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बुधवार, 27 फ़रवरी 2013

नयनों की भाषा

        नयनों  की भाषा 

 मेरी थी उत्कट अभिलाषा ,समझूं मै नयनो की भाषा
दीदे फाड़ ,उमर भर सारी ,रहा देखता  सिर्फ  तमाशा
कभी मटकते,कभी खटकते कभी भटकते है ये नयना
कभी सुहाते,मन को भाते ,कहीं अटकते है ये नयना
सुरमा लगा,सूरमा बन कर,तीर चलाते है ये नयना
कोई मृग से,कोई कमल की तरह सुहाते है ये नयना
कैसे तिरछे नयन किसी के ,मन को घायल,कर कर  जाते
कैसे कोई नयन चुरा कर ,बार बार हमको तड़फाते 
कैसे तन कर गुस्सा करते,कैसे झुक कर हाँ कह जाते
हो जाते है ,बंद मिलन में,विरहां  में आंसू ढलकाते 
कैसे आँखें,चुन्धयाती है ,कैसे आँखे रंग बदलती
अच्छे अच्छों को बहकाती,जब ये चंचल होकर चलती
दिखी कोई सुन्दर सी कन्या ,कोई आँखें फाड़ देखता
कोई आँखें टेड़ी करता,तो कोई आँखें तरेरता
कैसे आँखों ही आँखों में ,हो जाते है कई इशारे
कोई आँख में धूल झोंकता,कोई दिखाता सपने प्यारे
होती आँखों की कमजोरी,कभी दूर की,कभी पास की
आँख बिछाये ,विरहन जोहती,राह  पिया की,लगा टकटकी
नयन द्वार से आकर कोई ,कैसे बस जाता है दिल में
चोरी चोरी नयन लड़ाना , डाल दिया करता मुश्किल में
कैसे कोई लाडला बच्चा,बनता है आँखों का  तारा
कैसे आँखें बंद होने पर,मिट जाता अस्तित्व हमारा
कैसे चमक आँख में आती,जब मिल जाता प्यारा हमदम
कैसे कोई ,किरकिरी बन कर ,आँखों में चुभता है हरदम
कैसे आँख इशारा करती,आता कोई याद,फडकती
थक जाने पर ,लग जाती है,कैसे सोती,कैसे जगती
कैसे कोई ,आँख मार कर,लड़की पटा लिया करता है
कैसे कोई  ,बना बेवफा ,नज़रें हटा लिया करता  है
कुछ रिसर्च करने वालों की,एक स्टडी ये कहती है
पलकें झपकाने में आँखे,बारह बरस बंद रहती है 
कभी अपलक ,उन्हें निहारे,बार बार या झपकें पलके
कैसे इन प्यारे नैनों में,बस जाते है,सपने कल के
कैसे एक लीक काजल की,इनकी धार तेज करती है
कैसे दुःख में,या फिर सुख में,ये आँखें,पानी भरती है  
 कैसे  मोती,आंसूं बन कर,टपका करते है आँखों से
कैसे दो दीवाने प्रेमी,बातें करते है आँखों से 
दिल से दिल तो मिले बाद में ,पहले आँख मिलाई जाती
लेने देने से बचना हो,तो फिर आँख चुराई जाती
कोई जब है मनको भाता ,आता ,आँखों में बस जाता
कैसे साहब की आँखों में,चढ़ कर कोई तरक्की पाता
आते नज़र ,गुलाबी डोरे,अभिसारिका की आँखों में
होती आँखे ,लाल क्रोध से ,कभी नशा छाता आँखों में
कभी बड़ी खुशियाँ मिलती है ,और मिलती है कभी निराशा
मन में थी उत्कट अभिलाषा ,समझूं मै नयनो की  भाषा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 26 फ़रवरी 2013

मुक्ति


हे प्रभु
यह जीवन बहुत
विस्तृत है
और कठिनाइयाँ
अनेक हैं
अताह मुसीबतों का
सागर सामने हैं
कितने ही
आस्तीन के सांप
फन फैलाये बैठे हैं
इन सब के
स्थूलकाय अम्बुधि से
क्या मैं
मुक्त्त हो पाउँगा
जो अनंत काल से
स्मृति और कुटुंब  बन
सम्बन्धी और नातेदार बन
पीछे दौड़ते हैं
आईना दिखाते हैं
तरह तरह के
जिसमें अपने आप को
अपने मूल स्वरुप को
बदलता हुआ देख
घबरा जाता हूँ
आत्मा तक बेचैन
हो जाती है
कहीं आँखें
छलिया तो नहीं
मझे इस
स्मृति भरे
आयुर्बल से
न जाने कब
मुक्ति मिलेगी...

सोमवार, 25 फ़रवरी 2013

संतान और उम्मीद

      संतान और उम्मीद

अपनी संतानों से ज्यादा ,मत रखो उम्मीद तुम,
           परिंदे हैं,उड़ना सीखेंगे ,कहीं उड़ जायेंगे
घोंसले में बैठ कर ना रह सकेंगे उम्र भर,
          पेट भरने के लिए ,दाना तो चुगने जायेंगे
बेटियां तो धन पराया है,उन्हें हम एक दिन,
          किसी के संग ब्याह देंगे ,वो बिदा हो जायेंगी
ब्याह बेटे का रचाते ,बहू लाते चाव से,
           आस ये मन में लगाए,घर में रौनक आएगी
और पत्नी संग अगर वो,मौज करले चार दिन,
         लगने लगता है तुम्हे,बेटा  पराया हो गया
बात पत्नी की सुने और उस पे ज्यादा ध्यान दे ,
        जोरू का गुलाम वो माता का जाया हो गया
अगर बेटा कहीं जाता,नौकरी या काम से ,
        सोचने लगते हो बीबी ने अलग तुमसे किया
दूर तुमसे हो गया है ,तुम्हारा लख्ते -जिगर,
         फंसा अपने जाल में है,बहू ने उसको लिया
उसके भी कुछ शौक है और उसके कुछ अरमान है,
         जिंदगी शादीशुदा के ,भोगना है सुख सभी
उसके बीबी बच्चे है और पालना परिवार है ,
          बोझ जिम्मेदारियों का ,पड़ने  दो,उस पर अभी 
अरे उसको भी तो अपनी गृहस्थी है निभाना ,
           उसको अपने ढंग से ,जीने दो अपनी जिंदगी
खान में रहता जो पत्थर ,कट के,सज के ,संवर के ,
           हीरा बन सकता है वो ,नायाब भी और कीमती

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

रविवार, 24 फ़रवरी 2013

पंचतत्व के गुण अपनाये

            पंचतत्व के गुण अपनाये

पहला है जल तत्व ,सदा नत मस्तक रहता
प्यास बुझाता ,कल कल कर नीचे को बहता
सिंचित करता धरा,बीज पनपा,उपजाता
देता है हरियाली,वृक्ष,पुष्प   महकाता
बन कर बादल,आसमान में ऊंचा  उड़ता
फिर बारिश की बूंदें बन ,धरती से जुड़ता
जल चरित्र को क्यों ना जीवन में अपनाये
नम्र रहें ,नतमस्तक ,काम सभी के आये
जो हरदम ऊपर उठता ,वो अग्नि तत्व है
इसका मानव के जीवन में अति महत्त्व है
यही तत्व है जो देता उर्जा  जीवन को
और इसी से उर्जा मिलती मानव तन को
लपट  आग की हरदम है ऊपर को जाती
प्रगतिशील बन ,ऊपर उठो,पाठ सिखलाती
अग्नि तत्व से ले ये शिक्षा ,हम आगे बढ़
प्रगतिवान बन करें तरक्की ,हम ऊपर चढ़
तत्व तीसरा ,जिससे बनती है ये काया
धरती की माटी है ,जिसने हमें बनाया
हल चलवा ,निज तन पर,सबको अन्न देती है
मातृस्वरूपा ,जीने के साधन देती है
खोदो भी यदि ,तो भी है ये रत्न उगलती
सहनशीलता की मिसाल है ये माँ धरती
हम जीवन भर आभारी है,इस धरती के
परोपकार और सहनशीलता ,इससे सीखें
पंचतत्व के तन में चौथा तत्व पवन है
लेते सांस हवा से हम पाते जीवन है
जीवनदाता है पर नज़र नहीं आती है
बिना दिखे उपकार करो ,ये सिखलाती है
गुप्त रूप से सेवा कर ,मत करो प्रदर्शन
तत्व पांचवां 'गगन',हमें जो देता जीवन
नभ की तरह विशाल बने ,यह गुण भी पायें
पंचतत्व का तन है ,इनके गुण अपनाये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


