एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

शुक्रवार, 28 सितंबर 2018

न नौ मन तेल होगा,न राधा नाचेगी
------------------------------------------
(कुछ प्रतिक्रियाएं )
                  १
राधा को नाचना तो नहीं आता,
मगर बहाने बनाती है
कभी आँगन को टेढ़ा बताती है
तो कभी नौ मन तेल मांगेगी
क्योंकि वो जानती है,
न नौ मन तेल होगा होगा,
न राधा नाचेगी
   २
राधा, नाचने के लिए,
अगर नौ मन तेल लेगी
तो इतने तेल का क्या करेगी?
क्या पकोड़ियाँ तलेगी?
और अगर इतनी पकोड़ियाँ खायेगी
तो खा खा कर मोटी हो जाएगी 
फिर कमर कैसे मटकायेगी
और क्या नाच भी पाएगी?
       3 
  हमारे कृष्ण कन्हैया
 कितने होशियार थे
बांसुरी बजा देते थे
और बिना नौ मन तेल के,
राधा को  नचा देते थे 
जैसे मिडिया वाले,
टी.वी. बजा बजा देते है
सत्ता की राधा को,
नचा नचा देते है 
         ४
अगर नौ मन तेल बचाना है,
और राधा को नचाना है
तो कोई आइटम सोंग बजा दो
खुद भी नाचने लगो,
और राधा को भी नचा दो
           ५
शादी के पहले,
तुमने नौ मन तेल देकर ,
राधा को खूब नचाया
पर शादी के बाद,
जब रुक्मणी आएगी
तो तुम्हे इतना नचाएगी
की मज़ा आ जायेगा
तुम्हारा,नौ मन से भी ज्यादा,
तेल निकल जायेगा
            6
गोकुल में,
जब थे कृष्ण और राधा
दूध ,दही,मक्खन खाते थे
और दोनों,गोप गोपियों के संग,
नाचते गाते थे
मक्खन और घी इतना होता था,
की हर कोई,
पुए,पूरी और पकवान,
देशी घी ने पकाता होगा
तेल कौन खाता होगा?
 इसलिए मेरा ये मत है 
की ये मुहावरा ही गलत है
          ७
नाचने के लिये,
नौ मन तेल की मांग करना,
एक दम,ना इंसाफी है
राधा को नचाने के लिये,
तो बांसुरी की धुन,
और कान्हा का प्यार ही काफी है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'  
चार पंक्तियाँ-४ 

लाख छुट्टियां काटो ,फाइव स्टार  होटल में ,
सुकून तो अपने घर ,जाकर ही मिलता है  
पचीसों व्यंजन का ,बफे डिनर खालो पर ,
चैन अपने घर  रोटी ,खाकर ही मिलता है 
म्यूजिक के बड़े बड़े ,कन्सर्ट तुम सुन लो पर ,
असली मज़ा ,बाथरूम में ,गाकर ही मिलता है 
रंग बिरंगी परियां, बहलाती मन ,पर सुख तो ,
 बीबी की बाहों में ,आकर ही मिलता है 

घोटू 
शिकायत 

इस तरह आप हमको सतायेंगे जो 
दूरियां हमसे इतनी बनाएंगे  जो 
जिंदगी के तरीके बदल जाएंगे 
हाथ से आपके हम निकल जाएंगे 

सज संवर कर के जलवा दिखाते हमे 
रूप का फेंक पासा ,लुभाते  हमें 
आग मन में मिलन की सुलग जाती जब ,
कुछ बहाने बना कर सताते हमे 
देखिये ऐसे हम ना बहल पाएंगे 
हाथ से आपके हम निकल जाएंगे 

हाथ जो मैं रखूँ तो हटा देते तुम 
फेर कर मुंह हमसे ,पलट जाते तुम 
ऐसा क्या है पता ना तुम्हे हो गया  
कोई जिद मैं करूँ तो बिगड़ जाते तुम 
कोई और मिल गया ,हम फिसल जाएंगे 
हाथ से आपके हम निकल जाएंगे 

घोटू 
चार पंक्तियाँ -३ 

निश्चित ही उनके मन में कोई चोर छुपा था ,
आहट  जरा सी क्या  हुई ,वो चौंकने लगे
आदत से अपनी इस तरह लाचार हो गए ,
हमने कहा जो कुछ भी , हमे टोकने लगे 
डरते थे निकल जाए नहीं उनसे हम आगे ,
अटका के रोड़े ,राह को वो  रोकने लगे 
हमने जो उनके 'डॉग 'को कुत्ता क्या कह दिया ,
कुत्ता तो चुप रहा मगर वो भोंकने लगे 

