पेन्सिल मै
प्रवृत्ति उपकार की है,भले सीसा भरा दिल में
पेन्सिल मै
मै कनक की छड़ी जैसी हूँ कटीली
किन्तु काया ,काष्ठ सी ,कोमल ,गठीली
छीलते जब मुझे ,चाकू या कटर से
एक काली नोक आती है निकल के
जो कि कोरे कागजों पर हर्फ़ लिखती
भावनाएं,पहन जामा, शब्द दिखती
प्रेम पत्रों में उभरता ,प्यार मेरा
नुकीलापन ही बना श्रृगार मेरा
मोतियों से शब्द लिखती,काम आती बहुत,छिल, मै
पेन्सिल मै
शब्द लिखना ,सभी को मैंने सिखाया
साक्षर कितने निरक्षर को बनाया
कविता बन,कल्पनाओं को संवारा
ज्ञान का सागर ,किताबों में उतारा
कलाकृतियाँ ,कई ,कागज़ पर बनायी
आपके हित,स्वयं की हस्ती मिटाई
बांटने को ज्ञान, मै , घिसती रही हूँ
छिली,छिलती रही पर लिखती रही हूँ
कर दिया उत्सर्ग जीवन,नहीं कोई कसक दिल में
पेन्सिल मै
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
राज्य बार काउंसिल को मौजूदा कानून के तहत राज्य के बार एसोसिएशनों को
उपर्युक्त अवधि के लिए अपने चुनाव स्थगित करने का निर्देश देने का कोई अधिकार
नहीं था -इलाहाबाद हाईकोर्ट -
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इलाहाबाद हाई कोर्ट की माननीय जस्टिस अतुल श्रीधरण और माननीय जस्टिस अनीश
गुप्ता जी की खंडपीठ ने मो आरिफ सिद्दीकी बनाम स्टेट ऑफ़ उत्तर प्रदेश एवं अन्य
में...
4 घंटे पहले
एक अलग सा बिंम्ब लिया है आपने कवि के लिये । पर ्ब तो बॉल पॉइन्ट का जमाना है । चटना छिलना तो नही पर हां खत्म होने पर पेंक दिया जाता है या लीड बदल दी जाती है .।
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