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बुधवार, 31 जनवरी 2018

शिष्टाचार का मारा 

मैं बेचारा 
शिष्टाचार का मारा 
कितनी ही बार 
मैंने सही है इस शराफत की मार 
शिष्टाचार वश  अपनी सीट  को ,
किसी महिला या बुजुर्ग को दिया है 
और घंटो खड़े रह कर सफर किया है 
किसी महिला के हाथ से ,
सामान का बोझ उठाया है 
और एक डेढ़  किलोमीटर तक ,
उसके घर पहुँचाया है 
और पुरस्कार में 
'धन्यवाद भैया का सिला पाया है 
मगर ये सच है कि जब भी हम ,
किसी बेगानी शादी में 
अब्दुल्ला बन कर नाचे है 
हमारा अनुभव टेढ़ा ही रहा है ,
हमने खाये तमाचे है 
दोस्ती निभाने के चक्कर में ,
अपने हाथ आयी चीज दोस्तों को सौंप दी है 
और लोगो ने हमारी ही तलवार ,
हमें घांप  दी है 
इस शिष्टाचार के चक्कर में हमने 
बहुत धोखा खाया है 
लोगों ने हमें कुर्बानी का बकरा बनाया है 
और इमोशनल फूल बन कर हर बार 
हमने ही न्योता है 'आ बैल,मुझे मार '
पर अब इतनी चोंट खाने पर 
अब हममे आ गयी है अकल
हम हो गए है थोड़े प्रेक्टिकल 
पहले खुद खाते है फिर दूसरों को परोसते है 
पहले अपना अच्छा बुरा सोचते है  
अपनेआप को ,दुनियादारी के सांचे में ढाल लिया है 
और शिष्टाचार का ,अचार डाल लिया है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
लंगोटिया यार 

कभी जो हमारा लंगोटिया यार था 
हमारे लिए मरने मिटने को तैयार था 
आजकल वो बड़ा आदमी बन गया है 
थोड़ा गरूर से तन गया है 
उसने लंगोट पहनना छोड़ दी है 
और शायद लंगोट की मर्यादा तोड़ दी है 
इसलिए लंगोटिया यारों को भुला बैठा है 
हमेशा गर्व से रहता ऐंठा है 
आजकल वो ब्रीफ पहनता है 
ब्रीफ में बात करता है 
ब्रीफकेस लेकर शान से चलता है 
लंगोटी की डोरी का कसाव ,
अब ब्रीफ के एलास्टिक की तरह लचीला हो गया है 
वो थोड़ा कैरेक्टर का भी ढीला हो गया है 
पद और पैसा पाकर लोग बदलने लगते है 
नए वातावरण में ढलने लगते है 
कभी कभी इतने मगरूर हो जाते है 
कि अपने लंगोटिया यारों को भी भूल जाते है 
पर ये अब भी मुस्करा कर बात करता है 
शायद डरता है 
कहीं हम उसके बारे में लोगो को 
उलटा सीधा न बोल दें 
उसके बचपन की पोल न खोल दें 

घोटू 
प्रभु सुमिरण 
१ 
भरी ताजगी हो सुबह ,और सुहानी शाम 
ये जीवन चलता रहे,हंसी ख़ुशी, अविराम 
मेहनत ,सच्ची लगन से ,पूरे हो सब काम 
भज ले राधेश्याम तू ,भज ले सीताराम 
२ 
ऊधो से लेना न कुछ,ना माधो का देन 
चिंता हो ना चाहतें ,कटे यूं ही दिन रेन 
तुम अपने घर चैन से और हम अपने धाम 
भज ले राधेश्याम तू ,भज ले सीताराम 
३ 
मोह माया सब छोड़ दे ,झूठा है संसार 
रह सब संग सद्भाव से ,खूब लुटा तू प्यार 
तुम्हारे सद्कर्म ही,आय अंत में काम 
भेज ले राधेश्याम तू,भजले सीताराम 
४ 
बहुत हुआ अब छोड़ दे,वैभव,भोग विलास 
दान ,दया और धर्म से मिट जायेगे त्रास 
प्रभु का सुमरण ही करे ,तुम्हारा कल्याण 
भजले राधे श्याम तू,भजले सीताराम      

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
जवानी का हुनर -बुढ़ापे की गुजर 

१ 
कभी सजाये इन्हे नेल पॉलिश  रंग कर  
कभी चुभाये मद  विव्हल , तंग कर कर 
इन्ही नखों को , मेरे  काम भी लाओ तुम 
आओ ,बैठ कर ,मेरी पीठ ,खुजाओ तुम 
२ 
गोरे गोरे  हाथ रंगे     मेंहदी  रंग में 
होंठ सुहाने रंगे  लिपस्टिक के संग में 
ओ  रंगरेज ,मुझे निज रंग  रंगने वाले 
आओ बैठो,बाल  रंगो , मेरे  काले  
३ 
डाल रूप का जाल ,फंसाया बहुत मुझे 
मुझ पर प्रेशर डाल ,दबाया बहुत मुझे 
यह दबाब का हुनर आज दिखला दो तुम 
पाँव दर्द करते है ,जरा दबा दो  तुम 
४ 
जो भी मैंने बात कही ,तुमने काटी 
तूतू मैमै  करी ,उम्र अब तक काटी 
बहुत झुका ,अब सांस फूलती झुकने पर 
पावों के नाखून काट दो, तुम डियर 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
दूर की सोचो 

