एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

बुधवार, 29 मार्च 2023

रह रह कर आता याद मुझे,
 वह बीता वक्त जवानी का,
  कितना प्यारा और मजेदार,
  वह यौवन वाला दौर ही था 
  
  मैं बाइक पर राइड करता ,
  तुम कमर पकड़ चिपकी रहती 
  टूटी सड़कों पर ड्राइव का 
  वह आनंद भी कुछ और ही था
  
  ऐसे में भी जब कभी कभी 
  पड़ती बारिश की बौछारें,
  पानी से जाते भीग भीग,
   सब कपड़े मेरे तुम्हारे 
   तब सड़क किनारे रुक करके
   एक झुग्गी वाली होटल में
     चुस्की ले गरम चाय पीना ,
   करता आनंद विभोर ही था 
   कितना प्यारा और मजेदार
    वह यौवन वाला दौर ही था 
    
छुट्टी के दिन तुम काम में व्यस्त 
घरभर को व्यवस्थित करती थी 
मैं प्याज पकोड़े तल अपने 
हाथों से तुम्हें खिलाता था 

तुम गरम पकोड़े खाती थी 
और आधा मुझे खिलाती थी 
तो संग पकोड़ो के अधरों 
का स्वाद मुझे मिल जाता था

संध्या को निकला करते थे
 हम तो तफ़री करने इधर उधर 
 सड़कों पर ठेले वालों से
  खा लेते थे कुछ चटर-पटर 
  वह भेल पुरी ,पानी पुरी 
  और स्वाद भरी चटपटी चाट 
  वो गरम जलेबी बलखाती ,
  गाजर हलवा चितचोर ही था 
  कितना प्यारा और मजेदार
  वो यौवन वाला दौर ही था 
  
हम पिक्चर जाया करते थे 
और खाया करते पॉपकॉर्न,
 जब भी कुछ मौका मिल जाता 
 कुछ छेड़ाखानी करते थे 
 
और चांदनी रातों में छत पर
 तुम चांद निहारा करती थी
  मैं तुम्हें निहारा करता था 
  थोड़ी मनमानी करते थे 
  
सर्दी में मज़ा धूप का ले
करते थे वक्त गुजारा हम 
बेफिक्री से और खुशी-खुशी 
करते थे मस्ती मारा हम 
वह दिन भी कितने प्यारे थे 
राते कितनी रंगीली थी
 तेरी संगत की रंगत में 
 मन मांगा करता मोर ही था 
 कितना प्यारा और मजेदार 
 वह यौवन वाला दौर ही था

