पेट के खातिर
पेट के खातिर न जाने ,क्या क्या करता आदमी
पेट के खातिर ही जीता और मरता आदमी
पेट में जब आग लगती ,तो बुझाने के लिये ,
जो न करना चाहिए ,वो कर गुजरता आदमी
नौकरी ,मेहनत ,गुलामी,में स्वयं को बेच कर,
अपना और परिवार सबका ,पेट भरता आदमी
खेत में हल चला कर के,अन्न उपजाता कई ,
तब कहीं दो रोटियां खा,गुजर करता आदमी
मूक ,निर्बल जानवर को,काट,उनका मांस खा,
भूख अपनी मिटाने में,नहीं डरता आदमी
पाप और अपराध इतने,हो रहे संसार में ,
पेट पापी के लिए ,बनता बिगड़ता आदमी
पेट हो खाली अगर तो,भजन भी होता नहीं,
इसलिए ,पहले भजन के ,पेट भरता आदमी
कहते हैं कि दिल का रास्ता,पेट से है गुजरता ,
पहले भरता पेट है फिर इश्क करता आदमी
पेट भरने के लिये ,खटता है और जीता है वो,
या कि जीने के लिये है,पेट भरता आदमी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
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*1-दूर –कहीं दूर/ शशि पाधा*
*अँधेरे में टटोलती हूँ*
*बाट जोहती आँखें*
*मुट्ठी में दबाए*
*शगुन के रुपये*
*सिर पर धरे हाथों का*
*कोमल अहसास*
*सुबह ...
12 घंटे पहले
mazboori me jane kya kya kar gujarta hai insaan... umda Rachna..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना ,
जवाब देंहटाएंDHANYWAAD
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