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शुक्रवार, 31 जनवरी 2014

शब्दहीन संवाद -आंसू और मुस्कान

          शब्दहीन संवाद -आंसू और मुस्कान
                           आंसू
मन की पीड़ा ,दिल का दर्द उमड़ आता है ,
बिना कहे  ही ,कितना कुछ कह देते आंसू
ये पानी की बूँद छलकती जब   आँखों में ,
पलक द्वार को तोड़ ,यूं ही बह लेते  आंसू
बिन बोले ही मन के भाव उभर आते है ,
जब ये आंसू ,आँखों में भर भर आते है
चुभन ह्रदय में होती,नीर नयन से बहता ,
मन मसोस कर ,कितना कुछ सह लेते आंसू
                    मुस्कान
जब मन का आनंद समा ना पाता मन में ,
तो सुख बन मुस्कान,,नज़र आते चेहरे पर
बिन बोले ही ,सब कुछ बतला देते सबको ,
मन के सारे भाव ,उभर आते चेहरे पर
युगल ओष्ठ ,चोड़े  हो जाते,बांछे खिलती ,
नयी चमक आती चेहरे पर ,खुशियां दिखती ,
होता है जब मन प्रसन्न तो पुलकित होकर,
खुशियों के सब भाव ,बिखर  जाते चेहरे पर

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

तू भी देख बदल कर चोला


        तू भी देख बदल कर चोला

                                  कल मुझसे मेरा मन बोला
                                   तू भी देख बदल कर चोला
मैंने सोचा क्या बन देखूं,जिससे सबसे प्यार कर सकूं
जनता की सेवा कर पाऊँ ,लोगों पर  उपकार कर सकूं
आयी एक आवाज ह्रदय से ,तेरी  वाणी में  है  जादू
इधर उधर की सोच रहा क्या ,नेता क्यों ना बन जाता तू
खादी  का कुरता पाजामा ,रंग बिरंगी टोपी सर पर
झूंठे वादे और आश्वासन ,देने होंगे तुझको दिन भर
कभी किसी की चाटुकारिता ,कभी किसी को देना गाली
ले सेवा का नाम लूटना , नेतागिरी की प्रथा निराली
दंद फंद  करने पड़ते है ,पर तू तो है बिलकुल भोला
                                 कल मुझसे मेरा दिल बोला
सोचा फिर क्या करूं ,भला है,इससे मैं साधू बन जाऊं
करूं भागवत ,कथा ,प्रवचन ,कीर्तन करूं ,प्रभु गुण गाउँ
वस्त्र गेरुआ धारण करके ,कुछ दाढ़ी बढ़वानी  होगी
अपने भाषण और प्रवचन में,नाटकीयता लानी होगी
सत्संगों में भीड़ जुटेगी,पागल सी जनता उमड़ेगी
सत्ता के गलियारों में भी,पहुँच और पहचान बढ़ेगी   
जनता भोली है ,करवालो,कुछ भी इससे,धर्म नाम पर
अपना तन मन और धन सब कुछ,कर देगी तुम पर न्योछावर
तुझे सफलता मिलना निश्चित ,क्योंकि तू है हरफनमौला
                                           कल मुझसे ,मेरा मन बोला

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

क्या भरोसा ?

            क्या भरोसा ?

क्या भरोसा मेह और मेहमान का ,
                       आयेंगे कब और कब ये जायेंगे
बेटा बेटी ,साथ देंगे कब तलक ,
                       सीख लेंगे उड़ना ,सब उड़ जायेंगे
ये तो तय है ,मौत एक दिन आयेगी ,
                         और सरगम ,सांस की थम जायेगी ,
आज फल,इठला रहे जो डाल पर,
                          क्या पता किस रोज ,कब,गिर जायेंगे
कौन अपना और पराया कौन है ,
                                 बाद मृत्यु के विषय ये गौण है     
अहम का है बहम, हम कुछ भी नहीं,
                                 मौत देखेंगे,सहम हम जायेंगे
मृत्यु ही जीवन का शाश्वत सत्य है
                                 बच सकेगा,किस में ये  सामर्थ्य है
जब तलक है तैल ,तब तक रोशनी,
                                 वर्ना  एक दिन ये दिये  बुझ जायेंगे

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

दिल्ली का कोहरा

        दिल्ली का कोहरा

जब सूरज की रोशनी ,
ऊपर ही ऊपर बंट जाती है,
और जमीन के लोगों तक नहीं पहुँच पाती है
 तो गरीबों की सर्द आहें ,एकत्रित होकर ,
फैलती है वायुमंडल में ,कोहरा बन कर
मंहगाई से त्रसित ,
टूटे हुए आदमी के आंसू ,
जब टूट टूट कर जाते है बिखर
नन्हे नन्हे जल कण बन कर 
तो वातावरण में प्रदूषण होता है दोहरा
और घना हो जाता है कोहरा
और जब आदमी को नहीं सूझती है राह
तो होता है टकराव
 हमें रखनी होगी ये बात याद
कि कोहरा ,अच्छी खासी हरी फसलों को भी,
कर देता है बर्बाद
तो आओ ,ऐसा कुछ करें,
कि गरीबों की आह न फैले निकल के
नहीं बिखरे आंसू,किसी दुखी और विकल के
मिल कर बचाएं हम वातावरण को
ताकि सूरज की रोशनी मिले,हर जन को
 