मदन मोहन बाहेती घोटू 
इस बढी उम्र में वृद्ध लोग इस तरह गुजारा करते हैं 
मित्रों के संग बैठ मंडली में, वो गपशप मारा करते हैं 
कुछ जैसे तैसे भी कटता ,वैसे ही वक्त काटते हैं 
कुछ सुबह चाय के प्याले संग, पूरा अखबार चाटते हैं 
कुछ सुबह-शाम घूमा करते, रखते सेहत का ख्याल बहुत 
कुछ त्रस्त बहू और बेटों से ,घर में रहते बेहाल बहुत 
कुछ पोते पोती को लेकर, उनको झूला झुलवाते हैं 
कुछ रोज शाम झोला भरकर, सब्जी और फल ले आते हैं
कुछ मंदिर जाते सुबह शाम, और भजन कीर्तन करते हैं 
कुछ टीवी से चिपके रहकर ही जीवन व्यापन करते हैं 
कुछ हाथों मोबाइल रहता, जो नहीं छूटता है पल भर 
कुछ आलस मारे दिन भर ही ,लेटे रहते हैं बिस्तर पर 
कुछ करते याद जवानी के बीते दिन, खोते ख्वाबों में 
कुछ होते भावुक और दुखी , खो जाते हैं जज्बातों में 
कुछ उम्र जनित पीड़ाओं से, हरदम रहते हैं परेशान 
कुछ लोगों को देते प्रवचन और बांटा करते सदा ज्ञान 
कुछ तीरथ मंदिर धर्मस्थल जा, दर्शन लाभ लिया करते 
कुछ पर्वों में ,मेलों में जा, गंगा स्नान किया करते 
कुछ कथा भागवत सुनते हैं और अपना पुण्य बढ़ाते हैं 
कुछ करते हैं प्रसाद ग्रहण और भंडारॉ में खाते हैं 
कुछ की खो जाती याददाश्त जाते लोगों के भूल नाम 
 कुछ सेहत को रखने कायम, टॉनिक लेते हैं सुबह शाम 
 कुछ बैठे रखते है हिसाब ,अपनी जोड़ी सब दौलत का 
 कुछ प्राणायाम योग करते और ख्याल रखें निज सेहत का 
 होती है उमर विरक्ति की,पर कुछ मोह माया में फंसते
 तनहाई में तड़पा करते और लाफिंग क्लब में जाकर हंसते 
 पर जितनी अधिक उमर बढ़ती,जीने की ललक बढ़ी जाती 
 चाहे कम दिखता ,सुनता है ,तन मन में कमजोरी आती
 कितने ही अनुभव पाए है,जीवन में कर मारामारी
 पर वृद्धावस्था का अनुभव, पड़ता हर अनुभव पर भारी

मदन मोहन बाहेती घोटू 
बचपन और बुढ़ापे की यह बात निराली होती है 
उगते और ढलते सूरज की एक सी लाली होती है 
 होता है स्वभाव एक जैसा, वृद्धों का और बालक का 
क्योंकि जवानी सदा न रहती,अंत बुढ़ापा है सबका 
जैसे हमको आया बुढ़ापा,कभी तुम्हे भी आयेगा 
जो पीड़ा हम भोग रहें हैं,तुमको भी दिखलाएगा 
हमने तुम पर प्यार लुटाया, बचपन में जितना ज्यादा
 हमें बुढ़ापे में तुम लौटा देना बस उसका आधा 
क्योंकि उस समय हमको होगी ,जरूरत प्यार तुम्हारे की 
 तन अशक्त को आवश्यकता होगी किसी सहारे की
जो जिद तुम बचपन में करते यदि हम करें बुढ़ापे में 
तो तुम हम पर खफा ना होना, रहना अपने आपे मे 
तिरस्कार व्यवहार न करना हमको पीड़ित मत करना 
तुमसे यही अपेक्षा है कि हमे उपेक्षित मत करना

मदन मोहन बाहेती घोटू
जीवन का कुछ ऊबा ऊबा 
तो मन ने बांधा मनसूबा 
जीने की राह नजर आई,
 तन्मय तन, भक्ति में डूबा 
 
कुछ प्राणायाम और योग किया 
तन ने पूरा सहयोग दिया 
मन रहता हे अब खिला-खिला 
खुशियां भी दी, आरोग्य दिया 

कर जीवन शैली परिवर्तन 
अब खुश है तन,अब खुश है मन 
आ गई नई चुस्ती फुर्ती 
अब बदल गया मेरा जीवन 

प्रभु भक्ति की पाई भेषज 
श्री राम और गोविंदा भज 
संचित है शांति और प्रेम
उलझा जीवन अब गया सुलझ

मदन मोहन बाहेती घोटू 

शुक्रवार, 17 मार्च 2023

प्रकृति से बातचीत 

आज सवेरे ,प्रातः प्रातः
मैंने प्रकृति से करी बात 
 
कोयल को कूकी, मैं भी कुहका
चिड़िया चहकी , मैं भी चहका
कलियां चटकी और फूल खिले,
वे भी महके , मैं भी महका

 जब चली हवाएं मंद मंद 
 मैंने त्यागे सब प्रतिबंध 
 मैं भी बयार के संग संग 
 स्वच्छंद बहा, लग गए पंख 
 
