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रविवार, 24 जून 2018
शुक्रवार, 22 जून 2018
नेताजी से
परेशानी बढ़ , गयी अब चौगुना है
कर रहे हर शिकायत को अनसुना है
वोट पाकर , नोट के बस फेर में हो ,
क्या इसी के वास्ते तुमको चुना है
दूध चट कर हमें कह कर चाय है ,
पिलाते तुम सिर्फ पानी गुनगुना है
मुंह हमारा बंद रहे इस वास्ते
आश्वासन देते पकड़ा झुनझुना है
रजाई की तपिश पाने के लिए ,
रुई जैसा आपने हमको धुना है
चाह कर भी हम निकल पाते नहीं ,
इस तरह से जाल वादों का बुना है
अपने ही पैरों कुल्हाड़ी मार कर ,
मन हमारा ,बहुत जल जल कर भुना है
ज्यादा उड़ने वाले अक्सर अर्श से ,
फर्श पर गिर जाते ,देखा और सुना है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
रविवार, 17 जून 2018
मुझे याद रहेगी देर तलक
वो तेरी सूरत मुस्काती
वो तेरी जुल्फें लहराती
वो चाल तेरी हिरण जैसी ,
वो तेरी कमरिया बल खाती
मुझे याद रहेगी तेरी झलक
बड़ी देर तलक ,बड़ी दूर तलक
वो महकाता चंदन सा बदन
वो बहकाती चंचल चितवन
तू रूप भरी ,रस की गागर ,
वो मचलाता तेरा यौवन
जो भी देखे वो जाए बहक
बड़ी देर तलक बड़ी दूर तलक
मुस्कान तेरी वो मंद मंद
रसभरे ओंठ ,गुलकंद कंद
तेरी हर एक अदा कातिल ,
मेरे मन को आती पसंद ,
मद भरे नयन ,अधखुले पलक
बड़ी देर तलक,बड़ी दूर तलक
वो तेरे तन की दहक दहक
वो तेरी खुशबू,महक महक
खन खन करती वो तेरी हंसी,
वो तेरी बातें चहक चहक
तू जाम रूप का ,छलक छलक
बड़ी देर तलक ,बड़ी दूर तलक
तू मूरत संगेमरमर की
तू अनुपम कृति है ईश्वर की
जैसे धरती पर उतरी हो ,
तू कोई अप्सरा अंबर की
तू सबसे जुदा ,तू सबसे अलग
बड़ी देर तलक ,बड़ी दूर तलक
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
बावन पत्ते
हम और तुम और बावन पत्ते
जब तुम पीसो ,तब मै काटूँ
जब तुम काटो ,तब मैं बांटू
चौके,पंजे ,अट्ठे,सत्ते
हम और तुम और बावन पत्ते
इक्के दुक्के कभी कभी हम
तीन पांच करते आपस में
तुम चौका, मैं छक्का मारूं,
बड़ा मज़ा आता है सच में
ये क्या कम हम साथ साथ है
और बिखरे, सात आठ नहीं है
तुम मारो नहले पर दहला ,
फिर भी मन में गाँठ नहीं है
तुम बेगम बन रहो ठाठ से ,
बादशाह मैं ,पर गुलाम हूँ
तुम हो हुकुम ,ईंट मैं घर की ,
तुम चिड़िया मैं लालपान हूँ
कभी जीतते,कभी हारते ,
हँसते हँसते बावन हफ्ते
हम और तुम और बावन पत्ते
मदन मोहन बाहेती'घोटू '
पिताजी आप अच्छे थे
संवारा आपने हमको ,सिखाया ठोकरे सहना
सामना करने मुश्किल का,सदा तत्पर बने रहना
अनुभव से हमें सींचा ,तभी तो हम पनप पाये
जरासे जो अगर भटके ,सही तुम राह पर लाये
मिलेगी एक दिन मंजिल ,बंधाया हौंसला हरदम
बढे जाना,बढे जाना ,कभी थक के न जाना थम
जहाँ सख्ती दिखानी हो,वहां सख्ती दिखाते थे
कभी तुम प्यार से थपका ,सबक अच्छा सिखाते थे
तुम्हारे रौब डर से ही,सीख पाए हम अनुशासन
हमें मालुम कितना तुम,प्यार करते थे मन ही मन
सरल थे,सादगी थी ,विचारों के आप सच्चे थे
तभी हम अच्छे बन पाए ,पिताजी आप अच्छे थे
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
बुधवार, 13 जून 2018
आजकल तो रह गए हम छाछ है
जवानी के वो सुहाने दिन गए ,बुढ़ापे का हो गया आग़ाज़ है
थे कभी फुलक्रीम वाले दूध हम,आजकल तो रह गए बस छाछ है
जवानी में थोड़ी भी ऊष्मा मिली ,खूं हमारा था उछालें मारता
दूध जैसे उफनने लगते थे हम,बड़ा ही मस्ती भरा संसार था
मलाई बन हसीं गालों पर लगे ,होते थे टॉनिक सुहागरात के
उन दिनों की बात ही कुछ और थी ,मुश्किलों से संभलते जज्बात थे
