दुनिया के रंग
इस दुनिया के कई रंग है
कोई का दिल बड़ा तंग है
कोई के मन में उमंग है
सबके अपने पृथक ढ़ंग है
बाहर से दिखता सफ़ेद पर
देखो यदि त्रिपार्श्व लगा कर
सतरंगी दिखता है मंज़र
खूब मज़ा लो इसका जी भर
ये दुनिया तो सतरंगी है
तृप्त कभी,भूखी नंगी है
कभी अजब है ,बेढंगी है
दानी भी है,भिखमंगी है
कोई मुहब्बत में है डूबा
तो कोई नफरत में डूबा
कोई इस दुनिया से ऊबा
सबका अलग अलग मंसूबा
कोई लगा कमाने में है
कोई लगा लुटाने में है
कोई लगा बनाने में है
कोई लगा गिराने में है
कोई मालामाल बहुत है
तो कोई कंगाल बहुत है
कोई तो खुशहाल बहुत है
तो कोई बदहाल बहुत है
कोई भूखा रहे बिचारा
तो फिर कोई अपच का मारा
खा न सके ,तरसे बेचारा
कोई फिरता मारा मारा
तो कोई बीमार बहुत है
दुखी और लाचार बहुत है
तो कोई दमदार बहुत है
बहुरंगी संसार बहुत है
मीठा मीठा सबसे बोलो
अंतर्मन की आँखें खोलो
सबके मन में प्यार संजोलो
सबको एक तराजू तौलो
सदविचार का चश्मा पहनो
संस्कार का चश्मा पहनो
सदा प्यार का चश्मा पहनो
सदाचार का चश्मा पहनो
धुन्धलाहट सब मिट जायेगी
दुनिया साफ़ नज़र आयेगी
प्रेम लगन जब लग जायेगी
सदा जिन्दगी मुस्कायेगी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआपकी यह रचना कल शनिवार (08-06-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
जवाब देंहटाएंदुनिया ऐसी ही है -पर कोई किसी की सलाह माने तब न .शुरू से यह सब कहा जाता रहा है ,आप भी कोशिश करके देख लीजिए !
जवाब देंहटाएं