एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

मंगलवार, 18 जून 2013

कवि की पीड़ा

          
            कवि की पीड़ा 
एक जमाना था हम रहते बहुत बिज़ी थे 
आज यहाँ,कल वहाँ तीसरे रोज कहीं थे 
कविसम्मेलन मे निशदिन भागा करते थे 
दिन मे चलते,रात रात जागा करते थे 
थे शौकीन लोग,कविता के कदरदान थे
बड़े बड़े आयोजन मे हम मेहमान थे 
रोज रोज तर माल मिला करता था खाने 
और सुरा भी मिल जाती दो घूंट  लगाने 
उस पर वाह वाह का टॉनिक मिल जाता था 
श्रोताओं की भीड़ देख ,दिल खिल जाता था 
और बाद मे पत्र पुष्प से  जेब भरे  हम 
महीने मे अच्छी ख़ासी होती थी इन्कम 
और होली पर इतने कविसम्मेलन थे होते 
जैसे श्राद्धों मे ,पंडित को मिलते  न्योते 
हर वरिष्ठ कवि का अपना ही ग्रुप होता था 
और ठेका लेकर के कविसम्मेलन होता था 
टाइम कब था,नई नई कविता गढ़ने का 
एक कविता हिट ,तो सदा वो ही पढ़ने  का
जब से टी.वी.पर कामेडी सर्कस  आया 
लोगों ने ,कविसम्मेलन करवाना भुलवाया 
भूले भटके कभी कभी मिलता आमंत्रण 
वाह वाह और भीड़ देखने तरसे है मन 
और बड़ी मुश्किल से घर का चले गुजारा 
वो दिन गए,फाकता  ,मियां करते मारा  
बंद हुये अखबार ,कविताए कम छपती 
और छपास की भी भड़ास अब नहीं निकलती 
बहुत कुलबुलाता,कविसम्मेलन का कीड़ा है 
मेरी नहीं,हरेक  कवि की  ये पीड़ा  है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 
 
  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-