाथों में
कविता की पंक्तियों में
चित्रकार की कृतियों में
सब जगह है मेरा वास
सबके लिए हूँ मैं ख़ास
सबकी चहेती  हूँ
बार बार मरती हूँ ,बार बार जीती हूँ
जब मैं गुस्से में चलती हूँ ,लोग डरते है
उनके काले कारनामे उभरते है
क्योंकि मैं जोश भरी हुंकार हूँ
बिना धार की तलवार हूँ
ताजा समाचार हूँ
कल का अखबार हूँ
मैं विचारों का स्वरुप हूँ
योजनाओं का प्रारूप हूँ
चित्रकार का चित्र हूँ
कलाकारों की मित्र हूँ
हर विषय का ज्ञान हूँ
गणित हूँ ,वज्ञान हूँ
हिंदी ,अंग्रेजी हो या गुजराती
मुझे हर भाषा है लिखनी आती
कवि के हाथों में कविता बन जाती हूँ
लेखक के हाथों से कहानी सुनाती हूँ
प्रेमियों के दिल के भाव खोलती हूँ
प्रेमपत्र के हर शब्द में बोलती हूँ
ये बड़ी बड़ी इमारतें और बाँध
मेरी कल्पनाओं के है सब उत्पाद
ये रोज रोज बदलते फैशन
सब मेरे ही है क्रिएशन
मैं थोड़ी अंतर्मुखी हूँ
कोई दिल तोड़ देता तो होती दुखी हूँ
पर ये बोझ नहीं रखती दिल पर
बस थोड़ी सी छिलकर
फिर से नया जीवन पाती हूँ
हंसती हूँ,मुस्कराती हूँ
आपके काम आती हूँ
हालांकि मेरी काली जुबान है
फिर भी लोग मुझ पर मेहरबान है
क्योंकि मैं उनके लिए मरती हूँ तिल तिल
दूर करती हूँ उनकी हर मुश्किल
आप खुश होंगे मुझसे मिल
जी हाँ ,मैं हूँ आपकी पेन्सिल

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '





 करवा चौथ पर विशेष

मेरी जीवन गाथा

एक मैं और मेरी तारा
मिलजुल कर करें गुजारा
हँसते हँसते मस्ती में ,
कट जाता समय हमारा

हम दो है नहीं अकेले
जीवन में नहीं झमेले
मैं टी वी रहूँ देखता ,
वो मोबाईल पर खेले

वो चाय पकोड़े बनाये
हम दोनों मिलकर खायें
आपस में गप्पें मारें ,
और अपना वक़्त बितायें

नित उठना,खाना,पीना
यूं ही खुश रह कर जीना
संतोषी सदा सुखी है ,
हमको है कोई कमी ना

हम ज्यादा घूम न सकते
अब जल्दी ही हम थकते
कमजोरी से आक्रान्तिक ,
है जिस्म हमारे ,पकते

मन में है नेक इरादे
हम बंदे सीधे सादे
देती है साथ हमारा ,
कुछ भूली बिसरी यादें

यूं गुजरी उमर हमारी
हम खटे उमर भर सारी
बच्चों को 'सेटल' करके ,
पूरी की जिम्मेदारी

जीवन भर काम किया है
प्रभु ने अंजाम दिया  है
अब जाकर चैन मिला है ,
हमको आराम दिया है

है ख़ुश हम हर मौसम में
सब देख लिया जीवन में
हम में न लड़ाई होती,
बस प्यार भरा है मन में
 
बच्चे इज्जत है देते
त्योहारों पर मिल लेते
छूकर के चरण  हमारे,
हमसे आशीषें  लेते

खुश कभी ,कभी हम चिंतित
डर  नहीं हृदय  में  किंचित  
एक दूजे का है सहारा ,
एक दूजे पर अवलम्बित

मन कभी भटकता रहता
मोह में है अटकता रहता
व्यवहार कभी लोगों का ,
है हमें खटकता रहता

मन सोच सोच घबराये
आँखों पे अँधेरा  छाये
हम में से कौन न जाने ,
किस रोज बिदा हो जाये

पर ऐसे दिन ना आयें
हम यही हृदय से चाहें
जब तक भी रहें हम जिन्दा ,
वो करवा चौथ मनाये

जो जब होगा ,देखेंगे
चिंता न फटकने देंगे
कैसी भी विपदा आये ,
हम घुटने ना टेकेंगे

ये मन तो है बंजारा
भटके है मारा मारा
हम बजा रहे इकतारा
एक मैं और मेरी तारा  

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

रविवार, 1 नवंबर 2020

मैं कौन हूँ ?

मैं दुबली पतली और छरहरी हूँ
क्षीणकाय जैसे कनक की छड़ी हूँ
बाहर से होती नरम बड़ी हूँ
लेकिन अंदर से मैं बहुत कड़ी हूँ
मेरा दिल भले ही काला है
पर हर कोई मुझे चाहने वाला है
क्योंकि जब मैं चलती हूँ अपनी चाल
मेरा हर चाहनेवाला भावना में बहता है
कोरा कागज भी कोरा नहीं रहता है
आप जैसा भी चाहें ,
मुझको नचायें
क्योंकि मेरी लगाम आपके हाथ है
जीवन के हर पल में ,मेरा आपका साथ है
गिनती में ,हिसाब में
लाला की किताब में
दरजी की दूकान पर
मिस्त्री के कान पर
बनिये  के खातों में
मुनीमजी के हाथों में
कविता की पंक्तियों में
चित्रकार की कृतियों में
सब जगह है मेरा वास
सबके लिए हूँ मैं ख़ास
सबकी चहेती  हूँ
बार बार मरती हूँ ,बार बार जीती हूँ
जब मैं गुस्से में चलती हूँ ,लोग डरते है
उनके काले कारनामे उभरते है
क्योंकि मैं जोश भरी हुंकार हूँ
बिना धार की तलवार हूँ
ताजा समाचार हूँ
कल का अखबार हूँ
मैं विचारों का स्वरुप हूँ
योजनाओं का प्रारूप हूँ
चित्रकार का चित्र हूँ
कलाकारों की मित्र हूँ
हर विषय का ज्ञान हूँ
गणित हूँ ,वज्ञान हूँ
हिंदी ,अंग्रेजी हो या गुजराती
मुझे हर भाषा है लिखनी आती
कवि के हाथों में कविता बन जाती हूँ
लेखक के हाथों से कहानी सुनाती हूँ
प्रेमियों के दिल के भाव खोलती हूँ
प्रेमपत्र के हर शब्द में बोलती हूँ
ये बड़ी बड़ी इमारतें और बाँध
मेरी कल्पनाओं के है सब उत्पाद
ये रोज रोज बदलते फैशन
सब मेरे ही है क्रिएशन
मैं थोड़ी अंतर्मुखी हूँ
कोई दिल तोड़ देता तो होती दुखी हूँ
पर ये बोझ नहीं रखती दिल पर
बस थोड़ी सी छिलकर
फिर से नया जीवन पाती हूँ
हंसती हूँ,मुस्कराती हूँ
आपके काम आती हूँ
हालांकि मेरी काली जुबान है
फिर भी लोग मुझ पर मेहरबान है
क्योंकि मैं उनके लिए मरती हूँ तिल तिल
दूर करती हूँ   मुश्किल
आप खुश  है मुझसे मिल
जी हाँ ,मैं हूँ आपकी पेन्सिल

