एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

शनिवार, 28 अक्तूबर 2017

वो ऊपर वाला 

आप हम करते अच्छे बुरे जो करम 
कोई ना देखता,मन में रहता भरम 
है मगर देखता ,ऊपरवाला  सभी,
उसकी नजरें सदा ,है सभी पर रही 
उसको बोलो खुदा,गॉड या ईश्वर ,
सबका मालिक है वो,हाँ वही बस वही 
तुमने किसी को सताया,हुई एंट्री 
खाना भूखे को खिलाया,हुई एंट्री 
सब तुम्हारे भले और बुरे कर्म का ,
है रखती हिसाब उसकी खाता बही 
उसको बोलो खुदा,गॉड या ईश्वर ,
सबका मालिक है वो,हाँ वही बस वही 
जर्रे जर्रे में उसकी हुकूमत कायम 
 जैसे नचवाता वो,नाचा करते है हम 
कोने कोने में दुनिया के मौजूद है ,
वो यहाँ है वहां है ,कहाँ वो नहीं 
उसको बोलो खुदा ,गॉड या ईश्वर,
सबका मालिक है वो ,हाँ वही बस वही 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
लड़कियां 

लड़कियां,लड़कियां,लड़कियां लड़कियां 
ऐसा लगता है फैशन की हो पुतलियां 
रूप है मदभरा ,सबमे जादू भरा 
स्वर्ग की ये तो लगती कोई अप्सरा 
और दिखाने को अपने बदन की झलक ,
अपने वस्त्रों  में रखती ,खुली खिड़कियां 
लड़कियां लड़कियां लड़कियां लड़कियां 
नाज़ नखरे दिखा कर लुभाती हमें 
अपने जलवे दिखाकर ,रिझाती हमें 
आगे पीछे अगर इनके हम डोलते ,
प्यार मांगे,तो देती ,हमें  झिड़कियां 
लड़कियां लड़कियां लड़कियां लड़कियां 
सज संवर रूप अपना सुहाना बना 
ये नचाती है हमको ,दीवाना बना 
हम जरा छेड़ भी दें तो चप्पल पड़े,
माफ़ होती है इनकी सभी गलतियां 
लड़कियां लड़कियां लड़कियां लड़कियां 

घोटू 
दो सवैये 
१ 
लुगाई 

बेटी पराई ,मुस्काई ,मनभायी ऐसी 
नैनों के द्वारे आई ,दिल में समाई है 
रूप छलकाई ,शरमाई ,मन लुभाई अरु,
नखरे दिखाई आग तन में लगाईं है 
प्यार दरशाई ले कमाई की पाई पाई ,
पति को पटाई ऐसो जादू सीख आई है 
नज़रें झुकाई ,करे नाहीं जामे छुपी हाँइ ,
सबसे सवाई होत , घर में लुगाई है 
२ 
बेचारा आदमी 

एक बिचारो प्यारो,मुश्किल को मारो ,हारो,
हार वरमाला को ,गले जबसे  डारो है 
बाहर जो शेर ,हुयो ढेर ,फेर बीबी के ,
पालतू बंदरिया सो ,नाचे पा इशारो है 
लॉलीपॉप लालच को मारो वो बिचारो ऐसो ,
दौड़ दौड़ काम करे ,घरभर को सारो है 
मूछन को ताव गयो ,मारयो बेभाव गयो ,
ऐसो सात फेरन ने ,फेरा में डारो  है  

