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गुरुवार, 22 मार्च 2018

गलतफहमी 

ये समझ कर तुम्हारा हसीं जिस्म है ,
मैं  अँधेरे में सहलाता जिसको रहा 
तुमने ना तो हटाया मेरा हाथ ही,
ना रिएक्शन दिया और न ना ही कहा 
मैं  बड़ा खुश था मन में यही सोच कर,
ऐसा लगता था ,दाल आज गल जायेगी  
हसरतें कितनी ही ,जो थी मन में दबी ,
सोचता था की अब वो निकल जायेगी 
गुदगुदा और नरम था वो कोमल बदन ,
मैं समझ तेरा ,मन अपना बहला रहा 
दिल के अरमाँ सभी,आंसुओ में बहे ,
निकला तकिया ,जिसे था मैं सहला रहा 

घोटू 
आशिक़ी की शिद्दत 

नाम उनने अपने हाथों ,जब लिखा दीवार पर ,
लोग सब उस जगह का चूना कुतर कर खा गए 
नाम उनने ,अपना कुतरा ,जब तने पर वृक्ष के ,
कुछ ही दिन में ,बिना मौसम ,उसमे भी फल आगये 
आशिकों की आशिकी की ,हद तो उस दिन हो गयी,
उनने 'आई लव यू 'कहा ,तो आया ऐसा  जलजला 
नाम अपना बदलने की होड़ सब में लग गयी ,
नाम अपना बदल ,'यू ' रखने लगा हर मनचला 

घोटू 

मैं गृहस्थन हो गयी हूँ 

अदाएं कम हो गयी है 
शोखियाँ भी खो गयी है 
सदा सजने संवरने की ,
अब रही फुरसत नहीं है 
        रोजमर्रा काम इतने ,
       व्यस्त हरदम हो गयी हूँ 
        मैं गृहस्थन  हो गयी  हूँ 
गए वो कॉलेज के दिन ,
गयी चंचलता चपलता 
मौज मस्ती का वो मौसम ,
आज भी है मन मचलता 
ठेले के वो गोलगप्पे ,
केंटीन के वो समोसे 
बंक करके क्लास,पिक्चर 
देख ,खाना इडली,दोसे 
था बड़ा मनमौजी जीवन, 
उमर थी कितनी सुहानी 
लेना पंगे हर किसी से ,
और करना छेड़खानी 
नित नए फैशन बदलना 
फटी जीने ,टॉप झीने 
आशिकों की लाइन लगती,
तब बड़ी बिंदास थी मैं  
      वो बसंती दिन गए लद ,
       सर्द  मौसम  हो गयी हूँ 
        मैं गृहस्थन हो गयी हूँ 
मस्तियाँ सब खो गयी है ,
हुआ बिगड़ा हाल तब से 
बन के दुल्हन ,आयी हूँ मैं ,
शादी कर ससुराल जब से 
पति मुझमे ढूंढते है ,
अप्सरा का रूप प्यारा 
सास मुझसे चाहती है ,
करू घर का काम सारा  
ससुर की है ये  अपेक्षा ,
बहू उनकी करे सेवा 
ननद ,देवर सभी की ,
फरमाइशें है ,जानलेवा 
सभी को संतुष्ट रखना ,
और सबके संग निभाना 
भूल कर संस्कार बचपन 
के नए रंग,रंग जाना 
       ना रही  मैं एक  बच्ची ,
      अब बढ़प्पन हो गयी हूँ 
      मैं  गृहस्थन हो गयी हूँ 
एक तरफ प्यारे पियाजी ,
प्यार है  अपना  लुटाते 
एक तरफ कानो में चुभती ,
सास की है कई बातें 
नवविवाहित कोई दुल्हन ,
उमंगें जिसके हृदय में 
सहम कर सब काम करती,
गलती ना हो जाय,भय में 
कुशलता से घर चलाना ,
बढ़ी जिम्मेदारियां है 
अचानक बिंदासपन पर,
लग गयी पाबंदियां है 
संतुलन सब में बिठाती ,
राजनीति  सीखली है 
सभी खुश रहते है मुझसे ,
चाल कुछ ऐसी चली है 
       बात पोलाइटली  करती,
        पॉलिटिशियन हो गयी हूँ 
       मैं गृहस्थन हो गयी  हूँ 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