 


दिल की सुन-लोगों की मत सुन

    दिल की सुन-लोगों की मत सुन

मुझे ज़माना ,अपने अपने ढंग, से समझाता रहता है  
लेकिन मै  वो ही करता हूँ,जैसा मेरा मन कहता  है 
मम्मी कहती ऐसा करले,पापा कहते वैसा करले
कहते दोस्त ,संभल कर कुछ कर ,मत तू ऐसा वैसा करले
पडूं बीमार,कोई कहता है,जाओ,डाक्टर को दिखलाओ
कोई कहता ,डाक्टर छोडो,तुम देशी इलाज  करवाओ
देता है कोई सलाह कि होम्योपेथी आप दवा लो
कोई कहता किसी सयाने से तुम झाड फूंक करवा लो
कोई कहता ,जा हकीम के पास दवा लो तुम यूनानी
तुम आयुर्वेदिक इलाज लो,तभी बिमारी जड़ से जानी
लोगबाग़ कुछ समझाते है ,छोडो यार दवा का चक्कर
बाबा रामदेव के आसन ,तुमको स्वस्थ रखे जीवन भर
बीमारी में हालचाल जो ,मेरा कोई पूछने आता
तरह तरह की राय बता कर ,सलाहकार मेरा बन जाता
जितने मुंह है,उतनी बातें,कन्फ्यूजन  हरदम रहता है
लेकिन मै वो ही करता हूँ,जैसा मेरा दिल कहता है
बच्चे ने स्कूल करलिया ,आगे इसको क्या पढवाना
कितने ही मेरे शुभचिंतक ,देते मुझे सलाहें  नाना
यूं कर कोटा भेज इसे तू,आई आई टी की कोचिंग करवा
कोई कहे पी एम टी करवा,इसे डाक्टर अच्छा बनवा
अच्छा जॉब कराना है तो ,तू करवा इसको एम बी ए
जो अच्छी कमाई करवाना ,तो तू बनवा  ,इसको सी ए
कोई कहे फोरेन  भेज दे,वहां पढाई  करना  अच्छा
कोई कहे ये मत कर वर्ना ,निकल हाथ से जाए बच्चा
कोई ना कहता है पूछो,कि बच्चे के मन में क्या है
या उसका इंटरेस्ट किधर है,आगे  उसको बनना क्या है
हम खुद,कुछ हों या ना हो पर,सलाहकार सबसे अच्छे है 
कोई पूछे या ना पूछे,मुफ्त मशविरा दे देते है  
दिल की सुन,लोगों की मत सुन,बस इसमें ही सुख रहता है
इसीलिए मै वो करता हूँ,जो भी मेरा दिल कहता  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013

आतंकवादी बम धमाकों पर...



इकहत्तर की उमर हो गयी

  इकहत्तर की उमर हो गयी   


पल पल करके ,गुजर गए दिन,दिन दिन करके ,बरसों बीते
  इकहत्तर की उमर हो गयी,लगता है कल परसों बीते
जीवन की आपाधापी में ,पंख लगा कर वक्त उड़ गया
छूटा साथ कई अपनों का ,कितनो का ही संग जुड़ गया
सबने मुझ पर ,प्यार लुटाया,मैंने प्यार सभी को बांटा
चलते फिरते ,हँसते गाते ,दूर किया मन का सन्नाटा
भोला बचपन ,मस्त जवानी ,पलक झपकते ,बस यों बीते
  इकहत्तर की उमर हो गयी ,लगता है कल परसों बीते
सुख की गंगा ,दुःख की यमुना,गुप्त सरस्वती सी चिंतायें
इसी त्रिवेणी के संगम में ,हम जीवन भर ,खूब नहाये
क्या क्या खोया,क्या क्या पाया,रखा नहीं कुछ लेखा जोखा
किसने उंगली पकड़ उठाया,जीवन  पथ पर किसने रोका
जीवन में संघर्ष बहुत था ,पता नहीं हारे या जीते
  इकहत्तर की उमर हो गयी,लगता है कल परसों बीते

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


गुरुवार, 21 फ़रवरी 2013

तुमने ऐसी आग लगा दी

             तुमने ऐसी आग लगा दी

               मै पग पग रख ,धीरे चलती
               तुम चलते हो जल्दी ,जल्दी
मै बस चार कदम चल पायी,और तुमने तो दौड़ लगा दी  
               मंद  आंच सी, मै  हूँ जलती
             और तुम तो हो  लपट दहकती 
तुमने अपनी चिंगारी से ,तन मन में है आग   लगा दी
              ऊष्मा है तो मेघ उठेंगे
             घुमुड़ घुमुड़  कर वो गरजेंगे
             रह रह कर बिजली कड़केगी , 
              तप्त धरा पर फिर बरसेंगे 
              बहुत चाह  थी मेरे मन की 
              भीगूं रिमझिम में  सावन की
लेकिन तुम तो ऐसे बरसे,प्रेम झड़ी ,घनघोर लगा दी
मै बस चार कदम चल पायी,और तुमने तो दौड़ लगा दी 
               मै हूँ पानी,तुम हो चन्दन
             हम मिल जुल ,करते आराधन 
               तुम घिस घिस इस तरह घुल गये
                महक गया तन मन का आँगन
               चाहत थी तन में खुशबू भर
                चढूँ  देवता के मस्तक पर
तुम को अर्पित करके सब कुछ,जीवन की बगिया महका दी
 मै बस चार कदम चल पायी ,और तुमने तो दौड़  लगा  दी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'   

शिशु की भाषा

          शिशु की भाषा

नन्हे शिशु की,होती बस दो भाषा है
एक तो वो हँसता है ,एक वो रोता है
इन्ही दो भाषाओँ में वो,सब कुछ व्यक्त किया करता है
इन भाषाओँ की ,कोई लिपि नहीं होती,
और इन्हें समझने के लिए ,
कोई अक्षर या भाषा के ज्ञान की जरुरत नहीं होती
बच्चा जब हँसता है ,
किलकारियां भरता है ,
तो सभी के चेहरे पर खुशियाँ छाती है
उसकी मुस्कान की भाषा ,
सबको समझ में आ जाती है
पर बच्चा जब रोता है,
अपने कोमल से कपोलों को आंसूं से भिगोता है
सारा घर परेशान होता है
क्योंकि ये भाषा ,हर एक को समझ नहीं आती है
सिर्फ एक माँ है ,जो कि समझ पाती है
कि उसे भूख लगी है या पेट में दर्द है
या उसके कपडे गीले हो गए है और सर्द है
अपने कलेजे के टुकड़े की ये दो भाषाएँ
पूर्ण रूप से जिन्हें ,समझ सकती है बस मायें