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 24 अक्तूबर 2017

नारी ,तुझमे ऐसा क्या है 

नारी तुझमे ऐसा क्या है 
जिसकी दीवानी दुनिया है 

क्या वह तेरी कोमलता है ,
या फिर तेरा कमनीय बदन 
या फिर तेरी सुंदरता है ,
या मांसल और गदराया तन 
या फिर ये नयन कटीले  है,
या चाल हिरणियों  वाली है 
रेखाएं वक्र,बदन की है ,
या फिर होठों को लाली है 
या अमृत कलश सजे तन पर ,
या मीठी बोली कोयल सी 
या लहराते कुन्तल तेरे ,
मन में करते कुछ हलचल सी 
पर शायद ये सब नहीं सिरफ ,
ये तो बस एक दिखावा है 
तेरी माँ बनने की क्षमता 
ने  देवी तुझे बनाया है 
ईश्वर ने कोख तुझे दी है ,
तुझमे प्रजनन की शक्ति है 
नवजीवन का इस दुनिया में ,
संचार तू ही कर सकती है 
तू माँ है,तुझमे ममता है ,
लालन ,पालन और पोषण है 
कोमल तन से ज्यादा कोमल ,
होता हर नारी का मन है 
तू अन्नपूर्णा है देवी ,
गृहणी,घर की संचालक है 
तू लक्ष्मी तू ही सरस्वती ,
तू दुर्गा ,शक्तिदायक है 
संगम है रूप गुणों का तू,
तू गंगा है तू यमुना है 
तू जीवनदात्री  देवी है ,
जिससे चलती ये दुनिया है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 
परेशानियां -पति पत्नी की 

हर पत्नी से पति परेशान 
हर पति से पत्नी परेशान 
फिर भी एकदूजे पर आश्रित ,
एक दूजे बिन ना चले काम 
पत्नी कहती ये ऐसे है 
मत पूछो ये कि कैसे है 
घर में ही सदा घुसे रहते,
कुवे के मेंढ़क जैसे  है 
रत्ती भर काम नहीं करते ,
बस ऑर्डर देते रहते है 
मैं एक जान,सौ करू काम,
ये मुझे छेड़ते रहते है 
मैं इनसे कहूँ चलो पिक्चर ,
ये सो जाते है खूँटी तान 
हर पति से पत्नी परेशान 
हर पत्नी से पति परेशान 
पति कहता है पत्नी ऐसी 
कर दी मेरी ऐसी तैसी 
खुद को ऐश्वर्या समझे है 
और फूल रही टुनटुन जैसी 
है खीर बहुत ये टेढ़ी सी,
दिखने में सीधी  दिखती है 
तितली जैसी उड़ती फिरती ,
घर पर मुश्किल से टिकती है 
है चीज बहुत ये बातूनी,
कैंची जैसी चलती जुबान 
हर पत्नी से पति परेशान 
हर पति से पत्नी परेशान 
पति होते लापरवाह बड़े ,
अपना कुछ ख्याल नहीं रखते 
पैसे  कपड़े, खाने पीने की 
साजसँभाल नहीं रखते 
अपनी हर गलती का जिम्मा ,
सौंपा करते है पत्नी पर 
पति कुछ बोले एक कान सुने ,
और दूजे से कर दे बाहर 
चीजे रख जाते भूल स्वयं,
घरभर को करते परेशान 
हर पति से पत्नी परेशान 
हर पत्नी से पति परेशान 
पत्नी खुद पर खर्चा करती ,
 बाकी सब पर कंजूसी है 
शक्की मिजाज इतनी होती ,
पति पर करती जासूसी है 
पति सेवक सास ससुर का है,
करता जो पत्नी की मरजी 
पत्नी को अपने सास ससुर ,
से हरदम रहती एलर्जी 
पत्नी को देवर ,ननद चुभे,
पति सालीजी पर मेहरबान 
हर पति से पत्नी परेशान 
हर पत्नी से पति परेशान 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
कमियां 