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '




शनिवार, 31 अक्तूबर 2020

मेरी जीवन यात्रा

एक मैं और मेरी तारा
मिलजुल कर करें गुजारा
हँसते हँसते मस्ती में ,
कट जाता समय हमारा

हम दो है नहीं अकेले
जीवन में नहीं झमेले
मैं टी वी रहूँ देखता ,
वो मोबाईल पर खेले

वो चाय पकोड़े बनाये
हम दोनों मिलकर खायें
आपस में गप्पें मारें ,
और अपना वक़्त बितायें

हम ज्यादा घूम न सकते
अब जल्दी ही हम थकते
कमजोरी से आक्रान्तिक ,
है जिस्म हमारे ,पकते

मन में है नेक इरादे
हम बंदे सीधे सादे
देती है साथ हमारा ,
कुछ भूली बिसरी यादें

यूं गुजरी उमर हमारी
हम खटे उमर भर सारी
बच्चों को सेटल करके ,
पूरी की जिम्मेदारी

जीवन भर काम किया है
प्रभु ने अंजाम दिया  है
अब जाकर चैन मिला है ,
हमको आराम दिया है

बच्चे इज्जत है देते
त्योहारों पर मिल लेते
छूकर के चरण  हमारे,
हमसे आशीषें  लेते

खुश कभी ,कभी हम चिंतित
दर नहीं हृदय  में  किंचित  
एक दूजे का है सहारा ,
एक दूजे पर अवलम्बित

मन कभी भटकता रहता
मोह में है अटकता रहता
व्यवहार कभी लोगों का ,
है हमें खटकता रहता

मन सोच सोच घबराये
आँखों पे अँधेरा  छाये
हम में से कौन न जाने ,
किस रोज बीड़ा हो जाये

जो जब होगा ,देखेंगे
चिंता न फटकने देंगे
कैसी भी विपदा आये ,
हम घुटने ना टेकेंगे

ये मन तो है बंजारा
भटके है मारा मारा
हम बजा रहे इकतारा
एक मैं और मेरी तारा  

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
ये दिल मांगे मोर -तीन छक्के

इच्छाओं का अंत ना ,नहीं और का छोर
जाने फिर क्यों बावरा ,ये दिल मांगे मोर
ये दिल मांगे मोर ,अंत ना है लालच का
करना पड़ता किन्तु सामना ,सबको सच का
कह घोटू कवि ,दिन मुश्किल के आने वाले
छोड़ मोर का चक्कर ,जो है ,उसे संभाले

हमें चाहिये और की ,दे हम छोड़ तलाश
बेहतर रखें संभाल कर ,जो है अपने पास
जो है अपने पास ,बड़ा ही कठिन दौर है
कोरोना का संकट फैला   सभी  ओर  है
घोटू करे सचेत ,सभी को यह पुकार कर  
खड़े हुए हम ,तृतीय विश्वयुद्ध की कगार पर

बिगड़ा है वातावरण ,मन है बहुत उदास
अब तो मुश्किल हो रहा  लेना ढंग से सांस    
लेना ढंग से  सांस ,हवा में जहर भरा है
हरेक आदमी ,अंदर से कुछ डरा डरा है
दिया प्रेम का ,दीवाली पर ,रखें  जगा कर
घोटू आतिशबाजी रक्खे, दूर  भगाकर  

मदन मोहन बाहेती  'घोटू '
 
शरद पूनम की रात

कल की रात शरद पूनम थी, धुंधलाया सा चाँद दिखा
मुझको रोता और सिसकता ,मुरझाया सा चाँद दिखा
कहते है कि शरद रात में वह अमृत बरसाता है ,
पीत वर्ण था ,अमृत वर्षा का  न कहीं आल्हाद दिखा
अमृत बरसाया तो होगा  हवा बीच में  गटक  गयी ,,
मुझे हवा जहरीली का ,इतना ज्यादा उत्पात दिखा
मैंने छत पर खीर रखी थी ,आत्मसात करने अमृत ,
उठ कर सुबह सुबह जो खाई ,तीता तीता स्वाद दिखा
इतना ज्यादा आज प्रदूषित ,वातावरण हो गया है ,
मुझे प्रकृति के चेहरे पर ,दुःख और पीड़ा अवसाद दिखा
पता  नहीं  हम कब सुधरेंगे , पर्यावरण  सुधारेंगे ,
हमको जो भी दिखा सिर्फ वह अपना ही अपराध दिखा

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

गुरुवार, 29 अक्तूबर 2020

मिरची

मिरची,लाल,हरी या काली
सब है स्वाद  बढ़ाने  वाली
कोई पिसी ,कोई बिन पिसी
सबको करवाती है सी सी
चाट चटपटी ,मन को भाती
हरी मिर्च  पर  बहुत लुभाती
जितनी हरी ,छरहरी होती
उतनी अधिक चरपरी होती  
और ज्यों ज्यों वो मोटी होती
त्यों त्यों निज तीखापन  खोती
लोग इसलिए ही कहते है
मोटे  लोग ,ख़ुशी रहते है
हम सब लोग ,स्वाद के मारे
हरी मिर्च खा , लें  चटखारे
मुंह से काटो ,अगर ज़रा सी
तो बस निकला करता सी सी
खाकर मज़ा बहुत आता है
सारा मुंह ,झन्ना जाता है
आँखों में  ,पानी आ भरता
और कान से धुंवा निकलता
छूट पसीने भी जाते है
किन्तु चाव से सब खाते है
मीठा खाओ ,शांत हो जाती
पर अंदर खलबली मचाती
इसका असर देर तक टिकता
असली असर सुबह है दिखता
माने  आप या न माने पर
खाने से आने तक बाहर
असर हमेशा रहता कायम
मिर्ची में होता इतना दम
इसीलिये है मेरा कहना
तुम मिर्ची से बच कर रहना