दिल किया खट्टा किसी ने फट गए ,किसी ने जावन जो डाला ,जम गए
खोया बन के खोया अपने रूप को ,मथा जो कोई ने मख्खन बन गए
अब पिघलते झट से आइसक्रीम से ,हमसे यौवन हो गया नाराज है
थे कभी फुलक्रीम वाले दूध हम ,आजकल तो रह गए बस छाछ है
जवानी का सारा मख्खन खुट गया ,कुछ यहाँ कुछ वहां यूं ही बंट गया
लुफ्त तो सबने ही जी भर कर लिया ,खजाना सब लुट यूं ही झटपट गया
मलाई जो भी थी थोड़ी सी बची ,बुढ़ापे की बिल्ली ,आ चट कर गयी
स्निग्धता अब भी बची है प्यार की ,दूध की ताक़त भले ही घट गयी
अब तो खट्टी छाछ सी है जिंदगी ,मगर फिर भी ,स्वास्थवर्धक स्वाद है
तुम बनाओ कढ़ी चाहे रायता ,अब भी देती ,हृदय को आल्हाद है
सुरों में अब भी मधुरता है वही ,भले ही अब ये पुराना साज है
थे कभी फुलक्रीम वाले दूध हम,आजकल तो रह गए बस छाछ है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
तुम पीठ खुजाओ हमारी
हम संग है एक दूजे के ,तो फिर कैसी लाचारी
मैं पीठ खुजाऊँ तुम्हारी,तुम पीठ खुजाओ हमारी
इस बढ़ती हुई उमर में ,जो आई शिथिलता तन में
बढ़ गयी प्रगाढ़ता उतनी ,हम दोनों के बंधन में
हम रोज घूमने जाते ,हाथों में हाथ पकड़ कर
मिलती जब धुंधली नज़रें ,बहता है प्यार उमड़ कर
रह कर के व्यस्त हमेशा
हम रहे कमाते पैसा
बस यूं ही उहापोह में ,ये उमर बिता दी सारी
मैं पीठ खुजाऊँ तुम्हारी,तुम पीठ खुजाओ हमारी
है दर्द मेरे घुटनो में ,तुम इन पर बाम लगा दो
नस चढ़ी पिंडलियों की है ,तुम थोड़ा सा सहला दो
हमने झुकना ना सीखा ,जीवन भर रहे तने हम
अब रहा नहीं वो दमखम ,आया झुकने का मौसम
नाखून बढे पैरों के
काटे हम एक दूजे के
काम एक दूजे के आएं ,यूं हम तुम बारी बारी
मैं पीठ खुजाऊँ तुम्हारी ,तुम पीठ खुजाओ हमारी
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
पुराने दिनों की यादें
आते है याद वो दिन ,जब हम जवान थे
कितने ही हुस्नवाले हम पे मेहरबान थे
हमारी शक्शियत का जलवा कमाल था
आती थी खिंची लड़कियां कुछ ऐसा हाल था
लेकिन हम फंस के एक के चंगुल में रह गए
शादी की ,अरमां दिल के आंसुओ में बह गए
फंस करके गृहस्थी में, हवा सब निकल गयी
चक्कर में कमाई के ,जवानी फिसल गयी
होकर के रिटायर , हुए ,बूढ़े जरूर है
चेहरे पे हमारे अभी भी ,बाकी नूर है
लेकिन हम हसीनो के चहेते नहीं रहे
आती है पास लड़कियां ,अंकल हमें कहे
अब मामले में इश्क के ,कंगाल हो गए
गोया पुराना ,बिका हुआ, माल हो गए
एक बात दिल को हमारे,रह रह के सालती
बुढ़ियायें भी तो हमको नहीं घास डालती
हालांकि उनका भी तो है उजड़ा हुआ चमन
मिल जाए जो आपस में तो कुछ गुल खिला दे हम
लेकिन हमारी किस्मत ही कुछ रूठ गयी है
हाथों से जवानी की पतंग ,छूट गयी है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
मोहब्बत का मज़ा -बुढ़ापे में
न उनमे जोर होता है ,न हम में जोर होता है
बुढ़ापे में,मोहब्बत का ,मज़ा कुछ और होता है
गया मौसम जवानी का,यूं ही हम मन को बहलाते
कभी वो हमको सहलाते,कभी हम उनको सहलाते
लिपटने और चिपटने का ,ये ऐसा दौर होता है
बुढ़ापे में मोहब्बत का ,मज़ा कुछ और होता है
टटोला करती है नज़रें ,जहां भी हुस्न है दिखता
करो कोशिश कितनी ही कहीं पर मन नहीं टिकता
भटकता रहता दीवाना ,ये आदमखोर होता है
बुढ़ापे में मोहब्बत का ,मज़ा कुछ और होता है
फूलती सांस ,घुटनो में ,नहीं बचता कोई दम खम
मगर एक बूढ़े बंदर से ,गुलाटी मारा करते हम
भूख, पर खा नहीं सकते ,हाथ में कौर होता है
बुढ़ापे में मोहब्बत का ,मज़ा कुछ और होता है