 और जब कपोत का झुंड उड़ा 
 तो मैं भी उनके साथ जुड़ा 
 पूरे अंबर की सैर करी ,
 मैंने भी उनके साथ साथ 
 मैंने प्रकृति से करी बात 
 
जब रजनी बीती, भोर हुआ 
तो मैं आनंद विभोर हुआ 
पूरब में छाई जब लाली 
तो आसमान चितचोर हुआ 

भ्रमरों ने किया मधुर गुंजन 
हो गया रसीला मेरा मन 
तितली फुदकी, मैं भी फुदका,
कर नर्तन पाया नवजीवन 

बादल से जब सूरज झांका 
तो मैंने भी उसको ताका 
किरणे चमकी , मैं भी चमका
 फिर की प्रकाश से मुलाकात 
 मैंने प्रकृति से करी बात 

मदन मोहन बाहेती घोटू 
भूनना 

कई चीजों का स्वाद 
बढ़ जाता है भूनने के बाद 
जैसे जब भुनता है चना 
स्वाद हो जाता है चौगुना 
भुनी हुई मूंगफली 
होती है स्वाद भरी 
पापड़ का असली स्वाद 
आता है भूनने के बाद 
मकई के दाने जब भुने जाते हैं 
स्वादिष्ट पॉपकॉर्न बन जाते हैं 
हम चाव से भुनी हुई शकरकंद खाते हैं 
चावल भी भूनकर पर परमल हो जाते हैं
भुने हुए बैंगन से बनता है भरता 
जिसको की खाने को सब का मन करता 
भुने हुए आलू का स्वाद होता है कमाल 
भुने खोए से बनते है,पेड़े लाल लाल 
और बड़े नोट को भुनाया जाय अगर
हमें प्राप्त होती है ढेर सारी चिल्लर
लेकिन जब आदमी जला भुना होता है 
तो वह खतरनाक ,कई गुना होता है

मदन मोहन बाहेती घोटू
जब बूढ़े बूढ़े मिलते हैं 

1
गणित का एक नियम जो हमें सिखलाया है जाता 
 माइनस से मिले माइनस नतीजा प्लस में हैआता 
हो बूढ़े माइनस तुम और बूढ़े माइनस हम है,
मिले तो प्लस,जवानी का, मजा दूना है हो जाता

2
परीक्षा में अगर मिलते, हैं नंबर साठ से ज्यादा सफलता तुम को मिलती है डिवीजन फस्ट कहलाता 
उम्र के साठ से ज्यादा, गुजारे वर्ष ,मेहनत कर,
डिवीजन फस्ट पाया है,जिएं हम ठाठ से ज्यादा 
3
 अनुभव से भरे रहते ,भले ही वृद्ध होते हैं 
 करा लो काम कुछ भी तुम, सदा कटिबद्ध होते हैं 
अगर मिलते इकट्ठे हो,जवानी लौट फिर आती,
  इन्हे कमजोर मत समझो ,बड़े समृद्ध होते हैं
  4
भले धुंधली सी आंखें हैं, भले कमजोर होता तन 
जवानी जोश जज्बे से ,भरा रहता है लेकिन मन 
न जाओ उम्र पर ,चावल पुराने स्वाद होते हैं महकता उतना ज्यादा है पुराना जितना हो चंदन
  5 
जमा पूंजी है अनुभव की, किसी के ना सहारे हम 
बुलंद है हौसले अपने, नहीं समझो बिचारे हम 
रहे हम दोस्त बन कर के, हमारे तुम, तुम्हारे हम 
यूं मिल खुशियों से जीवन के, बचे दिन भी गुजारे हम