घोटू  
यार तुम्हारा प्यार गजब है  

यार तुम्हारा प्यार गजब है,और तुम खुद भी यार गजब हो
मैं तो कुछ भी ना कहता हूँ ,किन्तु समझ तुम जाती सब हो

मेरा मूड समझ लेने का ,तुम्हारा अंदाज निराला
बिन मांगे हाज़िर कर देती ,मेरे लिए चाय का प्याला
मेरी शकल देख ,मेरे दिल के हालत समझ लेती हो
मेरे होंठ हिले ,इस पहले ,मेरी बात समझ लेती हो
बिन मांगे ही मिल जाता है ,जिसकी मुझको लगी तलब हो
यार तुम्हारा प्यार गजब है,और तुम खुद भी यार गजब हो

मेरी हर एक हरकत से तुम ,मन के भाव भांप  लेती हो
 मेरे अंदर क्या पकता है , बाहर से ही   झांक  लेती  हो
तुम्हे पता पहले चल जाता ,मैं क्या चाल चलूँगा ,अगली
मेरे पागलपन में  मेरा ,साथ  निभाती ,बन कर  पगली
 देख मेरा व्यवहार बदलता  ,लेती  जान ,मेरा मतलब हो
यार तुम्हारा प्यार गजब है,और तुम खुद भी यार गजब हो

इतने दिन तक ,रहे संग संग ,एक रंग हो गया हमारा
एक हमारी सोच हो गयी ,एक ढंग हो गया हमारा
झगड़े नहीं हुआ करते है ,जब विचार मिलते आपस में  
तुम मेरे बस में  रहती हो  ,मैं रहता तुम्हारे  बस में
हर मुश्किल से लड़ सकता मैं ,मेरे साथ खड़ी तुम जब हो
यार तुम्हारा प्यार गजब है ,और तुम खुद भी यार गजब हो

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
हवा की गड़बड़

बाकी सबकुछ ठीक ,हवा में कुछ गड़बड़ है
लेकिन सारी परेशानियों की  बस  ये जड़ है

सड़कों पर कितने ही वाहन दौड़ रहे है
और सबके सब ,कितना धुँवा छोड़ रहे है
उद्योगों से चिमनी भी है धुवाँ उगलती
गावों के खेतों में उधर पराली  जलती
दिवाली पर ,बम पटाखे ,करे प्रदूषण
साँसों को मिल नहीं पा रही है ऑक्सीजन
इतना ज्यादा वातावरण ,हो गया मैला
और फेफड़ों का दुश्मन कोरोना फैला
जीना मुश्किल हुआ ,मची इतनी भगदड़ है
बाकि सब कुछ ठीक ,हवा में कुछ गड़बड़ है  

उधर पश्चिमी हवा ,देश को रुला रही है
नव पीढ़ी भारतीय संस्कृति भुला रही है
संस्कार ,रिश्ते नाते और खाना पीना
रहन सहन सब बदल रहा है जीवन जीना
कुछ नेताओं ने माहौल बिगाड़ दिया है
हमको आपस में लड़वा दो फाड़ किया है
जाति धर्म ,अगड़ा पिछड़ा में कर बंटवारा
अपनी रोटी सेक, हवा को बहुत बिगाड़ा
पहन शेर की खाल ,राज्य करते गीदड़ है
बाकी सब कुछ ठीक,हवा में कुछ गड़बड़ है  

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

रविवार, 25 अक्तूबर 2020

गाली देना ही अच्छा है

अगर गालियां दे लेने से ,जाती निकल भड़ास हृदय की ,
तो घुट घुट गुस्सा करने से ,गाली देना ही अच्छा है
मन के शिकवे और गिले सब,चिल्ला कर के जाहिर कर दो,
अगले को मालूम पड़ जाता ,कि तुम्हारे मन में क्या है
मन हो जाता साफ़ गलतियां ,अपनी सब लेते सुधार है ,
गलतफहमियां  कम  हो जाती ,फिर से प्यार पनपने लगता
होते रिश्ते जो कगार पर ,टूट फूट अलगाव राह पर ,
उनमे पुष्प प्यार के खिलते ,सब कुछ अच्छा लगने लगता

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
हाल- ए -बुढ़ापा

आते याद जवानी के दिन ,जब हम मचल मचल जाते थे ,
दीवाने हो पगला जाते ,जवां हुस्न के जलवे लख  कर
हुई बुढ़ापे में ये हालत ,छूटे नहीं पुरानी आदत ,
मन बहलाते ,देख हुस्न को ,यूं ही दूर से ,बस तक तक कर
पति हुए बेंगन का भड़ता ,पत्नी रही मलाई कोफ्ता ,
मगर स्वाद मारे बेचारे ,खुश रहते है ,बस चख चख कर
भीनी भीनी खुशबू वाली ,मिस सी {मिस्सी}रोटी गरम चाहिए
तन्दूरी गोभी भी खाते ,लेकिन तन से दूरी रख कर
कभी जोश में दौड़ा करते ,चुस्ती फुर्ती भरे हुए थे ,
अब थोड़ी भी मेहनत करलो ,बुरा हाल होता है थक कर
दुष्ट बुढ़ापा ऐसा आया , जोश ए जवानी ,हुआ सफाया ,
अपना समय बिताते है हम ,बस आपस में ही झक झक कर

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
कोरोना के संकट में

हमने कोरोना संकट में ,ऐसा कठिन वक़्त काटा था
दिन में दहशत और रात में ,सपनो में भी सन्नाटा था
एक अजीब खौफ छाया था ,बंद हुई थी सारी हलचल,
मन के सागर में रह रह कर ,उठता ज्वार और भाटा था
महरी ,कामवालियां सब के ,आने पर प्रतिबंध लगा था
घर का काम,मियां बीबी और बच्चों ने मिल कर बांटा था
सब अपनों ने ,अपनों से ही ,बना रखी ऐसी दूरी थी ,
सबने चुप्पी साध रखी  थी ,हर मुख बंधा हुआ पाटा था
पटरी पर से उतर गयी थी ,अच्छी खासी चलती  गाड़ी ,
बंद सभी उद्योग पड़े थे ,अर्थव्यवस्था में घाटा था
पूरी दुनिया ,गयी चरमरा ,ऐसा कुछ माहौल बना था ,
कोरोना के वाइरस  ने ,सबको बुरी तरह काटा था  

