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गुरुवार, 29 जून 2023

बूढ़ा बंदर 

वह छड़ी सहारे चलती है, 
मैं भी डगमग डगमग चलता 
फिर भी करते छेड़ाखानी, 
हमसे न गई उच्छृंखलता  

याद आती जब बीती बातें,
हंसते हैं कभी हम मुस्कुराते 
भूले ना भुलाई जाती है ,
वह मधुर प्रेम की बरसाते 
मन के अंदर के बंदर में ,
फिर से आ जाती चंचलता 
वो छड़ी सहारे चलती है ,
मैं भी डगमग डगमग करता 

आ गया बुढ़ापा है सर पर 
धीरे-धीरे बढ़ रही उमर 
लेकिन वो जवानी के किस्से 
है मुझे सताते रह-रहकर 
वह दिन सुनहरे बीत गए, 
रह गया हाथ ही मैं मलता 
वो छड़ी सहारे चलती है ,
मैं भी डगमग डगमग करता 

मुझको तड़फा ,करती पागल 
ये प्यार उमर का ना कायल
उसकी तिरछी नजरें अब भी,
कर देती है मुझको घायल 
कोशिश नियंत्रण की करता ,
बस मेरा मगर नहीं चलता
वो छड़ी सहारे चलती है,
मैं भी डगमग डगमग चलता 

हम दो प्राणी ,सूना सा घर 
एक दूजे पर हम हैं निर्भर 
है प्यार कभी तो नोकझोंक 
बस यही शगल रहता दिनभर 
वह चाय बनाकर लाती है ,
और गरम पकोड़े मैं तलता 
वो छड़ी सहारे चलती है,
मैं भी डगमग डगमग करता

मदन मोहन बाहेती घोटू 
ग़ज़ल

मेरा स्वप्न पूरा हुआ चाहिए बस 
मुझे दोस्तों की दुआ चाहिए बस 
मेरी जिंदगी में जो ला दे बहारें, 
हसीं ऐसी एक दिलरुबा चाहिए बस 
उसकी मुलायम नरम उंगलियों से,
हाथों को मेरे ,छुआ चाहिए बस 
आंखों में बिजली, गालों पर लाली,
 हंसी चेहरे पर सदा चाहिए बस 
 मस्ती से खेऊंगा जीवन की किश्ती,
 मौसम जरा खुशनुमा चाहिए बस 
 हर एक मुसीबत में हिम्मत बंधा दे,
 "घोटू" मेहरबां खुदा चाहिए बस

मदन मोहन बाहेती घोटू 

रविवार, 25 जून 2023

नए-नए चलन 

आजकल बड़े अजीब अजीब चलन चल गए हैं रोज नए नए फैशन बदल रहे हैं 
लोग परिवार के साथ समय  में मजा नहीं पाते हैं कहीं किसी के साथ जाकर *क्वालिटी टाइम* बिताते हैं 
घर की रोटी दाल का बवाल इन्हे नहीं सुहाता है बाहर होटल में *फाइन डाइनिग* में जाने में मजा आता है 
छुट्टियां गुजारना अच्छा नहीं लगता अपनों के बीच में 
जाकर *चिल* करते हैं गोवा के *बीच* में 
फैशन का भूत ऐसा सर पर चढ़ रहा है 
फटे हुए *जींस* पहनने का रिवाज़ बढ़ रहा है 
ढीले ढाले *ओवरसाइज टॉप* पहनने का चलन में है 
चोली की पट्टी दिखाते रहना फैशन में है 
पश्चिम सभ्यता अपनाने का यह अंजाम हो गया है *लिविंग इन रिलेशनशिप* में रहना आम हो गया है आजकल *वर्किंग कपल* घर पर खाना नहीं पकाते हैं 
*स्वीगी* को फोन कर खाना मंगाते हैं 
या दो मिनट की  *मैगी नूडल* से काम चलाते हैं आजकल चिट्ठी पत्री का चलन बंद है 
मोबाइल पर मैसेज देना सबको पसंद है 
आदमी मोबाइल सिरहाने रख कर सोता है 
बच्चे के हाथ में झुनझुना नहीं *मोबाइल* होता है
कानों पर चिपका रहता है मोबाईल रात दिन
 सारे काम होने लगे हैं* ऑनलाइन*
 अब आदमी लाइन में नहीं लगता,पर *ऑन लाइन *जीता है
 जानें हमे कहां तक ले जाएगी,ये आधुनिकता है