जिधर दिखती जवानी है ,निगाहें दौड़ जाती है
कह के अंकल हसीनाएं ,मगर दिल तोड़ जाती है
पकड़ में आ ही जाते हो ,जो मन में चोर होता है
बुढ़ापे में मोहब्बत का ,मज़ा कुछ और होता है
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
शनिवार, 9 जून 2018
बुढ़ापे में आशिकी का चक्कर
एक दिन ,
हमारे बुजुर्ग साथी का विवेक जागा
तो वो उन्होंने अपने अंतर्मन के पट खोले
और अपनी धर्मपत्नी से बोले
तुम मुझसे इतना प्यार करती हो
तुम मेरा इतना ख्याल रखती हो
फिर भी मैं जब तब
जवान महिलाओं की तरफ
ललचाई नज़रों से ताकता हूँ
जब भी मौका मिलता है ,
उनके पीछे चोरी छुपे भागता हूँ
मैं जानता हूँ ये गलत है पर मुझे सुहाता है
क्या मेरी इन हरकतों पर ,
तुम्हे गुस्सा नहीं आता है
पत्नी ने मुस्करा कर दिया जबाब
इसमें बुरा मान कर,
मैं क्यों अपना दिमाग करू खराब
आप मेरे हाथ से फिसलो ,
ये आपकी औकात नहीं है
मैंने कई कुत्तों को ,
चमचमाती कार के पीछे दौड़ते देखा है
जब कि वो जानते है कि कार ड्राइव करना ,
उनके बस की बात नहीं है
तुम लाख लड़कियों के पीछे दौड़ो ,
वो डालनेवाली तुम्हे घास नहीं है
और अगर बदकिस्मती से उसे पटालोगे
तो मैं तो तुमसे सम्भल नहीं पाती ,
उसको क्या संभालोगे ?
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
अम्मा गयी विदेश
निमंत्रण उसको मिला विशेष
हमारी अम्मा गयी विदेश
देख वहां की मेहरारू को ,अम्मा है शरमाती
ऊंचा सा स्कर्ट पहन कर ,मेम चले इतराती
ना सर चुन्नी,नहीं दुपट्टा ,खुली खुली सी छाती
मरद से काटे छोटे केश
हमारी अम्मा गयी विदेश
खान पान भाषा से उसकी नहीं बैठती पटरी
जाय घूमने,भूख लगे तो ,अम्मा खोले गठरी
ना पीज़ा बर्गर वो खाये अपने लड्डू ,मठरी
यही है उसका भोज विशेष
हमारी अम्मा गयी विदेश
पोती और जमाई घूमे ,दिन भर पहने नेकर
चकला बेलन नहीं ,बनाता रोटी,'रोटी मेकर '
एक दिन सब्जीदाल बनाकर खाते है हफ्तेभर
रसोई का ना निश दिन क्लेश
हमारी अम्मा गयी विदेश
जगह जगह पर छोरा छोरी और विदेशी जोड़े
लाज शरम तज,चूमाचाटी करते दिखे निगोड़े
होय लाज से पानी अम्मा, मुंह पर घूँघट ओढ़े
मुओं को शरम बची ना शेष
हमारी अम्मा गयी विदेशी
यूं तो सुथरा साफ़ बहुत ये देश है अंग्रेजों का
महरी नहीं,मशीने करती ,बर्तन ,झाड़ू ,पोंछा
टॉयलेट में नल ना ,कागज से पोंछो,ये लोचा
लगे है दिल पर कितनी ठेस
हमारी अम्मा गयी विदेश
नहीं समोसे,नही जलेबी ,नहीं चाट के ठेले
सब इंग्लिश में गिटपिट करते,घूम न सके अकेले
डॉलर की कीमत रूपये में बदलो,रोज झमेले
यहाँ का बड़ा अलग परिवेश
हमारी अम्मा गयी विदेश
पोती ने जिद कर अम्मा को नयी जींस पहना दी
एक सुन्दर सा टॉप साथ में एक जर्सी भी ला दी
मेम बनी अम्मा ,शीशे में देख स्वयं शरमाती
पहन कर अंग्रेजों का भेष
हमारी अम्मा गयी विदेश
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
हम भी अगर बच्चे होते
कहावत है
बच्चे और बूढ़े ,होते है एक रंग
जिद पर आजाते है ,
तो करते है बहुत तंग
दोनों के मुंह में दांत नहीं होते
स्वावलम्बी बनने के हालत नहीं होते
किसी का सहारा लेकर चलते है
बात बात पर मचलते है
और जाने क्या सोच कर ,
कभी मुस्कराते है,कभी हँसते है
वैसे ये भी आपने देखा होगा ,
कि सूर्योदय और सूर्यास्त की छवि ,
एक जैसी दिखती है
पर सूर्योदय के बाद जिंदगी खिलती है
और सूर्यास्त के बाद जिंदगी ढलती है
दोनों सा एक जैसा बतलाना हमारी गलती है
'फ्रेश अराइवल ' के माल को ,
'एन्ड ऑफ़ सीजन 'के सेल वाले माल से ,
कम्पेयर करना कितना गलत है
आपका क्या मत है ?
