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बुधवार, 30 मार्च 2022

जवानी मांगता हूं मैं
1
गई जो बीत,फिर से वह,कहानी मांगता हूं मैं कबाड़ी हूं ,सदा चीजें, पुरानी मांगता हूं मैं 
मेरी फरमाइशें देखो ,ये मेरा शौक तो देखो 
बुढ़ापे में ,गई फिर से ,जवानी मांगता हूं मैं 
2
मुझे दे दो जवानी बस, उसे मैं धार दे दूंगा 
पुरानी चीज को चमका, नई चमकार दे दूंगा हसीनों का जरा सी देर का जो साथ मिल जाए कयामत जाऊंगा मैं ,ढेर सारा प्यार दे दूंगा
3
सुना है कि पुराने चावलों में स्वाद ज्यादा है 
पुरानी चीज होती एंटीक है दाम ज्यादा है 
नई नौदिन पुरानी सौ दिनों तक टिकती है लेकिन 
मेरा नौ दिन सही, फिरसे जवानी का इरादा है
4
भले थोड़ी सही,फिर से जवानी मुझको मिल जाए 
येमुरझाया चमन मेराभले कुछ दिन ही खिल जाए
हसीनों से करूं फिर से मोहब्बत ,आरजू दिल की कि इन बुझते चिरागों में ,रोशनी फिर से मुस्काए
5
नया कुछ स्वाद मैं ले लूं ,नया उन्माद मैं झेलूं तमन्ना है चमन की हर कली के साथ मैं खेलूं 
खुदा इतनी सी हसरत है ,तू लौटा दे पुराने दिन, भले कुछ दिन सही, लेकिन जवानी के मजे ले लूं
6
जवानी फिर से जीने को मेरा दिल तो है आमादा
भले हिम्मत नहीं बाकी, न तन में जोश है ज्यादा लगा चस्का पुराना है ,नहीं छूटेगी यह आदत , हो कितना बूढ़ा भी बंदर, गुलाटी मारता ज्यादा

मदन मोहन बाहेती घोटू

मंगलवार, 29 मार्च 2022

मां मां ही होती है

 नौ महीने तक तुम्हें गर्भ में अपने ढोती है 
 मां तो मां ही होती है 
 जो तुमको गोदी में लेकर अपने आंचल में
 छुपा तुम्हे, छाती से अपना दूध पिलाती है 
 तुम कितनी ही बार गिरो, वह तुम्हे उठाती है
 पकड़ तुम्हारी उंगली चलना तुम्हें सिखाती है 
 तुम्हें पालने दुनिया भर के कष्ट झेलती है ,
 खुद भूखी रहकर भी पहले तुम्हें खिलाती है अक्षर ज्ञान कराती है ,भाषा सिखलाती है कार्यकलाप सभी जीवन के तुम्हें सिखाती है 
 तुम्हें चैन से नींद आ सके, कुछ तकलीफ न हो तुम्हें सुलाती सूखे में, खुद गीली सोती है 
 वह तुम्हारी जननी है , मां , मां ही होती है
 
 तुम्हारे पोषण को अपने सीने हल चलवा ,
 एक दाने के कई हजारों दाने उपजाती 
 तुम्हें मिल सके ठंडी ठंडी हवा इसलिए वो, कितने वन उपवन अपनी छाती पर लहराती 
 वो कुदाल की चोटें सह सह कुवा खुदवाती,
 ताकि शीतल और शुद्ध जल तुमको मिल पाए
 अपनी माटी दे, तुम्हारा घर बनवाती है,
 ताकि चैन से रहो तुम्हे कुछ मुश्किल ना आए
 कई रसीले फल तुमको खाने को मिलते हैं,
 एक बीज फल का अपनी छाती में बोती है
  वो धरती मां ,मां ही है, मां मां ही होती है 
  
जो खुद सूखा तृण खाकर भी दूध पिलाती है
 वह भी पूजनीय है हमको ,गैया माता है 
 करती है हमको प्रदान धन-धान्य और वैभव अति प्रिय सबको लगती है वो लक्ष्मी माता है 
 जो हम को शक्ति देती है और रक्षा करती है, वंदनीय हम सब की है वह दुर्गा माता है 
 वीणा वादिनी ,सुर प्रदायिनी, सरस्वती माता 
 है संगीत सुरसरी और बुद्धि की दाता है 
 देना ही जिसकी प्रवृत्ति, वो माता कहलाती, संतानों के जीवन में जो खुशी संजोती है 
 लक्ष्मी सरस्वती या दुर्गा ,मां तो मां होती है

