मुझे मेरी माँ ने सुनाई थी
पेट में उसके कोई भी
बात नहीं पच पाती थी
निकल ही किसी तरह
कही भी आती थी
राजा ने बाल काटने
उसे बुलाया था
उसके लम्बे कान
गलती से वो देख आया था
बताने पर किसी को भी
उसे मार दिया जायेगा
ऎसा कह कर
उसे धमकाया था
पर बेचारा आदत का मारा
निगल नहीं पाया था
एक पेड़ के ठूँठ के सामने
सब उगल आया था
पेड़ की लकड़ी का तबला कभी
किसी ने बना के बजाया था
उसकी आवाज में राजा का
भेद भी निकल आया था
मेरी आदत भी उस नाई
की तरह ही हो जाती है
अपने आस पास के सच
देख कर भड़क जाती है
रोज तौबा करता हूँ कही
किसी को कुछ नहीं बताउंगा
सभी तो कर रहे हैं
करने दो मैं कौन सा
कद्दू में तीर मार ले जाउंगा
उस समय मैं अपने को
सबसे अलग सा
देखने लग जाता हूँ
सारे लोग बहुत सही
लगते हैं और मैं अकेला
जोकर हो जाता हूँ
एक राजा के दो लम्बे कान
तो बहुत पुराने हो गये
कहानी सुने भी मुझे
अपनी माँ से जमाने हो गये
आज रोज एक राजा
देख के आता हूँ
उसके लम्बे कानों को
भी हाथ लगाता हूँ
वहाँ कोई किसी को भाव
नहीं देता जान जाता हूँ
फिर रोज धन्ना नाई
की तरह कसम खाता हूँ
पर यहाँ आ कर तो
हल्ला मचाने में
बहुत मजा आता है
लगता है नक्कार खाने मे
तूती बजाने जैसे कोई जाता है
देखना ये है कि इस ठूंठ का
कोई कैसे तबला बना पाता है
फिर मेरे राजाओं के लम्बे लम्बे
कानो की खबर इकट्ठा कर
उनके कान भरने चला जाता है?
Nice work bro ...i can understand ur internal fight with the wrong
जवाब देंहटाएंदमदार |
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया |
बधाई भाई जी ||
bahut badhiya prastuti....
जवाब देंहटाएं"काव्य का संसार" में आपका स्वागत है | अपनी अनमोल रचनाओं से इसे समृद्ध करते रहें |
जवाब देंहटाएंआभार |
लगता है नक्कार खाने में (मे ठीक कर लें )....
जवाब देंहटाएंकानों की खबर के कानों ठीक करलें कानो छप गया है .
बहुत बढ़िया इस्तेमाल किया है रूपक का ,बदले सन्दर्भ में अर्थ भी बदल जातें हैं .
बहुत बढ़िया.....
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना..
अनु