छोटे बच्चों को ,सुंदर महिलाएं
रुक रुक कर प्यार करती है
कभी गालों को सहला कर दुलार करती है
कभी सीने से चिपका लेती है
कभी गोदी में बैठा लेती है
कभी अपने नाजुक होठों से ,
चुंबन की झड़ी लगा देती है
क्या आपने कभी ऐसा,
किसी बूढ़े के साथ होते हुए देखा है
नहीं ना ,भाई साहब ,
ये तो किस्मत का लेखा है
बूढ़े तो ऐसे मौके के लिए ,
तरस तरस जाते है
अधूरी हसरत लिए ,
दिल को तड़फाते है
कोई भी कोमलंगिनी
उनके झुर्राये गालों को नहीं सहलाती
चुंबन से या सीने से चिपका ,
मन नहीं बहलाती
न कभी कोई बाहों में लेती है
उल्टा 'बाबा' कह कर के दिल जला देती है
बेचारे बूढ़े ,आँखों में प्यास लिए ,
मन ही मन है रोते
यही सोच कर की ,
हम भी अगर बच्चे होते
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
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"संविदा कर्मियों का दर्द" @गरिमा लखनवी - *संविदा कर्मियों का दर्द* *@**गरिमा लखनवी* *--* *कोई क्यों नहीं समझता* *दर्द हमारा* *हम भी इंसान हैं* *योगदान भी है हमारा* *--* *सरकारी हो या निजी* * कैसा भ...1 वर्ष पहले
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शब्द से ख़ामोशी तक – अनकहा मन का (२५) - * ये जीवन कढ़ाई में उबलती घनी मलाई की तरह है जिसमें हमारे सदगुण व अवगुण ( विकार, विचार, अच्छाई, बुराई, मोह, तृष्णा, वि...1 वर्ष पहले
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किताबों की दुनिया - 257 - तू वही नींद जो पूरी न हुई हो शब-भर मैं वही ख़्वाब कि जो ठीक से टूटा भी न हो * मेरी आंखे न देखो तुमको नींद आए तो सो जाओ ये हंगामा तो इन आँखों में शब भर होने...1 वर्ष पहले
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Tara Tarini Maha Shaktipeeth. - *Tara Tarini Maha Shaktipeeth* *गंजम जिले में पुरुषोत्तमपुर के पास रुशिकुल्या नदी के तट पर कुमारी पहाड़ियों पर तारा-तारिणी ओडिशा के सबसे प्राचीन शक्तिपीठों...2 वर्ष पहले
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मशहूर कथाएं : काव्यानुवाद - *दो बैलों की कथा :मुंशी प्रेमचंद)* (1) बछिया के ताऊ कहो, कहो गधा या बैल। हीरा मोती मे मगर, नहीं जरा भी मैल। नही जरा भी मैल, दोस्ती बैहद पक्की। मालिक झूरी म...2 वर्ष पहले
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अनूठा रहस्य प्रकृति का... - रात भर जागकर हरसिंगार वृक्ष उसकी सख्त डालियों से लगे नरम नाजुक पुष्पों की करता रखवाली कि नरम नाजुक से पुष्प सहला देते सख्त वृक्ष के भीतर सुकोमल...2 वर्ष पहले
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उद्विग्नता - जीवन की उष्णता अभी ठहरी है , उद्विग्न है मन लेकिन आशा भी नहीं कर पा रही इस मौन के वृत्त में प्रवेश बस एक उच्छवास ले ताकते हैं बीता कल , निर्निमे...2 वर्ष पहले
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क्षणिका - हां सच है देहरी पार की मैंने वर्जनाओं की रुढ़िवाद की पाखंड की कुंठा की .... ओह सभ्य समाज ....! तुम्हारी ओर से सिर्फ घृणा .? कहो इतने नाजुक कब से हो लि...2 वर्ष पहले
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महिला दिवस - विशेष - मैंने माँ से पहचाना एक स्त्री होना कितना दुसाध्य है कोई देवता हो जाने से पहचाना अपनी बहिनों से कैसे वो जोड़े रखती हैं एक घर को दूसरे से सीख पाया अपनी बेटियो...3 वर्ष पहले
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चुप गली और घुप खिडकी - एक गली थी चुप-चुप सी इक खिड़की थी घुप्पी-घुप्पी इक रोज़ गली को रोक ज़रा घुप खिड़की से आवाज़ उठी चलती-चलती थम सी गयी वो दूर तलक वो देर तलक पग-पग घायल डग भर प...3 वर्ष पहले