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 20 फ़रवरी 2013

पेट के खातिर

          पेट के खातिर
पेट के खातिर न जाने ,क्या क्या करता आदमी
पेट के खातिर ही जीता और मरता  आदमी
पेट में जब आग लगती ,तो बुझाने के लिये ,
जो न करना चाहिए ,वो कर गुजरता  आदमी
नौकरी ,मेहनत  ,गुलामी,में स्वयं को बेच कर,
अपना और परिवार सबका ,पेट भरता  आदमी
खेत में हल चला कर के,अन्न उपजाता कई ,
तब कहीं दो रोटियां खा,गुजर करता  आदमी
मूक ,निर्बल जानवर को,काट,उनका मांस खा,
भूख अपनी मिटाने  में,नहीं डरता  आदमी
पाप और अपराध इतने,हो रहे संसार में ,
पेट पापी के लिए ,बनता बिगड़ता  आदमी
पेट हो खाली अगर तो,भजन भी होता नहीं,
इसलिए ,पहले भजन के ,पेट भरता आदमी
कहते हैं कि  दिल का रास्ता,पेट से है गुजरता ,
पहले भरता पेट है फिर इश्क करता  आदमी
पेट भरने के लिये  ,खटता  है और जीता है वो,
या कि जीने के लिये है,पेट भरता   आदमी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सज़ा

आज अपने दिल को सज़ा दी मैंने
उस की हर बात भुला दी मैंने 

एक एक पल दफ़ना दिया मैंने
गुलदस्ता यादों का जला दिया मैंने
बात जिस पर वो मुस्कुराती थी 
वोह हर अलफ़ाज़ मिटा दिया मैंने 

मेरी दुनिया तो खाख़ से आबाद हुई 
दिल-इ-आतिश को ही बुझा दिया मैंने 

आज यादों की मज़ार पर आई थी वोह 
मुंह फेर के अपना भुला दिया मैंने 

अब कोई रिश्ता नहीं है दरमियाँ अपने 
अकेलेपन से भी एक रिशा बना लिया मैंने 

आज अपने दिल को सज़ा दी मैंने
उस की हर बात भुला दी मैंने....

सोमवार, 18 फ़रवरी 2013

राजभोग से

                राजभोग से

भोज थाल में सज,सुन्दर से
भरे हुऐ  ,पिस्ता  केसर से
अंग अंग में ,रस है तेरे
लुभा रहा है मन को मेरे
स्वर्णिम काया ,सुगठित,सुन्दर
राजभोग  तू ,बड़ा मनोहर
बड़ी शान से इतराता है
तू  इस मन को ललचाता है
जब होगा उदरस्त  हमारे
कुछ क्षण स्वाद रहेगा प्यारे
मज़ा आएगा तुझ को खाके
मगर पेट के अन्दर  जाके
सब जाने नियति क्या होगी
और कल तेरी गति क्या होगी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

अपने अपने ढंग

       अपने अपने ढंग

जब भी ये आये है तो ,रोकी नहीं जाये  फिर ,
                करोगे नहीं तो देगी ,दम ये निकाल कर 
बैठे बैठे नारी करे,खड़े खड़े नर करे ,
                सड़क किनारे कभी ,तो कभी दीवार पर 
शिशु करे सोते सोते ,गोदी में या रोते रोते,
                 पंडित करे है कान  पे  जनेऊ  डाल   कर
कोई डर  जाये  करे,कोई पिट जाये  करे,
                  बूढ़े करे धीरे धीरे ,देर तक ,संभाल   कर 
टांग उठा ,करे कुत्ता,जगह को सूंघ सूंघ ,
                  बिजली का खम्बा कोई,पास देख भाल कर
करने  के सबके है ,अपने तरीके अलग,
                    बड़ा ही सुकून मिले  ,इसको निकाल कर

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

रविवार, 17 फ़रवरी 2013

माँ की महानता

            माँ की महानता

माँ महान है                                बुद्धि दायिनी      
माँ उड़ान है                                  सुख प्रदायिनी 
स्वाभमान है -माँ                         जन्मदायिनी--माँ 
माँ विशेष है                                ज्ञान सुरसरी 
माँ सन्देश है                                प्यार से भरी 
माँ स्वदेश है -माँ                          ममता माधुरी -माँ 
माँ तरंग है                                    माँ जीवन है 
माँ उमंग है                                    माँ आँगन है 
सदा संग है -माँ                             वृन्दावन  है-माँ 
माँ संगीत है                                 माँ है जननी 
माँ पुनीत है                                  ज्ञान वर्धिनी 
प्रेमगीत है --माँ                            पथप्रदार्शिनी -माँ 
माँ है शिक्षा                                 माँ गंगा   है 
माँ है दीक्षा                                 जगदम्बा  है
और परीक्षा -माँ                          अनुकम्पा है-माँ 
सद विचार है                               बुद्धि प्रदाता 
प्रीत धार है                                   सुख की दाता 
मधुर प्यार है -माँ                          भाग्य विधाता -माँ 
माँ भोली है                                  माँ  कविता है 
माँ डोरी है                                    माँ सरिता है 
 माँ लोरी है-माँ                             और गीता है -माँ 
माँ विकास है                              आशीषें भर 
माँ प्रकाश है                                करे निछावर    
माँ मिठास है-माँ                          जो जीवन भर -माँ 
माँ अनूप है                                माँ पोषण है 
ज्ञान कूप है                                 माँ चन्दन है 
 देवी रूप है -माँ                           आराधन है -माँ 
माँ दीया  है                                  माँ ममता है 
कुछ न लिया है,                          माँ समता  है 
सदा दिया है-माँ                            माँ बस माँ है -माँ 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 16 फ़रवरी 2013

भाग्य का आलेख

            भाग्य  का आलेख

कोई कितना भ्रमित करदे ,स्वप्न  सुनहरे दिखा कर
हमें बस मिलता वही है,लाये है जो हम लिखा   कर
भाग्य के आलेख को ,कोई बदल सकता नहीं है
लिखा है तकदीर में जो,हमें बस मिलता वही है 
हम कहाँ की सोचते है,पहुँचते है  कहाँ  जाकर
हमें बस मिलता वही है ,लाये हैं जो हम लिखा कर
कर्म निज करते रहें हम,स्वयं में विश्वास रख     कर
बढ़ें आगे ,लक्ष्य पाने ,धेर्य को निज,साथ रख कर
नियति अपने आप देगी,सफलताओं से मिला कर
हमें  बस मिलता वही है,लाये है जो भी लिखा कर
दिग्भ्रमित करने तुम्हारी,राह में अड़चन मिलेगी
कभी कांटे भी चुभेंगे , कभी ठोकर भी लगेगी   
अँधेरे में ,पथ प्रदर्शन,करे वो दिया  जलाकर
हमें बस मिलता वही है,लाये है,जो भी लिखाकर
भाग्य में यदि महाभारत ,लिखी है जो विधाता ने
कृष्ण खुद ही आयेंगे ,बन सारथी  ,रथ को चलाने
युद्ध में तुमको जिताएंगे  तुम्हारा हक दिला कर
हमें बस मिलता वही है ,लाये हैं हम जो लिखा कर

