छलनी छलनी बदन
थे नवद्वार,घाव अब इतने ,मेरे मन को भेद हो गये
रोम रोम हो गया छिद्रमय ,तन पर इतने छेद हो गये
कुछ अपनों कुछ बेगानों ने ,
बार बार और बात बात पर
मुझ पर बहुत चुभोये खंजर,
कभी घात और प्रतिघात कर
क्या बतलाएं,इन घावों ने ,
कितनी पीड़ा पहुंचाई है
अपनों के ही तीर झेलना ,
होता कितना दुखदायी है
भीष्म पितामह से ,शरशैया ,
पर लेटे है ,दर्द छिपाये
अब तो बस ये इन्तजार है,
ऋतू बदले,उत्तरायण आये
अपना वचन निभाने खातिर ,हम तो मटियामेट हो गये
रोम रोम होगया छिद्रमय ,तन पर इतने छेद हो गये
शायद परेशान वो होगा ,
जब उसने तकदीर लिखी थी
सुख लिखना ही भूल गया वो ,
बात बात पर पीर लिखी थी
लेकिन हम भी धीरे धीरे ,
पीड़ा के अभ्यस्त हो गये
जैसा जीवन दिया विधि ने,
वो जीने में व्यस्त हो गये
लेकिन लोग बाज ना आये ,
बदन कर दिया ,छलनी छलनी
पता न कैसे पार करेंगे ,
हम ये जीवन की बेतरणी
डर है नैया डूब न जाये ,इसमें इतने छेद हो गये
रोम रोम हो गया छिद्रमय,तन पर इतने छेद हो गये
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
1440
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*1-दूर –कहीं दूर/ शशि पाधा*
*अँधेरे में टटोलती हूँ*
*बाट जोहती आँखें*
*मुट्ठी में दबाए*
*शगुन के रुपये*
*सिर पर धरे हाथों का*
*कोमल अहसास*
*सुबह ...
4 घंटे पहले
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