मदन मोहन बाहेती घोटू 

बुधवार, 15 मार्च 2023

कभी कभार 

रोज-रोज की बात न करता, कहता कभी कभार 
बरसा दिया करो हम पर भी ,तुम थोड़ा सा प्यार

 प्यासी आंखें निरखा करती ,तेरा रूप अनूप 
 हम पर भी तो पड़ जाने दो गरम रूप की धूप 
 हो जाएंगे शांत हृदय के ,दबे हुए तूफान 
 जन्म जन्म तक ना भूलूंगा, तुम्हारा एहसान
 मादक मदिरा के यौवन की यदि छलका दो जाम
 सारा जीवन ,न्योछावर कर दूंगा तेरे नाम 
 रहे उम्र भर ,कभी ना उतरे ,ऐसा चढ़े खुमार रोज-रोज की बात न करता लेकिन कभी कभार
 बरसा दिया करो हम पर भी, तुम थोड़ा सा प्यार
 
घड़ी दो घड़ी बैठ पास में सुन लो दिल की बात 
अपने कोमल हाथों से सहला दो मेरे हाथ 
ना मांगू चुंबन आलिंगन, ना मांगू अभिसार
मुझे देख तिरछी चितवन से मुस्कुरा दो एक बार 
 तुम्हारा कुछ नहीं जाएगा करके यह उपकार लेकिन मुझको मिल जाएगा खुशियों का संसार 
मुझे पता है तुम जवान, मैं जाती हुई बहार 
 रोज रोज की बात न करता लेकिन कभी कभार 
बरसा दिया करो हम पर भी बस थोड़ा सा प्यार

मदन मोहन बाहेती घोटू 

बीत गया फिर एक बरस 

लो बीत गया फिर एक बरस 
कुछ दिन चिंताओं में बीते,
कुछ दिन खुशियों के हंस हंस हंस 
लो बीत गया फिर एक बरस 

हर रोज सवेरे दिन निकला,
 हर रोज ढला दिन ,शाम हुई 
 कोई दिन मस्ती मौज रही 
 तो मुश्किल कभी तमाम हुई 
 सुख दुख ,दुख सुख का चक्र चला,
 जैसा नीयति ने लिखा लेख 
 जो भी घटना था घटित हुआ,
 हम मौन भुगतते रहे ,देख 
 जो होनी थी वह रही होती 
 कुछ कर न सके ,हम थे बेबस
 लो बीत गया फिर एक बरस 
 
 रितुये बदली ,गर्मी ,सर्दी ,
 आई बसंत ,बादल बरसे 
 जीना पड़ता है हर एक को 
 मौसम के मुताबिक ढल करके 
 परिवर्तन ही तो जीवन है,
 दिन कभी एक से ना रहते 
 हैं विपदा तो आनंद कभी 
 जीवन कटता सुख दुख सहते 
 आने वाले वर्षों में भी,
  यह चक्र चलेगा जस का तस 
  लो बीत गया फिर एक बरस 
  
ऐसे बीता, वैसे बीता,
या जैसे तैसे बीत गया 
उम्मीद लगाए बैठे हैं,
 खुशियां लाएगा वर्ष नया 
 पिछले वर्षों के अनुभव से 
 हमने जो शिक्षा पाई है 
 वह गलती ना दोहराएंगे 
 यह हमने कसमें खाई है 
 कोशिश होगी आने वाला
 हर दिन हो सुखद, हर रात सरस 
 लो बीत गया फिर एक बरस

मदन मोहन बाहेती घोटू 
बदलाव 

जीवन बड़ा हसीन ना रहा ,जो पहले था
 मन उतना रंगीन ना रहा ,जो पहले था 
 
अब लगाव कम हुआ, विरक्ति भाव आ गया
ईश्वर के प्रति थोड़ा भक्ति भाव आ गया 
मोह माया से धीरे-धीरे उचट रहा मन 
कहीं न टिकता, इधर उधर ही भटक रहा मन 
खुद पर कोई यकीन ना रहा ,जो पहले था 
मन उतना रंगीन ना रहा,जो पहले था 