शादी के बाद 
बेटी और दामाद 
पहुंचे पहली बार ,ससुराल 
बाप ने पूछा बेटी खुश है ना,
कैसा है तेरा हाल 
बेटी ने शरमा कर कहा ,
पापा,मैं बहुत खुश हूँ '
आपके दामाद ,
मेरा बड़ा ख्याल रखते है 
बड़े 'रिस्पॉन्सीबल 'है 
मेरी पूरी साज संभाल रखते है 
बस एक ही शिकायत है ,
ये मुझे छेड़ते रहते है 
और हमेशा मुझमे कमियां ढूंढते रहते है 
पिताजी बोले बेटा ,
ये तो बड़ी प्रसन्नता की बात है 
अपने दिए हुए संस्कारों पर हमें नाज़ है 
वरना मोबाईल में डूबी हुई ,
आज की जनरेशन 
बस इनसे करवा लो फैशन 
पर गृहस्थी चलाने में होती है अनाड़ी 
इतनी कमिया होती है कि ,
मुश्किल से खिसकती है गृहस्थी की गाडी 
शादी के बाद हर पति,
 अपनी पत्नी में ,अपनी माँ की तरह,
 कुशल गृहणी देखना चाहता है 
और जब उसकी उम्मीद के विपरीत ,
निकलती उसकी ब्याहता है 
उसमे इतनी कमियां होती है अक्सर 
जो स्पष्ट आती है नज़र 
तो बात बात में टोका टाकी से ,
उनका अहम टकराने लगता है 
चार दिनों की चांदनी के बाद,
अँधियारा छाने लगता है 
मुझे ख़ुशी है कि तेरी माँ ने ,
तुझे ट्रेंड कर दिया है इतना 
कि तुझमे इतनी कम कमियां है कि ,
दामादजी को पड़ती है ढूंढना 
पत्नी अगर कुशल गृहणी हो तो,
 तो बड़े मजे की गुजरती है  
 और जिंदगी की गाडी ,
बड़े आनंद से आगे बढ़ती है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
घर का खाना 

चाट से अच्छी तो बीबी की डाट है ,
और मीठी ,मिठाई से ,तक़रार है 
पेट इनसे हमारा बिगड़ता नहीं ,
बाद में मिलता जी भर हमें प्यार है 
ना शुगर और न बढ़ना क्लोस्ट्रोल का 
है असर ऐसा बीबी के कंट्रोल का 
जेब भी अपनी ढीली है होती नहीं,
खर्च होता नहीं कोई बेकार है 
जिद नहीं करती बीबी कि होटल चलें 
क्योंकि वेज़ नॉनवेज संग जाते तले 
सब्जी दो सौ की ,रोटी मिले तीस की ,
यूं न पैसे लुटाते समझदार है 
चाट ठेले पर खाने का मन ना करे 
धुल मिटटी से सब है सने से पड़े 
गोलगप्पे का पानी ,भरोसा नहीं ,
कितना 'इंफेक्शियस 'और बेकार है 
इसलिए छोड़ होटल के सब चोंचले 
घर में बीबी के हाथों के फुलके भले 
मिलती तृप्ति है सच्ची इसी खाने से,
क्योंकि खाने में घर के बसा प्यार है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

शुक्रवार, 20 अक्तूबर 2017

क्या बात है उस घरवाली की 

रंगीन दशहरे मेले सी ,
       जो चमक दमक दीवाली की 
जो रौनक है त्योंहारों की, 
       क्या बात है उस घरवाली की 
नवरात्री के गरबे जैसी ,
       ज्योतिर्मय दीपक जो घर का 
जिसमे फूलों की खुशबू है,
          जिसमे गहनों की सुंदरता 
जो रंगोली सी सजीधजी ,
          मीठी ,मिठाई से ज्यादा है 
जो फूलझड़ी ,रंग बरसाती,
          जो लगती कभी पटाखा है 
जो चकरी सी खाती चक्कर,
         आतिशबाजी ,खुशिहाली की 
जो रौनक है त्योंहारों की ,
          क्या बात है उस घरवाली की 
जो करवाचौथ वरत करती ,
          भूखी प्यासी रहकर ,दिनभर 
जो मांगे पति की दीर्घ उमर ,
             और उसे मानती परमेश्वर 
जो शरदपूर्णिमा का चंदा ,
            माथे बिंदिया सी सजी हुई 
सिन्दूरी मांग भरी घर की ,
             हाथों की मेंहदी ,रची हुई 
है  अन्नकूट सी मिलीजुली,
         वह  खनक चूड़ियों वाली की 
जो रौनक है त्योंहारों की,
          क्या बात है उस घरवाली की 
वह जो गुलाल है होली की,
            उड़ता गुबार जो रंग का है 
जीवनभर जो रखता मस्त हमें,
             उसमे वो नशा भंग का है 
मावे की प्यार भरी गुझिया ,
           वह दहीबड़े सी स्वाद  भरी 
रस डूबी गरम जलेबी सी ,
            रसगुल्ले सी ,आल्हाद भरी 
मुंह लगी फिलम के गीतों सी,
             और ताली है कव्वाली की 
जो रौनक है त्योंहारों की,
          क्या बात है उस घरवाली की 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
मैं गधे का गधा ही रहा 

मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
         गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी 
मै तो दीपक सा बस टिमटिमाता रहा ,
        तुम शीतल,चटक चांदनी बन गयी 
मैं तो कड़वा,हठीला रहा नीम ही,
     जिसकी पत्ती ,निबोली में कड़वास है 
पेड़ चन्दन का तुम बन गयी हो प्रिये ,
  जिसके कण कण में खुशबू है उच्छवास है 
मैं तो पायल सा खाता रहा ठोकरें ,
    तुम कमर से लिपट ,करघनी बन गयी 
मैं गधा था ,गधे का गधा ही रहा ,
       गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी 
मैं था तन्हा कुआँ,आयी पनिहारिने ,
     गगरियाअपनीअपनी सब भरती गयी 
तुम नदी की तरह यूं ठुमक कर चली,
        पाट  चौड़ा हुआ ,तुम संवरती गयी
मैं तो कांव कांव, कौवे सा करता रहा ,
            तुमने मोती चुगे ,हंसिनी हो गयी 
मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
        गाय थी तुम प्रिये, शेरनी बन गयी 
मैं तो रोता रहा,बोझा ढोता रहा ,
         बाल सर के उड़े, मैंने उफ़ ना करी 
तुम उड़ाती रही,सारी 'इनकम' मेरी,
        और उड़ती रही,सज संवर,बन परी   
मैं फटे बांस सा ,बेसुरा ही रहा,
          बांसुरी तुम मधुर रागिनी बन गयी
मैं गधा था ,गधे का गधा ही रहा,
          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी  
ऐसा टॉफी का लालच मुझे दे दिया ,
        चाह में जिसकी ,मैं हो गया बावला 
तुम इशारों पर अपने नचाती रही,
    आज तक भी थमा ना है वो सिलसिला 
मैं तो भेली का गुड़ था,रहा चिपचिपा,
         रसभरी तुम ,मधुर चाशनी हो गयी 
मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी हो गयी 
         
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
             पटाखा तुम भी-पटाखा हम भी 

छोड़ती खुशियों का फव्वारा तुम अनारों सा,,
              हंसती तो फूलझड़ी जैसे फूल ज्यों झरते 
हमने बीबी से कहा लगती तुम पटाखा हो ,
             सामने आती हमारे ,जो सज संवर कर के 
हमने तारीफ़ की,वो फट पडी पटाखे सी,
            लगी कहने  पटाखा मैं  नहीं ,तुम हो डीयर 
मेरे हलके से इशारे पे सारे रात और दिन,
           काटते रहते हो,चकरी  की तरह,तुम चक्कर  
भरे बारूद से रहते हो ,झट से फट पड़ते,
           ज़रा सी छूती  मेरे प्यार की जो चिनगारी 
लगा के आग,हमें छोड़, दूर भाग गयी,
            हुई  हालत हमारी ,वो ही  पटाखे वाली 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

