आभार प्रदर्शन
मै उस पत्थर का शुक्रिया अदा कर रहा था ,
जिसकी ठोकरों ने ,
मुझे सही रास्ता दिखलाया था
मै उस पत्थर का भी अहसानमंद था ,
जिसने मेरे सर पर लग ,
भीड़ में ,मेरे दुश्मन का पता बतलाया था
मै शुक्रगुजार था उन पत्थरों का भी,
जिन्होंने दीवारों में चुन कर,
मुझे रहने के लिए ,आशियाना दिया था
मै बहुत आभारी था उन मील के पत्थरों का,
जिन्होंने ,जिंदगी के सफ़र में ,
मुझे मेरी मंजिल का पता दिया था
मै उन्हें धन्यवाद दे ही रहा था कि ,
एक पत्थर मुझसे ये बोला ,
'ऐ इंसान तेरा बहुत बहुत शुक्रिया है
तेरी आस्था ने भर दियें है प्राण मुझमे ,
और तूने पूज पूज कर,
मुझे एक पत्थर से देवता बना दिया है '
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
प्रेम
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प्रेम याद हवा की तरह आती है और छू कर चली जाती है किसी झील की शांत सतह
पर उड़ते हुए पंछी के पंखों में क्योंकि अंततः सब एक है प्रेम बरसता है छंद
बनकर किसी कव...
1 दिन पहले
ठीक
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