की तरह है भिनभिनाती
फूलों पर है मडराती
एक रास्ता है बनाती
बता के है रोज जाती
मौसम बहुत है सुहाना
इसी तरह उसको है गाना
भंवरा भी है आता
थोड़ा है डराता
उस डर में भी तो
आन्नद ही है आता
चिड़िया भी कुछ
नया नहीं करती
दाना चोंच में है भरती
खाती बहुत है कम
बच्चों को है खिलाती
रोज यही करने ही
वो सुबह से शाम
आंगन में चली है आती
सबको पता है रहता
इन सब के दिल में
पल पल में जो है बहता
हजारों रोज है यहाँ आते
कुछ बातें हैं बनाते
कुछ बनी बनाई
है चिपकाते
सफेद कागज पर
बना के कुछ
आड़ी तिरछी रेखाऎं
अपने अपने दिल
के मौसम का
हाल हैं दिखाते
किसी को किसी
के अन्दर का फिर भी
पता नहीं है चलता
मधुमक्खी भंवरे
चिड़िया की तरह
कोई नहीं यहां
है निकलता
रोज हर रोज है
मौसम बदलता
कब दिखें बादल और
सूखा पड़ जाये
कब चले बयार
और तूफाँ आ जाये
किसी को भी कोई
आभास नहीं होता
चले आते हैं फिर भी
मौसम का पता
कुछ यूँ ही लगाने
अपना अपना दिल
कुछ यूँ ही बहलाने ।
बहुत ही बढ़िया
जवाब देंहटाएंविजय दशमी की हार्दिक शुभ कामनाएँ!
बहुत सुंदर प्रस्तुति | बढ़िया रचना |
जवाब देंहटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंआपकी इस ख़ूबसूरत
प्रविष्टि को कल
दिनांक 22-10-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1040
पर लिंक किया
जा रहा है।
सादर सूचनार्थ
Beautiful Bro
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंबधाई श्रीमान सुशील जी |
beautiful skj
जवाब देंहटाएंदिल बहलाने बहुत बढ़िया रचना है भाई साहब ,बधाई .
जवाब देंहटाएंकुछ बनी बनाई है चिपकाते (हैं चिपकाते )
फूलों पर मंडराती