कुछ करने को पहले जैसा जोश नहीं है 
जो होता है, हो जाता है, होश नहीं है 
धीरे-धीरे समय हाथ से फिसल रहा है 
जीने के प्रति सोच, नजरिया बदल रहा है 
जीवन अब शौकीन ना रहा ,जो पहले था 
मन उतना रंगीन ना रहा,जो पहले था

मदन मोहन बाहेती घोटू 
झुक गया इंसान

जमाने भर के बोझे ने,कमर मेरी झुका दी है ,
और झुकने को मत बोलो, नहीं तो टूट जाऊंगा 
दुखी है मन मेरा कहता ,सताया और जो मुझको,
 तुम्हारा चैन,सुख खुशियां ,सभी कुछ लूट जाऊंगा

 झुकी नजर तुम्हारी थी, तुम्हारा रूप मस्ताना झुका था में तुम्हारी आशिकी में होकर दीवाना 
तुम्हें पाने की हसरत में किए समझोते झुक झुक कर 
न था मालूम जीवन भर ,पड़ेगा झुक के पछताना 
मेरी दीवानगी का फायदा तुम भी ले रही इतना 
सब्र का बांध कहता है, बस करो ,टूट जाऊगा
जमाने भर के बोझे ने , कमर मेरी झुका दी है,
और झुकने को मत बोलो, नहीं तो टूट जाऊंगा

 मेरे दाएं, मेरे बाएं ,मुसीबत ढेर सारी है 
 परेशां मन कभी रहता, कभी कोई बीमारी है  सुकूं से जी नहीं पाता, कभी भी एक पल दो पल
 तुम्हारी जी हजूरी में ,बिता दी उम्र सारी है बहुत गुबार,गुब्बारे में, दिल के हैं शिकायत का,
 हवा इसमें भरो मत तुम, नहीं तो फूट जाऊंगा
 जमाने भर के बोझे ने कमर मेरी झुका दी है ,
 और झुकने को मत बोलो, नहीं तो टूट जाऊंगा

मदन मोहन बाहेती घोटू 
गलतफहमी 

तुम आए और रुके
मेरे पैरों की तरफ झुके
मैं मूरख व्यर्थ ही रहा था गदगद 
तुम झुके हो मेरे प्रति होकर श्रद्धानत 
और छूना चाहते हो मेरे पाद
चरण स्पर्श कर मांगने आए हो आशीर्वाद 
पर तुम्हारे झुकने में नहीं कोई श्रद्धा का भाव था
  यह तो तुम्हारा नया पैंतरा था, दाव था 
 तुम तो झुके थे खींचने के लिए मेरी टांग 
 या चीते की तरह झपट कर लगाने को छलांग 
तुम्हारा धनुष सा झुकना तीर चलाने के लिए था 
या चोरों सा मेरे घर में सेंध लगाने के लिए था तुम झुके थे सर्प की तरह दंश मारने
 या फिर कुल्हाड़ी की तरह मुझे काटने 
और मैं यूं ही हो गया था गलतफहमी का शिकार 
क्योंकि मुश्किल है बदलना तुम्हारा व्यवहार बिच्छू डंक नहीं मारेगा, यह सोचना है नादानी 
और हमेशा खारा ही रहता है समंदर का पानी तुम भले ही लाख धोलो गंगाजल से 
पर सफेदी की उम्मीद मत करना काजल से

मदन मोहन बाहेती घोटू

बुधवार, 8 मार्च 2023

तेरा अबीर, तेरी गुलाल 
सब लाल लाल ,सब लाल लाल 

इस मदमाती सी होली में 
जब ले गुलाल की झोली में 
आया तुम्हारा मुंह रंगने

तुम शर्माई सी बैठी थी ,
कुछ सकुचाई सी बैठी थी 
मन में भीगे भीगे सपने 

मैंने बस हाथ बढ़ाया था
तुमको छू भी ना पाया था,
लज्जा के रंग में डूब गए,
 हो गए लाल ,रस भरे गाल 
 तेरा अबीर,तेरी गुलाल 
 सब लाल लाल, सब लाल लाल

