जग में चार तरह के दानी
प्रथम श्रेणी के दानी वो जो पापकर्म करते रहते है
पर ऊपरवाले से डर कर ,दान धर्म करते रहते है
बेईमानी की पूँजी का ,थोडा प्रतिशत दान फंड में
गर्मी में लस्सी पिलवाते,कम्बल बँटवा रहे ठण्ड में
जनम जनम के पाप धो रहे ,गंगाजी की एक डुबकी में
पूजा ,हवन सभी करवाते ,लेकिन खोट भरा है जी में
लेकिन डर कर ,'धरमराज 'से ,धर्मराज बनने वाले ये,
छिपे भेड़ियों की खालों में ,इस कलयुग के सच्चे ज्ञानी
जग में चार तरह के दानी
निज में रखता कलम ,पेन्सिल ,कलमदान यह कहलाता है
कुछ पैसे गंगा में डालो , गुप्तदान यह कहलाता है
और तीसरे ढंग की दानी, कहलाती है चूहे दानी
कैद किया करती चूहों को , नाम मगर है फिर भी दानी
शायद दान किया करती है,आजादी का,स्वतंत्रता का
चौथी दानी,मच्छरदानी ,फहराती है ,विजय पताका
मच्छरदानी ,पर मच्छर को,ना देती है पास फटकने
रक्तदान से हमें बचाती ,रात चैन से देती कटने
चूहेदानी में चूहे पर,मच्छरदानी बिन मच्छर के ,
फिर भी दानी कहलाती है,यह सचमुच ही है हैरानी
जग में चार तरह के दानी
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'
पतंजलि कैवल्य पाद सूत्र 15,16,17 का सार
-
पतंजलि कैवल्य पाद सूत्र : 15 , 16 ,17
महर्षि पतंजलि अपनें कैवल्य पाद सूत्र - 15 में कह रहे हैं ,
“ एक वस्तु चित्त भेद के कारण अलग - अलग दिखती है ” । अब ...
5 घंटे पहले
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।