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

टोटकों का अचार

.              टोटकों  का अचार

लोग,अपनी दूकान के आगे ,
 नीबू और हरी मिर्च लटकाते है   
और अपने प्रतिष्ठान को,
बुरी नज़र से बचाते है
और हम ये भी देखते है अक्सर
दुल्हे,दुल्हन और बच्चों की ,
राइ लूण (नमक )से उतारी जाती है नज़र
ये टोटके होते है बड़े लाजबाब
पर होते है गजब के स्वाद
हरी मिर्चों को काट कर,राइ लूण मिलाओ
और नीबू के रस में गलाओ
तो कुछ ही दिनों में हो जाता है तैयार
मिर्ची का स्वादिष्ट अचार
आपको एक राज़ की बात बतलाता हूँ
बुरी नज़र से बचने के लिए ,
मैं इन टोटकों का अचार खाता  हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 28 जनवरी 2014

झुनझुना

          झुनझुना

बचपने में रोते थे तो ,बहलाने के वास्ते ,
                          पकड़ा देती थी हमारे हाथ में माँ, झुनझुना
ये हमारे लिए कुतुहल ,एक होता था बड़ा ,
                          हम हिलाते हाथ थे  और बजने लगता झुनझुना
हो बड़े ,स्कूल ,कालेज में जो पढ़ने को गए ,
                          तो पिताजी ने थमाया ,किताबों का झुनझुना
बोले अच्छे नंबरों से पास जो हो जायेंगे ,
                            जिंदगी भर बजायेंगे ,केरियर  का झुनझुना
फिर हुई शादी हमारी ,और जब बीबी मिली ,
                            पायलों की छनक ,चूड़ी का खनकता झुनझुना
ऐसा कैसा झुनझुना देती है पकड़ा बीबियाँ,
                            गिले शिकवे भूल शौहर ,बजते  बन के झुनझुना
 जिंदगी भर लीडरों ने ,बहुत बहकाया हमें ,
                             दिया पकड़ा हाथ में ,आश्वासनों का झुनझुना
और होती बुढ़ापे में ,तन की हालत इस तरह ,
                              होती हमको झुनझुनी है,बदन जाता झुनझुना

मदन मोहन बाहेती'घोटू'     

हश्र-शादी का

            हश्र-शादी का

अपनी हथेलियों पर ,हमने उन्हें बिठाया ,
                         वो अपनी उँगलियों पर ,हमको नचा रही है
हमने तो मांग उनकी ,सिन्दूर से भरी थी,
                         मांगों को उनकी भरने में ,उम्र   जा रही है
जबसे बने है दूल्हे,सब हेकड़ी हम भूले,
                          बनने के बाद वर हम,बरबाद  हो गए है
जब से पड़ा गले में ,है हार उनके हाथों,
                            हारे ही हारे हैं हम,  नाशाद  हो गए है
शौहर बने है जबसे ,भूले है अपने जौहर ,
                             वो मानती नहीं है,हम थक गए मनाते 
 पतियों की दुर्गती है,विपति ही विपत्ति है,
                             रूह उसकी कांपती है, बीबी की डॉट खाते
हम भूल गए मस्ती,गुम हो गयी है हस्ती,
                             चक्कर में गृहस्थी के, बस इस कदर फसें है
घरवाले उनके बन कर,हालत हुई है बदतर ,
                              घर के भी ना रहे हम,और ना ही घाट  के है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

सोमवार, 27 जनवरी 2014

श्वान स्वभाव

         श्वान स्वभाव

बड़े बड़े बंगलो में रहनेवाले
घर के रखवाले ,
श्वान ,जब मालकिन की डोर से बंधे
थोड़े अनियंत्रित पर सधे
जब प्रातः निकलते है करने विचरण
तो जगह जगह रुकते है ,कुछ क्षण
सूँघते है,और करते है निरीक्षण
और अपनी पसंदीदा जगह पर,
कर देते है जल विसर्जन
अक्सर उन्हें ,स्थिर-प्रज्ञ बिजली के खम्बे,
जो मूक से खड़े ,
सबका पथ प्रकाशित करते है
या कार के वो टायर
जो होते है यायावर
और जो स्वयंचल कर,
पहुंचाया  करते है मंजिल पर ,
उन्हें बहुत पसंद आते है
जहाँ वे अपनी श्रद्धा के सुमन चढ़ाते है
आप यह सब देख ,अचंभित क्यों होते है,
चाहे बंगलों के हो या गलियों के,
प्राणी का  स्वभाव नहीं बदलता ,
कुत्ते तो कुत्ते ही होते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'   

अभिमन्यु

    अभिमन्यु

पहले मैंने हाथ में चरखी  लेकर,
उसका संचालित करना सीखा
मांजे को कब ढील देना ,कब समेटना ,
ये सारा अनुशासन  सीखा 
और जब मेरी पतंग ,
आसमान की ऊंचाइयों को छूने लगी ,
पांच,सात,दिग्गज पतंगबाजों की ,
आँखों में चुभने लगी
उन्होंने सबने मिल कर ऐसा पेंच डाला ,
मेरी पतंग को काट डाला
यह तो मानव की प्रवृत्ति है ,
मैं परेशान क्यूँ हूँ
मैं आज का अभिमन्यु हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'








 
 

