सूरज मंद,छुपे कोहरे में, आये सर्दी का मौसम
बढ़ जाती है इतनी ठिठुरन,सिहर सिहर जाता है तन
साँसे,सर्द,शिथिल हो जाती,सहम सहम कर चलती है
ऋतू जब रंग बदलती है
कितने हरे भरे वृक्षों के , पत्ते पीले पड़ जाते
कर जाते सूना डालों को,साथ छोड़ कर उड़ जाते
झड़ते पात पुराने तब ही ,नयी कोंपलें खिलती है
ऋतू जब रंग बदलती है
तन जलता है,मन जलता है,सूरज इतना जलता है
अपना उग्र रूप दिखला कर,जैसे आग उगलता है
उसकी प्रखर तेज किरणों से,सारी जगती जलती है
ऋतू जब रंग बदलती है
आसमान में ,काले काले से ,बादल छा जाते है
तप्त धरा को शीतल करने,प्रेम नीर बरसाते है
माटी जब पानी में घुल कर,उसका रंग बदलती है
ऋतू जब रंग बदलती है
मदनमोहन बाहेती'घोटू'
ऋतु रंग बदले तो मन बदलता है तन बदलता है जन जन बदलता है
जवाब देंहटाएंaur insaan bhi badal jaata hai jab jawaani ki ritu budhape ki ritu me badalti hai
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