शनिवार, 14 अक्तूबर 2017

दिवाली मन गयी 
१ 
कल गया घूमने को मैं तो बाज़ार था 
कोना कोना वहां लगता गुलजार था 
हर तरफ रौशनी ,जगमगाहट दिखी 
नाज़नीनों के मुख,मुस्कराहट दिखी 
चूड़ियां ,रंगबिरंगी ,खनकती  दिखी 
कोई बरफी ,जलेबी,इमरती   दिखी 
फूलझड़ियां दिखी और पटाखे दिखे 
सब ही त्योंहार ,खुशियां,मनाते दिखे 
खुशबुओं के महकते नज़ारे  दिखे 
आँखों आँखों में होते इशारे   दिखे 
कोई हमको मिली,और बात बन गयी 
यार,अपनी तो जैसे दिवाली मन गयी 
२ 
कल गया पार्क में यार मैं घूमने 
देख करके नज़ारा, लगा झूमने 
जर्रा जर्रा महक से सरोबार था 
यूं लगा ,खुशबूओं का वो बाज़ार था
 थे खिले फूल और कलियाँ भी कई
रंगबिरंगी दिखी ,तितलियाँ भी कई 
कहीं चम्पा ,कहीं पर चमेली दिखी 
बेल जूही की ,झाड़ी पर फैली दिखी 
थे कहीं पर गुलाबों के गुच्छे खिले 
और भ्रमर उनका रसपान करते मिले 
एक गुलाबी कली ,बस मेरे मन गयी 
यार अपनी तो जैसे दिवाली मन गयी 
३ 
 मूड छुट्टी का था,बैठ आराम से 
देखता था मैं टी वी ,बड़े ध्यान से 
आयी आवाज बीबी की,'सुनिए जरा 
कुछ भी लाये ना,सूना रहा दशहरा 
व्रत रखा चौथ का,दिन भर भूखी रही 
तुम जियो सौ बरस,कामना थी यही 
और बदले में तुमने मुझे क्या दिया 
घर की करने सफाई में उलझा दिया 
आज तेरस है धन की ,मुहूरत भी है 
सेट के सोने की,मुझको जरुरत भी है 
अब न छोडूंगी ,जिद पे थी वो ठन गयी 
यार अपनी तो ऐसे दिवाली मन गयी 

घोटू  



मेहमान 

उमर के एक अंतराल के बाद 
 एक कोख के जाये ,
और पले बढे जो एक साथ,
उन भाई बहनो के रिश्ते भी ,
इस तरह बदल जाते है 
कि जब वो कभी ,
 एक दूसरे के घर जाते है ,
तो मेहमान कहलाते है 
जिंदगी में  परिभाषाएं ,
इस तरह बदलती है 
अपनी ही जायी बेटी भी ,
शादी के बाद ,
हमे मेहमान लगती है 

घोटू 
बंटवारा 

जब हम छोटे होते है 
और घर में कोई चीज लाई जाती है 
तो सभी भाई बहनो में ,
बराबर बाँट कर खाई जाती है 
कोई झटपट का लेता है 
कोई बाद मे,सबको टुंगा टुंगा,
खाकर के  मजे लेता है 
बस इस तरह ,हँसते खेलते ,
जब हम बड़े होते है 
तब फिर होना शुरू झगड़े होते है  
एक दूसरे के छोटे हुए,
उतरे कपडे पहनने वाले ,अक्सर 
उतर आते है इतने निम्न स्तर पर 
कि समान 'डी एन ए 'के होते हुए भी ,
अपने अपने स्वार्थ में सिमट जाते है 
और बचपन में लाइ हुई चीजों की तरह ,
आपस में बंट जाते है 

घोटू 
रिश्ते 

जीवन के आरम्भ में ,
किसी के बेटे होते है आप 
और बढ़ते समय के साथ,
बन जाते है किसी के पति ,
और फिर किसी के बाप 
उमर जब बढ़ती है और ज्यादा 
तो आप बन जाते है ,
किसीके ससुर और किसी के दादा 
और इस तरह,
तरह तरह के रिश्ते निभाते हुए,
आप इतने थक जाते है 
कि तस्वीर बन कर ,
दीवार पर लटक कर ,
अपना अंतिम रिश्ता निभाते है 
 
