झपकियाँ
आँख जब खुलती सवेरे
मन ये कहता ,भाई मेरे
एक झपकी और लेले ,एक झपकी और लेले
आँख से लिपटी रहे निंदिया दीवानी
सवेरे की झपकियाँ ,लगती सुहानी
और उस पर ,यदि कहे पत्नी लिपट कर
यूं ही थोड़ी देर ,लेटे रहो डियर
बांधते उन्माद के वो क्षण सुनहरे
मन ये कहता ,भाई मेरे ,एक झपकी और लेले
नींद का आगोश सबको मोहता है
मगर ये भी बात हम सबको पता है
झपकियों ने खेल कुछ एसा दिखाया
द्रुतगति खरगोश ,कछुवे ने हराया
नींद में आलस्य के रहते बसेरे
मन ये कहता भाई मेरे ,एक झपकी और लेले
झपकियाँ ये लुभाती है बहुत मन को
भले ही आराम मिलता ,चंद क्षण को
बाद में दुःख बहुत देती ,ये सताती
छूटती है ट्रेन ,फ्लाईट छूट जाती
लेट दफ्तर पहुँचने पर साहब घेरे
इसलिए ऐ भाई मेरे ,झपकियाँ तू नहीं ले रे
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
अंतहीन सजगता
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अंतहीन सजगता अपने में टिक रहना है योग योग में बने रहना समाधि सध जाये तो
मुक्ति मुक्ति ही ख़ुद से मिलना है हृदय कमल का खिलना है क्योंकि ख़ुद से
मिलकर उसे...
9 घंटे पहले
वाह सुबह की झपकी जो सबकी प्यारी होती है का सरस वर्णन ।
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