 मेहंदी का रंग हरा लेकिन,
 जब छू लेती है तेरा तन 
 तो लाल रंग छा जाता है 
 
प्यारी मतवाली आंखों में ,
इन काली काली आंखों में ,
रंगीन जाल छा जाता है 

होठों पर लाली महक रही 
चुनर में लाली लहक रही 
है खिले कमल से कोमल ये,
रखना संभाल, पग देखभाल 
तेरा अबीर,तेरी गुलाल 
सब लाल लाल, सब लाल लाल 

मदन मोहन बाहेती घोटू 

सोमवार, 6 मार्च 2023

यह मेरा घर 

यह तेरा घर, यह मेरा घर 
यह खुशबुओं से तरबतर 
महक हमारे प्यार की ,
सभी तरफ ,इधर-उधर 

यहां पूजा घर में राम है 
बंसी बजाते श्याम है 
हरते गणेश ,सारे क्लेश,
 और रखवाले हनुमान हैं 
 
यह रोज आरती होती है 
जलती माता की ज्योति है 
यहां अगरबत्तियां जल जल कर ,
खुशबू से देती घर को भर 

यहां गमले में फुलवारी है 
हर फूल की खुशबू प्यारी है 
जूही गुलाब चंपा खिलता 
खुशबू और स्वाद सदा मिलता 

जब पके रसोई में भोजन 
तो खुशबू से ललचाता
 मन 
जब हलवा सिक कर महकाता
पानी सब के मुंह में आता 

जब गरम पकोड़े जाय तले
लगते हैं सबको बहुत भले
और छौंक दाल जब लगती 
तो भूख पेट की है जगती 

अम्मा कमरे से पेन बाम 
की खुशबू आती सुबह शाम 
यहां ओडोमास की खुशबू से ,
करते हैं तंग नहीं मच्छर 
यह तेरा घर यह मेरा घर

मदन मोहन बाहेती घोटू 
विनती 

प्रभु मुझ पर कर दे जरा कृपा 
मैंने हरदम तेरा नाम जपा 
श्रद्धा भक्ति से पूजा की ,
मंदिर में जाकर कई दफा 

 मैने कई बार प्रसाद चढ़ा 
 चालीसा भी हर बार पढ़ा
  और तेरे भजन कीर्तन में ,
  भाग लिया था बढ़ा चढ़ा 
  लेकिन इतनी सेवा का भी,
  मिला मुझको नाही कोई नफा
 प्रभु कर दे मुझ पर जरा कृपा 

पूजा की और हवन भी किया 
पंडित जी को भी दान दिया 
नित सुबह शाम आराधन कर,
 मैंने बस तेरा नाम लिया 
 पर मुझे न कुछ ईनाम मिला ,
 ये कैसी बतला तेरी वफा 
 प्रभु कर दे मुझ पर जरा कृपा

 तू तो बस चुप चुप रहता है
 और हमें नहीं कुछ देता है 
 क्या तू अपने सब भक्तों की ,
 बस यूं ही परीक्षा लेता है 
 अब एक लॉटरी खुलवा दें ,
 इनाम दिला दें अबकी दफा 
 प्रभु मुझ पर कर दे जरा कृपा

मदन मोहन बाहेती घोटू 
तेरा आना 

तुम आती तो रजनीगंधा, दिन में भी महकने लगती है 
ठिठुराती सर्द शिशिर में भी, कोकिल सी कुहुकने  लगती है 
एक आग मिलन की गरमी की,मेरे दिल में दहकने लगती है
 दिल मेरा चहकने लगता है ,मेरी चाल बहकने लगती है 
 तेरे आने की आहट से ,मन में छा जाती
  मस्ती है 
  बिजलियां सैंकड़ों गिर जाती,जब तू मुस्कुराती हंसती है 
 तेरी मतवाली चाल देख ,भूचाल सा मन में 
 उठता है 
 ऐसी हो जाती हालत है कि चैन हृदय का
  लुटता है 
  मन करता मेरे आस-पास, तुम बैठो यूं ही नहीं जाओ 
  मैं पियूं रूप रस , घूंट घूंट,तुम प्यार की मदिरा छलकाओ