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

पेट पूजा

                पेट पूजा

आओ हम तुम बैठ
हाथों में ले प्लेट,
पहले पेट पूजा करें
अपना पेट भरें
क्योंकि कोई भी काम ठीक से,
तभी होता है,जब पेट भरता है 
इस पापी पेट के कारण ,
आदमी क्या क्या नहीं करता है
पेट,शरीर का वो अंग है,
जो सबसे ज्यादा आलसी और सुस्त है
हाथ ,पाँव,मुंह,आँख और दांत,
सभी काम करते है,चुस्त है
पर पेट आराम से बैठा ,
इन अंगों से काम करवाता है
और बैठा बैठा ,मजे से खाता है 
पेट,पेटी जैसा है,
इसमें सब कुछ समा जाता है
पेट की अपनी कोई पसंद नहीं होती,
वो जिव्हा की पसंद पर निर्भर है
जिव्हा ,स्वाद ले ले कर खाती है,
और बेचारा पेट,जाता भर है 
जो भी मुंह,पीता या खाता है
पेट में चला जाता है
और पेट,बैठा बैठा उसे पचाता है
पेट में सिर्फ खाना पीना ही  नहीं ,
कई चीजें जाती है
जैसे कोई खबर हो या राज की बात ,
औरतों के पेट में जाती है ,
मगर पच ना पाती है  
नेताओं का पेट बड़ा मोटा होता है,
जिसमे करोड़ों की रिश्वत समां जाती है
फिर भी उनकी भूख नहीं जाती है
गरीब का पेट ,पिचका हुआ होता है,
और मेहनत  मजदूरी करके ,जब वो कुछ खाता है 
तब पीठ और पेट का अंतर नज़र आता है 
लालाओं के पेट,काफी बड़े रहते है
जिसे तोंद कहते है
ये ऐसे लोग होते है,जो खूब खाते है ,
तोंद बढ़ाते है,
फिर तोंद के कारण ही परेशान रहते है
घबराहट में ,आदमी के पेट में पानी पड  जाता है
और ज्यादा हंसने पर पेट में बल पड़ने लगते है
और ज्यादा भूख लगने पर,
पेट में चूहे दौड़ने लगते है
बाबा रामदेव ने टी वी पर
अपना पेट हिला हिला कर ,
करोड़ों भक्त बना लिए है
और अरबों कमा लियें है
समझदार महिलायें ,जानती है ,
कि  पति को  किस तरह पटाया जाता है
वो पति के पेट का ,पूरा ख्याल रखती है,
क्योंकि ,दिल का रास्ता ,पेट से होकर जाता है
पेट के खातिर ,कितनी ही नर्तकियां
बेली डांस करती है,पेट को नचा नचा
कोई भी काम ,अच्छी तरह करने के पहले ,
पेट की पूजा की जाती है
और कोई भी काम की सिद्धि के लिए,
बड़े पेट वाले याने लम्बोदर  गणेश जी ,
को पूजा चढ़ाई जाती है
आदमी की जिंदगी का उदयकाल,
नौ महीने तक माँ के पेट में ही रहता है 
और जिंदगी भर,आदमी ,पेट के चक्कर में ही,
दिन रात काम में ही  लगा रहता है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'




दुविधा


मेरे कमरे में अब
धूप नहीं आती
खिड़कियाँ खुली रहती हैं
हल्की सी रौशनी है
मन्द मन्द सी हवा
गुजरती है वहाँ से
तोड़ती है खामोशी
या शुरू करती है
कोई सिलसिला
किसी बात के शुरू होने
से खतम होने तक का ।
कुछ पक्षी विचरते हैं
आवाज़ करते हैं
तोड़ देते हैं अचानक
गहरी निद्रा को
या आभासी तन्द्रा को ।
कभी बिखरती है
कोई खुशबू फूलों की
अच्छी सी लगती है
मन को सूकून सा देती है
पर फिर भी
नहीं निकलता
सूनापन वो अकेलापन
एक अंधकार
जो समाया है कहीं
किसी कोने में ।
©दीप्ति शर्मा


शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2013

तुम बसंती -मै बसंती

      तुम बसंती -मै बसंती

      तुम बसंती ,मै बसंती
      लग रही है बात बनती
गेंहू बाली सी थिरकती,
                  उम्र  है बाली तुम्हारी
पवन के संग झूमती हो,
                   बड़ी सुन्दर,बड़ी प्यारी
आ रही तुम पर जवानी,
                    बीज भी भरने  लगे है
और मै तरु आम्र का हूँ,
                    बौर अब खिलने लगे है
     तुम बहुत मुझको लुभाती,
       सच बताऊँ बात मन की
         तुम बसंती, मै  बसंती
           लग रही है बात बनती
खेत सरसों के सुनहरे ,
                        में खड़ी  तुम,लहलहाती 
स्वर्ण सी आभा तुम्हारी,
                        प्रीत है मन में जगाती
डाल पर ,पलाश की मै ,
                        केसरी  सा पुष्प प्यारा
मिलन की आशा संजोये ,
                         तुम्हे  करता हूँ निहारा
       पीत  तुम भी,पीत मै भी,
      आयें कब घड़ियाँ मिलन की
         तुम बसंती,मै बसंती
         लग रही है बात बनती

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मन- बसंत

                   मन- बसंत

मन बसंत था कल तक जो अब संत हो गया
अभिलाषा ,इच्छाओं का बस अंत   हो गया
जब से मेरी ,प्राण प्रिया ने करी ,ठिठौली ,
राम करूं क्या ,बूढा  मेरा   कंत     हो गया

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 13 फ़रवरी 2013

मै क्या करूं

               मै क्या करूं

पत्नी की सुनता तो 'जोरू का गुलाम'हूँ,
             माँ की सुनता,तुम कहती 'मम्मी के चमचे'
बच्चों को डाटूँ  तो कहलाता हूँ 'जालिम',
              करूं प्यार तो कहती मै 'बिगाड़ता बच्चे'
घर पर रहता तो कहते मै 'घर घुस्सू'हूँ,
                बाहर रहूँ घूमता  'आवारा ' कहलाता
कम खाता तो कहती मै 'कमजोर हो रहा',
                'मोटे होकर फूल रहे' यदि ज्यादा खाता
खर्चा करता तो कहती हो 'खर्चीला 'हूँ,
                 ना करता तो कहती हो 'कंजूस'बहुत मै
मेरी  समझ नहीं आता ,क्या करूं ना करूं ,
                 कोई बताये क्या करना कन्फ्यूज बहुत मै

मदन मोहन बाहेती'घोटू'   

वेलेन्टाइन डे -बुढ़ापे में

           वेलेनटाइन  सप्ताह
              (चतुर्थ प्रस्तुति)
            वेलेन्टाइन डे -बुढ़ापे में 
मनायें वेलेन्टाइन,प्यार का ये तो दिवस है
उम्र के इस दौर के भी,चोंचलों में,बड़ा रस है
बढ़ रही है उमर अपनी ,
                            आप ये क्यों भूलती है 
दर्द घुटनों में तुम्हारे ,
                            सांस मेरी फूलती है 
मै तुम्हे गुलाब क्या दूं,
                           दाम मंहगे इस कदर है
तुम भी टेडी ,मै भी टेडा ,
                          हम खुदी टेडी बियर  है
चाकलेटें ,ला न सकता ,
                       क्योंकि ये मुश्किल खड़ी है
तुम्हे भी है डायबीटीज ,
                        मेरी भी शक्कर बड़ी है
और पिक्चर भी चलें तो,
                        देख पायेंगें न पिक्चर
ध्यान होगा,युवा लड़के ,
                       लड़कियों की,हरकतों पर
पार्क में जाकर के घूमें,
                        उम्र ये ना अब हमारी
माल में जाकर न करनी,
                          व्यर्थ की खरीद दारी
प्यार का ये पर्व फिर हम,
                         आज कुछ ऐसे मनाये
तुम पकोड़ी तलो,हम तुम,
                         प्रेम से मिल,बैठ ,खायें
मै इकहत्तर ,तुम हो पेंसठ ,प्यार अपना जस का तस  है
मनायें  वेलेन्टाइन ,प्यार का    ये तो     दिवस  है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 12 फ़रवरी 2013