मदन मोहन बाहेती घोटू
फेरे में 

मैं होशियार हूं पढ़ी लिखी,
 सब काम काज कर सकती हूं ,
 तुम करके काम कमा लाना ,
 मैं भी कुछ कमा कर लाऊंगी 
 
हम घर चलाएंगे मिलजुल कर,
 तुम झाड़ू पोंछा कर लेना, 
 रोटी और दाल पका लेना,
 पर छोंका में ही लगाऊंगी 
  
तुमने थी मेरी मांग भरी ,
लेकर के रुपैया चांदी का ,
उसके बदले अपनी मांगे,
 हरदम तुमसे मनवाऊंगी
 
तुमने बंधन में बांधा था ,
पहना के अंगूठी उंगली में,
 उंगली के इशारे पर तुमको ,
 मैं जीवन भर नचवाऊंगी 
 
अग्नि को साक्षी माना था 
और तुमने दिये थे सात वचन,
उन वचनों को जैसे तैसे ,
जीवन भर तुमसे निभवाऊंगी 

तुमने थे फेरे सात लिए 
और मुझको लिया था फेरे में,
 घेरे में मेरे फेरे के 
 चक्कर तुमसे कटवाऊंगी

मदन मोहन बाहेती घोटू 
दृष्ट सहस्त्र चंद्रो 

मैंने इतने पापड़ बेले, तब आई समझदारी मुझ में 
दुनियादारी की परिभाषा, अब समझ सका हूं कुछ-कुछ में 

जब साठ बरस की उम्र हुई ,सब कहते थे मैं सठियाया 
और अब जब अस्सी पार हुआ ,कोई ना कहता असियाया 
मैंने जीवन में कर डाले, एक सहस्त्र चंद्र के दर्शन है 
अमेरिका का राष्ट्रपति ,मेरा हम उम्र वाइडन है 
है दुनिया भर की चिंतायें ,फिर भी रहता हरदम खुश मैं 
दुनियादारी की परिभाषा ,अब समझ सका हूं कुछ कुछ मैं 

चलता हूं थोड़ा डगमग पर, है सही राह का मुझे ज्ञान 
तुम्हारी कई समस्याओं, का कर सकता हूं समाधान 
नजरें कमजोर भले ही हो ,पर दूर दृष्टि में रखता हूं 
अब भी है मुझ में जोश भरा, फुर्ती है ,मैं ना थकता हूं
मेरे अनुभव की गठरी में ,मोती और रत्न भरे कितने 
दुनियादारी की परिभाषा, अब समझ सका हूं कुछ-कुछ मैं

लेकिन यह पीढ़ी नई-नई ,गुण ज्ञान पारखी ना बिल्कुल 
लेती ना लाभ अनुभव का , मुझसे ना रहती है मिलजुल 
मेरी ना अपेक्षा कुछ उनसे ,उल्टा में ही देता रहता 
वो मुझे उपेक्षित करते हैं, मैं मौन मगर सब कुछ सहता 
सच यह है अब भी बंधा हुआ, मैं मोह माया के बंधन में 
दुनियादारी की परिभाषा ,अब समझ सका हूं कुछ-कुछ मैं