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
दूरी बना कर रखो

सतयुग में भी कभी एक रावण होता था
बुद्धिमान ज्ञानी  पंडित था ,
लेकिन वह अपने मस्तक पर ,
कई बुराई को  ढोता  था
वह जब तक भी जिया ,उन्माद में जिया
अन्ततः राम ने उसका हनन किया
राम चाहते तो अपने तीखे बाणो से ,
काट सकते थे ,उसके बुराइयों वाले सर ,
और रहने देते  उसके मस्तक पर
सिर्फ एक सर
मानवता का ,बुद्धिमता का और ज्ञान का
वह भी अधिकारी हो सकता था सन्मान का
मगर ये हो न सका ,
क्योंकि बुरी सांगत का फल
अच्छाइयों को भी भुगतना पड़ता है ,
आज नहीं तो कल
और उसके अहंकार और बुराइयों के
सरों पर ,बुरी संगत का ये असर पड़ा
कि उसके ज्ञान और विवेक के,
सभी सरों को भी कटना पड़ा
और इस दृष्टान्त से हम ले ये सीख
अच्छाई और बुराई के बीच ,
अंतर बनाकर ही रखना है ठीक
इसलिए  हम भी  बीमारियों से ,
दो गज की दूरी बनाये रखें
और दुष्ट कोरोना से बचें

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' ,
 
भये प्रकट कृपाला

कल मुझे नज़र आया ,
एक विचित्र सा  साया
जिसके सर के दोनों तरफ ,
ढेर सा  बोझा लटक रहा था
वह बौखलाया सा ,
इधर उधर भटक रहा था
मैंने पूछा ,आप कौन है ,
क्या है आपकी पहचान
वो बोला ,अरे मुझे पहचाना नहीं ,
मैं रावण हूँ श्रीमान
मैंने पूछा ,आपके सर पर ये लदा क्या है
बोला एक तरफ झूंठ है ,आतंकवाद है ,
विस्तारवादी नीतियां है
और दूसरी तरफ बारूद है ,हथियार है ,
 और युद्ध  के लिए ,मिसाइलें तैयार है
दोनों तरफ विनाश ही विनाश है
बस ,मौके की तलाश है
मैं पहले आपके पड़ोस लंका में ही रहता था
जमाना मुझे रावण कहता था
पर जब से मुझे आपके राम ने है मारा
मैं ,उसका प्रेत
बोझा समेत ,
भटक रहा हूँ बेचारा
आपके ही देश के आसपास
कभी पकिस्तान में ,
कभी चीन में है मेरा वास
मैंने कहा तो फिर क्यों
होरहे हो इतने बदहवास
वो बोला मैं बहुत भयभीत हूँ और परेशान
सुना है हिन्दुस्थान में ,
फिर से प्रकट हो गए है राम
नरेंद्र मोदी है जिनका नाम
कहीं फिर से न कर दे मेरा काम तमाम

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
सही दशहरा तभी मनेंगा

आता है हर साल दशहरा ,
 हम त्योंहार मना लेते है
पुतला बना एक रावण का ,
उसमे  आग लगा देते  है
यही सोच खुश हो लेते है ,
हमने मार दिया रावण को
लेकिन यह तो मात्र बहाना ,
है बहलाने अपने मन को
क्योंकि अगले बरस दशहरे ,
तक फिर पैदा होगा रावण
परम्परा यह बरसों की है ,
कब तक पालेंगे हम यह भ्र्म
इस  जग में इतने रावण है ,
 कैसे  किस किस को मारोगे
हर रावण के दस दस सर है ,
 कब तक  इनको संहारोगे
यह भी है एक कटुसत्य कि ,
सब में रावण छुपा कहीं है
कई बुराई वाले मुख है ,
हममे कोई राम नहीं है
तो आओ सबसे पहले हम ,
नाश करें निज दानवता का
 काटें हर बुराई का चेहरा ,
रहे एक मुख मानवता का
अपनी सभी बुराइयां तज ,
जब हर मानव राम बनेगा
 कोई रावण नहीं जलेगा ,
सही दशहरा तभी मनेगा

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2020

देशप्रेम

उठना है मुझे ,चलना है मुझे
तपना है मुझे ,जलना है मुझे
जननी और जन्मभूमि पर    ,
खुद को अर्पण करना है मुझे

मैं जो पर्वत माथे पर ,हिम के किरीट का चमक रहा
पर मेरे देश का हर  वासी ,है बूँद बूँद को तरसः रहा
अब समय आ गया ,गर्व त्याग ,
पानी बन कर गलना है मुझे
उठना है मुझे ,चलना है मुझे
 
राजनीती के दल दल से , बाहर आ,सबसे मिलजुल कर
दुश्मन का दमन हमें करना ,लोहा लेना ,उससे खुल कर
भारत की आनबान खातिर ,
दुश्मन दल को दलना है मुझे
उठना है मुझे ,चलना है मुझे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
 
आओ हम तुम लड़े

बहुत प्यार कर लिया उमर भर
थोड़ा छुप कर ,थोड़ा खुल कर
वृद्ध हुए अब ,दिनचर्या में ,कुछ परिवर्तन करें
आओ हम तुम लड़े
सिर्फ प्यार ही प्यार ,एकरसता ले आता है जीवन में
कहते है कि नए स्वाद का ,अनुभव होता परवर्तन में
मन में दबी शिकायत सारी ,उगल हृदय हल्का होता है
और झगड़ने बाद ,प्यार का ,मज़ा यार दूना होता है
इसीलिये हम ढूंढ बहाना
कभी कभी बस,ना रोजाना
गलती कोई करे ,दोष पर ,एक दूजे पर मढ़ें
आओ हम तुम लड़ें
घर में हम तुम बूढ़े ,बुढ़िया ,मुश्किल होता समय काटना
वक़्त कटेगा ,चालू कर दें ,एक दूजे को अगर डाटना
झगड़ा कर ,मुंह फेरे सोयें ,अच्छी निद्रा हमें   आयेगी
सुबह उठें ,फिर नयी दोस्ती ,बात रात की भूल जायेगी
मात्र दिखावे की हो अनबन
जीयें हम ,सच्चे हमदम बन
यूं हँसते और खेलते ,जीवन पथ पर बढ़ें
आओ हम तुम लड़े

