तुम बसंती -मै बसंती
तुम बसंती ,मै बसंती
लग रही है बात बनती
गेंहू बाली सी थिरकती,
उम्र है बाली तुम्हारी
पवन के संग झूमती हो,
बड़ी सुन्दर,बड़ी प्यारी
आ रही तुम पर जवानी,
बीज भी भरने लगे है
और मै तरु आम्र का हूँ,
बौर अब खिलने लगे है
तुम बहुत मुझको लुभाती,
सच बताऊँ बात मन की
तुम बसंती, मै बसंती
लग रही है बात बनती
खेत सरसों के सुनहरे ,
में खड़ी तुम,लहलहाती
स्वर्ण सी आभा तुम्हारी,
प्रीत है मन में जगाती
डाल पर ,पलाश की मै ,
केसरी सा पुष्प प्यारा
मिलन की आशा संजोये ,
तुम्हे करता हूँ निहारा
पीत तुम भी,पीत मै भी,
आयें कब घड़ियाँ मिलन की
तुम बसंती,मै बसंती
लग रही है बात बनती
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
रिश्तों और जीवन में संतुलन का पाठ पढ़ाती गणित
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*रिश्तों और जीवन में संतुलन का पाठ पढ़ाती गणित*
बचपन से ही गणित से हमारा एक अजीब-सा रिश्ता रहा है। न जाने क्यों, इस विषय
में जितना गहराई से उतरने की कोशिश...
4 घंटे पहले
बेहतरीन अभिव्यक्ति!!
जवाब देंहटाएं...बसंत पंचमी की शुभकामनाएँ !!!