एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

शनिवार, 2 मार्च 2013

छलनी छलनी बदन

        छलनी छलनी बदन

थे नवद्वार,घाव  अब इतने ,मेरे मन को भेद हो गये
रोम रोम हो गया छिद्रमय ,तन पर इतने छेद हो गये
कुछ अपनों कुछ बेगानों ने ,
                                 बार बार और बात बात पर
मुझ पर बहुत चुभोये खंजर,
                                 कभी घात और प्रतिघात कर
क्या बतलाएं,इन घावों ने ,
                                 कितनी पीड़ा पहुंचाई है
अपनों के ही तीर झेलना ,
                                  होता कितना दुखदायी है
भीष्म पितामह से ,शरशैया ,
                                  पर लेटे है ,दर्द छिपाये 
अब तो बस ये इन्तजार है,
                                 ऋतू बदले,उत्तरायण आये
  अपना वचन निभाने खातिर ,हम तो मटियामेट  हो गये
 रोम रोम होगया छिद्रमय  ,तन पर इतने छेद   हो गये
शायद परेशान वो होगा ,
                                जब उसने तकदीर लिखी थी
सुख लिखना ही भूल गया वो ,
                                बात बात पर पीर लिखी थी
लेकिन हम भी धीरे धीरे ,
                                पीड़ा के अभ्यस्त  हो गये
जैसा जीवन दिया विधि ने,
                                 वो जीने में व्यस्त हो गये
लेकिन लोग बाज ना आये ,
                              बदन कर दिया ,छलनी छलनी 
पता न कैसे पार करेंगे ,
                              हम ये जीवन की बेतरणी 
डर है नैया डूब न जाये ,इसमें इतने छेद  हो गये
रोम रोम हो गया छिद्रमय,तन पर इतने छेद हो गये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-