बुधवार, 21 मार्च 2018

वक़्त के साथ-बदलते हालात 

वो भी कितने  प्यारे दिन थे ,
मधुर मिलन को आकुल व्याकुल ,
जब दो दिल थे 
प्रेमपत्र के शुरू शुरू में तुम लिखती थी 
'प्यारे प्रियतम '
और अंत में दूजे कोने पर लिखती थी 
'सिर्फ तूम्हारी '
बाकी पूरा पन्ना सारा 
होता था बस कोरा कोरा 
उस कोरे पन्ने  में तब हम ,
जो पढ़ना था,पढ़ लेते थे  
दो लफ्जों के प्रेमपत्र में ,
दिल का हाल समझ लेते थे 
उसमे हमे नज़र आती थी छवि तुम्हारी 
सुन्दर सुन्दर ,प्यारी प्यारी 
और अब ये हालात हो गए 
सब लगता है सूना सूना 
डबल बेड के एक कोने में ,
वो ही पुराने प्रेमपत्र के 
'मेरे प्रियतम 'सा मैं  सिमटा 
और दूसरे कोने में तुम 
'सिर्फ तुम्हारी ' सी लेटी हो 
बाकी कोरे कागज जैसी ,सूनी  चादर 
सलवट का इन्तजार कर रही   
दोनों प्यासे ,जगे पड़े है ,
दोनों दिल में  अगन मिलन की ,
लगी हुई है ,
किन्तु अहम ने बना रखी बीच दूरियां,
दोनों के दोनों मिलने को बेकरार है 
कौन करेगा पहल इसी का इन्तजार है 
और प्रतीक्षा करते करते ,
आँख लग गयी ,सुबह हो गयी 
देखो कितना है हममें बदलाव आ गया 
तब दो लफ्जों के कोरे से प्रेमपत्र को ,
पढ़ते पढ़ते सारी  रात गुजर जाती थी 
आज अहम के टकराने से ,
 रात यूं ही बस ढल जाती है
जैसे जैसे वक्त बदलता ,
पल पल करते यूं ही जिंदगी ,
कैसे यूं ही बदल जाती है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '  

रविवार, 18 मार्च 2018

       नव संवत्सर 

नए वर्ष का करें स्वागत ,हम ,तुम ,जी भर 
नव संवत्सर,नव संवत्सर ,नव संवत्सर  
हुआ आज दुनिया का उदभव ,ख़ुशी मनाएं 
खेतों में पक गया अन्न नव,ख़ुशी मनाये 
किया विश्व निर्माण विधि  ने ,आज दिवस है 
शीत ग्रीष्म की वय  संधि है ,आज दिवस है 
शुरू   चैत्र  नवरात्र  हुए,कर  देवी    पूजन 
मातृशक्ति और नारी शक्ति का कर आराधन 
हम  समृद्ध       हों,ऊंची उड़े   पतंग हमारी 
खुशियाँ फैले, कायम   रहे     उमंग हमारी 
गुड और इमली ,कालीमिर्च ,नीम की कोंपल 
खाकर रखें,स्वस्थ जीवन को ,पूर्ण वर्ष भर  
आने वाला वर्ष ख़ुशी दे और हो   सुखकर 
नव संवत्सर,नव संवत्सर ,नव संवत्सर 
(नूतन वर्ष की शुभ कामनाएं )

मदन मोहन 'बाहेती घोटू'

बुधवार, 14 मार्च 2018

ओ सी इलेक्शन -सीनियर कनेक्शन 

'बंसल' मुख से सल  गये ,दीवाने  'दीवान '
शर्माजी का 'कपिल' सुत ,होनहार बिरवान 
होनहार  बिरवान ,जीत कर छाई मस्ती 
अस्सी पार अवस्था ,विजयी भये 'अवस्थी '
जीते 'ब्रिगेडियर 'जी ,सत्ता में है कर्नल 
'घोटू 'ओ सी डोर ,थाम अब रहे सीनियर 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