 घोटू                             

गुरुवार, 12 अक्तूबर 2017

मैं गधे का गधा ही रहा 

मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
         गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी 
मै तो दीपक सा बस टिमटिमाता रहा ,
        तुम शीतल,चटक चांदनी बन गयी 
मैं तो कड़वा,हठीला रहा नीम ही,
     जिसकी पत्ती ,निबोली में कड़वास है 
पेड़ चन्दन का तुम बन गयी हो प्रिये ,
  जिसके कण कण में खुशबू है उच्छवास है 
मैं तो पायल सा खाता रहा ठोकरें ,
    तुम कमर से लिपट ,करघनी बन गयी 
मैं गधा था ,गधे का गधा ही रहा ,
       गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी 
मैं था तन्हा कुआँ,आयी पनिहारिने ,
     गगरियाअपनीअपनी सब भरती गयी 
तुम नदी की तरह यूं ठुमक कर चली,
        पाट  चौड़ा हुआ ,तुम संवरती गयी 
अपने पीतम का ' पी 'तुमने ऐसा पिया ,
     रह गया 'तम' मैं, तुम रौशनी बन गयी 
मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
        गाय थी तुम प्रिये, शेरनी बन गयी 
मैं तो रोता रहा,बोझा ढोता रहा ,
         बाल सर के उड़े, मैंने उफ़ ना करी 
तुम उड़ाती रही,सारी 'इनकम'मेरी,
        और उड़ती रही,सज संवर,बन परी   
मैं फटे बांस सा ,बेसुरा ही रहा,
          बांसुरी तुम मधुर रागिनी बन गयी
मैं गधा था ,गधे का गधा ही रहा,
          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी           

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 11 अक्तूबर 2017

अहमियत आपकी क्या है 

हमारी जिंदगानी में ,अहमियत आपकी क्या है 
खुदा की ये नियामत है,मोहब्बत आपकी क्या है 
कभी चंदा सी चमकीली ,कभी फूलों सी मुस्काती ,
आपसे मिल समझ आया कि दौलत प्यार की क्या है 
मेरे जीवन का हर मौसम,भरा है प्यार से हरदम,
बनाती लोहे को कुंदन,ये संगत  आपकी क्या  है 
अपनी तारीफ़ सुन कर के ,आपका मुस्कराना ये,
बिना बोले ,बता देता ,कि नीयत  आपकी क्या है 
सुहाना रूप मतवाला ,मुझे पागल बना डाला ,
गुलाबी ओठों को चूमूँ ,इजाजत आपकी क्या है 
कभी आँचल हटा देती,कभी बिजली गिरा देती,
इशारे बतला देते है कि हालत  आपकी  क्या है 
हो देवी तुम मोहब्बत की ,या फिर हो हूर जन्नत की,
बतादो हमको चुपके से, असलियत आपकी क्या है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
मुक्ती 

मैं जनम पत्रिकायें   दिखाता रहा ,
और ग्रहों की दशाएं बदलती रही 
पर दशा मेरी कुछ भी तो बदली नहीं ,
जिंदगी चलती ,वैसे ही चलती रही 
कोई ज्योतिष कहे ,दोष मंगल का है,
कोई पंडित कहे ,साढ़ेसाती चढ़ी 
कोई बोले चंदरमा ,तेरा नीच का,
उसपे राहु की दृष्टी है टेढ़ी पड़ी 
तो किसी ने कहा ,कालसर्प दोष है,
ठीक कर देंगे हम ,पूजा करवाइये 
कोई बोलै तेरा बुध कमजोर है ,
रोज पीपल पे जल जाके चढ़वाईये 
कोई बोलै कि लकड़ी का ले कोयला ,
बहते जल में बहा दो,हो जितना बजन 
दो लिटर तैल में ,देख अपनी शकल ,
दान छाया करो,मुश्किलें होगी कम 
मैं शुरू में  ग्रहों से था घबरा गया ,
पंडितों  था  इतना  डराया  मुझे 
मंहगे मंहगे नगों की अंगूठी दिला ,
सभी ने मन मुताबिक़ नचाया मुझे 
और होनी जो होना लिखा भाग्य में ,
वो समय पर सदाअपने घटता गया 
होता अच्छा जो कुछ तो उसे मुर्ख मैं ,
सब अंगूठी बदौलत ,समझता रहा 
रोज पूजा ,हवन और करम कांड  में ,
व्यर्थ दौलत मैं अपनी लुटाता रहा 
जब अकल आई तो ,अपनी नादानी पे,
खुद पे गुस्सा बहुत ,मुझको आता रहा 
उँगलियों की अंगूठी ,सभी फेंक दी ,
और करमकांड ,पूजा भी छोड़े सभी 
भ्रांतियों से हुआ ,मुक्त मानस मेरा ,
हाथ दूरी से पंडित से  जोड़े तभी 
और तबसे बहुत,हल्का महसूस मैं ,
कर रहा हूँ और सोता हूँ मैं चैन से 
रोक सकता न कोई विधि का लिखा,
जो भी घटता है,लेता उसे प्रेम से 
जबसे ज्योतिष और पंडित का चक्कर हटा ,
मन की शंकाये सारी निकलती गयी 
दूर मन के मेरे ,भ्रम सभी हो गए ,
जिंदगी जैसे चलनी थी,चलती रही 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

