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रविवार, 3 फ़रवरी 2013

दूध और मानव

      दूध और मानव

दूध के स्वभाव और मानव के स्वभाव को ,
एक जैसा बतलाते है
क्योंकि गरम होने पर दोनों उफन जाते है 
दूध का उफनना ,चम्मच के हिलाने से ,थम जाता है
और धीरज के चम्मच से हिलाने से,
उफनता आदमी भी ,शांत बन जाता है
दूध ,जब पकाया  जाता है ,
तो वह बंध  जाता है पर खोया कहलाता है
आदमी भी ,शादी के बाद ,
गृहस्थी के बंधन में बंध  जाता है ,
और बस खोया खोया ही नज़र आता है
जैसे दूध में जावन डालने से ,
वो जम  जाता है,उसका स्वरुप बदल जाता है
और वो दही कहलाता है
वैसे ही  ,पत्नी प्रेम का ,जरासा जावन ,
आदमी के मूलभूत स्वभाव में ,परिवर्तन लाता है
दूध पर ध्यान नहीं दो,
यूं ही पड़ा रहने दो ,तो वो फट जाता है
आदमी पर भी ,जब ध्यान नहीं दिया जाता,
तो उसका ह्रदय ,विदीर्ण हो कर,फट जाता है
दूध से कभी रबड़ी ,कभी कलाकंद,
कभी छेने की स्वादिष्ट मिठाई बनती है
बस इसके  लिए,थोड़ी मिठास की जरूरत पड़ती है
उसी तरह,यदि आदमी का ,असली स्वाद जो पाना  है  
तो आपको बस ,मीठी मीठी बातें बनाना है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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