मदन मोहन बाहेती घोटू 
 हवा हवाई 
 
हवाओं से मेरा रिश्ता बहुत ज्यादा पुराना है 
जन्म से ही शुरु मेरी सांसो का आना जाना है

जमाने की हवा ऐसी लगी थी मुझको यौवन में 
हवा में उड़ता रहता था जब तलक जोश था तनमें
 
नजर उनसे जो टकराती मिलन की बात थी आती 
गति सांसों की बढ़ जाती धड़कन तेज हो जाती

 हुई शादी, हवा निकली, गृहस्थी बोझ था सर पर 
हवा में उड़ न पाते थे, गए थे कट, हमारे पर 
 
जिंदगी में कई तूफान, आए और ठहराये
हवाओं से मेरे रिश्ते ,तभी से और गहराये

बुढ़ापे में हवा बिगड़ी, जिंदगी हो गई पंचर 
गुजारा वक्त करते हैं अब ठंडी आहें भर भर कर 

 जिंदगी भर की ये यारी, हवा से जिस दिन टूटेगी 
धड़कने जाएंगी थम, चेतनायें तन की रूठेंगी
 
हवाई थे किले जितने,हो गए ध्वंस, सबके सब
विलीन होकर हवा में ही, हमारा अंत होगा अब 

मदन मोहन बाहेती घोटू

सोमवार, 28 मार्च 2022

कान्हा का बुढापा

बूढ़े कान्हा, बूढ़ी राधा, दोनों ही कमजोर हुए, ओल्ड एज में ,मजबूरी में ,ऐसे समय  बिताते है

जमुना तट पर रास रचाना,उनके बस का नहींरहा मूड हुआ तो, कभी शाम जा, पानी पूरी खाते हैं

जिनने बारिश से बचने को गोवर्धन था उठा लिया अब छाता भी अधिक देर तक नहीं उठा वह पाते है
माखन चोरी की बचपन की उनकी आदत छूट गई,
कोलोस्ट्राल बढ़ गया इतना मक्खन पचा न पाते हैं 
खाते छप्पन भोग कभी थे, अब खाते लूखी रोटी डायबिटीज है माखन मिश्री भोग लगा ना पाते हैं

गोपी के संग  छेड़छाड़ के खत्म सिलसिले हुए सभी,
 कंकरी फेंक नहीं पाते अब हंड़िया फोड़ न पाते हैं यमुना में स्नान गोपियां अब भी करती मिल जाती, 
स्विमिंग सूट पहन वह नहाती,वस्त्र चुरा ना पाते हैं 

 पॉल्यूशन का नाग कालिया जमुना करे प्रदूषित है 
 उसे नाथने जमुना में छलांग लगा ना पाते हैं 
 
अब तो नहीं बांसुरी उनसे ठीक तरह से बज पाती कोशिश करते, फूंक मारते, पर जल्दी थक जाते हैं 
अब ना सिर पर मोर मुकुट है,रहे न पीतांबर धारी बरमूडा टी-शर्ट पहन,कंफर्टेबल दिखलाते हैं 

जैसा भी हो,पर वे खुश हैं, दोनों साथ-साथ जो है ,
इतना सब कुछ होने पर भी  दोनों संग मुस्काते हैं

मदन मोहन बाहेती घोटू 

रविवार, 27 मार्च 2022


वह चले गए 

वह जिनकी अपनी गरिमा थी, गौरव था 
कठिन काम करना भी जिनको संभव था 
सूरज जैसे प्रखर, चंद्रमा से शीतल 
गंगा की लहरों से बहते थे कल कल 
वह जिनमें दृढ़ता होती थी पर्वत सी 
और विचार में गहराई की सागर सी
अपनी एक सुनामी से वो छले गए
 कल तक चलते फिरते थे ,वह चले गए
 
 जो परमार्थी,सेवाभावी ,सज्जन थे 
 पूरे उपवन को महकाते चंदन थे 
 वह जिनके मुख रहती थी मुस्कान सदा 
 छोटे बड़े सभी का रखते ध्यान सदा 
 वह जिनकी थी सोच जरा भी ना ओछी
 वह जिन्हें बुराई किसी की ना सोची
 जलन नहीं थी किंतु चिता में जले गए 
 कल तक चलते फिरते थे, वह चले गए 
 
