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शुक्रवार, 15 मार्च 2013

अंगो का जंग

              अंगो का जंग

छिड़ी अंग में जंग ,कौन है सबसे बेहतर
सब बतलाते श्रेष्ट ,स्वयं को आगे बढ़ बढ़
आँखे बोली ,हम चंचल और सबसे सुन्दर
मानव को हम ही दिखलाते है दुनिया भर
पलकें हरदम करती रहती  पहरेदारी
तुम्ही समझ लो,कितनी ऊंची शान हमारी
कहा नाक ने, मै शरीर में सबसे ऊंची
मुझसे ,तन में आती जाती,श्वास समूची
जब तक चलती श्वास ,तभी तक ही जीवन है
मुझसे ही इज्जत है ,मुख पर आकर्षण है
बोले होंठ ,गुलाब पंखुड़ियों से हम लगते
हम मुस्काते,और हमी है चुम्बन करते
नरम,मुलायम,सुन्दर,मुख का मुख्य द्वार है
खाना ,पीना,हंसना ,करते  हमी  प्यार है
दांतों ने बोला खाना सब ,हमी  चबाते
हम ही है वो अंग ,जो कि दोबारा  आते
हम होते बत्तीस ,अन्य  अंग दो या एक है
हम बहुमत में ,इसीलिये हम बड़े श्रेष्ट है
बोली जिव्हा ,मै हूँ,तभी बोल पाते हो
सभी चीज का स्वाद ,मुझी से तुम पाते हो
बोले कान,हमें मत करना 'साइड लाइन '
हमसे ही तुम बातें,गाने सकते हो सुन
कहा हाथ ने ,सार काम हमी है करते
लिखते,पढ़ते,कमा ,पेट तुम्हारा भरते
बोले पैर कि हम आधारस्तंभ तुम्हारे 
हम बिन एक कदम भी बढ़ न सकोगे प्यारे
कहा पेट ने ,मै जीवन में ऊर्जा  भरता
मुझको भरने ,काम आदमी,हरदम करता
खाना पीना सब कुछ  मेरे अन्दर जाता 
मै ही  उसे  पचाता हूँ और  रक्त बनाता 
दिल बोला मै खुद की तारीफ़ ना करता हूँ
तुम जीवित हो ,जब तक मै धडका करता हूँ
करो किसी से प्यार ,तभी वो दिल में बसता
तो मष्तिष्क लगा बतलाने ,हँसता हँसता
मेरे हाथो ,तुम सब अंगों की लगाम है
मेरे आदेशों पर करते  सभी   काम है
पर आपस में झगड़ रहे क्यों परेशान हो
अपनी अपनी जगह ,आप सब ही महान हो
साथ तुम्हारा  ,जीवन की आवश्यकता  है
एक दूसरे के   बिन  काम  नहीं चलता है 
मिलजुल कर रहने से जीवन में सुख आता
इश्वर की सर्वोच्च कृती ,मानव कहलाता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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