माचिस की तिली
पेड़ की लकड़ी से बनती,कई माचिस की तिली ,
सर पे जब लगता है रोगन,मुंह में बसती आग है
जरा सा ही रगड़ने पर ,जलती है तिलमिला कर,
और कितने दरख्तों को ,पल में करती खाक है
घोटू
एक ख़त बीते लम्हों के नाम... संध्या शर्मा
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एक ख़त लिखना चाहती हूँ मैं,
उन गुजरे पलों के नाम,
जो छू गए थे मन को कभी
और खो थे वक़्त के अंधेरों में।
काग़ज़ पे उतर आएँगे,
कुछ धुंधले से चेहरे,
...
16 घंटे पहले
बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंअधिक संघर्ष से चन्दन भी जल जाता है |
जवाब देंहटाएंअवसर आने पर 'सुप्त ज्वालामुखी' भी उबल जाता है ||