वह जो कर्मभाव में सदा समर्पित थे 
सेवाभावी ,प्रभु सेवा में अर्पित थे 
थे भंडार दया के ,संयम वाले थे 
बुद्धि और कौशल में बड़े निराले थे
मिलजुल जिया सदा सादगी का जीवन 
सभी दोस्त थे,नहीं किसी से थीअनबन  
नियति के क्रूर हाथों में आ ,छले गए
कल तक चलते फिरते थे ,वह चले गए

मदन मोहन बाहेती घोटू 

गुरुवार, 24 मार्च 2022

क्या जीवन का है यही अंत

छूटी सब माया, गया मोह,
जब टूट गया सांसो का क्रम  
माटी होकर निर्जीव पड़ी,
कंचन काया का था जो भ्रम 
खाली आये, खाली ही गये,
राजे, महाराजे, श्रीमंत
 क्या जीवन का है यही अंत 
  
 ऊपर लकड़ी, नीचे लकड़ी ,
 और बीच दबी निष्प्राण देह  
 देकर मुखाग्नि , फूंकेंगे,
 जिनसे तुमको था अधिक नेह 
 तेरह दिन तक बस शोक रखा,
 फिर जीवन का क्रम यथावंत
  क्या जीवन का है यही अंत 
  
  सारा जीवन संघर्ष करो 
  पर जब आता अंतिम पड़ाव 
  चाहे राजा हो या फकीर 
  यह मौत न करती भेदभाव 
  सब होते राख, चिता में जल 
  हो दुष्ट ,कुटिल या महा संत 
  क्या जीवन का है यही अंत 

मदन मोहन बाहेती घोटू 

शनिवार, 19 मार्च 2022

चंदन 

मुझको जड़ मात्र समझ कर के,
 मत करो मूल्य का आलंकन 
 मैं दिखता हूं निर्जीव मगर,
  भरपूर भरा मुझ में जीवन 
  मुझको तुम अगर जलाओगे 
  तो घर जाएगा महक महक 
  पानी में घिसकर लेप लगा,
  उबटन बन कर दूंगा ठंडक 
  प्रभु के मस्तक और चरणों में,
  मैं चढ़ता उनके पूजन में 
  मोहक खुशबू है भरी हुई,
  तैलीय मेरे तन और मन में 
  विष भरे भुजंग लाख लिपटे,
  होता ना मुझ पर कोई असर 
  हूं सूखा काष्ठ मगर चेतन ,
  मैं चंदन, महकूं जीवन भर

मदन मोहन बाहेती घोटू 
ऐसा जीना भी क्या जीना 

लंबा जीने की तमन्ना में खुद पर न कोई प्रतिबंध रखो 
मत खाते रहो दवाई बस, मिष्ठान ,जलेबी नहीं चखो ऐसा जीना भी क्या जीना तुम तरस तरस काटो जीवन सूखी रोटी,फीकी सब्जी,ना दूध मलाई, ना मक्खन जीवन जितना भी जियो तुम, खुश रहो सदा और मौज करो 
तुम घूमो ,फिरो, पियो खाओ ,मनचाही मस्ती रोज करो इच्छाओं पर कंट्रोल करो, हमको यह बात पसंद नहीं घुट घुट कर के लंबा जीवन, जीने में कुछ आनंद नहीं 
फीका फीका जीवन जियो और अंत समय में पछताओ ऐसा जीना भी क्या जीना, जीने का मजा ना ले पाओ

जब दिवस मौत का तय है तो तुम मन चाहे वैसा जी लो जो भी अब शेष बचा जीवन खेलो कूदो और मस्ती लो मरते दम तक अपने मन की बाकी न रहे कोई हसरत
मरने के बाद मिले कुछ भी,दोखज हो या कि जाओ जन्नत 
 इसलिए स्वर्ग के सारे सुख जीते जी पा लो धरती पर मन में ना कोई मलाल रहे जीवन ना जी पाये जी भर 
 जीवन भर की अर्जित पूंजी को खर्च करो तुम खुद खुद पर 
आनंद उठाओ पल पल का जब तक चलते सांसों के स्वर 
तुम मौज करो मस्ती काटो, रह सदा प्रफुल्लित मुस्काओ
ऐसा जीवन भी क्या जीना जीने का मजा ना ले पाओ

