ढलती उमर का प्रणय निवेदन
मै जो भी हूँ ,जैसा भी हूँ,तुमसे बहुत प्यार करता हूँ,
मेरी ढलती उमर देख कर ,तुम मुझको ठुकरा मत देना
माना तन थोडा जर्जर है ,लेकिन मन में जोश भरा है
इन धुंधली आँखों में देखो,कितना सुख संतोष भरा है
माना काले केश घनेरे,छिछले और सफ़ेद हो रहे,
लेकिन मेरे मन का तरुवर,अब तक ताज़ा ,हराभरा है
तेरे उलझे बाल जाल में,मेरे नयना उलझ गए है,
इसीलिये शृंगार समय तुम,उलझी लट सुलझा मत लेना
मै जो भी हूँ,जैसा भी हूँ,तुमसे बहुत प्यार करता हूँ,
मेरी ढलती उमर देख कर,तुम मुझको ठुकरा मत देना
चन्दन जितना बूढा होता ,उतना ज्यादा महकाता है
और पुराने चांवल पकते ,दाना दाना खिल जाता है
जितना होता शहद पुराना ,उतने उसके गुण बढ़ते है,
'एंटीक 'है चीज पुरानी,उसका दाम सदा ज्यादा है
साथ उमर के,अनुभव पाकर ,अब जाकर परिपक्व हुआ हूँ,
अगर शिथिलता आई तन में,उस पर ध्यान जरा मत देना
मै जो भी हूँ,जैसा भी हूँ,तुमसे बहुत प्यार करता हूँ,
मेरी ढलती उमर देख कर ,तुम मुझको ठुकरा मत देना
साथ उमर के ,तुममे भी तो,है कितना बदलाव आ गया
जोश,जवानी और उमंग में ,अब कितना उतराव आ गया
लेकिन मेरी नज़रों में तुम,वही षोडसी सी रूपवती हो,
तुम्हे देख कर मेरी बूढी,नस नस में उत्साह आ गया
बासी रोटी ,बासी कढ़ी के,साथ,स्वाद ,ज्यादा लगती है ,
सच्चा प्यार उमर ना देखे,तुम इतना बिसरा मत देना
मै जो भी हूँ,जैसा भी हूँ,तुमसे बहुत प्यार करता हूँ,
मेरी ढलती उमर देख कर,तुम मुझको ठुकरा मत देना
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
बेहतरीन भाव ... बहुत सुंदर रचना प्रभावशाली प्रस्तुति
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