इश्क पर जोर नहीं

   वेलेन्टाइन  सप्ताह
(तृतीय प्रस्तुति)
    इश्क पर जोर नहीं

*कोई कहता प्रेम की सकडी गली है ,
                         एकसंग दो नहीं इसमें  समा सकते
**कोई कहता प्रेम बिकता हाट में ना,
                                प्रेम के पौधे बगीचे में न लगते  
***कोई कहता ढाई अक्षर प्रेम के जो,
                                ठीक से यदि पढ लिये  ,पंडित बनोगे
#कोई कहती प्रेम की वो है दीवानी,
                                दर्द उसका समझ भी तुम ना सकोगे 
$कोई कहती जानती यदि प्रीत का दुःख,
                                 तो ढिढोरा पीटती  ,जाकर नगर में
प्रीत कोई भी किसी से नहीं करना ,
                                  प्रीत पीडायें  बहुत देती जिगर में
प्रीत के निज अनुभवों पर,गीत,दोहे,
                                  कई कवियों ने लिखे हैं,जब पढूं मै
जाता हूँ पड़ ,मै बहुत ही शंशोपज में,
                                   प्रीत कोई से करूं या ना करूं    मै 
तब किसी ने कान में आ फुसफुसा कर,
                                    फलसफा मुझको बताया आशिकी का
प्रीत की जाती नहीं,हो जाती है बस,
                                      इश्क पर है जोर ना चलता  किसी का
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
* प्रेम गली  अति साकरी,जा में दो न समाय
**प्रेम न बड़ी उपजे ,नहीं बिकाये  हाट
***ढाई आखर प्रेम का,पढ़े सो पंडित होय
#हे री मै तो प्रेम दीवानी ,मेरा दरद न जाने कोय
$सखी री जो मै जानती,प्रीत किये दुःख होय
   नगर ढिढोरा पीटती,प्रीत न करियो कोय 
 
     

सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

कुम्भ स्नान और हादसा

कुम्भ स्नान और हादसा

हरेक बारह वर्षों के बाद में
हरद्वार,उज्जैन,नासिक और प्रयाग में
आता है कुम्भ का पर्व महान
 और खुल जाती है धर्म की दुकान 
साधू,सन्यासी,संत और महंत
साधारण आदमी और श्रीमंत
सभी का रेला  लगता है 
बहुत बड़ा मेला लगता है
सर पर पोटली,मन में आस्था
बस से,रेल से,या चल पैदल रास्ता
भीड़ ल गा करती,पुण्य  कमाने वालों की
एक डुबकी  लगा कर के,मोक्ष पानेवालों की 
धर्म के ठेकेदार बतलाते है
यहाँ एक खास दिन नहाने से ,पाप धुल जाते है
और मोक्ष के द्वार खुल जाते है
आज के जमाने में ,मोक्ष इतनी सस्ती मिल जाती है
पुण्य की लोभी ,जनता खिंची चली आती है
ग्रहों का एसा  मिलन,बर्षों बाद होता है
ऐसे में स्नान और दान से ,पुण्य लाभ होता है
करोडो की भीड़
न ठिकाना न  नीड़
डुबकी लगा कर,
पुण्य कमा कर ,
जब वापस जाती है
स्टेशनों पर भगदड़ मच जाती है
सेंकडो लोग इस भगदड़ में दब जाते है
कितनो के ही प्राण पंखेरू उड़ जाते है
कोई सरकार को दोषी ठहराता है
कोई इंतजाम की कमी बतलाता है
कोई कहता जिनने सच्ची श्रद्धा से डुबकी  लगाई  
उसे पुण्य लाभ मिल गया और मोक्ष पायी
हादसे होते ही रहते है ,पर लोग जाते है
सस्ते में पाप धोते है,डुबकी लगाते है
धर्म के नाम पर,गजब है इनका हौंसला
राम जाने,कब मिटेगा ये ढकोसला

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 10 फ़रवरी 2013

नाक

                नाक 

जब तक    साँसों  का  स्पंदन  है, धड़कन है 
जब तक दिल में धड़कन है ,तब तक जीवन है
 द्वार सांस का ,जिससे साँसे , आती जाती 
सबसे उठा अंग चेहरे का, नाक कहाती 
दो सुरंग ये,राजमार्ग है ,ओक्सिजन  की 
सबसे अद्भुत उपलब्धि,मानव के तन की 
चेहरे बीच ,सुशोभित होती,शीश  उठाके 
नीचे मधुर अधर ,ऊपर कजरारी आँखें 
लाल लाल कोमल कपोल के बीच सुहाती 
खुशबू,बदबू,का मानव को भान  कराती 
सुन्दर तीखी नाक,रूप लगता है प्यारा 
कभी लोंग हीरे की मारे है लश्कारा 
सजती कभी पहन कर नथनी मोती वाली 
है प्रतीक यह मान,शान की बड़ी निराली 
चश्मे को आँखों पर ठीक,टिका रखती है 
प्यार और चुम्बन कुछ बाधा करती है 
कभी छींकती है जुकाम में,कभी टपकती 
कभी नींद में होती तो खर्राटे   भरती
होती ऊंचीं नाक कभी है ये कट जाती 
कहलाते है बाल नाक के,सच्चे साथी 
मन की प्रतिक्रियाओं से इसका नाता है 
नथुने फूला करते ,जब गुस्सा  आता है 
अगर किसी से नफरत तो भौं नाक सिकुड़ती 
इज्जत जाती चली,नाक कोई की कटती 
कोई नाक रगड़ता ,कोई नाक   चडाता 
परेशान  कर कोई नाकों चने चबाता 
कोई नाक पर मख्खी तक न बैठने देता 
तंग करता है कोई, नाक में दम कर देता 
किन्तु समझ में ,मेरे ,बात नहीं ये आती 
खतरनाक और शर्मनाक में ये क्यों आती 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

निष्ठा

               निष्ठा 

जो अपने घर में श्वानो को पाला करते 
भली तरह से वो ये बातें,जाना करते 
हरदम चौकन्ने से रहते श्वान बहुत है 
स्वामिभक्त कहाते,निष्ठावान  बहुत है 
सुबह शाम पर उनको टहलना पड़ता है 
उनको सहलाना और बहलाना  पड़ता है 
अगर चाहिये  तुम्हे किसी की सच्ची निष्ठां 
कभी उठानी भी पड़  सकती ,उसकी विष्ठा 

घोटू 

प्रेम दिवस

          वेलेंटाइन  सप्ताह
           (दूसरा नजराना)         
           प्रेम दिवस 
प्रेम का कोई दिवस होता नहीं,
                        प्रेम का हर एक दिन ही ख़ास है 
प्रेम हर वातावरण में महकता ,
                         प्रेम की हर ह्रदय में उच्छ्वास  है 
प्रेम पूजन,प्रेम ही आराधना ,
                          प्रेम में परमात्मा का वास  है 
प्रेम तो है कृष्ण राधा का मिलन,
                             राम का चौदह बरस  बनवास है 
प्रेम मीरा के भजन में गूंजता ,
                              सूर के पद में इसी का वास है 
सोहनी -महिवाल,रांझा -हीर  और,
                               लैला-मजनू  प्रेम का इतिहास है 
प्रेम बंधन भावनाओं से भरा ,
                                 प्रेम जीवन का मधुर अहसास है 
प्रेम में ही समर्पण है,त्याग है,
                                   एक दूजे का अटल विश्वास है 
प्रेम गुड का स्वाद गूंगा जानता ,
                                पर न कह पाता ,वही आभास है 
जो समझ ले ढाई आखर प्रेम का,
                                  तो समझ लो,प्रभु उसके पास है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'     