घोटू  
चार पंक्तियाँ -२ 

हमने ये कहा रात चुरा चाँद ले गयी ,
बदली के संग झोंके हवा के फरार है 
तितली हो मधुमख्खियाँ हो चाहे भ्र्मर हो,
फूलों का रस चुराने को सब बेकरार है 
उनने समझ लिया इसे इल्जाम स्वयं पर ,
कितने है चौकन्ने और वो होशियार है 
कहते है इसको तिनका है दाढ़ी में चोर की ,
खुजला रहे वो अपनी दाढ़ी ,बार बार है 

घोटू 
चार पंक्तियाँ -१ 

होता है राहुकाल कभी या है दिशा शूल, 
चक्कर ये शुभअशुभ का ऐसा सर पे चढ़ गया
पंडित से पूछ मुहूरत ,निकले थे काम पर ,
रस्ते में सामने था, काणा एक पड़ गया 
बैठे हम थोड़ी देर, फिर निकले तो ये हुआ ,
रस्ता हमारा निगोड़ी बिल्ली से कट गया 
फिर निकले ,छींक आ गयी ,अब कोई क्या करे ,
सब काम उहापोह में,यूं ही  बिगड़ गया 
 
घोटू 

सोमवार, 24 सितंबर 2018

पत्नीजी का अल्टीमेटम 

यदि मेरी जो नहीं सुनोगे 
तो तुम भूल गृहस्थी के सुख ,वानप्रस्थ की राह चुनोगे 
यदि मेरी जो नहीं सुनोगे 

मैं कहती मुझको अच्छी सी साड़ी ला दो ,तुम ना कहते 
मैं कहती दुबई ,सिंगापूर ,ही घुमवादो ,तुम ना कहते 
मैं भी ना ना करती हूँ पर ,वो हाँ बन जाती आखिर है 
पर तुम्हारी ना तो जिद है ,एक दम पत्थर की लकीर है 
देखो मैं स्पष्ट कह रही ,ज्यादा मुझको मत तरसाओ 
पूर्ण करो मेरी फरमाइश और गृहस्थी का सुख पाओ 
वरना आई त्रिया हठ पर तो ,एक तुम्हारी नहीं सुनूँगी 
तरस जाओगे ,अपने तन पर हाथ तुम्हे ना रखने दूँगी 
बातचीत सब बंद रिलेशनशिप पर फिर तलवार चलेगी 
जब तक माथा ना रगड़ोगे ,तब तक ये हड़ताल चलेगी 
ये मेरा अल्टीमेटम है ,अपनी करनी खुद भुगतोगे 
यदि जो मेरी नहीं सुनोगे 

ये न सोचना बहुत मिलेगी ,कोई घास नहीं डालेगी 
तुम में दमखम बचा कहाँ है ,बूढ़ा बैल कौन पालेगी 
वो तो मैं ही हूँ कैसे भी ,निभा रही हूँ साथ तुम्हारा 
मिले अगर मुझको भी मौका,ये गलती ना करू दोबारा 
तुम यदि मन में सोच रहे हो , बेटे बहू सहारा देंगे 
तुमसे वसीयत लिखवा लेंगे ,दूर किनारा वो कर लेंगे 
रिश्तेदार दूर भागेंगे ,ना पूछेंगे ,पोते ,नाती 
वृद्धावस्था में जीवन की ,केवल पत्नी साथ निभाती 
उसको भी नाराज़ किया तो ,समझो तुम पर क्या बीतेगी 
उसे सदा खुश रखो पटा कर ,बात मानलो,तभी निभेगी 
वरना एक दिन सन्यासी बन ,तुम अपना सर स्वयं धुनोगे 
यदि जो मेरी नहीं सुनोगे 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
जीवन को यूं ही चलने दो 

अपनी करनी करते जाओ ,लोग अगर जलते, जलने दो 
जीवन को यूं ही चलने दो
 
लोगों की तो आदत ही है ,बार बार तुमको टोकेंगे 
ध्यान  तुम्हारा  भटकायेंगे ,राह तुम्हारी  वो   रोकेंगे 
देख शान से चलता हाथी ,कुत्ते ,कुत्ते है  भौंकेगे 
तुम्हारा उत्कर्ष देख कर ,उनको खलता है ,खलने दो 
जीवन को यूं ही चलने दो 

