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रविवार, 16 जून 2013

चढ़ावा

           चढ़ावा 
दुनिया भर को रोशन करता ,बिना कुछ पैसे लिये
ताल,कुवे,नदियां सब भरता ,बिना कुछ पैसे लिये 
मस्त हवा के झोंके लाता , बिना कुछ पैसे लिये 
धूप,चाँदनी से नहलाता  ,बिना कुछ  पैसे  लिये 
खेतों मे है अन्न उगाता ,बिना कुछ  पैसे  लिये
एक बीज से वृक्ष बनाता , बिना  कुछ,,पैसे  लिये 
 मन था उपकृत,एहसानों से,और मैंने  इसलिये
गया मंदिर ,उसके दर पर,  चढ़ा  कुछ  रुपए दिये

था बड़ा एहसानमंद  मै,उसे कहने शुक्रिया
एक डब्बा मिठाई का, चढ़ा  मंदिर मे दिया
कहा उसने खुश  रहो तुम,मेरा आशीर्वाद है
ये मिठाई तू ही खाले, ये मेरा  परशाद  है
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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