ये घडी,
एक स्थान पर पड़ी
सबसे टिक टिक कहती रहती
और खुद रहती,
एक जगह पर टिक कर ,
लेकिन हरदम चलती रहती
जब तक इसमे बेटरी या सेल है
तभी तक इसका खेल है
आदमी की जिंदगी से ,
देखो कितना मेल है
इसकी टिक टिक ,आदमी की सांस जैसी ,
बेटरी सी आदमी की जान है
जब तक बेटरी मे पावर है
साँसो का आना जाना उसी पर निर्भर है
बेटरी खतम,
घडी भी बंद,साँसे भी बंद
घडी मे होते है तीन कांटे ,
सेकंड का काँटा ,बड़ी तेजी से चलता रहता है
बचपन की तरह ,उछलता रहता है
मिनिट का काँटा,
जवानी की तरह ,थोड़ा तेज तो है,
पर संभल संभल कर चलता है
और घंटे का कांटा ,
जैसे हो बुढ़ापा
बाकी दोनों कांटो के चलने पर निर्भर
बड़े आराम से ,धीरे धीरे ,
बढ़ाता है अपने कदम
क्या पता ,कब घड़ी ,जाय थम
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
very nice....maza aa gaya !
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना ..
जवाब देंहटाएंसच कहा है ... जीवन का खेल भी ऐसा ही है ...
जवाब देंहटाएंdhanywaad
जवाब देंहटाएंjivan aur ghari!!wah kya khoob ! Gahre chinton bali rachna hai.
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