मेरा घर

शाहजहानाबाद के दिल में बसा
सुकून-ओ-अमन-चैन से परे 
शोरगुल के दरमियाँ
एक दिलकश इलाके में
एक उजडती बेनूर पुरानी हवेली
दीवारों पर बारिश के बनाये नक़्शे 
इधर उधर पान की पीकों की सजावट
और मेरे माज़ी की यादें इधर उधर
काई बनकर हरी हो रही हैं रोज़
एक जानी पहचानी सी ख़ामोशी
वो अंधेरों में भी गुज़रते सायों का एहसास
गमलों के पौधों के पत्तों के बीच
चहल कदमी करते चूहे
जगह जगह फर्श पर जंगली कबूतरों की बीट की सजावट
इन सबके बीच 
छोटा सा टुकड़ा आसमान का
और उस आसमान में
पिघलते काजल सी सियाह रात का कोना पकडे 
बादलों के बीच से गुज़रता चाँद
पहले भी ऐसे ही आता था मेरे घर
बारिश के बाद की मंद गर्मी में
छज्जे पर खड़े 
मैं 
यूँ ही ख्वाब बुना करता था
दीवारों से लिपटे पीपल के
दरीचों के साए में
तुम्हे भी याद किया करता था
सर्दियों की सीप सी सर्द रातों में
नर्म दूब के बिछोने पर
अक्सर मेरा जिस्म तपा करता था
तेरे जाने से भी कुछ नहीं बदला था
तेरे आने से भी कुछ नहीं बदला है
आज फिर रात भी वही है
और चाँद भी वही आया है
और आज भी वही तपिश 
सीने में जल रही है
मैं वीरान घर के बरामदे में
खामोश खड़ा
महसूस करता हूँ
वोह तेरे आगोश की तपिश
सहर होने तक
और बस यूँ ही
बन जाते हैं यह आसमानी सितारे 
सियाह रात की कालिख में जड़े सितारे
लफ्ज़ बन उठते हैं अपने आप
लिख जाते हैं हर रात एक कविता
मेरे दिल का हाल 
यही है मेरे दिल की दास्तान 
यही है मेरे दिल की दास्तान

शनिवार, 9 फ़रवरी 2013

वेलेन्टाइन सप्ताह आरम्भ

वेलेन्टाइन  सप्ताह आरम्भ

                   1
इश्क हो या प्यार हो या मोहब्बत कुछ भी कहो,
प्रेम के हर नाम में ,आधा अधूरा  हर्फ़   है
लैला मजनू की कहो या   सोहनी महिवाल की,
दास्ताने पुरानी ,इतिहास में अब  दर्ज है
हीर रांझा ,और कितने आशिकों की जोड़ियाँ,
बेपनाह जिनमे मोहब्बत थी ,मगर मिल ना सके ,
इसका कारण था कि इनमे हर किसी के नाम में,
हर्फ़ थे पूरे सभी, कोई न  आधा  हर्फ़  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2013

राजा राम का दरबार

सबसे ज्यादा

            सबसे ज्यादा

सर्दी में सर्दी पड़ती है सब से ज्यादा 
गर्मी में गर्मी पड़ती है सबसे  ज्यादा
हर मौसम का मज़ा ,उसी मौसम में आता
बारिश में बारिश पड़ती है सब से ज्यादा 
बारिश बाद बहुत होती है जब बीमारी,
सब से ज्यादा ,खुश होते है ,तभी डॉक्टर
दीवाली पर मिठाई की दूकानों में,
सबसे ज्यादा भीड़ लगाते ,कई कस्टमर
सबसे ज्यादा शहद बना करता बसंत में ,
सब से ज्यादा च्यवनप्राश बिकता सर्दी में
सबसे ज्यादा छतरी बिकती है बारिश में ,
धोबी परेशान ज्यादा दिखता    सरदी में
सब से ज्यादा आइसक्रीम लुभाती मन को,
जब होता है गरम गरम मौसम गर्मी का
गरमा गरम पकोड़ी भाती है बारिश में,
सर्दी में गाजर का हलवा ,देशी घी का
सबसे ज्यादा आशिक खुश होते सर्दी में,
क्योंकि दिन छोटे होते और लम्बी रातें
सबसे ज्यादा,पति घबराता है बीबी से,
दुनिया में सबसे लम्बी ,औरत की बातें
एक बरस में ,पंदरह दिन,बस श्राद्ध पक्ष के ,
पंडित जी है सबसे ज्यादा मौज मनाते
तीन,चार यजमानो के घर भोजन करते ,
और दक्षिणा भी अच्छी खासी  पा जाते
सबसे अच्छा ,मुझे फरवरी महिना लगता ,
पूरी तनख्वाह ,काम मगर बस अठ्ठाइस दिन
जब चुनाव का मौसम आने वाला होता ,
सबसे ज्यादा ,तब नेताजी,देते दर्शन
सबसे ज्यादा प्यार जताती है पत्नी जी ,
पहली तारीख को,जिस दिन मिलती पगार है
सबसे ज्यादा खुश होते स्कूल के बच्चे,
छुट्टी मिलती,टीचर को  आता बुखार है
कभी आपने सोचा भी है ,इस जीवन में,
जाने क्या क्या ,कब कब होता ,सबसे ज्यादा
कई बार देते तुमको दुःख  सबसे ज्यादा ,
जिनको आप प्यार करते है सबसे ज्यादा

मदन मोहन बाहेती'घोटू '
 

मेरा दिल कमजोर हो गया

             मेरा दिल कमजोर हो गया
तब भी था कमजोर हुआ जब देखा पहली बार तुम्हे
होकर पागल दीवाना सा ,ये कर बैठा  प्यार  तुम्हे
ऐसी डोर बंध गयी फिर तो,तुम्हारे संग नातों में
पड़ जाता कमजोर बिचारा ,तुम्हारी हर  बातों में
इतना तुमने प्यार जताया ,मन आनंद विभोर हो गया
                                    मेरा दिल कमजोर हो गया
फिर बच्चों की जिद या हठ का,इस पर इतना जोर पड़ा
कभी प्यार से या गुस्से से ,ये हरदम  कमजोर  पड़ा
दफ्तर में साहब की घुड़की ,इस दिल को धड़काती  थी
सीमित साधन और बढती मंहगाई  इसे सताती थी
अब तो देखो  ये विद्रोही बनकर के  मुंहजोर   हो   गया
                                      मेरा दिल कमजोर हो गया
धीरे धीरे ,साथ उमर के ,आई ऐसी    कमजोरी
सांस फूलने लग जाती है,करने पर मेहनत  थोड़ी 
डोक्टर ने चेकिंग की और बतलाया कारण मुश्किल का
रक्त प्रवाह हो गया है कम ,तुम्हारे नाजुक   दिल का
बढती उमर ,परेशानी का,अब कुछ ऐसा दौर हो गया
                                      मेरा दिल कमजोर  हो गया

मदन मोहन बहेती'घोटू'
    

आइना

           आइना 
सज संवर कर जब हुई तैयार वो ,
                   देखने  खुद को लगी  ले  आइना 
हम प्रतीक्षा में खड़े  बेचैन है ,
                    और देखो, अब तलक वो आई ना 
खुद से है या आईने से इश्क है,
                     बात अपनी समझ में ये आई  ना 
वो वहां पर और मै हूँ यंहां पर,
                      बहुत चुभती ,और कटे तनहाई  ना             
नहीं मुझको याद ऐसा कोई पल,
                      जब तुम्हारी याद मुझको आई ना 
तरसते है तुम्हारे दीदार को,
                       खुली  आँखें और दिल का आइना 
आते ही जल्दी करोगी जाने की,
                         बात  अपनी इसलिए बन पाई ना 
इस तरह आओ कि जाओ ही नहीं,
                          जिस तरह पहले कभी तुम आई ना 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