मदन मोहन बाहेती घोटू 

बुधवार, 21 जून 2023

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सुनहरे सपने 

मैं एक वृद्ध, बूढ़ा, सीनियर सिटीजन 
एक ऐसा चूल्हा खत्म हो गया हो जिसका इंधन 
पर बुझी हुई राख में भी थोड़ी गर्मी बाकी है 
ऐसे में जब कोई हमउम्र बुढ़िया नजर आती है 
उसे देख उल्टी गिनती गिनने लगता है मेरा मन 
ये कैसी दिखती होगी ,जब इस पर छाया रहा होगा यौवन
इसके ये सफेद बाल ,कभी सावन की घटा से लहराते होंगे 
इसके गाल गुलाबी होते होंगे, जुलम ढाते होंगे 
तना तना, कसा कसा बदन लेकर जब चलती होगी 
कितनों के ही दिलों में आग जलती होगी 
आज चश्मे से ढकी आंखें ,कभी चंचल कजरारी होती होंगी 
प्यार भरी जिनकी चितवन कितनी प्यारी होती होगी 
जिसे ये एक नजर देख लेती होगी वो पागल हो जाता होगा 
कितने ही हसीन ख्वाबों में खो जाता होगा  
देख कर इस की मधुर मधुर मुस्कान 
कितने ही हो जाया करते होंगे इस पर कुर्बान और जब यह हंसती होगी फूल बरसते होंगे इसकी एक झलक पाने को लोग तरसते होंगे इसकी अदाएं हुआ करती होगी कितनी कातिल 
मोह लिया करती होगी कितनों का ही दिल 
इसे भी अपने रूप पर नाज होता होगा 
बड़ा ही मोहक इसका अंदाज होता होगा 
जिस गुलशन का पतझड़ में भी ऐसा अच्छा हाल 
तो जब बसंत रहा होगा तो होगा कितना कमाल 
खंडहर देखकर इमारत की बुलंदी की कल्पना करता हूं 
और आजकल इसी तरह वक्त गुजारा करता हूं 
कभी सोचता हूं काश मिल जाती ये जवानी में 
तो कितना ट्विस्ट आ जाता मेरी कहानी में 
जाने कहां कहां भटकता रहता है मन पल पल 
वक्त गुजारने के लिए यह है एक अच्छा शगल 
फिर मन को सांत्वना देता हूं कि काहे का गम है 
तेरी अपनी बुढ़िया भी तो क्या किसी से कम है

मदन मोहन बाहेती घोटू 

गुरुवार, 15 जून 2023

बुढ़ापा कैसा होता है 

आदमी हंसता तो कम है आदमी ज्यादा रोता है 
बुढ़ापा कैसा होता है ,बुढ़ापा ऐसा होता है 

नज़र से थोड़ा कम दिखता ,बदन में है सुस्ती छाती 
कदम भी डगमग करते हैं ,नींद भी थोड़ा कम आती 
जलेबी ,रबड़ी और लड्डू ,देखकर ललचाता है दिल
बहुत मन करता खाने को, पचाना पर होता मुश्किल 
परेशां रहता है अक्सर, चैन मन अपना खोता है 
बुढ़ापा कैसा होता है ,बुढ़ापा ऐसा होता है 

बसाते बेटे अपना घर ,जब उनकी हो जाती शादी 
बेटियों को हम ब्याह देते हैं ,चली ससुराल वो जाती 
अकेले रह जाते हैं हम, बड़ी मुश्किल से लगता मन 
वक्त काटे ना कटता है ,खटकता है एकाकीपन 
बच्चों का व्यवहार भी न पहले जैसा होता है 
बुढापा कैसा होता है , बुढापा ऐसा होता है

उजड़ने लगती है फसलें, माथ पर काले बालों की 
दांत भी हिलने लगते हैं ,न रहती रौनक गालों की 
कभी ब्लड प्रेशर बढ़ जाता , कभी शक्कर बढ़ जाती है 
बिमारी कितनी ही सारी ,घेर कर हमें सताती है 
बदलते हालातों से हम ,किया करते समझौता है 
बुढ़ापा कैसा होता है ,बुढ़ापा ऐसा होता है 

