बचपन में पढ़ा
मैथली शरण गुप्त को
स्त्री है तेरी यही कहानी
आँचल में है दूध
आँखों में है पानी
वो पानी नहीं
आंसू हैं
वो आंसू
जो सागर से
गहरे हैं
आंसू की धार
एक बहते दरिया से
तेज़ है
शायद बरसाती नदी
के समान जो
अपने में सब कुछ समेटे
बहती चली जाती है
अनिश्चित दिशा की ओर
आँचल जिसमें स्वयं
राम कृष्ण भी पले हैं
ऐसे महा पुरुष
जिस आँचल में
समाये थे
वो भी महा पुरुष
स्त्री का
संरक्षण करने में
असमर्थ रहे
मैथली शरण गुप्त की ये
बातें पुरषों को याद रहती हैं
वो कभी तुलसी का उदाहरण
कभी मैथली शरण का दे
स्वयं को सिद्ध परुष
बताना चाहते हैं या
अपनी ही जननी को
दीन हीन मानते हैं
ऐसा है पूर्ण पुरुष का
अस्तित्व...
मैथली शरण गुप्त को
स्त्री है तेरी यही कहानी
आँचल में है दूध
आँखों में है पानी
वो पानी नहीं
आंसू हैं
वो आंसू
जो सागर से
गहरे हैं
आंसू की धार
एक बहते दरिया से
तेज़ है
शायद बरसाती नदी
के समान जो
अपने में सब कुछ समेटे
बहती चली जाती है
अनिश्चित दिशा की ओर
आँचल जिसमें स्वयं
राम कृष्ण भी पले हैं
ऐसे महा पुरुष
जिस आँचल में
समाये थे
वो भी महा पुरुष
स्त्री का
संरक्षण करने में
असमर्थ रहे
मैथली शरण गुप्त की ये
बातें पुरषों को याद रहती हैं
वो कभी तुलसी का उदाहरण
कभी मैथली शरण का दे
स्वयं को सिद्ध परुष
बताना चाहते हैं या
अपनी ही जननी को
दीन हीन मानते हैं
ऐसा है पूर्ण पुरुष का
अस्तित्व...
सच्चाई का सूक्ष्म विश्लेषण करती अच्छी कविता।
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