गीत

            गीत

शब्द पहले छंदों में ढलते है
छंद फिर धुनो में बंधते है
फिर किसी कोकिल कंठी के,
अधरों का स्पर्श पाते हुए,
दिल की गहराइयों से निकलते है
और संगीत के सुरों में सजते है ,
गीत बनते है

घोटू

मिर्ची

           मिर्ची
मिर्ची ,
जितनी छोटी होती है,
उतनी ही तेज होती है
लोंगा मिर्ची ,कभी मुंह में रख कर तो देखो,
आग लगा देती है
बड़ी,गठीली,हरी मिर्ची ,
जब सलाद की प्लेट में मुस्कराती है
बड़ा मन भाती  है
कभी हरी है,कभी लाल है
सचमुच कमाल है 
और जब फूल कर उसका बदन
शिमला मिर्ची सा जाता है बन
तो खो जाता है उसका चरपरापन
बुढ़ापे में भी ,सूख कर ,
कभी तड़के के काम आती है
कभी पिस कर ,व्यंजनो का स्वाद बढाती है
मिर्ची हर उम्र में,हर रंग और रूप में,
होती है चरपरी
उसकी तासीर गरम होती है ,
पर होती है स्वाद से भरी
ये गुणो की खान है
आती कई काम है
इससे नज़र उतारी जाती  है
किसी की नज़र न लगे,इसलिए ,
दूकानो के आगे लटकाई जाती है
जब बदमाशों की आँख में झोंकी जाती है
महिलाओ की इज्जत बचाती है
मिर्ची की तेजी,घोड़ी की तेजी से भी फास्ट होती है
दिन में खाओ,अगली सुबह ब्लास्ट होती है
कभी कभी ,बिना छूए या बिना खाये ,
भी  असर दिखाती है 
आपको हँसता और खुशहाल  देख,
लोगों को मिर्ची लग जाती है
मिर्ची और आम
दोनों आते है अचार बनाने के काम
मिर्ची का अचार,नीबू के साथ,खट्टा होता है
पर बड़ा चटपटा होता है
आम का भी अचार बनता है पर ,
आम और मिर्ची में होता है बड़ा अंतर
क्योंकि आम तो बढ़ती उम्र के साथ,
बदल लेता है अपना रंग और स्वाद
खट्टापना छोड़,हो जाता है मीठा,लाजबाब
पर मिर्ची ,छोटी हो या बड़ी,
लाल हो या हरी ,
कच्ची हो या पक्की
होती है बड़ी झक्की
हमेशा रहती है ,तेज और झर्राट
नहीं छोड़ पाती है अपना स्वाद
फिर भी,सबके मन को रूची है
क्योंकि,मिर्ची तो मिर्ची है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 24 जनवरी 2014

दो सो साल पहले

             दो सो साल पहले

ना अखबार न म्यूजिक सिस्टम ,
                              टेबलेट ना ,ना कंप्यूटर
लालटेन और दीये जलते ,
                              ना बिजली की लाईट घर     
ना चलते बिजली के पंखे ,
                             न ही रेडियो ,टेलीविजन
सोचा है क्या ,कभी आपने ,
                              कैसे कटता  होगा जीवन
आवागमन बड़ा मुश्किल था ,
                               न थी रेल ,ना ही मोटर ,बस
या तो पैदल चलो अन्यथा ,
                                बैल गाड़ियां ,घोड़े या रथ
लोग महीनो पैदल चल कर ,
                                  तीर्थ यात्रायें करते थे  
गया गया सो गया ही गया ,
                                 ऐसा लोग कहा करते थे
होते थे दस ,पंद्रह दिन के ,
                                शादी और ब्याह के फंक्शन
खाना पीना,कई चोंचले,
                               जिससे लगा रहे सबका मन
चौपालों पर हुक्का पानी ,
                               गप्पों से दिन गुजरा करता
किन्तु बाद में ,घर आने पर,
                                 कैसे उनका वक़्त गुजरता
ना था अन्य मनोरंजन कुछ ,
                                 तो बेचारे फिर क्या करते 
पत्नी साथ मनोरंजन कर ,
                               थकते और सो जाया करते
शाम ढले ,होता अंधियारा ,
                               करे आदमी क्या बेचारा
इसीलिये हो जाते  अक्सर ,
                                हर घर में बच्चे दस,बारा
बढ़ती उम्र ,नहीं बचता था ,
                                 उनमे थोडा सा भी दम ख़म
तब पागल से ,हो जाते थे ,
                                सठियाना कहते जिसको हम
किन्तु आज के तो इस युग में,
                                जीवन पद्धिति ,बदल गयी है
बूढा हो ,चाहे जवान हो,
                               समय किसी के पास नहीं है
टी वी,इंटरनेट ,चेट में,
                             सारा समय व्यस्त रहते है
खोल फेस बुक या मोबाईल ,
                                ये बातें करते रहते है
अब तो वक़्त ,कटे चुटकी में ,
                                 पर तब कैसी होगी हालत
नहीं कोई भी संसाधन थे ,
                                     बूढ़े क्या करते होंगे तब 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मौसम

                 मौसम 

मान जाओ इस तरह ना ,रूठने का है ये मौसम
प्यार की रंगीनियों को ,लूटने का है ये मौसम
लिपटने का,चिपटने का ,सिमिटने का,समाने का ,
बाँहों के बंधन में बंधकर,टूटने का है ये मौसम