मदन मोहन बाहेती घोटू
आशीर्वाद
1
मैंने गुरु सेवा करी ,बहुत लगन के साथ 
हो प्रसन्न गुरु ने कहा, मांगो आशीर्वाद 
मांगो आशीर्वाद ,कहा प्रभु दो ऐसा वर 
सुख और शांति मिले ,मुझे पूरे जीवन भर 
कहा तथास्तु गुरु ने , मैं प्रसन्न हो गया 
पाया आशीर्वाद गुरु का धन्य हो गया 
2
लेकिन फिर ऐसा हुआ कुछ कुछ मेरे साथ 
शादी की बातें चली ,बनी नहीं पर बात 
बनी नहीं पर बात,दुखी मन मेरा डोला 
गया गुरु के पास, शिकायत की और बोला 
गुरुवर फलीभूत ना आशीर्वाद तुम्हारा 
सुखी नहीं में दुखी ,अभी तक बैठा कुंवारा
3
गुरु बोले शादी करो ,खो जाता है चैन
पत्नी की फरमाइशें, लगी रहे दिन रेन
लगी रहे दिन रेन ,रोज की होती किच-किच
 सास बहू के झगड़े में इंसां जाता पिस
 मेरे वर ने रोक रखी तेरी बरबादी 
सुख शांति से जी, या फिर तू कर ले शादी

मदन मोहन बाहेती घोटू 
कैसे अपना वक्त गुजारूं

हंसी खुशी से मौज मनाते, अभी तलक जीवन जिया है 
यही सोचता रहता मैंने ,क्या अच्छा ,क्या बुरा किया है 
बीती यादों के बस्ते पर, धूल चढ़ी ,कब तलक बुहारूं
कैसे अपना वक्त गुजारूं

करने को ना काम-धाम कुछ, दिन भर बैठा रहूं निठल्ला 
कब तक टीवी रहूं देखता ,मन बहलाता रहूं इकल्ला 
इधर-उधर अब ताक झांक कुछ ,करने वाली नजर ना रही 
मौज और मस्ती सैर सपाटा ,करने वाली उमर ना रही 
लोग क्या कहेंगे, करने के पहले , सोचूं और विचारूं
कैसे अपना वक्त गुजारूं

पहले वक्त गुजर जाता था ,पत्नी से तू तू मैं मैं कर 
अब पोते पोती सेवा में ,वह रहती है व्यस्त अधिकतर 
झगड़े की तो बात ही छोड़ो ,उसे प्यार का वक्त नहीं है 
बाकी समय भजन कीर्तन में, वह मुझसे अनुरक्त नहीं है 
भक्ति भाव का भूत चढ़ा है ,उस पर ,कैसे उसे उतारूं 
कैसे अपना वक्त गुजारूं

अब तो बीती,खट्टी मीठी ,यादें ही है एक सहारा 
बार-बार जिनको खंगाल कर,करता हूं मैं वक्त गुजारा 
मित्रों के संग गपशप करके, थोड़ा वक्त काट लेता हूं 
दबी हुई भड़ास ह्रदय की, सबके साथ बांट लेता हूं 
एकाकीपन में जो बहती ,कैसे अश्रु धार संभालू 
कैसे अपना वक्त गुजारूं

मदन मोहन बाहेती घोटू 

रविवार, 11 जून 2023

मामूली आदमी 

मैं एक मामूली आदमी हूं
पहले मैं खुद को आम आदमी कहता था 
संतोषी और सुखी रहता था 
पर जब से केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी बनाई है 
आम आदमी बनने का नाटक कर ,
आम आदमी की खिल्ली उड़ाई है 
कहीं आम आदमी की,अपने घर को 
सुधारने के लिए छियांलिस करोड़ रुपए
खर्च करने की औकात होती है 
पर इन नेताओं की अलग ही जात होती है 
गले में मफलर डालने भर से 
कोई आम आदमी नहीं बन जाता 
पर जनता को बरगलाने के लिए ,
यह नाटक है किया जाता 
यूं भी आजकल आम के दाम 
छू रहे हैं आसमान 
आम खाना, आम आदमी की पहुंच से 
बाहर हो रहा है 
इसलिए आम आदमी ,आम आदमी नहीं रहा है 
आजकल आम आदमी की पहुंच में है मूली इसलिए आम आदमी ,बन गया है मामूली 
मेरी औकात भी मूली पर आकर है थमी 
और मैं बन गया हूं मामूली आदमी 