जिनकी फितरत डाह,दाह है जलेभुने,मन में खीजेंगे 
तुम्हारी गलतियां पकड़ कर ,अपनी पर  आँखें  मीचेंगे 
 भीड़ केंकडों की है  ,कोई बढ़ा ,सभी टाँगे  खीचेंगे 
उनका हश्र बुरा ही होगा ,हाथ अगर मलते ,मलने दो 
जीवन को यूं ही चलने दो 

कई पेंतरे बदलेंगे वो ,साम  दंड  सब अपनाएंगे 
कभी तुम्हे डालेंगे दाना ,और सर पर भी बिठलायेंगे 
सिंद्दांतों पर अटल रहे तुम ,वो औंधे मुंह गिर जाएंगे 
कितनी भी कोशिश करें वो ,दाल नहीं उनकी गलने दो 
जीवन को यूं ही चलने दो 

आखिर जीत सत्य की होगी ,और  झूंठ घुटने टेकेगी 
उनका माल हजम कर जनता ,उन्हें अंगूठा दिखला देगी
अंत बुरे का बुरा सदा है , ये सारी  दुनिया  देखेगी 
लाओ सामने असली चेहरा ,पहन नकाब नहीं छलने दो 
जीवन को यूं ही चलने दो 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

शुक्रवार, 21 सितंबर 2018

कुछ लोग कबूतर होते है 


कुछ भूरे ,चितकबरे ,सफ़ेद 
आपस में रखते बहुत हेत 
कुछ दाना डालो,जुट जाते 
दाना चुग लेते ,उड़ जाते 
साथी मतलब भर होते है 
कुछ लोग कबूतर होते है 

कुछ इतने गंदे होते है 
मतलब में अंधे होते है 
खा बीट वहींपे किया करते 
अपनों को चीट किया करते 
और बैठे सर पर होते है 
कुछ लोग कबूतर होते है 

ये बोल गुटर गूं ,प्यार करे 
रहते चौकन्ने ,डरे डरे 
 संदेशे ,लाते ,ले जाते  
ये दूत शांति के कहलाते 
खूं गर्म के मगर होते है 
कुछ लोग कबूतर होते है 

होते आशिक़ तबियत वाले 
गरदन मटका ,डोरे डाले 
नित नयी कबूतरनी  लाते 
और इश्क़ खुले में फरमाते 
ये तबियत के तर होते है 
कुछ लोग कबूतर होते है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

हम आलोचक है 

चीर द्रोपदी के जैसी अपनी बकझक है 
हम आलोचक है ,सबके निंदक है
 
कोई कुछ ना करे कहे हम ,कुछ ना करता 
जो कोई कुछ करता, कहते क्यों है करता 
और कर रहा है वो जो कुछ ,सब है गंदा 
मीन मेख सबमें निकालना ,अपना धन्धा 
करने कुछ न किसी को देंगे ,हम जब तक है 
हम आलोचक है ,सबके निंदक है 

खुला रखे सर कोई ,कहते बाल गिरेंगे  
व्यंग कसेंगे ,यदि वह जो टोपी पहनेगे  
टोपी क्यों सफ़ेद पहनी ,क्यों लाल न पहनी 
बात हम कहें   ,वो सबको पड़ती है सहनी
हम सबको गाली दे सकते ,हमको हक़ है 
हम आलोचक है ,सबके निंदक है 

दुनिया में सब चोर ,शरीफ एक बस हम ही 
सब गंवार है ,समझदार सब हम से कम ही 
हम सक्षम है ,बाहुबली हम ,हम में है बल 
भार  देश का ,हम संभाल सकते है केवल 
हमे दिलादो कुर्सी ,हम सबसे लायक है 
हम आलोचक है ,सबके निंदक है 

घोटू  

बुधवार, 19 सितंबर 2018

चंद्रोदय से सूर्योदय तक 

चंद्रोदय से सूर्योदय तक ,ऐसी मस्ती छाई 
ना तुम सोयी ,ना मैं सोया ,यूं ही रात बिताई 

मिलन चाह ने ,जगमग जगमग करदी रात अँधेरी 
एक चाँद तो अम्बर में था ,एक बाहों में मेरी 
होंठ खिले थे फूल गुलाबी ,बदन महकता चंदन 
डोरे लाल लाल आँखों में ,बाहों में आलिंगन 
कोमल और कमनीय कसमसी ,कंचन जैसी काया 
तेरा' तू' और मेरा 'मैं 'था ,हम के बीच समाया 
आया  फिर तूफ़ान थम गया ,सुखद शांति थी छाई 
ना तुम सोयी ,ना मैं सोया ,यूं ही रात बिताई 
 