घोटू 

प्रार्थना

         प्रार्थना
मैं तेरे आगे नतमस्तक ,
तू मेरा  मस्तक ऊंचा कर
मुझमे इतना साहस भर दे,
चलूँ उठाकर,मैं अपना सर
जीवन की सारी पीड़ाय़े ,
झेल सकूं मैं यूं ही हंसकर
हे प्रभु मुझको ऐसा वर दे,
करता रहूँ कर्म जीवन भर
भला बुरा पहचान सकूं मैं ,
मुझ में तू ऐसी शक्ति भर
चेहरे पर मुस्कान ला सकूं,
किसी दुखी की पीड़ा हर कर 
लेकिन मद और अहंकार से ,
रखना दूर ,मुझे परमेश्वर

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

निंदक नियरे राखिये

             निंदक नियरे राखिये

           चमचों से बचो 

      निंदक पास रखो

      क्योंकि आपकी अपनी बुराई

      जो आपको नज़र न आयी

       आपको बतलायेंगे 

       खामियाँ  गिनवाएंगे 

       क्योंकि आप जिससे रहते है बेखबर

       ढूंढ लेती है निंदकों की नज़र

       आपकी कमी और दोष

       बताएँगे  खोज खोज

       जिससे थे आप अनजाने

       और बिना कोई बुरा माने

       गलतियां सुधारते रहिये

       व्यक्तित्व निखारते रहिये

        वरना चमचे

        खुद करेंगे मज़े

        अच्छाई बुराई से बेखबर

         आपकी तारीफें कर

         हमेशा वाही वाही करेंगे

         आपकी तबाही करेंगे

         बढा  अहंकार देंगे

          आपको बिगाड़ देंगे

         इसलिए ये है आवश्यक

         आसपास रखो निंदक

          क्योंकि वो ही आपको निखारेंगे

          आपका  व्यक्तित्व  संवारेंगे

 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'          

मंगलवार, 21 जनवरी 2014

खुशियों के क्षण


             खुशियों के क्षण

'नौ महीने तक रखा संग में,पिया खाया
जिसकी लातें खा खा करके मन मुस्काया
माँ जीवन में खुशियों का पल,सबसे अच्छा
रोता पहली बार ,जनम लेकर जब बच्चा
एक बार ही आता है  , ये पल जीवन में  
जब बच्चा रोता और माँ ,खुश होती मन में '

  मदन मोहन बाहेती 'घोटू'


सोमवार, 20 जनवरी 2014

तमाम तन्हा लोगों के नाम एक क्षणिका....



सर्द मौसम है,
गर्मागर्म पकौड़ों
अदरक वाली चाय
का ये वक्त है,
पर नदारद हैं
खनकती चूडियों
वाले वे हाथ,
शाम नहीं ये
जहर की पुड़िया है,
मौत यूं आहिस्ता-आहिस्ता
क्या कहें,
बहुत बढ़िया है...

- विशाल चर्चित

देखो हम क्या क्या करते है


       देखो हम क्या क्या करते है

     हम जो करते है पाप,पुण्य,सन्दर्भ बदलते रहते है
      अपनी सुविधा के अनुसार,आदर्श बदलते रहते है
हम पूजा करते नारी को ,बचपन में होती माँ स्वरुप
फिर शादी कर पूजा करते है नारी को ,पत्नी स्वरूप
उगते सूरज को अर्घ्य चढ़ा,तपते सूरज से है डरते
फिर कब हो अस्त ,आये रजनी ,बस यही प्रतीक्षा है करते
सर्दी में गर्मी की इच्छा ,गर्मी में वर्षा  की चाहत
बारिश में,कब बरसात थमे,बस यही प्रतीक्षा करते सब
        गर्मी में पंखे और कूलर के बिन कुछ काम नहीं चलता ,
         सर्दी आते ही हम उनको ,चुपचाप तिरस्कृत करते है
        अपनी सुविधा के अनुसार,आदर्श बदलते  रहते है
करते प्रणाम उस सत्ता को ,जिससे सधता है कुछ मतलब
जिससे कोई भी काम न हो,ठोकर मारा करते है सब
दुःख और पीड़ा में जा मंदिर,पूजन और अर्चन करते है
पर सुख आते है तो केवल ,परसाद चढ़ाया करते है
ये मन पागल है ,चंचल है ,टिकता ना एक जगह पर है
चाहत उसकी पूरी करने ,हम भटका करते दर दर है
            तुम अपना आत्म विवेचन तो,सच्चे मन से कर के देखो,
             अपने मतलब की सिद्धी हित,हम जाने क्या क्या करते है
             अपनी सुविधा के अनुसार,आदर्श  बदलते रहते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'    

ममता की दौलत

        ममता की दौलत

सिवा मेरे और कोई से महोब्बत नहीं थी
आधी आधी बंट गयी जो,ऐसी चाहत नहीं थी
हमको अपनी आशिक़ी के,याद आते है वो दिन,
प्यार करने के अलावा ,हमको फुर्सत नहीं थी
तेरे जीवन में मै ही था,तेरा तनमन था मेरा ,
कम ही मौके आते ,तू करती शरारत  नहीं थी
जब से तुझको जिंदगी में ,खुदा की रहमत मिली,
इससे पहले तुझ में ये ,ममता की दौलत नहीं  थी
नूर तुझपे छा गया है,चेहरे पे आया निखार ,
जवानी में भी ,तेरे मुख पे ये रंगत नहीं थी
थी कनक की छड़ी जैसी ,छरहरी काया  तेरी ,
तेरे गदराये बदन पे,ऐसी रौनक नहीं थी
यूं तो अपनी हर अदा से ,सताती थी तू मुझे ,
इस  अदा से सताने की ,तेरी आदत नहीं थी

 मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गाँठ से पैसे खरच कर,हम ने दारू ली नहीं

  गाँठ से पैसे खरच  कर,हम ने दारू ली नहीं

जब भी यारों ने पिलाई ,ना ना कर थोड़ी चखी ,
हम नहीं भरते है ये दम,हमने दारू पी नहीं
जब भी फ़ोकट में मिली है,प्रेम से गटकायी है,
रम,बीयर जो मिली पीली,मिली जो व्हिस्की नहीं
जब भी फॉरेन फ्लाईट में ,मुफ्त में  ऑफर हुई,
व्योमबाला ने पिलाई ,और हम ने ली नहीं    
भैरोबाबा का समझ ,परसाद ,चरणामृत पिया ,
उस जगह ना गए मदिरा ,जहाँ पर थी फ्री नहीं
सर्दी और जुकाम में पी ,ब्रांडी को समझा दवा ,
गम गलत करने ,खुशी में,हमने दारू पी नहीं
'घोटू'हम ना तो पियक्कड़ ,ना ही दारूबाज है,
गाँठ से पैसे खरच कर ,हमने दारू  ली नहीं

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 18 जनवरी 2014

माया उस परमेश्वर की

      माया उस परमेश्वर की

आसमान में बिजली कड़की,घर की बिजली चली गयी,
और जब बादल लगे गरजने ,घर का टी वी मौन हुआ
थोड़ी सी प्रगती क्या करली ,हम खुद पर इतराते है ,
पर 'वो'सारा कर्ता  धर्ता ,हम सब मानव गौण हुए
इतना विस्तृत है उसका घर ,पाना पार बड़ा मुश्किल,
एक हाथ में मरुस्थल है,एक हाथ में हरियाली
कहीं पहाड़ है ऊंचे ऊंचे ,कहीं समुन्दर लहराते ,
कहीं प्रखर रवि,कहीं निशा है,कहीं उषा की है लाली
उसके एक इशारे पर ही,पवन हिलोरे मार रही,
वृक्षों के पत्ते लहराते,खिल कर पुष्प महकते है
वो ही भरता है गेंहू की बाली में अन्न के दाने ,
आसमान में विचरण करते ,पंछी सभी चहकते है
नीर बरसता है बादल से ,भरे सरोवर लहराते,
नदियांये कल कल बहती है,लहरें उठे समंदर की
जन्म ,मरण,दिन रात सभी कुछ ,चले इशारों पर उसके,
आओ उसका नमन करें हम,ये माया उस ईश्वर  की

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बेटा बेटी सदा बराबर

         बेटा  बेटी  सदा बराबर

नर नारायण कहलाते है ,नारी देवी स्वरूपा है,
दोनों ही पूजे जाते है ,दोनों ही परमेश्वर है
उदधि कहाता है रत्नाकर,तो है धरा रत्न गर्भा,
दोनों में ही रत्न भरे है ,दोनों गुण के सागर है
बेटा होता ,खुशी मनाते,उसको पुत्र रत्न कहते,
बेटी होती,दुःख करते हो,दोनों में क्यों अंतर है?
बेटा बेटी सदा  बराबर ,दोनों ही आवश्यक है ,
दोनों से ही जगती चलती ,यह तो सत्य उजागर है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

शुक्रवार, 17 जनवरी 2014

क्रांति दूत से

               क्रांति दूत से

उंगली मिली अंगूठे के संग ,सदा कलम को गति भरती  है
और प्रत्यंचा तान लक्ष्य पर ,षर संधान  किया करती   है
सागर में भूकम्पी हलचल ,जन्म सुनामी को है देती
नन्ही छोटी सी लहरों को  ,ऊंचाई तक पंहुचा  देती
हो जाते है ध्वंस सभी जो ,आते पथ में बाधा बन के
और तिनके से बह जाते है ,कितने ही सपने जीवन के
तो उस हलचल को पहचानो,तद अनुसार,उचित निर्णय लो
 रहे सुरक्षित,सब तन ,मन ,धन,और सभी जीयें निर्भय हो
तुम नेता हो ,तुम्ही प्रणेता ,किन्तु विजेता तभी बनोगे
स्वार्थ सिद्धि हित ,साथ आये जो,उन तत्वों को पहचानोगे
याद रखो,तुम्हारा यह घर,स्थित एक  घने  जंगल में
लाख प्रयत्न करोगे फिर भी ,नहीं बचेगा ,दावानल में
आवश्यक इसलिए चौकसी ,रहना चिंगारी से बच कर
दुश्मन लिए ,मशाल खड़े है ,आग लगाने  को है तत्पर
कौरव दल के कई शकूनी ,उलटे पांसे  फेंक रहे है
दे दें मात ,हरा दे तुमको,ऐसा मौक़ा देख रहे है
अभिमन्यु से ,चक्रव्यूह तुम ,तोड़ ,घुस गए तो हो अंदर
लेकिन अबकी बार जीत कर  ,तुमको आना होगा बाहर
बन कर कृष्ण ,करो संचालन,महासमर ये परिवर्तन का
हाथ हजारों,साथ तुम्हारे ,आशीर्वाद  तुम्हे जन जन का

