अंगूठा
उंगलिया छोटी बड़ी है
साथ मिल कर सब खड़ी है
मगर गर्वान्वित अकेला,
है नज़र आता अंगूठा
उंगलियाँ पहने अंगूठी
जड़ी रत्नों से अनूठी
नग्न सा ,सबसे अलग पर,
हमें दिखलाता अंगूठा
एक जैसे दिखे सब है
मगर रेखायें अलग है
हरेक दस्तावेज ऊपर ,
लगाया जाता अंगूठा
तिलक मस्तक पर लगाता
उँगलियों के संग उठाता
चुटकी भर सिन्दूर लेकर ,
मांग भर जाता अंगूठा
स्वार्थ हो तब किये जाते
कई कसमे ,कई वादे
निकल जब जाता है मतलब ,
दिखाया जाता अंगूठा
उँगलियों का साथ पाता
तब कलम वो पकड़ पाता
गीत,कवितायें ,कथाएं,
तभी लिख पाता अंगूठा
गुरु गुड़ ,चेले है शक्कर
शिष्य ना एकलव्य बनकर
दक्षिणा में है चढ़ाता ,
मगर दिखलाता अंगूठा
बंधी मुट्ठी लाख की है
खुल गयी तो खाक की है
एकता और संगठन का ,
पाठ सिखलाता ,अंगूठा
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
उंगलिया छोटी बड़ी है
साथ मिल कर सब खड़ी है
मगर गर्वान्वित अकेला,
है नज़र आता अंगूठा
उंगलियाँ पहने अंगूठी
जड़ी रत्नों से अनूठी
नग्न सा ,सबसे अलग पर,
हमें दिखलाता अंगूठा
एक जैसे दिखे सब है
मगर रेखायें अलग है
हरेक दस्तावेज ऊपर ,
लगाया जाता अंगूठा
तिलक मस्तक पर लगाता
उँगलियों के संग उठाता
चुटकी भर सिन्दूर लेकर ,
मांग भर जाता अंगूठा
स्वार्थ हो तब किये जाते
कई कसमे ,कई वादे
निकल जब जाता है मतलब ,
दिखाया जाता अंगूठा
उँगलियों का साथ पाता
तब कलम वो पकड़ पाता
गीत,कवितायें ,कथाएं,
तभी लिख पाता अंगूठा
गुरु गुड़ ,चेले है शक्कर
शिष्य ना एकलव्य बनकर
दक्षिणा में है चढ़ाता ,
मगर दिखलाता अंगूठा
बंधी मुट्ठी लाख की है
खुल गयी तो खाक की है
एकता और संगठन का ,
पाठ सिखलाता ,अंगूठा
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
बहुत बढ़िया प्रस्तुति ... बधाई आदरणीय
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी काव्य रचना मदन मोहन जी ... बधाई
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