एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

शनिवार, 20 अक्टूबर 2012

उधेड़बुन


असमंजस है व्याप्त

स्थिति भयावह
रजनी-सा तम
चहुंओर
व्याकुल मन
कुठित
घिरा हुआ राष्ट्र
कंटीली दीवारों से |

अपनत्व की धारा
कलुषित बाढ़ बनी
तथाकथित परिजन
नोंच-खसोट में लिप्त
विश्वास की चादर
फटती जा रही
मिष्टान का भी स्वाद
धतूरे जैसा |

कैसी राह में
चले हैं हम
भविष्य अपना
व राष्ट्र का
न जाने
किस हद तक
संरक्षित |

कैसे हो भला
किरण कहाँ है
कई प्रश्नों के
विकट जाल में
दिन-ब-दिन उलझता |

आतंकित मन
प्रश्न अनुत्तरित
जवाबों की खोज में
एक और प्रश्न;
व्यस्त है हृदय
न जाने कैसी
ये उधेड़बुन |

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया अपने बहुमूल्य टिप्पणी के माध्यम से उत्साहवर्धन एवं मार्गदर्शन करें ।
"काव्य का संसार" की ओर से अग्रिम धन्यवाद ।

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-