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गलती से डिलीट हो गए मेरे पुराने पोस्टों की पुनर्प्राप्ति : इंटरनेट आर्काइव के सौजन्य से - दो वर्ष पहले ब्लॉग का टेम्पलेट बदलने की की कोशिश रहा था। सहसा पाया कि कुछ पोस्ट गए। क्या हुआ था, पूरा समझ में नहीं आया। बाद में ब्लॉगर वालों को भ...3 वर्ष पहले
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Pooja (laghukatha) - पूजा " सुनिये ! ", पत्नी ने पति से कहा " जी कहिये", पति ने पत्नी की तरह जवाब दिया तो पत्नी चिढ़ गयी. पति को समझ आ गया और पत्नि से पूछा कि क्या बात है...3 वर्ष पहले
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अलसाई शाम तले - यूँ ही एल अलसाई शाम तले बैठें थे कभी दो चार जब पल मिले मदहोश शाम ढल गयी यूँ ही आलस में तकदीर में जाने कब हों फिर ये सिलसिले ..3 वर्ष पहले
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लाॅकडाउन 2 - मोदी जी....सुनो:- धीरे धीरे ही सही बीते इक्किस वार सोम गया मंगल गया कब बीता बुधवार कब बीता बुधवार हो गया अजब अचंभा लगता है इतवार हो गया ज्यादा लंबा दाढ़ी भी ...3 वर्ष पहले
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Gatyatmak Jyotish app - विज्ञानियों को ज्योतिष नहीं चाहिए, ज्योतिषियों को विज्ञान नहीं चाहिए।दोनो गुटों के झगडें में फंसा है गत्यात्मक ज्योतिष, जिसे दोनो गुटों के मध्य सेतु ...4 वर्ष पहले
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2019 का वार्षिक अवलोकन (अट्ठाईसवां) - खत्म होनेवाला है हमारा इस साल का सफ़र। 2020 अपनी गुनगुनी,कुनकुनी आहटों के साथ खड़ा है दो दिन के अंतराल पर। चलिए इस वर्ष को विदा देते हुए कुछ बातें कहती...4 वर्ष पहले
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इंतज़ार और दूध -जलेबी... - वोआते थे हर साल। किसी न किसी बहाने कुछ फरमाइश करते थे। कभी खाने की कोई खास चीज, कभी कुछ और। मैं सुबह उठकर बहन को फ़ोन पे अपना वह सपना बताती, यह सोचकर कि ब...4 वर्ष पहले
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गुड्डू आओ ... गोलगप्पे खाएँ .... - गुड्डू आओ ... चलें .. गोलगप्पे खाएँ कुछ खट्टे-मीठे .. तो कुछ चटपटे-चटपटे खाएँ चलो .. चलें ... अपने उसी ठेले पे .. स्कूल के पास ... आज .. जी भर के ... मन भ...4 वर्ष पहले
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cara mengobati herpes di kelamin - *cara mengobati herpes di kelamin* - Penyakit herpes genital baik pada pria maupun pada wanita kerap menjadi permasalahan tersendiri, karena resiko yang le...5 वर्ष पहले
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आइने की फितरत से नफरत करके क्या होगा - आईने की फितरत से नफरत करके क्या होगा किरदार गर नहीं बदलोगे किस्सा कैसे नया होगा हर बार आईना देखोगे धब्बा वही लगा होगा आईने लाख बदलो सच बदल नहीं सकते ज...5 वर्ष पहले
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शर्मसार होती इंसानियत.. - *इंसानियत का गिरता ग्राफ ...* आज का दिन वाकई एक काले दिन के रूप में याद किया जाना था. सबेरे जब समाचार पत्रों में इंसानियत को शर्मसार कर देने वाले इस समाचा...6 वर्ष पहले
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कूड़ाघर - गैया जातीं कूड़ाघर रोटी खातीं हैं घर-घर बीच रास्ते सुस्तातीं नहीं किसी की रहे खबर। यही हाल है नगर-नगर कुत्तों की भी यही डगर बोरा लादे कुछ बच्चे बू का जिनपर...6 वर्ष पहले
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एक अधूरी [ पूर्ण ] कविता - घर परिवार अब कहाँ रह गए है , अब तो बस मकान और लोग बचे रहे है बाकी रिश्ते नाते अब कहाँ रह गए है अब तो सिर्फ \बस सिर्फ नाम बचे है बाकी तीज त्योहार कहाँ ...6 वर्ष पहले