मदन मोहन बाहेती ;घोटू ' 
दादी की यादें

मुझे याद है बचपन में ,
जब शैतानियां करने पर ,
झेलनी पड़ती थी पिताजी की मार
तब एक दादी ही होती थी जो ,
मुझे आकर के बचाती थी ,
और लुटाती थी मुझ पर ढेर सा प्यार
मैं सिसकियाँ भरता हुआ ,रोता था
और दादी की गोद में सर रख कर सोता था  
वह मुझ पर ढेर सारा प्यार लुटाती थी
अपनी बूढी उँगलियों से ,मेरा सर सहलाती थी
और पता नहीं ,मुझे कब नींद आ जाती थी
आज भी  कई बार
जब मैं होता हूँ बेकरार ,
परेशानियां मुझे तंग करती है
तो मेरी दादी की अदृश्य उँगलियाँ ,
मुझे थपथपाते हुए ,
मेरा सर सहलाया करती है
मैं उनके बूढ़े हाथों का प्रेम भरा स्पर्श ,
और उनकी उँगलियों को अपना सर
सहलाता हुआ पाता हूँ
और उनकी मधुर यादों में खो जाता हूँ

मदन मोहन बाहेती ;घोटू ;

वही ढाक के तीन पात

मैंने अपने रहन सहन में  काफी कुछ बदलाव कर दिया ,
लेकिन फिर भी मेरा जीवन ,वही ढाक के तीन पात है
कल की बात याद ना रहती ,नाम भूल जाता लोगों के ,
बातें बचपन वाली , सारी ,लेकिन अब भी मुझे याद है

भरे हुए अनुभव की गठरी ,अब मेरा मष्तिष्क हो गया ,
इसको खोल ,किसे मैं बांटू ,लेने वाला कोई नहीं है
प्रेशर कुकर और ओवन के, युग में मिटटी की हंडिया में ,
पकी दाल के स्वाद और गुण ,चाहने वाला कोई नहीं है
सब अपने अपने चक्कर में ,इतना ज्यादा व्यस्त हो गए ,
भले काम की हो कितने ही ,कोई सुनता नहीं बात है
मैंने अपने रहन सहन में ,काफी कुछ बदलाव कर दिया ,
लेकिन फिर भी मेरा जीवन ,वही ढाक  के तीन पात है

तेज बहुत था तेजपान सा ,पर पुलाव की हांडी में पक ,
अपनी खुशबू सभी लुटा दी ,और रह गया फीका पत्ता
खाते वक़्त कोई ना खाता ,फेंक दिया जाता बेचारा ,
हाल बुढापे में सबका ही ,ऐसा  हो जाता  अलबत्ता
घटा नज़र का तेज ,घट गया ,खानपान और पाचन शक्ति ,
उमर बढ़ रही ,जीवन घटता ,देखो कैसी करामात है
मैंने अपने रहन सहन में ,काफी कुछ बदलाव कर दिया ,
लेकिन फिर भी मेरा जीवन ,वही ढाक के तीन पात है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

बुधवार, 14 अक्तूबर 2020

मोदी सरकार किसानों का विनाश कर रही है - रणधीर सिंह सुमन

 बाराबंकीः मोदी के नेतृत्व में केेन्द्र सरकार ने किसानों से सम्बंधित जिन काले कानूनों का निर्माण किया है उससे किसानों के धान का मूल्य न्यूनतम मूल्य से कम होकर 900/- रूपये प्रति कुल्टल आ गया है वहीं प्रदेश सकरार द्वारा धान खरीद की कोई व्यवस्था अभी तक नहीं की गयी है। जिससे बड़े खाधान्न व्यापारी कम दामों पर धान खरीदकर गोदामों को भर रहे हैं जिसका खामियाजा उपभोक्ताओं को आगे चलकर उठाना होगा।

देश व्यापी किसान आंदोलन के तहत आल इण्डिया किसान सभा की प्रदर्शनकारियों में सगठन के राज्य कार्यकारिणी सदस्य रणधीर सिंह सुमन ने सम्बांेेधित करते हुए कहा कि किसान विरोधी सरकारों को किसान उखाड़कर हिन्द महासागर में फंेक देगा। गांधी के किसान आन्दोलन से ब्रिटिश साम्राज्य वाद का सूरज अस्त होे गया था।

किसान सभा जिलाध्यक्ष विनय कुमार सिंह ने कहा कि इस किसान

विरोधी सरकार के खिलाफ निरंतर आन्दोलन चलाया जायेगा वहीं संगठन के उपाध्यक्ष प्रवीण कुमार ने कहा कि जिला प्रशासन किसानों की उपजाऊ जमीन छीनने के लिए बाराबंकी विकास प्राधिकरण बनाकर किसानों की जमीन छीनने की साजिश रच रहा है।

भारतीय कम्युनिष्ट के जिला सचिव बृज मोहन वर्मा ने कहा कि केन्द्र सरकार द्वारा बनाये गये किसानों के सम्बंध में काले कानूनो से जो भयानक बेरोजगारी फैलेगी उसका कोई अन्त नहीं होगा। पार्टी के सहसचिव डा0 कौसर हुसैन ने कहा कि यह सरकार किसान मजदूरों की विरोधी सरकार है और महंगाई का बोल-बाला हो गया है और बेरोजगारी बढ़ रही है।

आल इण्डिया किसानसभा का प्रदर्शन भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी कार्यालय सेे चलकर छाया चैराहा बस अड्डा से चलकर जिलाधिकारी कार्यालय तक नारे लगाते हुए आया। प्रदर्शनकारियों में महेन्द्र यादव अध्यक्ष स्टूडेन्ट फेडरेशन आशीष शुक्ला अध्यक्ष यूथ फेडरेशन गिरीश चन्द्र, वीरेेन्द्र वर्मा, रामनरेश वर्मा, नीरज वर्मा, श्याम सिंह, अंकुल वर्मा, राजेन्द्र बहादुर सिंह, राज कुमार काशीराम, संदीप तिवारी, दीपक शर्मा, सर्वेश यादव, गाजी अमान आदि प्रमुख लोग थे।