मदन मोहन बाहेती घोटू 

मंगलवार, 15 मार्च 2022

उमर का तगादा

ढीले पड़ गए हाथ पांव और तन में अब कमजोरी है किंतु उछाले भरता रहता ,यह मन बड़ा अघोरी है 
हमको कसकर बांध रखी यह मोह माया की डोरी है बूढ़ा बंदर, किंतु गुलाटी की आदत ना छोड़ी है
 करना बहुत चाहता लेकिन कुछ भी ना कर पाता है उमर का यह तो तगादा है ,उमर का यह तगादा है 
 
डाक्टर कहता शकर बढ़ गई, मीठे पर पाबंदी है 
खाने अब ना मिले जलेबी ,कलाकंद, बासुंदी है 
नहीं समोसे, नहीं कचोरी तली चीज पर बंदी है 
खाना नहीं ठीक से पचता, पाचन शक्ति मंदी है 
मुश्किल से दो रोटी खाते ,खाना रह गया आधा है
 उमर का ये तो तगादा है ,उमर का ये तो तगादा है
 
 रोमांटिक तो है लेकिन अब रोमांस नहीं कर पाते हैं सुंदरियों के दर्शन करके, अपना मन बहलाते हैं 
आंखें धुंधली ,उन्हें ठीक से देख नहीं पर पाते हैं
पर जब वह बाबा कहती ,मन में घुट कर रह जाते हैं अब कान्हा से रास ना होता बूढ़ी हो गई राधा है 
उमर का ये तो तगादा है उमर का ये तो तगादा है

जैसे-जैसे उमर हमारी दिन दिन बढ़ती जाती है 
बीते दिन की कई सुहानी यादें आ तड़पाती है 
रात ठीक से नींद ना आती उचट उचट वो जाती है
यूं ही करवट बदल बदल कर रातें अब कट जाती है
 कैसे अपना वक्त गुजारें, नहीं समझ में आता है 
 उमर का ये तो तगादा है, उमर का ये तो तगादा है

मदन मोहन बाहेती घोटू 
भूख तो सबको लगती ही है 

चाहे आदमी हो चाहे जानवर 
कीट हो या नभचर
सभी के पेट में आग तो जलती ही है 
भूख तो सबको लगती ही है 

पेट खाली हो तो बदन में ताकत नहीं रहती 
कुछ भी कर सकने की हिम्मत नहीं रहती 
खाली पेट आदमी सो नहीं पाता 
भूखे पेट भजन भी हो नहीं पाता 
इसलिए जिंदा रहने पेट भरना पड़ता है 
पेट भरने के लिए काम करना पड़ता है 
पंछी नीड छोड़ दाने की तलाश में उड़ता है 
आदमी कमाई के लिए काम में जुटता है 
दिन भर की मेहनत के बाद
 दो जून की रोटी नसीब हो पाती है 
 इसी पेट के खातिर दुनिया कमाती है 
 किसान खेती करता है, अन्न उपजाता है 
 जिसे पकाकर पेट भरा जाता है 
 जानवर भी एक दूसरे का शिकार करते हैं 
 सब जैसे तैसे भी अपना पेट भरते हैं 
 मांस हो या बोटी 
 रोटी हो या डबल रोटी 
 चाट हो या पकौड़ी 
 पूरी हो या कचौड़ी 
 बिरयानी हो या चावल 
 सब्जी हो या फल 
 जब तक पेट में कुछ नहीं जाता है 
 आदमी को चैन नहीं आता है 
 सुबह चाय बिस्कुट चाहिए
  फिर नाश्ता और लंच खाइए 
  शाम को फिर चाय और स्नैक्स
   फिर रात में डिनर 
   आदमी चरता ही रहता है दिन भर 
   कुछ नहीं मिलता तो गुजारा करता है पानी पी पीकर फिर भी उसकी भूख खत्म नहीं होती 
   उस की लालसा कम नहीं होती 
   भूख कई तरह की होती है 
   तन की भूख
   धन की भूख
   जमीन की भूख
   सत्ता की भूख 
   कुर्सी की भूख 
   एक भूख खत्म होती है तो दूसरी जग जाती है 
   कई बार एक भूख पूरी करने के चक्कर में,
    पेट की भूख मर जाती है 
    आदमी दवा खाता है 
    आदमी हवा खाता है 
    आदमी डाट खाता है 
    आदमी मार खाता है 
    आदमी रिश्वत खाता है 
    आदमी पूरी जिंदगी भर कुछ न कुछ खाता है 
    पर फिर भी उसका पेट नहीं भरता है
     और जब वह मरता है
     तो उसके घर वाले हर साल 
     पंडित को श्राद्ध में खिलाते हैं 
     उसकी तृप्ति के लिए भोजन पहुंचाते हैं 
   ये भूख मरने के बाद भी सबको ठगती ही है 
   भूख तो सबको लगती ही है