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लिखते रहना ज़रूरी है ! - पिछले कई महीनों में जीवन के ना जाने कितने समीकरण बदल गए हैं - मेरा पता, पहचान, सम्बन्ध, समबन्धी, शौक, आदतें, पसंद-नापसंद और मैं खुद | बहुत कुछ नया है लेकिन...6 वर्ष पहले
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इन आँखों में बारिश कौन भरता है .. - बेतरतीब मैं (३१.८.१७ ) ` कुछ पंक्तियाँ उधार है मौसम की मुझपर , इस बरस पहले तो बरखा बरसी नहीं ,अब बरसी है तो बरस रही ,शायद ये पहली बारिशों का मौसम...6 वर्ष पहले
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सवाल : हम आपदाओं में फेल क्यों? जवाब में यह हकीकत पढि़ए - राजस्थान के एक हिस्से में बाढ़ का कहर है और लोग आपदा से घिरे हैं। प्रशासनिक अमला इतना असहाय नजर आ रहा है। आपदाएं हमेशा आती है और सरकारी तंत्र लाचार नजर आ...6 वर्ष पहले
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ब्लॉगिंग : कुछ जरुरी बातें...3 - पाठक हमारे ब्लॉग पर हमारे लेखन को पढने के लिए आता है, न कि साज सज्जा देखने के लिए. लेखन और प्रस्तुतीकरण अगर बेहतर होगा तो यकीनन हमारा ब्लॉग सबके लिए लाभदा...6 वर्ष पहले
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गुरुपूर्णिमा मंगलमय हो - *गुरुपूर्णिमा मंगलमय हो * लगभग दो वर्ष के लंबे अंतराल के पश्चात् परम श्रद्धेय स्वामीजी संवित् सोमगिरि जी महाराज के दर्शन करने (अभी 1 जुलाई) को गया तो मन भ...6 वर्ष पहले
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जिन्द्गी - जिन्दगी कल खो दिया आज के लिए आज खो दिया कल के लिए कभी जी ना सके हम आज के लिए बीत रही है जिन्दगी कल आज और कल के लिए. दोस्तों आज मेरा जन्म दिन भ...6 वर्ष पहले
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हम चाँद को सिक्का बना दुनिया खरीद लेंगे - *हम चाँद को सिक्का बना दुनिया खरीद लेंगेहाँ ! चाँद को सिक्का बना दुनिया खरीद लेंगे* जो रात होगी तो जमी से चाँदी बटोर लेंगे चाँदी की फिर पायल बना लम्हों ...7 वर्ष पहले
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Demonetization and Mobile Banking - *स्मार्टफोन के बिना भी मोबाईल बैंकिंग संभव...* प्रधानमंत्री मोदीजी ने अपनी मन की बात में युवाओं से आग्रह किया है कि हमें कैशलेस सोसायटी की तरफ बढ़ना है औ...7 वर्ष पहले
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गीत अंतरात्मा के: आशा - गीत अंतरात्मा के: आशा: मैं एक आशा हूँ मेरे टूट जाने का तो सवाल ही नहीं होता मैं बनी रहती हूँ हर एक मन में ताकि हर मन जीवित रह सके मुझे खुद को बचाए ही र...7 वर्ष पहले
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'जंगल की सैर ' - मेरी पुरुस्कृत बाल कहानी 'जंगल की सैर ' मातृभारती पर। पढ़े और अपनी राय दें http:matrubharti.com/book/5492/7 वर्ष पहले
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पानी की बूँदें - पानी की बूँदे भी, मशहूर हो गई । कल तक जो यूँही, बहती थी बेमतलब, महत्वहीन सी यहाँ वहाँ, फेंकी थी जाती, समझते थे सब जिसके, मामूली सी ही बूँदें, आज वो पहुँच स...7 वर्ष पहले
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खोया बच्चा..... - आज एक हास्य कविता एक बच्चा रो रहा था , मेले में अनाउंसमेंट हो रहा था , जल्दी आएं जिन का बच्चा हो ले जाएँ | तभी सौ से ज्यादा लोग वहां आते है जल्दी से बच...8 वर्ष पहले
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स्वागतम् - मित्रों, सभी को अभिवादन !! बहुत दिनों के बाद कोई पोस्ट लिख रहा हूँ | इतने दिनों ब्लॉगिंग से बिलकुल दूर ही रहा | बहुत से मित्रों ने इस बीच कई ब्लॉग के लि...8 वर्ष पहले