रणधीर सिंह सुमन

मोबाइलः 9450195427

【SEAnews:India Front Line Report】October 12, 2020 (Mon) No. 3946

SEAnews SEA Research, BLK 758 Yishun Street 72 #09-444 Singapore 760758
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Latest Top News(vol.201012)
(最新ニュース 36件)
2020-10-12 ArtNo.46895(1/36)
◆『プロパティ・カード・スキーム』は農村改革の画期的試み:モディ首相




【ニューデリー】ナレンドラ・モディ首相は10月11日、『農村地域における村落調査及び高速地図作成(SVAMITVA:Survey of Villages and Mapping with Improvised Technology in Village Areas)』スキームを立ち上げるとともに、インド農村の村落を一変させる画期的試みであると自ら絶賛した。首相によると、このスキームの下、適切な書類を所持する者が銀行から融資を拒まれることはない。
○シバ軍団、ビハール州で50議席獲得目指す:アニル・デサイ
○DMK、専門チーム設け選挙マニフェスト作成(...Read more)
2020-10-12 ArtNo.46896(2/36)
◆『地产卡计划』是改造村庄的『历史性举措』;莫迪总理




【新徳里】总理纳伦徳拉·莫迪(Narendra Modi)于10月11日发起了『农村地区的调查和应用高速技术的制图乡村(SVAMITVA:Survey of Villages and Mapping with Improvised Technology in Village Areas)』计划,并自称这是将改变印度农村的历史性举措。莫迪说,通过这一计划,没有银行会拒绝向拥有适当证件的人提供贷款。
○湿婆神军党将在比哈尔州争夺约50个席位:阿尼尔·徳赛
○DMK组成8人小组以准备选举宣言(...Read more)
2020-10-12 ArtNo.46897(3/36)
◆Property cards scheme is a 'historic move' to transform villages; PM Modi




【New Delhi】Prime Minister Narendra Modi on October 11 launched the 'Survey of Villages and Mapping with Improvised Technology in Village Areas' (SVAMITVA) scheme and hailed it as a "historic move" that will transform villages in rural India. Through this scheme Modi said, no bank can deny loans to people with proper documents.
○Shiv Sena to contest around 50 seats in Bihar: Anil Desai
○DMK forms 8-member panel for preparing election manifesto(...Read more)
2020-10-12 ArtNo.46898(4/36)
◆農民は『インド自立』運動の根幹:モディ首相




【ニューデリー】ナレンドラ・モディ首相は9月27日、月例ラジオ番組『マン・キ・バアト(Mann Ki Baat:mind matter心声)』の中で、「インドがマハトマ・ガンジーの経済哲学の本質に従ったならば、とっくに自立し、インド自立キャンペーン『アートマニル・バーラット・アビヤーン(Atmanirbhar Bharat Abhiyan: Self-reliant India Mission)』など必要なかった」と語り、独立以来国民会議派政府により追求されて来た経済政策に痛烈な一撃を加えた。
○政府は12月までに4労働法すべて実施も:ガングワール閣外相(...Read more)
2020-10-12 ArtNo.46899(5/36)
◆农民是『自立印度使命』的骨干




【新徳里】纳伦徳拉·莫迪(Narendra Modi)总理于9月27日在他的每月广播节目『曼基·巴特(Mann Ki Baat:mind matter心声)』中说「如果我国遵循圣雄甘地(Mahatma Gandhi)的经济哲学的本质,早就实现自力更生,现在根本不需要『自立印度使命(ABA: Atmanirbhar Bharat Abhiyan: Self-reliant India Mission)』了。」从而对自独立以来历届国大党政府奉行的经济政策激烈驳斥。
○政府希望在12月之前实施所有4项劳工法:Gangwar(...Read more)
2020-10-12 ArtNo.46900(6/36)
◆Farmers playing major role in building Aatmanirbhar Bharat: PM Modi




【New Delhi】Prime Minister Narendra Modi on September 27 took a swipe at economic policies pursued by successive Congress governments since Independence in his monthly 'Mann Ki Baat' broadcast. Had the country followed the essence of Mahatma Gandhi's economic philosophy, there would not have been any need for the 'Aatmanirbhar Bharat' campaign as India would have become self-reliant much earlier, he said.
○Govt looks to implement all 4 labour codes by December: Gangwar(...Read more)
2020-10-12 ArtNo.46901(7/36)
◆アカリ・ダルとシヴ・セーナー退出後、NDAには何が残っているのか?




【ムンバイ】農業法案をめぐってシロマニ・アカリ・ダル(SAD:Shiromani Akali Dal)が全国民主連盟(NDA:National Democratic Alliance)を脱退する中、シバ軍団(Shiv Sena)は9月28日、インド人民党(BJP)主導のNDA本当に存在するのか、連盟に参加しているのは誰かと疑問を呈した。
○NDAは名ばかり ...首相が会議を招集したためしはない:SAD党首(...Read more)
2020-10-12 ArtNo.46902(8/36)
◆阿卡利·达尔和希夫·塞纳离开后,NDA还剩下什么?




【孟买】由于室罗摩尼·阿卡利党(SAD:Shiromani Akali Dal)因农业法案而退出了全国民主联盟(NDA:National Democratic Alliance),湿婆神军党(Shiv Sena)想知道印度人民党(BJP)领导的联盟是否真的存在,并于9月28日询问现在谁还在联盟中。
○NDA仅以名字...这些年来一直没有PM召开会议:SAD主席(...Read more)
2020-10-12 ArtNo.46903(9/36)
◆'What is left of NDA after Akali Dal, Shiv Sena exit?'




【Mumbai】With the Shiromani Akali Dal (SAD) walking out of the National Democratic Alliance (NDA) over Farm Bills, the Shiv Sena on September 28 wondered if the BJP-led alliance really exists and asked who are in the coalition now.
○NDA only in name...no meeting called by PM all these years: SAD chief(...Read more)
2020-10-12 ArtNo.46904(10/36)
◆抗議運動で、モディ首相の1.08兆ルピーの新幹線プロジェクトも脱線?