बिखर गयी बालों की सज्जा ,केश  हुये  आवारा 
फ़ैल गयी होठों की लाली ,पसरा  काजल सारा 
कुचली थी कलियाँ गजरे की ,अलसाया सा तन था 
थका थका सा ढला ढला सा ,मुरझाया आनन  था 
कुछ पल पहले ,गरज रहे थे ,गर्म जोश जो बादल 
सब सुखांत में शांत पड़े थे ,नयना जो थे चंचल 
तन का पौर पौर दुखता था ,कली कली कुम्हलाई 
ना तुम सोयी ,ना मैं सोया , यूं ही रात बिताई  

शुरू हुई फिर कितनी बातें ,कैसी कैसी ,कब की 
कुछ कल की बीती खुशियों की ,और कुछ कड़वे अब की 
बीच बीच में हाथ दबाना और सहलाना तन को 
कितना प्यारा सा लगता था ,राहत देता मन को 
रहे इस तरह हम तुम दोनों ,इक दूजे में उलझे 
बिखरे बालों को सुलझाते ,कितने मसले सुलझे 
जी करता था कभी न बीते ,ये लम्हे  सुखदाई 
ना तुम सोयी ,ना मैं सोया  ,यूं ही रात बिताई  

मदन मोहन बाहेती ;घोटू '
कल आया पर अकल न आयी 

बेटा जवान था 
पर बाप परेशान था 
वो बड़ा हो गया था 
अपने पैरों खड़ा हो गया था 
मगर उसका बचपना न गया 
आवारगी और छिछोरापना न गया 
तब ही किसी ने दी सलाह 
करवादो इसका विवाह 
जब सर पर पड़ेगी जिम्मेदारी 
गुम हो जायेगी हेकड़ी  सारी 
गृहस्थी का बोझ सर पर चढ़ जाएगा 
 वो नून और तैल के चक्कर पड़ जाएगा 
दिन भर काम करने को मजबूर हो जाएगा 
उसका छिछोरापन दूर हो जाएगा 
आज नहीं तो कल 
उसे आ जायेगी अकल 
बाप ने शादी करवा दी 
एक अच्छी बहू ला दी 
शुरू में लगा बेटा है सुधर गया 
पर अचानक उस पर नेतागिरी का भूत चढ़ गया 
बाप घबरा गया 
क्योंकि दूना होकर के था आगया 
वही छिछोरापन और बचकाना व्यवहार 
पर हालत और भी बिगड़ गयी थी अबकी बार 
क्योंकि अब वो गालियां भी बकने लगा था 
और  रहा नहीं किसी का सगा था 
उसका व्यवहार सबसे बदलने लगा 
वो अपनों को ही छलने लगा 
वो होने लगता बद से बदतर 
बाप ने पीट लिया अपना सर 
दुःख से उसकी आँखे डबडबाई 
बोला कल आगया पर बेटे को अकल न आयी 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

सोमवार, 17 सितंबर 2018

आओ ,यादें ओढ़े 

आयी शीत ऋतु  जीवन की ,यूं ना बदन सिकोड़े 
जीवन में ले  आये ऊष्मता ,आओ  यादें   ओढ़ें 
पहली पहली बारिश में फिर उछल कूद कर भीगे ,
बहती नाली में कागज की किश्ती, फिर से छोड़े 
यह जीवन का अंकगणित है लंगड़ी भिन्न सरीखा ,
अबतक जो भी घटा,भाग दे ,.कई गुना कर जोड़े  
जाने क्या क्या सपने देखे ,थे हमने  जीवन में ,
पूर्ण हुए कुछ ,किन्तु अधूरे है अब तक भी थोड़े
अपनी मन मरजी करते है ,नहीं हमारी सुनते ,
बड़े हो गए  बच्चे ,कैसे उनके कान मरोड़े 
जबसे पंख निकल आये है ,उड़ना सीख गए है ,
सबने अपने नीड़ बसाये ,तनहा हमको छोड़े 
नहीं किसी से ,कभी कोई भी रखें अपेक्षा मन में ,
हमें पता है पूर्ण न होगी ,क्यों अपना दिल तोड़े 
जीवन की आपाधापी में रहे हमेशा उलझे ,
बहुत अभी तक सबके खातिर ,इतने भागे दौड़े
भुगत गयी सब जिम्मेदारी ,अब ही समय मिला है,
आओ खुद के खातिर जी लें ,दिन जीवन के थोड़े 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

 