भले तितलियाँ आये ,फुदके हजारों ,
भले सैकड़ों ही भ्रमर  गुनगुनाये 
मधुमख्खियों को न दो पर इजाजत ,
कभी भूल कर भी ,चमन में वो आये 
ये आकर के चूसेगी पुष्पों के रस को ,
दरख्तों की डालों  पर छत्ते बनेगें 
मज़ा हम महक का उठा ना सकेगें,
अगर शहद का हम जो लालच करेंगे 
इन्ही छत्तों से मोम तुमको मिलेगा ,
इसी मोम से बन शमा जब जलेगी 
कितने ही परवाने ,जल जल मरेंगे ,
बरबादियों  का सबब ये बनेगी  
इसी वास्ते आज बेहतर यही है ,
कोई मधुमख्खी यहाँ घुस न पाये 
हमेशा महकता रहे ये गुलिश्तां ,
सभी  की बुरी हम नज़र से बचाये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
सर्दी की दोपहरी -बूढ़ों का शगल 

बैठ बाग़  में कुछ बूढ़े ,बतियाया करते है 
कुछ बेंचों पर लेट  धूप ही खाया करते है 
सर्दी की दोपहरी में ये अक्सर होता है,
कितने दोस्त घूमते भी मिल जाया करते है 
ऊनी टोपी से सर ढक और मफलर गर्दन पर,
स्वेटर कोट पहन कर तन गरमाया करते है 
कुछ जेबों में काजू पिश्ता और बादामें  भर ,
कोई मूंगफली,गजक रेवड़ी खाया करते है 
चार पांच छह यारो की जब महफ़िल जमती है,
हंसी ठहाको से मंजर महकाया करते है 
राजनीति,राहुल मोदी पर चर्चा होती है ,
सब ज्वलंत मुद्दों को वो सुलझाया करते है 
कुछ दादा अपने पोते को फिसलन पट्टी पर ,
खेलाते है या  झूला झुलवाया करते है 
जली भुनी सी कुछ सासों के बहुओं से झगड़े ,
अपनी हमउम्रों आगे ,खुल जाया करते है 
जैसे दिन ढलता है ठंडक बढ़ने लगती है ,
सूरज जैसे सब घर में छुप जाया करते है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 3 जनवरी 2018

नया बरस -पुरानी बातें 

इस नए बरस की बस ,इतनी सी कहानी है 
कैलेंडर नया लटका ,पर कील पुरानी  है 
महीने है वो ही बारह,लेकिन कुछ वारों ने ,
कुछ तारीखों के संग ,की छेड़ा खानी है 
सर्दी में ठिठुरना है,ट्रेफिक में फंसना है ,
होटल है बड़ी मंहगी ,बस जेब कटानी है 
 दो पेग चढ़ा कर के ,दो पल मस्ती कर लो,
सर भारी सुबह होगा ,'एनासिन'  खानी है 
बीबी से नज़र बचा ,खाया गाजर हलवा 
लग गया पता उसको अब डाट भी खानी है 
कितने ही 'रिसोल्यूशन 'नव वर्ष में तुम कर लो,
संकल्पो की बातें ,दो दिन में भुलानी है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 2 जनवरी 2018

सोमवार, 1 जनवरी 2018

नववर्ष 

कल ,
दिन बदल जाएगा 
महीना बदल जाएगा
 वर्ष बदल जाएगा 
तारीख बदल जायेगी 
कैलेंडर बदल जाएगा 
डायरी बदल जायेगी 
और तो और ,
सूरज के उगने और 
अस्त होने का,
 समय भी बदल जाएगा 
नहीं बदलेगा तो आसमान,
जो जितना विस्तृत था ,
उतना ही विस्तृत रहेगा 
और मेरा तुम्हारे प्रति प्यार ,
नए वर्ष के आ जाने पर भी,
जैसा पहले था वैसा ही रहेगा 
अक्षुण था और अक्षुण ही रहेगा 
हमेशा की तरह 
हमेशा 

घोटू 

धूप भरी सन्डे दोपहरी -वर्किंग कपल की 

आओ ,जिंदगी के कुछ लम्हे ,संग बितालें ,हम तुम मिल कर 
गरम धूप में ,तन को सेकें ,खाएं मूंगफली  छील  छील  कर
आओ मतलब हीन करें कुछ बातें यूं ही बचपने  वाली 
या फिर सूरज की गर्मी में  चुप  चुप बैठें,खाली खाली 
आओ बिताये ,कुछ ऐसे पल ,जिनमे कोई फ़िक्र नहीं हो 
घर की चिंताएं ,दफ्तर की बातों का कुछ  जिक्र नहीं हो 
इस सर्दी के मौसम की ये प्यारी धूप भरी ,दोपहरी 
उसपर रविवार की छुट्टी,लगे जिंदगी ,ठहरी ठहरी 
पियें गरम चाय ,चुस्की ले ,संग में गरम पकोड़े खायें 
हफ्ते भर में ,एक दिवस तो,हंस कर खुद के लिए बितायें 
लेपटॉप ,मोबाईल छोड़े,यूं ही बैठें, हाथ पकड़ कर 
वरना कल से वही जिंदगी ,तुम अपने ,मैं अपने दफ्तर 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

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