ऋतू जब रंग बदलती है

               ऋतू जब रंग बदलती है 

सूरज मंद,छुपे कोहरे में,   आये सर्दी  का  मौसम 
बढ़ जाती है इतनी ठिठुरन,सिहर सिहर जाता है तन 
साँसे,सर्द,शिथिल हो जाती,सहम सहम कर चलती है 
                     ऋतू जब रंग बदलती है 
कितने हरे भरे वृक्षों के , पत्ते      पीले  पड़ जाते 
कर जाते सूना डालों  को,साथ छोड़ कर उड़ जाते  
झड़ते पात पुराने तब ही ,नयी कोंपलें  खिलती है 
                       ऋतू जब रंग बदलती है 
तन जलता है,मन जलता है,सूरज इतना जलता है 
अपना उग्र रूप दिखला कर,जैसे आग उगलता  है 
 उसकी प्रखर तेज किरणों से,सारी  जगती जलती है 
                        ऋतू जब रंग बदलती  है 
आसमान में ,काले काले से ,बादल छा जाते है 
तप्त धरा को शीतल करने,प्रेम नीर बरसाते है 
माटी  जब पानी में घुल कर,उसका रंग बदलती है 
                            ऋतू जब रंग बदलती है 

मदनमोहन बाहेती'घोटू' 

गुरुवार, 7 फ़रवरी 2013

अंतर की वेदना

अंतर की वेदना का कोई अंत नहीं
दुःख की संयोजना का कोई पंथ नहीं
जो मेरा है वोह मेरा सर नहीं
जिसमें जीवित हूँ वोह मेरा संसार नहीं
रक्त रंजित अधर हैं फिर भी मैं गा रहा हूँ
रुधिर बहते नयन हैं फिर भी मुस्करा रहा हूँ
व्यक्त हूँ अव्यक्त हूँ आक्रोश हूँ पर मौन हूँ
सत्य सह मैं सत्य पर मिथ्या रहा हूँ
अंतर की वेदना का कोई अंत नहीं अब 'निर्जन'
जो होता है अभिव्यक्त समक्ष वोह सहता ही जा रहा हूँ
सहता ही जा रहा हूँ...

बुधवार, 6 फ़रवरी 2013

जीवन बोध

           जीवन बोध

आगम बोध,प्रसूति गृह में,निगमबोध श्मसान में
जीवनबोध  बड़ी मुश्किल से ,आता है इंसान में
आता जब मानव दुनिया में ,होता उसको बोध कहाँ
भोलाभाला निश्छल बचपन,काम नहीं और क्रोध कहाँ
और जब जाता है तो उसको,बोध कहाँ रह पाता  है
खाली हाथ  लिए आता  है,खाली हाथों  जाता है
जिन के खातिर ,सारा जीवन,रहता है खटपट करता
नाते जाते छूट सभी से, सांस आखरी जब  भरता
जीवन भर चिंता में जलता,चिता जलाती मरने पर
एक राख की ढेरी बन कर ,रह जाता  अस्थिपंजर
कंचन काया ,जिस पर रहता ,था अभिमान जवानी में
अस्थि राख बन ,तर जाते है ,गंगाजी के  पानी में
उसे बोध है,मृत्यु अटल है,फिर भी है अनजाना सा
मोह माया के चक्कर में फस,रहता है दीवाना  सा
पास फ़ैल होता रहता है,जीवन के  इम्तिहान में
जीवनबोध  बड़ी मुश्किल से ,आता है इंसान में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

माँ और बीबी

          माँ और बीबी
                    1
माँ बीबी दोनों खड़े,किसको दूं तनख्वाह
बलिहारी माँ आपकी,बीबी दीनी  लाय
बीबी दीनी लाय ,आपके मै गुण  गाऊं
निशदिन  सेवा करूं ,आपके चरण दबाऊं
अब हिसाब के चक्कर में क्यों पड़ती हो माँ
बहुत कर लिया काम,आप आराम करो माँ
                       2
तनख्वाह  में माया बसे,पुत्र कहे समझाय
माया है ठगिनी बहुत,वेद ,पुराण बताय
वेद पुराण बताय,त्याग चिंताएं सारी
प्रभु को सिमरो ,डाल  बहू पर जिम्मेदारी
'घोटू 'तनख्वाह क्या ,लाखों का तेरा बेटा
तेरी सेवा करने को  हाजिर है    बैठा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 5 फ़रवरी 2013

उलाहना

          उलाहना  

तुम ने मुझसे प्यार जता कर ,मीठी मीठी बातों में 
मुझको दीवाना कर डाला ,नींद चुरा कर ,रातों  में 
             मेरी तब नादान उमर थी,मै तो थी  भोलीभाली 
              तुम्हे बसाया था आँखों में,करने दिल की रखवाली 
              ऐसे  चौकीदार बने तुम,खुद ही  लुटेरे बन बैठे 
               मेरे दिल को चुरा ले गए ,साजन मेरे  बन बैठे 
ऐसा जादू डाला मुझ पर,प्यार भरी सौगातों ने 
मुझको  दीवाना कर डाला ,नींद चुरा  कर रातों में 
                दिल के संग संग चैन चुराया,नींद चुरायी आँखों की 
                किस से अब फ़रियाद करू,ये दौलत तो थी लाखों की 
                मै पागल सी ,हुई बावरी,दीवानी सी,लुट कर भी 
                तुम्हारे ख्यालों में खोई,ख़ुशी ख़ुशी,सब खोकर भी 
अपना सब कुछ सौंप दिया है,अब तुम्हारे हाथों में 
मुझको दीवाना कर डाला ,नींद चुरा कर ,रातों में 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 3 फ़रवरी 2013

दूध और मानव

      दूध और मानव

दूध के स्वभाव और मानव के स्वभाव को ,
एक जैसा बतलाते है
क्योंकि गरम होने पर दोनों उफन जाते है 
दूध का उफनना ,चम्मच के हिलाने से ,थम जाता है
और धीरज के चम्मच से हिलाने से,
उफनता आदमी भी ,शांत बन जाता है
दूध ,जब पकाया  जाता है ,
तो वह बंध  जाता है पर खोया कहलाता है
आदमी भी ,शादी के बाद ,
गृहस्थी के बंधन में बंध  जाता है ,
और बस खोया खोया ही नज़र आता है
जैसे दूध में जावन डालने से ,
वो जम  जाता है,उसका स्वरुप बदल जाता है
और वो दही कहलाता है
वैसे ही  ,पत्नी प्रेम का ,जरासा जावन ,
आदमी के मूलभूत स्वभाव में ,परिवर्तन लाता है
दूध पर ध्यान नहीं दो,
यूं ही पड़ा रहने दो ,तो वो फट जाता है
आदमी पर भी ,जब ध्यान नहीं दिया जाता,
तो उसका ह्रदय ,विदीर्ण हो कर,फट जाता है
दूध से कभी रबड़ी ,कभी कलाकंद,
कभी छेने की स्वादिष्ट मिठाई बनती है
बस इसके  लिए,थोड़ी मिठास की जरूरत पड़ती है
उसी तरह,यदि आदमी का ,असली स्वाद जो पाना  है  
तो आपको बस ,मीठी मीठी बातें बनाना है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

अब जहन में नहीं है क्या नाम था भला सा...

बरसों के बाद देखा एक शक्श दिलरुबा सा
अब जहन में नहीं है क्या नाम था भला सा
तेवर खींचे खींचे से आँखें झुकी झुकी सी
बातें रुकी रुकी सी लहजा थका थका सा
अलफ़ाज़ थे के जुगनू आवाज़ के सफ़र में
बन जाये जंगलों में नहरों का रास्ता सा
ख्वाबों में ख्वाब उस के यादों में याद उसकी
नींदों में घुल गया हो जैसे के रतजगा सा
पहले भी लोग आये कितने ही ज़िन्दगी में
वोह हर वजह से लेकिन औरों से था जुदा सा
अगली मोहब्बतों ने वोह नामुरादियाँ दी
ताज़ा रफ़ाक़तों से था दिल डरा डरा सा
तेवर  थे बेरुखी के अंदाज़ दोस्ती सा
वोह अजनबी था लेकिन लगता था आशना सा
कुछ यह के मुद्दतों से में भी नहीं था रोया
कुछ ज़हर में भुजा था अहबाब का दिलासा
फिर यूँ हुआ के सावन आँखों में आ बसा था
फिर यूँ हुआ के जैसे दिल भी था आबला सा
अब सच कहूँ तो यारों मुझको  खबर नहीं थी
बन जायेगा क़यामत एक वाकेया ज़रा सा
बरसों के बाद देखा एक शक्श दिलरुबा सा
अब जहन में नहीं है क्या नाम था भला सा...
अब जहन में नहीं है क्या नाम था भला सा...