         मोदी जी के जन्मदिन पर 

आज विश्वकर्मा दिवस है,करें हम उनको नमन, 
      सृष्टिकर्ता ,देवता वह,सृजन का ,निर्माण का 
आज मोदी का जन्मदिन ,यह सुखद संयोग है,
      लिया है संकल्प जिसने ,देश नवनिर्माण का 
देश का 'प्रगति पुरुष'यह,बड़ी लम्बी सोच है ,
      हौसला मन में भरा है,साथ ले विज्ञान का 
 आओ हम तुम, सच्चे दिल से,करें प्रभु से प्रार्थना ,
    पूर्ण होवे स्वप्न उसका ,देश के  उत्थान का 

घोटू  

शनिवार, 8 सितंबर 2018

प्रातः भ्रमण

रोज रोज,हर प्रातः प्रातः 
पति पत्नी दोनों साथ साथ 
सेहत के लिए भ्रमण करते,
हँस करते सबसे मुलाकात

कुछ प्रौढ़ और कुछ थके हुए
कुछ वृद्ध और कुछ पके हुए 
कुछ जैसे तैसे बिता रहे ,
अपने जीवन का उत्तरार्ध 
रोज रोज हर प्रातः प्रातः

कुछ रहते निज बच्चों के संग 
कुछ कभी सुखी ,कुछ कभी तंग 
एकांत समय में बतलाते ,
अपने सुख दुःख की सभी बात 
रोज रोज हर प्रातः प्रातः

कह बीते कल के हालचाल 
देते निकाल ,मन का गुबार 
हलके मन प्यार भरी बातें ,
करते हाथों में दिए हाथ 
रोज रोज हर प्रातः प्रातः

कोई प्रसन्न है कोई खिन्न 
सबकी मन स्तिथि भिन्न भिन्न 
सब भुला ,पुनः चालू करते ,
एक अच्छे दिन की शुरुवात 
रोज रोज हर प्रातः प्रातः

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '


प्रातः भ्रमण 

रोज रोज,हर प्रातः प्रातः 
पति पत्नी दोनों साथ साथ 
सेहत के लिए भ्रमण करते,
हँस करते सबसे मुलाकात

कुछ प्रौढ़ और कुछ थके हुए
कुछ वृद्ध और कुछ थके हुए 
कुछ जैसे तैसे बिता रहे ,
अपने जीवन का   उत्तरार्ध 
रोज रोज हर प्रातः प्रातः 

कुछ रहते निज बच्चों के संग 
कुछ कभी सुखी ,कुछ कभी तंग 
एकांत समय में बतलाते ,
अपने सुख दुःख की सभी बात 
रोज रोज हर प्रातः प्रातः 

कह बीते कल के हालचाल 
देते निकाल ,मन का गुबार 
हलके मन प्यार भरी बातें ,
करते हाथों में दिए हाथ 
रोज रोज हर प्रातः प्रातः 

कोई प्रसन्न है कोई खिन्न 
सबकी मन स्तिथि भिन्न भिन्न 
सब भुला ,पुनः चालू करते ,
एक अच्छे दिन की शुरुवात 
रोज रोज हर प्रातः प्रातः 


मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
 

गुरुवार, 6 सितंबर 2018


              अलग अलग मापदंड 

सत्तासीनों का दम्भ ,रौब ,स्वाभिमान हमारा,  है  घमंड 
अलग अलग लोगों खातिर ,क्यों अलग अलग है मापदंड 

कान्हा माखनचोरी करते ,वो बचपन क्रीड़ा  कहलाती 
हम करें जरा सी भी चोरी ,तो जेल हमे है  हो जाती 
वो गोपी छेड़े ,चीर हरे ,तो वह होती उसकी लीला 
हम वैसा करें मार डंडे ,पोलिस  कर देती है ढीला 
उनके तो है सौ खून माफ़ ,हम गाली भी दें ,मिले दंड 
अलग अलग लोगो खातिर क्यों अलग अलग है मापदंड

है मुर्ख ,भोगती पर सत्ता ,सत्तरूढ़ों की संताने 
हो रहे उपेक्षित बुद्धिमान ,कितने ही जाने पहचाने 
कितने लड्डू प्रसाद चढ़ते ,मंदिर में पत्थर मूरत पर 
और हाथ पसारे कुछ  भूखे ,भिक्षा मांगे मंदिर पथ पर 
कोई को मट्ठा  भी न मिले ,कोई खाता है श्रीखंड 
अलग अलग लोगो खातिर क्यों अलग अलग है मापदंड 