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बीमा सुरक्षा और सुनिश्चित धन वापसी - कविता - अविनाश वाचस्पति - ##AssuredIncomePlanPolicy निश्चित धन वापसी और बीमा सुविधा संदेह नहीं यह पक्का बनाती है विश्वास विश्वास में ही मौजूद रहती है यह आस धन भी मिलेगा और निडर ...8 वर्ष पहले
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विंडोज आधारित सिस्टम में गुगल वाइस टाइपिंग - *विंडोज आधारित सिस्टम में गुगल वाइस टाइपिंग* हममें से अधिकांश लोगों को टंकण करना काफी श्रमसाध्य एवं उबाऊ कार्य लगता है और हम सभी यह सेाचते हैं कि व्यक...8 वर्ष पहले
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Happy Teacher's Day - “गुरु का हाथ” - *पिसते… घिसते… तराशे जाते…* *गिरते… छिलते… लताडे जाते…* *मांगते… चाहते… ठुकराए जाते…* *गुजर जाते हैं चौबीस या इससे ज्यादा साल…* *लगे बचपन से… बहुत लोग फरिश...8 वर्ष पहले
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हमारा सामाजिक परिवेश और हिंदी ब्लॉग - वर्तमान नगरीय समाज बड़ी तेजी से बदल रहा है। इस परिवेश में सामाजिक संबंध सिकुड़ते जा रहे हैं । सामाजिक सरोकार से तो जैसे नाता ही खत्म हो गया है। प्रत्येक...8 वर्ष पहले
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ज़िन्दगी का गणित - कोण नज़रों का मेरे सदा सम रहा न्यून तो किसी को अधिक वो लगा घात की घात क्या जान पाये नहीं हम महत्तम हुए न लघुत्तम कहीं रेखा हाथों की मेरे कुछ अधिक वक्र ...9 वर्ष पहले
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कम्बल और भोजन वितरण के साथ "अपंगता दिवस" संपन्न हुआ - *नई दिल्ली: विगत 3 दिसम्बर 2014 दिन-बधुवार को सुबह 10 बजे, स्थान-कोढ़ियों की झुग्गी बस्ती,पीरागढ़ी, दिल्ली में गुरु शुक्ल जैन चैरिटेबल ट्रस्ट (पंजीकृत) दिल...9 वर्ष पहले
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जून 2014 के बाद की गज़लें/गीत (21) चलो-चलो यह देश बचायें ! (‘शंख-नाद’ से) - (सारे चित्र' 'गूगल-खोज' से साभार) चुपके-खुल कर अमन जलाते | खिलता महका चमन जलाते || अशान्ति की जलती ज्वाला से- सुखद शान्ति का भवन जलाते || हिंसा के दुर्दम प...9 वर्ष पहले
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झरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (14) आधा संसार (नारी उत्पीडन के कारण) (क) वासाना-कारा (vi) कुबेर-सुत | - (सारे चित्र' 'गूगल-खोज' से साभार) दरिद्रता-दुःख-दीनता, निर्धनता की मार ! कितना पीड़ित विश्व में, है आधा संसार !! पुत्र कुबेरों के कई, कारूँ के कुछ लाल ! ज...9 वर्ष पहले
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आहटें ..... - *आज भोर * *कुछ ज्यादा ही अलमस्त थी ,* *पूरब से उस लाल माणिक का * *धीरे धीरे निकलना था * *या * *तुम्हारी आहटें थी ,* *कह नहीं सकती -* *दोनों ही तो एक से...9 वर्ष पहले
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झाँसी की रानी पर आधारित "आल्हा छंद" - झाँसी की रानी पर आधारित 'अखंड भारत' पत्रिका के वर्तमान अंक में सम्मिलित मेरी एक रचना. हार्दिक आभार भाई अरविन्द योगी एवं सामोद भाई जी का. सन पैंतीस नवंबर उ...9 वर्ष पहले
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हम,तुम और गुलाब - आज फिर तुम्हारी पुरानी स्मृतियाँ झंकृत हो गई और इस बार कारण बना वह गुलाब का फूल जिसे मैंने दवा कर किताबों के दो पन्नों के भूल गया गया था और उसकी हर पंखुड़िय...9 वर्ष पहले