रविवार, 8 अक्तूबर 2017

मजबूरी 

नींद तो अब लगने का ,नाम नहीं लेती है 
आशिक़ी दूर भगने का,नाम नहीं लेती है 
जी तो करता है ,सेकना अलाव में तन को,
लकड़ियां पर सुलगने का नाम नहीं लेती है 

घोटू 
बदलाव-शादी के बाद 

शिकायत तुमको रहती है,
बदलता जा रहा हूँ मैं ,
रहा हूँ अब न पहले सा,
बना कर तुमसे नाता हूँ 
मैं बदला तो हूँ ,पर डीयर,
हुआ हूँ ,दिन बदिन ,बेहतर 
मैं क्या था ,अब हुआ हूँ क्या ,
हक़ीक़त  ये   बताता  हूँ 
तुम्हारा साथ पाकर के ,
मैं फूला हूँ पूरी जैसा ,
मैं आटा था,छुआ तुमने ,
बना अब मैं परांठा हूँ 
मैं तो था दाल ,पर तुमने,
गला,पीसा,तला मुझको ,
दही में प्यार के डूबा ,
बड़ा अब मैं कहाता हूँ 
मैं खाली गोलगप्पे सा ,
हो खट्टा मीठा पानी तुम,
तुम मेरे साथ होती तब ,
सभी के मन को भाता हूँ 
फटा सा दूध था मैं पर ,
प्यार की चासनी डूबा ,
चौगुना स्वाद भर लाया ,
मैं रसगुल्ला  कहाता हूँ 
भले ही टेढ़ामेढ़ा सा ,
दिया था जिस्म कुदरत ने ,
तुम्हारे प्यार का रस पी,
जलेबी बन लुभाता हूँ 
तुम्हारा साथ पाकर के ,
हुआ है हाल  ये मेरा ,
तुम तबियत से उड़ा देती,
मैं मेहनत से कमाता हूँ 
तुम्हारे मन मुताबिक जब ,
नहीं कुछ काम कर पाता ,
सुधरने की प्रक्रिया में ,
हमेशा जाता डाटा हूँ 
भले कलतक मैं था पत्थर,
बन गया मोम हूँ अब पर,
मिले जब प्यार की गरमी ,
पिघल मैं झट से जाता हूँ 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
मैं एक पेड़ हूँ 