कोई प्रतियोगी अधिक अंक ,पाकर भी जॉब नहीं पाते 
कुछ वर्गों को आरक्षण है ,कुर्सी पर काबिज़ हो जाते 
लायक होने की कद्र नहीं ,जाती विशेष आवश्यक है 
कितने ही प्रतिभावानों का ,मारा जाता यूं ही हक़  है 
कोई उड़ता है बिना पंख ,कोई के सपने खंड खंड 
अलग अलग लोगों खातिर ,क्यों अलग अलग है मापदंड 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
डंडे का डर 

पहले राजे महाराजे फिर मुगल सल्तनत 
और कई वर्षों तक फिर अंग्रेजी हुकूमत 
हुए  गुलाम  बने  रहने  के इतने  आदी 
हमें कठिन हो रहा पचाना अब आजादी
इसीलिये हम आपस में ही झगड़ रहें है 
एक दूजे की टांग खींच कर पकड़ रहे है 
बात बात पर चिल्लाते है,लगते  लड़ने 
एक केंकड़ा  दूजे का  ना देता  बढ़ने 
मुश्किल से जिस आजादी का स्वाद चखा है 
हमने उसको एक मखौल बना रख्खा  है  
आसपास दुश्मन है ,विपदा कई खड़ी है 
लेकिन हमको सबको अपनी सिर्फ पड़ी है 
अपनी ढपली अपना राग पीटते हरदम 
मिल कर कभी न कोरस में कुछ गा पाते हम  
भले देश में  इतने ज्यादा  संसाधन है 
उन्हें लूट बस अपना पेट भर रहे हम है 
बात बात ,बेबात ,करें आपस में दंगे 
इस हमाम में तो हम सब के सब है नंगे 
रहा यही जो हाल अगर तो मुश्किल होगी 
कैसे हमको प्राप्त हमारी मंजिल होगी 
इतनी अधिक गुलामी खूं में बैठ गयी जम 
बिन डंडे के डर से काम न कर पाते हम 
हो डंडे का जोर तभी आता अनुशासन 
वरना इधर उधर बिखरे रहते है कण कण 
फहराता है सदा किसी का तब ही झंडा 
नीचे लगा हुआ  होता जब उसमे डंडा 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '   

सोमवार, 3 सितंबर 2018

कबड्डी का खेल-हमारा मेल 

तुमने खूब कब्बडी खेली ,
हूँ तू तू कहते तुम मेरे पाले में आये 
इसको छुवा,उसको छुवा ,
लेकिन मुझको हाथ लगा भी तुम ना पाए 
वो मैं ही थी कि जिसने आगे बढ़ कर 
रोक लिया था तुम्हे तुम्हारा हाथ पकड़ कर 
और मेरे जिन हाथों को तुम कहते कोमल 
उन हाथों ने रखा देर तक तुम्हे जकड़ कर 
हुआ तुम्हारा हू तू कहना बंद,
 और तुम आउट होकर  हार गए  थे 
लेकिन तुमने जीत लिया था मेरे दिल को ,
और तुम बाजी मार गए थे 
पर मैं जीती और तुम हारे 
स्वर्ण पदक सी वरमाला बन ,
लटक गयी मैं गले तुम्हारे 
तब से अब तक ,मेरे डीयर 
घर से दफ्तर ,दफ्तर से घर 
रोज कबड्डी करते हो तुम 
और मैं घर में बैठी गुमसुम 
रहती हूँ इस इन्तजार में 
वही पुराना जोश लिए तुम डूब प्यार में 
हूँ तू करते कब आओगे ,
और मैं कब पकड़ूँगी तुमको 
अपने बाहुपाश में कब जकड़ूँगी तुमको 
पर तुम इतने पस्त थके से अब आते हो 
खाना खाते  ,सो जाते हो 
वह चंचल और चुस्त खिलाडी फुर्तीला सा 
कहाँ  खो गया ,रोज पड़ा रहता ढीला सा 
जी करता बाहों में लेलो 
फिर से कभी कबड्डी खेलो 

घोटू 

मौसमी मिठाइयां 

बारह महीने रसगुल्लों के ,हर दिन काजू की कतली का 
आनंद कलाकंद का हरदम ,हर मौसम होता रबड़ी का 
लगते गुलाब जामुन प्यारे ,हो सर्दी गर्मी ,कुछ मौसम 
और गरम जलेबी का जलवा , मुख में रस भरता है हरदम 
मौसम कुछ ख़ास मिठाई का ,होता कुछ ख़ास महीनो में
ज्यों घेवर ,तेवर दिखलाता ,सावन भादौ के महीनो  में  
सर्दी में 'पिन्नी ' मतवाली ,गाजर का गरम गरम हलवा 
और तिल की गजक रेवड़ी भी ,सर्दी में दिखलाती जलवा 
हो गरम दूध ,उसमे फेनी ,सर्दी का ब्रेकफास्ट सुंदर 
ठंडी कुल्फी ,आइसक्रीम ,कम करती गर्मी के तेवर 
है सदाबहार समोसे जी ,इनका ना घटता आकर्षण 
और चाय और पकोड़ों का ,तो हरदम ही रहता मौसम 

मदन मोहन बाहेती;घोटू '
       हम भी कैसे है?