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 16 जनवरी 2014

आज का देहली का मौसम

           आज का देहली का मौसम

रात भर दुबके रजाई में रहे ,
                   और दिन भर सामने सिगड़ी रही
नहाये,धोये न शेविंग ही किया ,
                     हमारी हालत यूं ही बिगड़ी  रही
आसमां में धुंध सी छाई रही ,
                       सर्द मौसम ने दिखाया ये असर
बादलों की रजाई में दुबक कर ,
                       सूर्य भी दिन भर नहीं आया नज़र
रहा दिनभर सिहरता ये तन बदन ,
                        चाय की लेते रहे हम चुस्कियां
गरम हलवा ,पकोड़े खाते रहे ,
                           टी वी देखा,काम कुछ भी ना किया
सर्दियों से लड़ा करता महाबली ,
                            नाम 'कम्बल',है ,मगर बलवान है
लोग क्यों कहते है ये मौसम है बुरा,
                              हमें सुख देता ,ये मेहरबान है

घोटू

बुधवार, 15 जनवरी 2014

बिन पैंदी के लोटे हो गये

       बिन पैंदी के लोटे हो गये 

बड़े तीखे तेज थे,शादी की ,बोठे  हो गये
खाया ,पिया,ऐश की,मस्ती की,मोटे हो गये
कभी माँ की बात मानी ,कभी बीबी की सुनी ,
'घोटू'क्या बतलायें ,बिन पेंदी के लोटे हो गये
ना इधर के ही रहे और ना उधर के ही रहे ,
किसी को लगते खरे ,कोई को खोटे हो गये
कभी सीधे,कभी टेढ़े ,कभी चलते ढाई घर,
आजकल शतरंज के ,जैसे हम गोटे हो गये
इस तरह  से फंस गये  है ,दुनिया के जंजाल में,
चैन से भी, नींद अब ,लेने के टोटे  हो गये
रोज की उलझनो ने हालत बिगाड़ी इस कदर ,
नाम के दिखते बड़े, दर्शन के खोटे  हो  गये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 14 जनवरी 2014

संक्रांति या क्रांति

                संक्रांति या क्रांति

सूर्य ने राशि बदल ली,आ गयी संक्रांति है
देश की इस राजनीति में भी आयी क्रांति है
नाम पर जनतंत्र के जो राज पुश्तेनी चला ,
हो रही अब धीरे धीरे ,दूर सारी   भ्रान्ति  है
           कर रहा महसूस खुद को,आदमी था जो ठगा
           ऋतू ने अंगड़ाई ली है ,बदलने  मौसम लगा
            हर तरफ फैली हुई आयी नज़र जब गंदगी ,
               हाथ में झाड़ू उठा ,बुहारने उसको लगा
बचपने से चाय जो बेचा करे था रेल में
आज खुल कर आ गया वो राजनीति खेल में
देश को  बंटने न देंगे ,अब धर्म के नाम पे,
भ्रष्टाचारी और लुटेरे ,जायेंगे अब जेल  में
               जब से अपनी शक्ति का ,उसको हुआ अहसास है
                आदमी जो आम था ,अब लगा होने ख़ास है
                क्रांति की ये लहर निश्चित ,अपना रंग दिखलायेगी ,
                हमारे भी दिन फिरेंगे ,हम को ये विश्वास है
सूर्य था जो दक्षिणायण ,उत्तरायण आयेगा
भीष्म सा षर-बिद्ध ,मेरा देश मुक्ती पायेगा
ध्वंस सारे दुशासन सुत ,युद्ध में हो जायेंगे ,
आस है ,विश्वास है,अब तो सुशासन आयेगा      
                  दे रहा है बदलता मौसम यही पैगाम है
                  खूब लूटा देश,उनको ,भुगतना अंजाम है
                  अब न कठपुतली ,मुखौटे ,चलायेगे देश को,
                   शीर्ष पर सत्ता के होगा ,आदमी जो आम है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू' 

सोमवार, 13 जनवरी 2014

सांप


              सांप

बहुत रौबीले ,कड़क ,दफ्तर में होते साहब है
घर में भीगी बिल्ली बन कर,रहते वो चुपचाप है
कितना टेड़ा मेडा चलता,फन उठा ,फुंफकारता ,
बिल में जब घुसता है  तो हो जाता सीधा सांप है

घोटू

पन्ना

               पन्ना
                   १
पन्ना पन्ना जुड़ता तो किताब बना करती है
पन्ना जड़ता ,अंगूठी ,नायाब  बना करती  है
कच्ची अमिया भी उबल कर,मसालों के साथ में,
आम का पन्ना ,बड़ा ही स्वाद बना करती है 
                    २
प्यार की अपनी बिरासत ,चाहता था सौंपना
भटकता संसार में,मैं रहा पागल अनमना
जिसको देखा,व्यस्त पाया ,अपने अपने स्वार्थ में ,
ढूँढता ही रह गया ,पर मिला ना अपनापना

