हम पंछी एक डाल के
समझदार चिड़ियायें,
सुबह जल्दी से उठ कर,
बिजली के खम्बों के नीचे,
पा जाती ढेर सारे कीड़े
जैसे 'सेल' लगने पर,
समझदार महिलायें,
सुबह सुबह जल्दी जा,
चुन लेती अच्छे कपडे
सुबह सूर्य उगने पर,
बिजली के तारों पर,
पंक्तिबद्ध होकर के,
चहचहाती चिड़ियायें
काम काज निपटाकर ,
सर्दी के मौसम में,
धूप भरे आँगन में,
गपियाती महिलायें
आसमां में कुछ पंछी,
पंखों को फैलाये,
चुहुलबाजियाँ करते,
बस यूं ही उड़ते है
रिटायर्मेंट होने पर,
समय काटने को ज्यों,
कुछ बूढ़े संग बैठ,
गप्प मारा करते है
कुछ पंछी,सुबह सुबह,
नीड़ छोड़ उड़ जाते,
चुगने को दाना और,
शाम ढले आते है
जैसे हम सुबह सुबह,
दफ्तर को जाते है,
नौकरी कर दिन भर,
शाम को आते है
पंछी के जीवन सा,
हम सबका है जीवन
सपनो के पंख लगा,
हम उड़ते है हर क्षण
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
पतंजलि कैवल्य पाद सूत्र 15,16,17 का सार
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पतंजलि कैवल्य पाद सूत्र : 15 , 16 ,17
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“ एक वस्तु चित्त भेद के कारण अलग - अलग दिखती है ” । अब ...
5 घंटे पहले
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