【ニューデリー】ナレンドラ・モディ首相のアーメダバードとムンバイを結ぶ1兆800億ルピーの新幹線プロジェクトは、25を越える社会・政治団体がブミ・アディカル・アンドラン(地球の権利ための運動)の旗の下に同プロジェクトに反対する方針を決めたことから、向こう数ヶ月間に政治的暴風雨に見舞われそうだ。農民運動背後のブレインがそれをリードする。
○オンライン会議開催
○反農民法に対する全住民による抵抗の兆し(...Read more)
2020-10-12 ArtNo.46905(11/36)
◆抗议活动可能使总理莫迪的1.08兆卢比子弹头火车项目脱轨




【新徳里】纳伦徳拉·莫迪(Narendra Modi)总理在艾哈迈达巴徳和孟买之间的1.08万亿卢比的子弹头列车项目可能在未来几个月内遭到一场政治风暴,因为有25个以上的社会和政治组织已决定在普密蓬·阿迪卡尔·安多兰(Bhumi Adhikar Andolan:保护地球权利运动)的旗帜下,对此项目进行抗议。农民长征背后的头脑将领导异议人士。
○举办全国性在线会议
○对反农民法的全居民统一抵抗的预兆(...Read more)
2020-10-12 ArtNo.46906(12/36)
◆Protests likely to derail PM Modi's Rs 1.08 trn bullet train project




【New Delhi】Prime Minister Narendra Modi's Rs 1.08-trillion bullet train project between Ahmedabad and Mumbai is likely to see a political storm in the coming months, with more than 25 social and political organisations, under the banner of the Bhumi Adhikar Andolan (Movement for Earth Rights), have decided to protest against it. Brains behind the farmer long march will lead the dissent.
○Online conference
○Portents from the United Resistance to Anti-Farmer Laws(...Read more)
2020-10-12 ArtNo.46907(13/36)
◆印パ和平を提唱したジャスワント・シン氏が82歳で死去




【ニューデリー】ニューデリーとイスラマバードをアグラにおけるカシミールをめぐる和平交渉において驚くほど接近させたインドのジャスワントシン元外相が9月27日、当地で82歳で亡くなった。(...Read more)
2020-10-12 ArtNo.46908(14/36)
◆提倡印·巴和平的贾斯万特·辛格去世,享年82岁




【新徳里】在阿格拉(Agra)的克什米尔(Kashmir)和平谈判上,使新徳里和伊斯兰堡令人震惊地接近几乎达成协议的印度前外交部长贾斯旺特·辛格(Jaswant Singh)于9月27日在这里去世,享年82岁。(...Read more)
2020-10-12 ArtNo.46909(15/36)
◆Jaswant Singh, advocate of peace with Pakistan, dies at 82




【New Delhi】Former Indian foreign minister Jaswant Singh, who brought New Delhi and Islamabad tantalisingly close to a peace deal over Kashmir in Agra, died here on September 27 at the age of 82.(...Read more)
2020-10-12 ArtNo.46910(16/36)
◆カーン首相、アフガンからの急な撤退に警鐘




【イスラマバード】イムラン・カーン首相は、アフガニスタンからの外国勢力の急速な撤退に警戒感を表明するとともに、地域のスポイラーが既得権益のために荒廃した国の不安定さを利用する恐れがあると警鐘した。
○ザルダリ元大統領、高裁に資金洗浄及びパークレーン公判棄却申請(...Read more)
2020-10-12 ArtNo.46911(17/36)
◆伊姆兰总理警告不要仓促国际撤离阿富汗




【伊斯兰堡】伊姆兰·汗(Imran Khan)总理劝告外国势力不要贸然撤离阿富汗,也警告说,区域破坏分子可能为了自己的既得利益而利用这个破烂国家的不稳定局势。
○扎尔达里前总统向高等法院申请取消洗钱和公园路公审(...Read more)
2020-10-12 ArtNo.46912(18/36)
◆PM Imran warns against hasty international withdrawal from Afghanistan




【Islamabad】Prime Minister Imran Khan has warned against hasty withdrawal of foreign powers from Afghanistan and also cautioned that regional spoilers could use instability in the worn-torn country for their own vested interests.
○Zardari moves IHC to dismiss money laundering, Park Lane trials(...Read more)
2020-10-12 ArtNo.46913(19/36)
◆アブドラ議長、パキスタン訪問でアフガン和平に脆弱な得点




【イスラマバード】火種を抱えた二国間関係の修復を目指し東の隣国パキスタンを訪問したアフガニスタンのアブドラ・アブドラ国家和解高等評議会議長は、和平プロセスの初歩的進展を見た後、イスラマバードを後にした。
○ドーハ交渉
○幻想的な停戦(...Read more)
2020-10-12 ArtNo.46914(20/36)
◆阿卜杜拉的巴之旅为阿富汗和平取得了微弱的收获




【伊斯兰堡】阿富汗和平负责人(民族和解高级委员会主席)阿卜杜拉·阿卜杜拉(Abdullah Abdullah)为了修补经常陷入困境的两国关系访问东部邻国巴基斯坦,在推动新生的阿富汗和平进程方面取得进展后,已结束访问日程而离开伊斯兰堡。
○多哈谈判
○虚幻的停火(...Read more)
2020-10-12 ArtNo.46915(21/36)
◆Abdullah made fragile gains for Afghan peace during Pakistan trip




【Islamabad】Afghan peace chief Abdullah Abdullah has concluded a visit to eastern neighbour Pakistan aimed at mending the often fraught ties between the two countries and making progress on moving the nascent Afghan peace process forward.
○The negotiations in Doha
○Illusive ceasefire(...Read more)
2020-10-12 ArtNo.46916(22/36)
◆テロ組織『ネオJMB』捲土重来?




【ダッカ】ISに触発されたテログループが組織を再編し再興を図る中、『バングラデシュ聖戦者会衆組織(JMB: Jamaat-ul-Mujahidin-Bangladesh)』の分派『ネオJMB』は、トップのリーダーシップを再構築し、新最高指導者を内外に宣言した。
○『ネオJMB』メンバー2カップルを逮捕(...Read more)
2020-10-12 ArtNo.46917(23/36)
◆恐怖组织『新JMB』再次崛起?




【达卡】当受到IS启发的恐怖组织通过重组正试图再次崛起时,『孟加拉国贾马图尔圣战者(JMB: Jamaat-ul-Mujahidin-Bangladesh)』的分支派『新JMB(Neo JMB)』更新最高领导层并发表新任负责人。
○新JMB双对夫妻成员被捕(...Read more)
2020-10-12 ArtNo.46918(24/36)
◆Terrorist group 'Neo JMB' rising again?




