नशा -बुढ़ापे का
आदमी पर जब नशा छाता है
वो ठीक से चल भी नहीं सकता ,
डगमगाता है
उसे कुछ भी याद नहीं रहता ,
सब कुछ भूल जाता है
मेरी माँ भी ठीक से चल नहीं सकती ,
डगमगाती है
और मिनिट मिनिट में ,
सारी बातें भूल जाती है ,
नशे के सारे निशां उसमे नज़र आते है,
उमर नब्बे की में भी ऐसा भला होता है
मुझे तो ऐसा कुछ लगता है कि मेरे यारों ,
बुढापे का भी कोई ,अपना नशा होता है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
संबंध
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संबंध यह जगत एक आईना है ही तो है हर रिश्ते में ख़ुद को देखे जाते हैं चुकती
नहीं अनंत चेतना हज़ार-हज़ार पहलू उभर जाते हैं जन्म पर जन्म लेता है मानव कि
कभी ...
11 घंटे पहले
बहुत ही सुन्दर पद,आभार.
जवाब देंहटाएंहर उम्र का अपना एक नशा होता है ...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ...