माचिस की तिली
पेड़ की लकड़ी से बनती,कई माचिस की तिली ,
सर पे जब लगता है रोगन,मुंह में बसती आग है
जरा सा ही रगड़ने पर ,जलती है तिलमिला कर,
और कितने दरख्तों को ,पल में करती खाक है
घोटू
अब कैसी दूरी अंतर में
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अब कैसी दूरी अंतर मेंजान लिया जब भेद हृदय का अब कैसी दूरी अंतर
में, अंतरिक्ष में ग्रह घूमें ज्यों चंद्र-सूर्य अपने अंबर में !उड़ना चाहें
जितना उड़ लें भीतर...
1 दिन पहले
बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंअधिक संघर्ष से चन्दन भी जल जाता है |
जवाब देंहटाएंअवसर आने पर 'सुप्त ज्वालामुखी' भी उबल जाता है ||