【Dhaka】"Neo JMB," a branch of the Jamaat-ul-Mujahidin-Bangladesh (JMB) has declared its new chief and brought changes in the top leadership as the IS-inspired terror group is trying to get back on its feet by reorganising its structure.
○Neo-JMB couples held(...Read more)
2020-10-12 ArtNo.46919(25/36)
◆ハシナ首相、帰国した在外居住者の詳細報告を指示




【ダッカ】シェイク・ハシナ首相は9月28日、AKアブドゥル・モメン外相に、帰国した在外居住者を海外の職場に送り返すための包括的報告を行うよう求めた。首相はオンラインで催された週間定例閣議の席上、以上の指示を行った。
○リージェントグループのモハマド・シャヘド会長、武器事件で終身刑(...Read more)
2020-10-12 ArtNo.46920(26/36)
◆哈西娜总理要求返回者的详细报告




【达卡】谢赫·哈西娜(Sheikh Hasina)总理于9月28日,要求外交部长阿卜杜勒·莫曼(AK Abdul Momen)提出关于将回国的侨民送回海外工作场所的一份综合性报告。她在主持在线举行的每周内阁会议时作出了上述指示。
○摄政集团主席穆罕默徳·沙希徳因武器案被判终身徒刑(...Read more)
2020-10-12 ArtNo.46921(27/36)
◆PM Hasina asks detailed report on returnees




【Dhaka】Prime Minister Sheikh Hasina on September 28 asked Foreign Minister AK Abdul Momen to place a comprehensive report over sending back the stranded expatriates to their workplaces abroad. She gave the instruction while presiding over the weekly cabinet meeting held virtually.
○Regent Group Chairman Mohammad Shahed gets life term in arms case(...Read more)
2020-10-12 ArtNo.46922(28/36)
◆インド/スリランカ・バーチャルサミット大成功:ケヘリヤ情報相




【コロンボ】ケヘリヤ・ランブクウェラ情報相は9月28日、情報局でメディアブリーフィングを行い、1500万米ドルの助成と第13次憲法修正案の執行を結びつける報道は全くの誤りで、この件に関して両首脳(ラジャパクサ/モディ両首相)は如何なる合意もしていないと語った。
○インドCEOフォーラム、首相と会談、インドからのFDI誘致目指す(...Read more)
2020-10-12 ArtNo.46923(29/36)
◆印度/兰卡虚拟峰会取得大成功:媒体部长凯列里亚




【科伦坡】媒体部长凯赫里亚·兰布克韦拉(Keheliya Rambukwella)于9月28日在政府新闻部的媒体吹风会上说,有关将1500万美元赠款用于实施宪法第13修正案的新闻报道是完全错误的,而且两位领导人(总理拉贾帕克萨和莫迪)在此问题上未达成任何此类协议。
○印度首席执行官论坛会见总理,旨在吸引印度的外国直接投资(...Read more)
2020-10-12 ArtNo.46924(30/36)
◆India,Lanka Virtual Summit highly successful - Keheliya




【Colombo】Media Minister Keheliya Rambukwella addressing a media briefing at the Government Information Department on September 28 said that news reports tying up the $15 million grant to the implementation of the 13th Amendment is completely false and the two leaders (Both PMs Rajapaksa and Modi) had not reached any such agreement on this matter.
○Indian CEO Forum meets Prime Minister, aims to attract FDI from India (...Read more)
2020-10-12 ArtNo.46925(31/36)
◆オリ首相、閣議を繰り上げ招集




【カトマンズ】内閣改造の噂が飛び交う中、KPシャルマ・オリ首相は、日曜(9月27日)、緊急閣議を召集した。会議は午後12時に予定されている。
○ネパール移民労働者2万2千人がインドに向け出国(...Read more)
2020-10-12 ArtNo.46926(32/36)
◆奥利总理提前一天召集内阁




【加徳满都】内阁改组的风声在交错乱飞时,KP夏尔马·奥里(Sharma Ori)总理于周日(9月27日)召集紧急内阁会议。会议予定于下午12:00。
○22,000名尼泊尔移民工人前往印度(...Read more)
2020-10-12 ArtNo.46927(33/36)
◆PM Oli summons cabinet meeting a day in advance




【Kathmandu】Prime Minister KP Sharma Oli has called an 'emergency' cabinet meeting on Sunday (September 27) amid reports of possible cabinet reshuffle. The meeting has been scheduled for 12:00 pm.
○22,000 Nepali migrant workers leave for India(...Read more)
2020-10-12 ArtNo.46928(34/36)
◆書評:聖霊のバプテスマ(迷える羊)




 イエスが言った、「御国は百匹の羊を持つ羊飼いのようなものである。それらの中の一匹、最大の羊が迷い出た。その人は九十九匹を残しても、それを見つけるまで、一匹を捜した。彼は苦しみの果てに羊に言った、『私は九十九匹以上にお前を愛する』と」。(トマス107)
○『聖霊のバプテスマ』のゲマトリア
○神と立方体
○『三位一体』のゲマトリア
○三位は『別にして一』
○六芒星
○エフライム族とマナセ族の役割
○迷える羊(...Read more)
2020-10-12 ArtNo.46929(35/36)
◆书评:圣灵的施洗(迷失的羊)




 耶稣说「天国就像是一个有百只羊的牧羊人。当最大的羊走失了,他丢下其它九十九只羊去找那一只羊,直到找到为止。在费尽辛苦之后,他对这只羊说『我爱你胜过那九十九只羊。』」(托马斯107)
○『以圣灵施洗』的数字学
○神和立方体
○三位一体的数字学
○三位格彼此不同,但密不可分
○六芒星
○以法莲和玛拿西的角色
○迷失的羊(...Read more)
2020-10-12 ArtNo.46930(36/36)
◆Review:The baptism of the Holy Spirit (An astray sheep)




 Jesus said, "The kingdom is like a shepherd who had a hundred sheep. One of them, the largest, went astray. He left the ninety-nine and looked for the one until he found it. After he had toiled, he said to the sheep, 'I love you more than the ninety-nine.'" (Thomas 107)
○Gematria of "The Baptism of the Holy Spirit"
○God and cube
○Gematria of Trinity
○3 persons of Trinity are distinct but inseparable
○Hexagram
○Role of Ephraim and Manasseh
○An astray sheep(...Read more)
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