बदलती खुशबुंए

         बदलती खुशबुंए 

नयी नयी शादी होती तो ख़ुशी खनकती बातों में
मादक सी खुशबू आती है,मेंहदी वाले  हाथों में
शादी बाद चंद बरसों तक ,पत्नी है चहका करती
नए नए परफ्यूम ,सेंट की,खुशबू  से महका करती
जब माँ बनती ,तो बच्चे को ,लोरी सुना सुलाती है
बेबी पावडर ,दूध,तेल की,उसमे खुशबू आती है 
फिर चूल्हे,चौके में रमती,सेवा में घर वालों की
आती है हाथो से खुशबू,हल्दी,मिर्च,मसाले की
लोरी,चहक सभी बिसराती, जब  वो चालीस पार हुई 
आयोडेक्स और पेन बाम की खुशबू संग लाचार हुई
पूजा पाठ बुढ़ापे में है,भजन कीर्तन है गाती
धूप,अगरबत्ती,चन्दन की ,खुशबू है उसमे आती
साथ उमर के ,तन की खुशबू,यूं ही बदला करती है
मगर प्यार की खुशबू मन में,उसके सदा महकती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


शनिवार, 2 फ़रवरी 2013

खुशियों के चार पल

खुशियों  के चार पल ही सदा ढूँढता रहा
क्या ढूँढना था मुझको मैं क्या ढूँढता रहा 
मायूसियों के शहर में मुझ सा गरीब शक्श
लेने को सांस थोड़ी हवा ढूँढता रहा 
मालूम था के उसकी नहीं है कोई रज़ा
फिर भी मैं वहां उसकी रज़ा ढूँढता रहा 
मालूम था के मुझे नहीं मिल सकेगा वोह 
फिर भी मैं उसका सदा पता पूछता रहा
फिर यूँ हुआ के उस से मुलाक़ात हो गई
फिर उम्र भर मैं अपना पता पूछता रहा
खुशियों  के चार पल ही सदा ढूँढता रहा...

मोइली की मार

              मोइली  की मार
बूँद बूँद कर ,भरता है घट,बूँद बूँद कर होता खाली
ऐसी मार,मोइली मारी, एक घोषणा ये कर डाली 
आठ आने प्रति लीटर बढ़ेंगी ,डीजल की कीमत हर महीने
तेल कम्पनी,घाटे  का घट,घटता  जायेगा हर  महीने
बूँद बूँद घट ,मंहगाई का ,हर महीने  भरता जाएगा
सीमित साधन,जनसाधारण ,क्या पहनेगा,क्या खायेगा
पर सरकारी,लाचारी है,जनता का क्या ख्याल करेंगे
झटका देकर ,ना मारेंगे,बस हर माह,हलाल करेंगे
संकट घट,हर माह भरेगा,भूखा पेट,जेब भी खाली
बूँद बूँद कर ,घट भरता है,बूँद बूँद कर ,होता खाली

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 1 फ़रवरी 2013

मित्र पुराने याद आ गये

                   मित्र पुराने याद आ गये

जब यादों ने करवट बदली,मित्र पुराने याद आ गये
आँखों आगे ,कितने चेहरे ,कितने वर्षों बाद आ गये
बचपन में जिन संग मस्ती की ,खेले,कूदे ,करी पढाई 
खो खो और कबड्डी खेली ,गिल्ली डंडे,पतंग उड़ाई
पेड़ों पर चढ़,इमली तोड़ी,जामुन खाये ,की शैतानी 
उन भूले बिसरे मित्रों की,आई  यादें ,कई,पुरानी
धीरे धीरे बड़े हुए तो  ,निकला कोई नौकरी करने
कोई लगा काम धंधे से,गया कोई फिर आगे पढने
सबके अपने अपने कारण थे ,अपनी अपनी मजबूरी
बिछड़ गये  सब बारी बारी,और हो गयी सब में दूरी
सब खोये अपनी दुनिया में,अपने सुख दुःख में,उलझन में
जब लंगोटिया साथी छूटे ,नये दोस्त आये जीवन में
कुछ सहकर्मी ,चंद पड़ोसी,दिल के बड़े करीब छा गये
जब यादों ने करवट बदली ,मित्र पुराने याद आ गये  
कुछ पड़ोस के रहनेवालों के संग इतना बढ़ा घरोपा
एक दूसरे के सुखदुख में ,जिनने साथ दिया अपनों सा
बार बार जब हुआ ट्रांसफर,बार बार  घर हमने बदले
बार बार नूतन सहकर्मी,और पडोसी ,कितने बदले
और रिटायर होने पर जब,कहीं बसे ,तो अनजाने थे
नए पडोसी,नए दोस्त फिर,धीरे धीरे बन जाने थे
क्योंकि उम्र  के इस पड़ाव में,मित्रो की ज्यादा है जरुरत
जो सुख दुःख में ,साथ दे सके ,कह कर आती नहीं मुसीबत
खोल 'फेस बुक ',कंप्यूटर में,वक़्त बिताते हैं कुछ ऐसे
ढूँढा करते दोस्त पुराने,क्या करते है और है कैसे
दूर बसे सब सगे ,सम्बन्धी,अनजाने अब पास आ गये
जब यादों ने करवट बदली,मित्र पुराने,याद आ गये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

यह रात

एक अजीब सा एहसास दिलाती है यह रात
एक दिलासा देती है पास बुलाती 
लिपट के सोने को जी चाहता है इसके साथ
हालात हैं की दिन की रौशनी से मुझे डर लगता है
डर लगता है की यह हसीं ख्वाब टूट न जाएँ
डर लगता है की कोई मुझे इस तरह देख न ले
देख ना ले की मैं आज भी अकेले हूँ 
एक उसकी याद है बस वक़्त गुज़ारने के लिए
एक उम्मीद है बस दिल में इन यादों को सँवारने के लिए 
के कभी मिलेगी कहीं तो मिलेगी वोह मुझसे 
यकीन अपने से ज्यादा मुझे उस पर क्यों है
एक अजीब सा एहसास दिलाती है यह रात

स्त्री तेरी यही कहानी

बचपन में पढ़ा
मैथली शरण गुप्त को
स्त्री है तेरी यही कहानी
आँचल में है दूध
आँखों में है पानी
वो पानी नहीं
आंसू हैं
वो आंसू
जो सागर से
गहरे हैं
आंसू की धार
एक बहते दरिया से
तेज़ है
शायद बरसाती नदी
के समान जो
अपने में सब कुछ समेटे
बहती चली जाती है
अनिश्चित दिशा की ओर
आँचल जिसमें स्वयं
राम कृष्ण भी पले हैं
ऐसे महा पुरुष
जिस आँचल में
समाये थे
वो भी महा पुरुष
स्त्री का
संरक्षण करने में
असमर्थ रहे
मैथली शरण गुप्त की  ये
बातें पुरषों को याद रहती हैं
वो कभी तुलसी का उदाहरण
कभी मैथली शरण का दे
स्वयं को सिद्ध परुष
बताना चाहते हैं या
अपनी ही जननी को
दीन हीन मानते हैं
ऐसा है पूर्ण पुरुष का
अस्तित्व...

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