श्रद्धा और श्राद्ध
हम अपने पुरखों को,पुरखों के पुरखों को,
साल में पंद्रह दिन ,याद किया करते है
ब्रह्मण को हम प्रतीक,मान कर के,पितरों का,
पितृ पक्ष में उनको ,तृप्त किया करते है
श्राद्ध कर श्रद्धा से,तर्पण कर पितरों का,
मातृ शक्ति का वंदन, नौ दिन तक करते है
यह उनकी आशीषों का ही तो प्रतिफल है,
दसवें दिन रावण को,मार दिया करते है
विदेशी कल्चर की ,दीवानी नव पीढ़ी,
मात पिता के खातिर,करती है इतना बस
एक बरस में केवल,एक कार्ड दे देती ,
एक दिवस मातृदिवस,एक दिवस पितृ दिवस
इक दिन वेलेंटाइन,लाल पुष्प भेंट करो,
बाकि दिन जी भर के,मुंह मारो इधर उधर
पूजती है पति को,भारत की महिलाएं,
मानती है परमेश्वर,रखती है व्रत दिन भर
हमारे संस्कार,बतलाते बार बार,
होता है सुखदायी,परम्परा का पालन
बहुत पुण्य देता है,मात पिता का पूजन,
श्रद्धा से पूजो तो, पत्थर भी है भगवन
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
पतंजलि कैवल्य पाद सूत्र 15,16,17 का सार
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पतंजलि कैवल्य पाद सूत्र : 15 , 16 ,17
महर्षि पतंजलि अपनें कैवल्य पाद सूत्र - 15 में कह रहे हैं ,
“ एक वस्तु चित्त भेद के कारण अलग - अलग दिखती है ” । अब ...
4 घंटे पहले
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