प्रार्थना करते ईश्वर से ,घिरे बादल ,गिरे पानी,
          मगर बरसात  होती है तो छतरी तान लेते है 
बहुत हम चाहते  है कि चले झोंके हवाओं के ,
           हवा पर चलती जब ठंडी ,बंद कर द्वार लेते है 
हमारी होती है इच्छा ,सुहानी धूप खिल जाये ,
            मगर जब धूप खिलती है,छाँव में  भाग जाते है
 देख कर के हसीना को,आरजू करते पाने की,
           जो मिल जाती वो बीबी बन,गृहस्थी में जुटाते है 
हमेशा हमने देखा है,अजब फितरत है इन्सां की  ,
           न होता पास जो उसके  ,उसी की चाह करता  है 
मगर किस्मत से वो सब कुछ ,उसे हासिल जो हो जाता ,
          नहीं उसकी जरा भी  फिर,कभी परवाह करता है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'  
  कान्हा -बुढ़ापे में 

कान्हा बूढ़े,राधा बूढी ,कैसी गुजर रही है उन पर
बीते बचपन के गोकुल में,दिन याद आते है रहरह कर  
माखनचोर,आजकल बिलकुल ,नहीं चुरा,खा पाते मख्खन 
क्लोस्ट्राल बढ़ा,चिकनाई पर है लगा हुआ प्रतिबंधन 
धर ,सर मटकी,नहीं गोपियाँ,दूध बेचने जाती है अब 
कैसे मटकी फोड़ें,ग्वाले,बेचे दूध,टिनों में भर  सब  
उनकी सांस फूल जाती है ,नहीं बांसुरी बजती ढंग से 
सर्दी कहीं नहीं लग जाए ,नहीं भीगते ,होली  रंग से 
यूं ही दब कर ,रह जाते है,सारे अरमां ,उनके मन के 
चीर हरण क्या करें,गोपियां ,नहा रही 'टू पीस 'पहन के 
करना रास ,रास ना आता ,अब वो जल्दी थक जाते है 
'अंकल'जब कहती है गोपी,तो वे बहुत भड़क जाते है 
फिर भी बूढ़े ,प्रेमीद्वय को,काटे कभी प्रेम का कीड़ा 
यमुना मैली, स्विंमिंगपूल में ,करने जाते है जलक्रीड़ा 

मदनमोहन बाहेती'घोटू'  
           कृष्णलीला 

कन्हैया छोटे थे एक दिन,उन्होंने खाई  थी माटी 
बड़ी नाराज होकर के ,  यशोदा मैया थी   डाटी 
'दिखा मुंह अपना',कान्हा ने ,खोल मुंह जब दिखाया था 
तो उस मुंह में यशोदा को ,नज़र ब्रह्माण्ड   आया था 
मेरी बीबी को भी शक था ,   मिट्टी बेटे ने है खाई 
खुला के मुंह जो देखा तो,उसे   दुनिया  नज़र आयी 
कहीं 'चाइनीज ' नूडल थी,कहीं 'पॉपकॉर्न 'अमरीकी'
कहीं थे 'मेक्सिकन' माचो,कहीं चॉकलेट थी 'स्विस 'की 
कहीं 'इटली'का पीज़ा था,कहीं पर चीज 'डेनिश'  थी 
कहीं पर 'फ्रेंच फ्राइज 'थे,कहीं कुकीज़ 'इंग्लिश 'थी 
गर्ज ये कि  मेरे बेटे के ,मुंह  में दुनिया   थी  सारी
यशोदा सी मेरी बीबी , बड़ी अचरज की थी मारी 
वो बोली लाडला अपना ,बहुत  ही गुल खिलायेगा
बड़ा हो ,गोपियों के संग ,रास निश्चित ,रचायेगा 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