मदन मोहन बाहेती घोटू 

शनिवार, 10 जून 2023

विचार गंगा

 हम शब्दों को छू ना पाते, शब्द हमें छू जाते हैं दृष्टिकोण अलग होता है, पास सभी के आंखें हैं
 
करनी तो सब ही करते हैं,लेकिन करनी करनी में, 
फर्क बहुत होता,जीवन में जिससे सुख दुख आते हैं 
आती हमें नजर है झट से, क्या कमियां है औरों में
 लेकिन अपनी कमियों को हम, कभी देख ना पाते हैं 
सब हमें पता है ,तुम्हें पता है ,सबको जाना है एक दिन ,
लंबे जीवन की आशा में ,हम खुद को बहलाते हैं

हमें जिंदगी बस गुजारनी नहीं ,जिंदगी जीनी है,
नहीं गटागट, घूंट घूंट जो पीते ,मजा उठाते हैं

अपनीअपनी पड़ी सभी को, दुख में साथ नहीं देते 
रिश्ते ,नाते ,प्यार वफ़ा सब ,यह तो कोरी बातें हैं

 सबको है मालूम ,साथ में कुछ भी ना जाने वाला
 लेकिन मोह माया बंधन में हम बंधते ही जाते हैं

मदन मोहन बाहेती घोटू 

सोमवार, 5 जून 2023

मोदी ही मोदी 
1
न रुदबा बचा है , न कुर्सी ,कमीशन,
 परेशान है सारे नेता विरोधी 
 सत्ता में आया है जब से ये मोदी, 
 उसने तो उनकी है लुटिया डुबो दी 
 पड़े लाले, घोटाले वालों के सारे ,
 आये हाशिए पर ,है पहचान खो दी 
 इधर देखो मोदी, उधर देखो मोदी 
 देश और विदेशों में मोदी ही मोदी  
 2
गरीबों को छत दीऔर भूखों को राशन
 घर घर में बिजली, किये काम अनगिन 
 बिछा जाल सुंदर सुहानी सड़क का ,
 पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण 
 हरे क्षेत्र में बढ़ रहे हम हैं आगे ,
 तरक्की मेरा देश करता दिनों दिन 
 विदेशों में भारत का डंका बजा है ,
 अगर जो है मोदी, सभी कुछ मुमकिन

मदन मोहन बाहेती घोटू 

रविवार, 4 जून 2023

जीने की चाहत 

मुझे जिंदगी से मोहब्बत हुई है 
अधिक लंबा जीने की चाहत हुई है 

बिमारी ने लंबी ,किया मुझको बेकल 
घिरने लगे थे निराशा के बादल 
मगर खेरख्वाओं ने हिम्मत बढ़ाई 
किरण रोशनी की मुझे दी दिखाई 
सुधर फिर से अच्छी सी सेहत हुई है 
मुझे जिंदगी से मोहब्बत हुई है 

मेरा ख्याल रखती मेरी हमसफर है 
आसां हुई जिंदगी की डगर है 
कदम मेरे अब ना रहे डगमगा है 
नया आत्मविश्वास मुझ में जगा है 
बड़े अच्छे मित्रों की संगत हुई है 
मुझे जिंदगी से मोहब्बत हुई है 

दुआओं ने सबकी असर यह दिखाया 
बुझा था जो चेहरा ,वह फिर मुस्कुराया 
फिर से नया जोश ,जज्बा मिला है 
पुराना शुरू हो गया सिलसिला है 
बुलंद हौसला और हिम्मत हुई है 
मुझे जिंदगी से मोहब्बत हुई है 

सोये थे अरमान ,सब जग गए हैं 
उड़ूं आसमां में अब पर लग गए हैं 
तमन्ना है सारे मजे मैं उठा लूं 
सभी खुशियां जीवन की ख़ुद में समालू  
ललक मौज मस्ती की जागृत हुई है 
मुझे जिंदगी से मोहब्बत हुई है

मदन मोहन बाहेती घोटू 

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