मैं सुदृढ़ सा पेड़ ,जड़े है मेरी गहरी 
इसीलिए तूफानों में भी रहती ठहरी 
भले हवा का वेग ,हिला दे मेरी डालें 
पके अधपके ,पत्ते तोड़ ,उड़ादे सारे  
पर मैं ये सब,झेला करता ,हँसते हँसते 
कभी हवा से ,मैंने नहीं बिगाड़े  रिश्ते 
क्योंकि हवा से ही मेरी गरिमा है कायम 
मैं न बदलता,लाख बदलते रहते मौसम 
तेज सूर्य का,जब मुझसे,करता टकराया 
धुप प्रचंड भले कितनी,बन जाती छाया 
छोटे बड़े सभी पत्ते ,संग संग लहराते 
मेरी डालों पर विहंग  सब  नीड बनाते 
मुझे बहुतआनंदित करता,उनका कलरव 
थके पथिक ,छाया में करते,शांति अनुभव 
जड़ से लेकर ,पान पान से ,मेरा रिश्ता 
सेवा भाव,दोस्ती देती ,मुझे अडिगता 

मदन मोहन बाहेती;घोटू'

भगवान का कम्पनसेशन 

भगवान ,
जब तूने रचे नर और नारी 
औरतों के गालों को बालविहीन चिकना बनाया,
और मर्दों के गालों पर उगा दी दाढ़ी 
पर जो एक्स्ट्रा बाल दिए मर्दों के गालों पर 
तो क्षतिपूर्ति के लिए   ,
विशेष कृपा बरसा दी ,नारी के बालों पर 
उन्हें दे दिए ,घने,रेशमी और काले कुंतल 
जिनके जाल में फंस कर ,
आदमी मुश्किल से ही सकता है निकल 
आपने देखा होगा कि बढ़ती हुई उम्र के साथ 
आदमी के सर के बाल उड़ जाते है 
वो कभी आगे से गंजे ,
या कभी पीछे से खल्वाट नज़र आते है 
पर ईश्वर की अनुकम्पा से औरतों के सर पर ,
बालों की छटा ,हरदम रहती छाई है 
क्या आपको कभी कोई औरत ,
आदमी की तरह गंजी नज़र आयी है 
भगवान ,तू बड़ा ग्रेट है 
तेरी नज़र में सब बराबर है,
तू किसी में न रखता भेद है 
अगर तेरी रचना में,
 कहीं कुछ असमानता आयी है 
तो तूने किसी न किसी तरह,
किया 'कम्पनसेट'है 

घोटू 
नकलची औरतें 

औरतें,
अपने अपने पति के ,
हृदय की स्वामिनी होती है 
फिर भी उनकी अनुगामिनी होती है 
उनके पदचिन्हो पर चलती है 
हमेशा उनका अनुसरण करती है 
जब कि आदमी ,
जो कि उन पर रीझा करता है 
उनकी तारीफों के पुल बाँध ,
उनपर मरता है 
पर कभी भी उनके,
 परिधानों की नकल नहीं करता है 
और न ही उनकी तरह ,
पहनता है कोई गहने 
क्या आपने किसी पुरुष को देखा है 
हीरे का नेकलेस या लटकते इयररिंग ,
और  हाथों में कंगन पहने 
हिंदुस्थानी औरतों का लिबास 
जो होता है साड़ी या चोली ख़ास 
क्या किसी पुरुष ने अपनाया है 
क्या कोई मर्द,
 पेटीकोट पहने नज़र आया है 
जबकि औरतें ,
पहन कर मर्दों वाले परिधान 
दिखाती है अपनी शान 
आदमी ने जीन्स पहनी,
औरतें भी पहनने लग गयी 
मर्दों जैसा ही टीशर्ट ,
जिस पर जाने क्या क्या लिखा रहता है ,
पहन कर टहलने लग गयी 
और आदमी ,
जब उस पर क्या लिखा है ,
पढ़ने  को नज़र डालता  है 
तो औरतें शिकायत करती है ,
कि वो उन पर लाइन मारता है 
आदमी का कुरता और पायजामा ,
औरतों ने पूरी तरह हथिया लिया है 
चूड़ीदार पायजामे को 'लेगिंग',
और ढीले पायजामे को'प्लाज़ो'बना लिया है 
मर्दों की हर चीज पर ,
नकलची औरतें दिखाती अपना हक़ है 
और ये एक हक़ीक़त है ,इसमें क्या शक है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-