शनिवार, 1 सितंबर 2018

क्यों इतना कठिन बुढ़ापा है 

उगता सूरज सुन्दर होता ,बचपन भी होता है सुन्दर 
है दोपहरी में सूर्य प्रखर ,यौवन भी होता है मनहर 
होती मनमोहक स्वर्णकिरण ,जब सूरज ढलने को आता 
तो फिर क्यों ढलती हुई उमर ,होती  दुखकर इतनी ज्यादा 
सूरज ढलता ,आती रजनी ,छा जाता नभ में अँधकार 
वृद्धावस्था के बाद मृत्यु ,यह क्रम चलता है बार बार 
सूरज चलता ,बादल ढकते  ,व्यवधान हमेशा आता है 
लेकिन मानव के जीवन में ,क्यों इतना कठिन बुढ़ापा है 

घोटू 
देखो मुझको डाटा न करो 

देखो मुझको डाटा न करो ,चिल्ला इस तरह उच्च स्वर में 
वरना हम तुम की नोकझोंक ,के किस्से होंगे घर घर में 

ऑफिस में  करते कद्र सभी ,
            तुम मुझे समझती हो बेढब 
पर बात और बिन बात मुझे ,
           तुम डाटा करती हो जब तब 
होंगे डिस्टर्ब पडोसी सब , 
                गाली दे देकर  कोसेंगें 
क्या असर पड़ेगा बच्चों पर ,
                 मम्मी पापा क्या सोचेंगे 
पर तुम्हे कोई परवाह नहीं ,
                 थोड़ा धीरज ना धर पाती 
मन माफिक जो कुछ नहीं हुआ ,
                 बस डंडा लेकर चढ़ जाती 
तुम सीखो धीरज धरना भी 
ऊपरवाले से डरना भी 
इस रोज रोज के झगड़े से ,हो गया तंग हूँ डियर  मैं 
देखो मुझको डाटा न करो ,चिल्ला इस तरह उच्च स्वर में 

है ये भी बात नहीं कि है
                  बोली में तुम्हारे तीखापन 
है बहुत मधुर स्वर तुम्हारा ,
                  पढ़ती जब गीता ,रामायण 
वह मधुर तुम्हारी बोली थी ,
                   जिसने मोहा था मेरा मन 
अब भी बच्चों और महरी से 
                तुम मीठी बात करो हरदम 
फुसफुसा बात करती मुझसे ,
               तुम हंसकर ,बहुत मधुर स्वर में 
जब मूड प्यार का होता है ,
                 हम तुम होते है बिस्तर में 
वो मीठे स्वर मुंह पर लाओ 
इस तरह डाट मत चिल्लाओ 
पुचकार कहो,सब काम करू,बन कर तुम्हारा नौकर मैं 
देखो मुझको डाटा न करो , चिल्ला इस तरह उच्च स्वर में 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
 
हस्बेण्डों का क्या होगा ?


जो अगर बीबियां चली जाय स्ट्राइक पर ,
             तो क्या होगा इन बेचारे  हस्बेंडों का  
जो बात बात में उन पर हुकुम चलाते है ,
           क्या होगा उन आलस डूबे मुस्टंडों का
 
ना सुबह मिलेगी चाय,नाश्ता गरम नहीं ,
         ना चड्डी ना बनियान ,तौलिया ना सूखा 
ना कपड़े प्रेस किये ऑफिस को जाने को ,
       ना टिफिन मिलेगा पैक ,पड़े रहना भूखा 
 ना तो मुस्कराती 'बाय बाय' ऑफिस जाते ,
      ना कोई वेलकम मिले तुम्हे जब घर आओ 
मुंह फुला तुम्हारी प्रिया तुम्हे देखे भी ना ,
         तो फिर तुम पर कैसी गुजरेगी ,बतलाओ 
सॉरी सॉरी कह कर उनसे मांगो माफ़ी 
                होता आया है बेड़ा गर्क घमंडों का 
जो अगर बीबियां चली जाय स्ट्राइक पर ,
              तो क्या होगा इन बेचारे हस्बेंडों का 

दिन किसी तरह भी जैसे तैसे गुजरेगा ,
           पर मुश्किल होगी बहुत ,रात जब आएगी 
बीबी पलंग पर खर्राटे भर सोयेगी,
            और तकिया दे, सोफे पर तुम्हे सुलायेगी 
ना बात सुनेगी ,ना तुमसे कुछ बोलेगी 
               उसकी यह चुप्पी दिल तुम्हारा तोड़ेगी 
ना आने देगी पास न छूने ही देगी ,
               तुमसे वह घुटने झुकवा कर ही छोड़ेगी 
उसकी हर बात ख़ुशी से मानोगे हरदम ,
                 ना कोई तोड़ है बीबी के हथकंडों  का 
जो अगर बीबियां चली जाय स्ट्राइक पर ,
                    तो क्या होगा इन बेचारे हस्बेंडों का 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '             

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-