मदन मोहन बाहेती घोटू 
दो का ठाठ 

हो अगर अकेला कोई तो, 
मुश्किल से वक्त कटा करता,
पर जब दो मिलकर दोस्त बने,
 तो अच्छी संगत कहते हैं 
 
जब एक आंख मारी जाती,
 तो उसे छेड़खानी कहते ,
 पर जब दो आंखें मिल जाती,
 तो उसे मोहब्बत कहते हैं 
 
हो एक टांग तो फिर उस से ,
आगे ना कदम बढ़ा सकते ,
दो टांगे जब संग चलती है ,
तब कोई आगे बढ़ता है 

एक होंठ अकेला बेचारा,
कुछ काम नहीं कर सकता है ,
दो होंठ मगर जब मिलते हैं,
तब ही चुंबन हो सकता है

हो अगर अकेला एक हाथ ,
तो बस चुटकी बज सकती है ,
दो हाथ मगर जब मिल जाते ,
तो फिर बज जाती ताली है 

इंसान अकेला हो घर में ,
तो काटा करता है सूनापन,
 घर में रौनक छा जाती है ,
 जब आ जाती घरवाली है

मदन मोहन बाहेती घोटू 
नवजीवन

 मैंने नवजीवन पाया है 
 विपदा के बादल ने सूरज को घेरा था 
 सहमी सहमी किरणों ने भी मुंह फेरा था
 क्षण भर को यूं लगा रोशनी लुप्त हो गई,
 आंखों आगे जैसे छाया अंधेरा था 
 पर अपनों की दुआ, हवा बन ऐसी आई,
 धीरे-धीरे से प्रकाश फिर मुस्कुराया है 
 मैंने नवजीवन पाया है 
 भूले भटके किए गए कुछ कर्म छिछोरे 
 इस जीवन में या कि पूर्व जनम में मोरे 
 कभी हो गए होंगे जो मुझसे गलती से ,
 मुझे ग्रसित करने को मेरे पीछे दौड़े 
 किंतु पुण्य भी थोड़े बहुत किये ही होंगे ,
 जिनके फलस्वरूप ही यह तम हट पाया है 
 मैंने नवजीवन पाया है 
 जीवन के सुखदुख क्रम में ,दुख की बारी थी 
 जो यह काल रूप बन आई बीमारी थी 
 हुआ अचेतन तन था ,मन भी था घबराया,
 ऐसा लगता था जाने की तैयारी थी 
 लेकिन करवा चौथ ,कठिन व्रत पत्नी जी का जिसके कारण हुई पुनर्जीवित काया है 
 मैंने नवजीवन पाया है 
 शायद तीर्थ भ्रमण, दर्शन ,पूजन ,आराधन 
 या कि बुजुर्गों की आशिषें, आई दवा बन 
 या कि चिकित्सक की भेषज ने असर दिखाया या की हस्तरेखा में शेष बचा था जीवन जाते-जाते शिशिर हुई है फिर बासंती
 मुरझाए फूलों को फिर से महकाया है 
 मैंने नवजीवन पाया है 
 अब जीवन स्वच्छंद रहा ना पहले जैसा अनुशासन में बंध कर रहना पड़े हमेशा 
 खानपान पर कितने ही प्रतिबंध लग गए,
 खुलकर खाओ पियो ना तो जीवन कैसा 
 जीभ स्वाद की मारी तरस तरस जाती है,
  ऐसा बढ़ी उमर ने उसको तड़फाया है 
  मैंने नवजीवन पाया है

मदन मोहन बाहेती घोटू 

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-