मदन मोहन बाहेती घोटू
बुढ़ापे में मियां बीवी का प्यार 

कभी झगड़ा ,कभी तकरार 
कभी बातों का प्रहार ,कभी तानो की बौछार 
एक दूसरे को टोकना बार बार
कभी जीत ,कभी हार 
कभी रूठना ,कभी मनवार 
और यूं ही निकाल लेना मन का गुबार 
कभी पिता सा गुस्सा ,कभी मां का दुलार 
बस यही है बुढ़ापे में मियां बीवी का प्यार 

दो प्राणी अकेले बुढ़ापे की मार झेलते हैं 
समय नहीं कटता तो झगड़ा झगड़ा खेलते हैं 
एक दूसरे का सहारा देकर साथ साथ चलना
किसी का सिर दुखे तो बाम मलना 
थोड़ा सा सहलाना ,अपना मन बहलाना 
इतना सीमित रह गया है आजकल अभिसार
 बुढ़ापे में यही है मियां बीवी का प्यार  
 
 नहीं है चिंतायें पर उदास रहता है मन 
 बात बिना बात ही हुआ करती है अनबन 
 फिर एक दूजे को कोई ऐसे मनाता है 
 पत्नी पकोड़े बनाती, पति आइसक्रीम खिलाता है 
 इन्हीं छोटी-छोटी बातों में सिमट गया है संसार 
 बस यही है, बुढ़ापे में मियां बीवी का प्यार 
 
 जब त्योहारों पर बच्चों के शुभकामना संदेश आते हैं थोड़ी देर ,दोनों बच्चों की तरह खुश हो जाते हैं 
 उनके सुखी जीवन के लिए दुआएं देते हैं  
 उनकी खैरियत को अपनी ख़ैरियत बना लेते हैं 
 बहू बेटी पोता पोती मिलने को भी आते हैं ,
 पर वही साल में एक दो बार 
 बस यही है बुढ़ापे में मियां बीवी का प्यार 
 
 कभी कोई हावी है कभी कोई झुकता 
 याद बीती बातें कर ,आती भावुकता  
 किसी से नहीं रही, कोई भी आकांक्षा
  बस दोनों स्वस्थ रहें इतनी सी अभिलाषा
  सुखी रहे घोसले में सिमटा हुआ परिवार 
  बस यही है बुढापे में मियां बीवी का प्यार 

मदन मोहन बाहेती घोटू

शनिवार, 12 मार्च 2022

उमर की मेहरबानी 

ज्यों ज्यों उमर मेहरबां हो रही है 
मेरे दिल की मस्ती ,जवां हो रही है 

यूं ही जूझते उम्र सारी गुजारी 
परिवार खातिर ,करी मारामारी 
खुशी लेकर आया बुढ़ापे का मौसम 
उमर आई अपने लिए अब जिए हम 
बहुत जिंदगी खुशनुमां हो रही है 
मेरे दिल की मस्ती जवां हो रही है 

भले ही लुनाई, रही ना वो तन में 
बड़ी शांति पर ,बसी अब है मन में 
निश्चिंत जीवन, बड़ा बेफिकर है 
करो मौज की अब आई उमर है 
परेशानियां सब हवा हो रही है 
मेरे दिल की मस्ती जवां हो रही है

मदन मोहन बाहेती घोटू 
जो बीत गया वह अच्छा था ,
जो आएगा अच्छा होगा 
यह सोच शांति देगा मन को ,
जीवन में सुख सच्चा होगा 

अच्छा या बुरा सभी कुछ जो ,
तुमने कर डाला ,कर डाला 
उसका रोना रोने से अब ,
कुछ लाभ नहीं होने वाला 
इससे बेहतर अब यह होगा 
जितना भी शेष बचा जीवन 
तुम सेवा और सत्कर्म करो ,
लो रामा राम में अपना मन 
जीवन वैसे ही बीतेगा ,
नियति ने जो रच्चा होगा 
जो बीत गया वो अच्छा था ,
जो आएगा अच्छा होगा 