 घोटू

रविवार, 12 जनवरी 2014

अब सौंप दिया इस जीवन का …

         अब सौंप दिया इस जीवन का …
                       पेरोडी
अब सौंप  दिया इस जीवन का ,सब भार तुम्हारे हाथो में
जब से डाला है वरमाला का  हार  तुम्हारे हाथो ने
मेरा निश्चय था एक यही, एक बार तुम्हे पा जाऊं मैं ,
आ जाएगा फिर इस घर का ,सब माल हमारे हाथों में
इस घर में रहूँ तो ऐसे रहूँ,कुछ काम धाम करना न पड़े ,
बर्तन हो ननद के हाथो मेऔर झाड़ू सास के हाथों में
जब जब भी मुझको जन्म मिले,तो इस घर की ही बहू बनूँ,
हो घर की तिजोरी की चाबी,हर बार हमारे हाथों में
जब तक तुम करते काम रहो,मैं मौज करू,आराम करू,
तुम पीछे से धक्का मारो,हो कार हमारे हाथों में
तुम में मुझ में है फर्क यही ,तुम नर हो और मैं नारी हूँ ,
तुम कठपुतली बन कर नाचो,हो तार तुम्हारे हाथो में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

डिक्टेटर


                 डिक्टेटर

एक  साहब थे नामी
रोबीले व्यक्तित्व के स्वामी
शहर में साख थी
दफ्तर में धाक  थी
उनकी थी एक स्टेनोग्राफर
फुर्तीली,काम में तत्पर
सुन्दर,स्मार्ट और यंग थी
शरीर से उदार ,कपड़ों से तंग थी
हमेशा हंसती ,मुस्कराती थी
यस सर यस सर कह कर शर्माती थी
घंटो का काम ,मिनटों में कर लाती थी
साहब के मन भाती  थी
साहब डिक्टेशन देते थे ,रुक रुक कर
स्टेनो ,डिक्टेशन लेती थी ,झुक झुक कर
साहब की थी 'हाई प्रोफाइल'
स्टेनो के कपड़ों की थो 'लो प्रोफाइल ' 
और इसी स्टाइल में
धीरे धीरे वो फ़ाइल  हो गयी,
साहब के दिल की फ़ाइल में
उसकी नरमता और नम्रता ने
धीरे धीरे बुने कुछ ऐसे ताने बाने
असर कर गयी उसके नयनो की मार
साहब के मन में आया उससे शादी का विचार
और इतनी आज्ञाकारी बीबी की सोच
साहब ने एक दिन कर दिया प्रपोज
और स्टेनो ने भी 'नो'नहीं किया
कल तक थी पी ऐ ,अब हो गयी प्रिया
वक़्त की धूप छाँव 
कभी नाव पर गाड़ी थी,अब गाडी पर नाव
हमेशा यस सर यस सर कहनेवाली स्टेनो
सर के सर पर चढ़ कर ,कहती है नो नो
बढ़ गया है उसका इतना रुबाब
कि वो हो गयी है साहब की भी साहब
राम ही जाने ,साहब पर क्या गुजरती है
जिसे कभी वो डिक्टेट करते थे,
वो आज उन्हें डिक्टेट करती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

नर्स के प्रेमी

           नर्स के प्रेमी

मिस्टर हर्ष थे इक्कीस वर्ष के
प्यार में फंस गए एक नर्स के
उसकी चुस्ती,फुर्ती और कसी कसी ड्रेस
कर गयी उनको इतना इम्प्रेस
कि एक दिन बोले उससे'प्लीज
मैं हो गया हूँ तुम्हारे इश्क़ का मरीज
खोया ही रहता हूँ तुम्हारी याद में
दिल चाहता है रहना तुम्हारे ही साथ में
इसलिए ऐसा कुछ करो ,
कि मैं भर्ती हो जाऊं ,तुम्हारे वार्ड में
नर्स हंसी और बोली डियर
मुझे भी आपसे है लव
मैं कुछ्ह भी करलूं ,पर आप ,
मेरे वार्ड में नहीं हो  सकते भरती
क्योंकि मैं 'मेटरनिटी वार्ड'में काम हूँ करती

घोटू

थिरकन

           थिरकन
सर्दियाँ होती है तो बदन कंपकंपाता है
आदमी ,गुस्से में होता है,काँप जाता है
बड़ा करीब का रिश्ता है तन का थिरकन से,
प्यार में ,लब थिरकते,जिस्म थरथराता है

