शादी
जैसे पतझड़ के बाद ,बसंत ऋतू में ,फूलों का महकना
जैसे प्रात की बेला में,पंछियों का कलरव, चहकना
जैसे सर्दी की गुनगुनी धूप में,छत पर बैठ मुंगफलियाँ खाना
जैसे गर्मी में ट्रेन के सफ़र के बाद ,ठन्डे पानी से नहाना
जैसे तपती हुई धरती पर ,बारिश की पहली फुहार का पडना
जैसे बगीचे में,पेड़ पर चढ़ कर,पके हुए फलों को चखना
जैसे पूनम के चाँद को,थाली में भरे हुए जल में उतारना
जैसे बौराई अमराई में,कोकिल का पियू पियू पुकारना
जैसे सलवटदारवस्त्रों को प्रेस करवा कर के पहन लेना
जैसे सवेरे उठ कर ,गरम गरम चाय की चुस्कियां लेना
जैसे दीपावली की अँधेरी रात मे, दीपक जलाना
जैसे चरपरा खाने के बाद मीठे गुलाब जामुन खाना
जैसे सूखे से चेहरे पर अबीर और गुलाल का खिलना
जैसे वीणा और तबले की ताल से ताल का मिलना
जैसे जीवन के कोरे कागज़ पर कोई आकर लिख दे प्रणय गीत
जैसे वीराने में बहार बन कर आ जाए ,कोई मनमीत
जैसे जीवन की बगिया में ,फूलों की तरह ,खिलता हो प्यार
जैसे सोलह संस्कारों में सबसे प्यारा मनभावन संस्कार
जैसे जीवन की राह में ,मिल जाए ,खूबसूरत हमसफ़र का साथ
इश्वर द्वारा मानव को दी गयी ,सबसे अच्छी सौगात
शादी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
पतंजलि कैवल्य पाद सूत्र 15,16,17 का सार
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पतंजलि कैवल्य पाद सूत्र : 15 , 16 ,17
महर्षि पतंजलि अपनें कैवल्य पाद सूत्र - 15 में कह रहे हैं ,
“ एक वस्तु चित्त भेद के कारण अलग - अलग दिखती है ” । अब ...
4 घंटे पहले
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