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गुरुवार, 6 जून 2013

आज तुम जब नहाई होगी

       आज तुम  जब नहाई होगी 
       
                          आज तुम जब नहाई  होगी 
देख खुद को आईने में ,मुदित हो मुस्काई होगी 
                           आज तुम जब नहाई होगी 
विधी ने  तुम पर् लुटाया ,रूप का अनुपम खजाना 
किया घायल सैकड़ों को ,बनाया पागल दीवाना 
गुलाबों की मधुर आभा ,गाल पर तेरे बिखेरी 
बादलों की कालिमा सी ,सजाई जुल्फें घनेरी 
और अधरों में भरी है,सुधा संचित  प्रेम रस की,
आईने में स्वयं का चुम्बन किया ,शरमाई होगी 
                             आज तुम जब नहाई होगी 
कदली के स्तंभ ऊपर ,देख निज चंचल जवानी 
डाल चितवन,स्वयं पर तुम हो गयी होगी दीवानी 
देख  अमृत कलश उन्नत,बदन की  शोभा  बढाते 
झुका करके नज़र देखा उन्हें होगा ,पर लजाते 
भिन्न कोणों से निहारा होगा निज तन के गठन को ,
संगेमरमर सा सुहाना ,बदन लख, इतराई  होगी 
                             आज तुम जब नहाई होगी 
पडी ठंडी जल फुहारें ,मगर ये तन जला होगा 
स्वयं अपने हाथ से जब बदन अपना मला होगा 
स्निग्ध कोमल कमल तन से बहा होगा जल फिसल कर 
चाहता था संग रहना  ,मगर टिक पाया न पल भर 
रहा सूखा तौलिया ,तन रस न पी पाया अभागा ,
किन्तु खुश स्पर्श से था ,तुमने ली  अंगडाई होगी 
                                आज तुम जब नहाई होगी 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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