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रविवार, 23 दिसंबर 2012

बलात्कार

           बलात्कार
एक बलात्कार ,ka
पांच छह उद्दंड दरिंदों ने ,
एक बस में,
एक निरीह कन्या के साथ किया
और जब इसके विरोध में,
देश की जनता और युवाओ ने ,
इण्डिया गेट पर शांति पूर्ण प्रदर्शन किया ,
तो दूसरा बलात्कार ,
दिल्ली पुलिस के सेकड़ों जवानो ने ,
हजारों प्रदर्शनकारियों के साथ किया ,
जब आंसू गेस से आंसू निकाले ,
लाठियों से पीटा,
और सर्दी में पानी की बौछारों से गीला किया
कौनसा बलात्कार ज्यादा वीभत्स था? 
क्या एक अबला लड़की के साथ ,
हुए अन्याय के विरुद्ध ,
न्याय मांगना ,एक आम आदमी का ,
अधिकार नहीं है या जुर्म है ?
ये कैसा प्रजातंत्र है?
ये कैसी व्यवस्था है?
हम शर्मशार है कि ऐसी घटनाओं पर ,
एक तरफ तो नेता लोग ,
मौखिक सहानुभूति दिखलाते है ,
और दूसरी और ,प्रदर्शनकारियों को,
लाठी से पिटवाते है
      घोटू 

2 टिप्‍पणियां:

  1. हमारे सर्वोच्च,उच्च एवं अधिनस्थ न्यायालयों के न्यायाधीशों की रूचि 'राजनीति'
    के अंतर्गत 'नेतागीरी' करने में अधिक है अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन करने में कम
    ऐसी स्थिति में उन्हें चाहिए कि वे तत्काल अपनी आसंदी को रिक्त कर पद से
    त्याग पत्र दें, कारण की इस देश में सवा सौ करोड़ जनता रहती है जो कि उक्त पदों
    हेतु न केवल योग्य हैं अपितु जन सामान्य को न्याय उपलब्ध करवाने में उनसे
    अधिक सक्षम हैं.....

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