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गाँव का दर्द - गांव हुए हैं अब खंढहर से, लगते है भूल-भुलैया से। किसको अपना दर्द सुनाएँ, प्यासे मोर पप्या ? आंखो की नज़रों की सीमा तक, शहरों का ही मायाजाल है, न कहीं खे...9 वर्ष पहले
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संघर्ष विराम का उल्लंघन - जम्मू,संघर्ष विराम का उल्लंघनकरते हुए पाकिस्तानी सेना ने रविवार को फिर से भारतीय सीमा चौकियों पर फायरिंग की। इस बार पाकिस्तान के निशाने पर जम्मू जिले के का...10 वर्ष पहले
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प्रतिभा बनाम शोहरत - “ हम होंगें कामयाब,हम होंगें कामयाब,एक दिन ......माँ द्वारा गाये जा रहे इस मधुर गीत से मेरे अन्तःकरण में नए उत्साह का स्पंदन हो रहा था .माँ मेरे माथे को ...10 वर्ष पहले
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आवरण - जानती हूँ तुम्हारा दर्प तुम्हारे भीतर छुपा है. उस पर मैं परत-दर-परत चढाती रही हूँ प्रेम के आवरण जिन्हें ओढकर तुम प्रेम से भरे सभ्य और सौम्य हो जाते हो जब ...11 वर्ष पहले
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OBO -छंद ज्ञान / गजल ज्ञान - उर्दू से हिन्दी का शब्दकोश *http://shabdvyuh.com/* ग़ज़ल शब्दावली (उदाहरण सहित) - 2 गीतिका छंद वीर छंद या आल्हा छंद 'मत्त सवैया' या 'राधेश्यामी छंद' :एक ...11 वर्ष पहले
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इंतज़ार .. - सुरसा की बहन है इंतज़ार ... यह अनंत तक जाने वाली रेखा जैसी है जवानी जैसी ख्त्म होने वाली नहीं .. कहते हैं .. इंतज़ार की घड़ियाँ लम्बी होती हैं ख़त्म भ...11 वर्ष पहले
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यार की आँखों में....... - मैं उन्हें चाँद दिखाता हूँ उन्हे दिखाई नही देता। मैं उन्हें तारें दिखाता हूँ उन्हें तारा नही दिखता। या खुदा! कहीं मेरे यार की आँखों में मोतियाबिंद...11 वर्ष पहले
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आज का चिंतन - अक्सर मैं ऐसे बच्चे जो मुझे अपना साथ दे सकते हैं, के साथ हंसी-मजाक करता हूँ. जब तक एक इंसान अपने अन्दर के बच्चे को बचाए रख सकता है तभी तक जीवन उस अंधकारमय...11 वर्ष पहले
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क्राँति का आवाहन - न लिखो कामिनी कवितायें, न प्रेयसि का श्रृंगार मित्र। कुछ दिन तो प्यार यार भूलो, अब लिखो देश से प्यार मित्र। ……… अब बातें हो तूफानों की, उम्मीद करें परिवर्तन ...11 वर्ष पहले
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कल रात तुम्हारी याद - कल रात तुम्हारी याद को हम चाह के भी सुला न पाये रात के पहले पहर ही सुधि तुम्हारी घिर कर आई अहसास मुझको कुछ यूँ हुआ पास जैसे तुम हो खड़े व्याकुल हुआ कुछ मन...12 वर्ष पहले
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HAPPY NEW YEAR 2012 - *2012* *नव वर्ष की शुभकामना सहित:-* *हर एक की जिंदगी में बहुत उतार चढाव होता रहता है।* *पर हमारा यही उतार चढाव हमें नया मार्ग दिखलाता है।* *हर जोखिम से ...12 वर्ष पहले
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"भइया अपने गाँव में" -- (बुन्देली काव्य-संग्रह) -- पं० बाबूलाल द्विवेदी - We're sorry, your browser doesn't support IFrames. You can still <a href="http://free.yudu.com/item/details/438003/-----------------------------------------...12 वर्ष पहले
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अपनी भाषाएँ - *जैसे लोग नहाते समय आमतौर पर कपड़े उतार देते हैं वैसे ही गुस्से में लोग अपने विवेक और तर्क बुद्धि को किनारे कर देते हैं। कुछ लोगों का तो गुस्सा ही तर्क...12 वर्ष पहले
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