बहू तो आखिर बहू है
क्या हुआ जो नहीं तुमसे,ठीक से वो बात करती
क्या हुआ घर पर न टिकती,करती रहती मटरगश्ती
क्या हुआ जो उसे खाना बनाने से बहुत चिढ है
क्या हुआ जो छोटी छोटी बात पे वो जाती भिड़ है
क्या हुआ कर बंद कमरा,देखती रहती है टी.वी.
अपने बेटे की बना कर ,लाये हो तुम उसे बीबी
इसलिए ये उसे हक है,जी में आये,वो करे वो
तुम्हारी करके बुराई,कान निज पति के भरे वो
पति जो भी कमाता है,उस पे अपना हक जमाये
सास,ननदों की न पूछे,मौज मइके में उडाये
तुम्हारा ही पुत्र तुमसे,छीन यदि उसने लिया है
बढाया है वंश तुम्हारा,तुम्हे पोता दिया है
है पराये घर की बेटी,था पराया खून पर अब
इतने दिन से ,चूस करके,खून तुम्हारा ,मगर सब
तुम्हारे ही लहू जैसा, हो गया उसका लहू है
बहू तो आखिर बहू है
मदन मोहन बाहेत'घोटू'
गुलाबी ठंडक लिए, महीना दिसम्बर हुआ
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कोहरे का घूंघट,
हौले से उतार कर।
चम्पई फूलों से,
रूप का सिंगार कर।
अम्बर ने प्यार से,
धरती को जब छुआ।
गुलाबी ठंडक लिए,
महीना दिसम्बर हुआ।
धूप गुनगुनाने ...
1 दिन पहले
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत तीखा व्यंग -बढ़िया पोस्ट
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