सोमवार, 12 मार्च 2018

मुझे याद आती है दादी 

जब याद आता मुझको बचपन 
बात बात पर जिद पर आना 
पल पल रोना और चिल्लाना 
मुझको  कौन मनाया करता 
दे मिठाई ,बहलाया करता 
अपनी गोदी में थपकी दे   
मुझको कौन सुलाया करता 
हाँ ये सच है ,शुरू शुरू में,
ये सब कुछ करती थी अम्मा 
पर जब छोटी बहन आ गई,
व्यस्त हो गई उसमे अम्मा 
उस पर घर के कामधाम से,
उसके पास समय था इतना कब बच पाता 
सब बच्चों का ख्याल रख सके ,
थक जाती वह इतनी ज्यादा 
और उन दिनों हम दो और 
हमारे दो का ,नहीं नियम था
हर एक घर में पांच सात बच्चों 
के होने का फैशन था  
तो बच्चो का ख्याल अधिकतर ,
तब घर में ,दादी रखती थी 
सब बच्चों पर प्यार लुटाती ,
दादी कभी नहीं थकती थी 
हम उसके ही साथ लिपट कर,
लोरी सुनते,सो जाते थे 
वो ही हमको दूध पिलाती ,
उसके हाथों से ही हम खाना खाते थे
नहाना धोना वस्त्र पहनना ,
हमको दादी ने सिखलाया  
ऊँगली पकड़ी,हमे चलाया 
पहला अक्षरज्ञान  करवाया  
भाई बहन के कई आपसी ,
झगड़ों को उसने सुलझाया 
सब बच्चों की जिद पूरी की,
प्यार किया,हमको दुलराया 
बड़े प्यार से पाला ,पोसा 
मांग हमारी ,पूर्ण करेगी ,
दादी ही,था हमे भरोसा 
खुश होती तो मन बहलाने 
टॉफी या गुब्बारा लाने 
चोरी चुपके दे देती थी ,
हमको आने या दो आने 
उसकी आँखों में ममता का ,
था भंडार,उमड़ता लगता 
कहती उसे मूलधन से भी ,
ब्याज अधिक है प्यारा लगता 
होता अगर हमारा झगड़ा ,
गली मोहल्ले के बच्चों से 
तो वह आगे बढ़ लेती थी 
डाट पिलाती उन बच्चों को ,
और उनकी अम्मा दादी से ,
भी जाकर वो लड़ लेती थी 
हाँ वो प्यारी बूढी दादी 
बाल रुई से गोरा रंग था 
धुंधलाई सी उसकी आँखें ,
जिनमे केवल प्यार बरसता 
अपने हाथों,बना हमें गुड़िया बहलाती 
फटे पुराने कपड़ों से थी गेंद बनाती 
आसपास कोई फंक्शन में ,
अगर बुलावा आता था तो ,
जाती थी,गाने थी गाती  
लड्डू बंटते ,ले आती थी 
बड़े प्रेम से हमें खिलाती 
जब हम करते  थे शैतानी 
हमें मार पड़ती थी खानी 
डांट  मार से हमें पिताजी ,
की थी वो ही हमें बचाती 
हम उसकी गोदी में छिपते ,
उन्हें रोक कर  वो समझाती
और बदले में हमसे केवल ,
अपने हाथ पैर दबवाती 
जब खुश होकर वह मुस्काती 
अपना टूटा  दांत दिखाती 
भोलीभाली,सीधी सादी 
मुझे याद आती है अक्सर ,
वो प्यारी प्यारी सी दादी 

मदनमोहन बाहेती 'घोटू'
वंदना-अरविन्द परिणय रजत जयंती पर 

प्रभु वंदन कर वंदना ,पाई पति अरविन्द 
जीवन में मुखरित हुआ,प्रेम,ख़ुशी,आनंद 
प्रेम,ख़ुशी,आनंद,मुदित मन वो  हरषाये 
गठ बंधन में बंधे ,बरस पच्चीस  बिताये 
अविनाश सा पुष्प खिला उनके उपवन में 
यही कामना सुख बरसे उनके  जीवन  में 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू' 

रविवार, 4 मार्च 2018

Re: response to OLAW

 

 

I am Mrs. Fatima Almansoori

I have a business deal for you.

Reply to:  mrsfatima-kindh@email.ch

 

 

 

 

 


From: Axel Schonthal [schontha]
Sent: Tuesday, February 27, 2018 6:31 PM
To: Wang, Weijun
Subject: Re: response to OLAW

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   Axel H. Schönthal, PhD
   Keck School of Medicine
   University of Southern California (USC)

   2011 Zonal Ave., HMR-405


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From: Wang, Weijun < >
Sent: Tuesday, February 27, 2018 5:16:24 PM
To: Axel Schonthal
Subject: RE: response to OLAW

 

Hi.Axel,

 

Please see the "Revised 8. Vertebrate Animals" and the old version.

 

Thank you

Weijun

 

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