यदि सोच सकारात्मक है तो,
चिंतायें नहीं सताएगी 
ना सूरज प्रखर तपायेगा,
ना काली रात डरायेगी
आशा के दीप जला रखना,
 मन में ना कभी निराशा हो 
 मायूसी मुख पर ना झलके, 
 चेहरा हरदम मुस्काता हो 
 मत रखो अपेक्षा कोई से ,
 दिल टूट गया तो क्या होगा 
 जो बीत गया वह अच्छा था 
 जो आएगा अच्छा होगा

मदन मोहन बाहेती घोटू
तुम वही करो जो मन बोले 

तुम वही करो जो मन बोले 
जिससे तुमको मिलती शांति ,
जो मन की दबी गांठ खोलें 
तुम वही करो जो मन बोले 

यह सोच, कोई क्या सोचेगा,
 तुम सोच न खुद की खोने दो
 औरों की सोच को अपने पर ,
 बिल्कुल हावी मत होने दो 
 यह नहीं जरूरी तुम्हारी 
 औरों के साथ पसंद मिले 
 तुमको बस वो ही करना है ,
 जिससे तुमको आनंद मिले 
 जो भी करना दृढ़ निश्चय से,
  मत खाना डगमग हिचकोले 
  तुम वही करो जो मन बोले 
  
तरह-तरह के परामर्श ,
देने कितने ही आएंगे 
तुम ये करलो तुम वो करलो 
शुभचिंतक बंद समझाएंगे 
इन रायचंद की रायों को ,
तुम बिल्कुल ध्यान नहीं देना
चाहे कुछ भी परिणाम मिले 
इनको ना कुछ लेना देना 
लेकिन निष्कर्ष नहीं लेना,
 तुम भले बुरे को बिन तोले 
 तुम वही करो जो मन बोले

मदन मोहन बाहेती घोटू
 
बस एक ही मोदी काफी है 

काशी से बोले विश्वनाथ,
 हिम पर्वत से केदार कहे, 
 हिंदुत्व की शान बढ़ाने को बस एक ही गंगा काफी है यूक्रेन से आए बच्चों से, 
 पूछो तो वे बताएंगे ,
 जो भरे जंग से ले आया ,बस एक तिरंगा काफी है
 
 सब बाहुबली दबंगों का ,
 सारा गरूर अब नष्ट हुआ 
 बुलडोजर बाबा योगी के ,
 आने से सब को कष्ट हुआ 
 सत्तर वर्षों से भारत की ,
 सत्ता पर जो कि काबिज़ थी ,
 कांग्रेस की लुटिया डुबोने को, पप्पू बेढंगा काफी है 
 
 मिल परिवार और सब कुनबा,
 जनता का धन थे लूट रहे 
 बीजेपी बीजेपी सत्ता में आई ,
 अब सब के पसीने छूट रहे 
 बरसों ताले में बंद रहे 
 तंबू में रह बनवास सहा,
 उन रामलला की मंदिर में ,अब सजने वाली झांकी है 
 
गाली दे दे कर हार गए , 
राहुल प्रियंका अखिलेश
मिल कर कौरव ने युद्ध किया,
पर सबके सब होगये शेष
बाइस का जंग तो जीत लिया,
चोबीस का जंग भी जीतेंगे,
सबको चित करने मोदी और योगी का संगा बाकी है 

मदन मोहन बाहेती घोटू

गुरुवार, 3 मार्च 2022

जवानी फिर से आई है 

पतझड़ में बासंती छवि देती दिखलाई है
जवानी फिर से आई है 
 
थका थका हारा ये तन तो थोड़ा ढीला है 
देख फागुनी रंग हुआ पर यह रंगीला है 
मदमाते मौसम ने में ऐसा जादू डाला है 
खिलती कलियां देख होगया मन मतवाला है  
झुर्राए चेहरे पर फिर से छाई लुनाई है 
जवानी फिर से आई है 

स्वर्णिम आभा होती है जब सूर्य निकलता है 
फिर सोने का गोला लगता ,जब वह ढलता है 
तप्त सूर्य के प्रखर ताप को हमने झेला है 
नहीं बुढ़ापा ,आई उम्र की स्वर्णिम बेला है  
छाई सफेदी ,जीवन की अनमोल कमाई है  
जवानी फिर से आई है 
 
 जीवन भर मेहनत कर अपना फर्ज निभाया है 
 अब खुद के खातिर जीने का मौका आया है  
 जैसे-जैसे उमर मेहरबां होती जाती है 
 दिल की बस्ती जवां दिनोंदिन होती जाती है 
 दूध बहुत उफना अब जाकर के जमी मलाई है 
 जवानी फिर से आई है

मदन मोहन बाहेती घोटू 

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