घोटू

शनिवार, 11 जनवरी 2014

भगवान के नाम पर

           भगवान के नाम पर

लोग ,ले ले कर भगवान का  नाम
देखो कर रहे है ,कैसे   कैसे   काम
कोई भगवान के नाम पर भीख माँगता है
कोई भगवान के नाम पर  वोट माँगता है
कोई भगवान के नाम पर मांग रहा है चन्दा 
हर कोई कर रहा है ,भगवान के नाम को गंदा
कोई देवी के आगे ,करता है  पशु का बलिदान
और मांस भक्षण कर रहा है ,प्रसाद का लेकर नाम
कोई बाबा भैरवनाथ को दारु की बोतल चढाता है
और प्रसाद  है के नाम पर मदिरा गटकाता है
कोई शिवजी की  बूटी कह कर भांग पिया करता है
कोई कृष्ण बनने  का स्वांग किया करता है 
भक्तिनो के संग ,जल क्रीड़ा और रास रचाता है
वासना का कीड़ा है पर संत कहा जाता है
लोग भगवान को ,राजभोग और छप्पन भोग चढ़ाते है
और सारा माल ,खुद ही चट कर जाते है
अगर कभी कहीं भगवान प्रकट होकर ,
खाने लगे चढ़ाया गया सब प्रसाद
तो सारे पण्डे पुजारी भूखे मर जायेंगे ,
और हो जायेंगे बरबाद
अगर भगवान प्रसाद खाने लगे ,
तो प्रसाद चढ़ाना भी कम हो जाएगा
और भगवान के नाम पर धंधा चलाने वाले ,
इन धंधेबाजों का धंधा बंद हो जाएगा
हे भगवान! तेरे नाम पर कितना कुछ हो रहा है
और तू सो रहा है
अब तो तेरे नाम पर चलने वाले ,
धंधों की हो गयी है पराकाष्ठा
और घटने लगी है लोगों की आस्था
हे प्रभू !अब तो कुछ कर
शीध्र ही कोई नया अवतार धर

मदन मोहन बाहेती'घोटू'   

पत्नी देवी -पति परमेश्वर

            पत्नी देवी -पति परमेश्वर

फरमाइश कोई तुम्हारी ,कर पाता  जब मैं पूर्ण नहीं,
तुम हो जाती हो बहुत क्षुब्ध ,कहती हो मैं हूँ पत्थर दिल
और हाथ जोड़ पूजा करती ,वरदान मांगती हो उससे ,
जो खुद पत्थर की मूरत है ,ये बात समझना है मुश्किल
हम लोग मान प्रभू का प्रतीक,पूजा करते है मूरत को,
मंदिर में उन्हें बिठाते है ,श्रद्धा से  शीश  नमाते  है
हम उनका आराधन करते ,ले धप,अगरबत्ती ,दीपक ,
करते है आरती सुबह शाम,उन पर परशाद  चढ़ाते है
हो जाता पूर्ण मनोरथ तो ,सब श्रेय प्रभू को दे देते ,
 यदि नहीं हुआतो'प्रभु इच्छा', करते किस्मत को कोसा हम 
प्रभु इच्छा से ही देवीजी ,ये बंधन बंधा  हमारा है ,
मैं सच्चे दिल से प्यार करूं ,पर करती नहीं भरोसा तुम
तुम कहती मुझको पत्थर दिल,मूरत तो पूरा  पत्थर है ,
फिर भी तुम्हारी नज़रों में ,वो मुझ से ज्यादा बेहतर है
हम संस्कार वश,मूर्ती की,पूजा करते ,पर सत्य यही ,
पत्नी होती देवी स्वरुप ,और पति होते परमेश्वर है
पत्थर की मूरत गति विहीन,है शांत,मौन और अचल खड़ी ,
लेकिन श्रद्धा से भक्तों की, पाती है रूप  देवता का
लेकिन जीवंत रूप प्रभू का ,होते है हम नर और नारी ,
है मिलन हमारा सृजनशील, हम सृजक,हमी सृष्टीकर्ता
तो आओ मैं पूजूं तुमको ,तुम पूजो मुझे,मिलें हम तुम,
विश्वास,प्यार ,एक दूजे से,करने से ही बंधता बंधन
पति पत्नी दोनों ही होते , दो पहिये जीवन गाड़ी के,
संग चलें,रखें,विश्वास अटल ,तब ही आगे बढ़ता जीवन

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 10 जनवरी 2014

जी तो करता है तुझे प्यार करूं जी भर के

    जी तो करता है तुझे प्यार करूं जी भर के  

जी तो करता है तुझे प्यार करूं जी भर के ,
मगर तू पास भी आने नहीं देती  मुझको
सताती रहती मुझको नित नयी अदाओं से ,
 चाहूँ मैं ,पर तू  सताने नहीं देती मुझको
            यूं कभी भी ,कहीं भी ,मिलती जब अकेले में,
            जब भी है मिलती ,शरारत से मुस्कराती तू
           अपनी मादक सी और मोहती अदाओं से,
            दिखाके जलवे ,मेरे दिल को लूट जाती तू
मैं करूं  कुछ पहल तो ,शरमाकर के,यह कह के,
कि कोई देख ना ले,खिसक जाती तू झट से
जी तो ये  करता है कि तुझ में समा जाऊं मैं ,
हाथ भी अपना  लगाने नहीं देती मुझको
जी तो करता है कि ……
           कितने अरमान तुझको ले के सजा रख्खे है ,
            ये कभी तूने बताने का भी मौका न दिया
           अपने जलवों की दावत का निमंत्रण दे के,
          कभी भी,दावतें खाने का भी मौका न दिया
अब मैं तुझको क्या बतलाऊँ मेरी जाने जिगर ,
कब से उपवास करके ,जी रहा हूँ,आहें भर
सामने थाली में पुरसे  हुए  पकवान गरम,
और तू है कि जो खाने नहीं देती मुझको
जी तो करता है कि ……
             जब भी करता हूँ मैं कोशिश करीब आने की,
             छिटक के पहलू से मेरे तू खिसक जाती  है
            अकेली रात भर करवट बदलती रहती  है ,
             बाँहों में तकिया लिये ,तूभी सो न पाती है
मैं भी तकिये की तरह,मौन सा बाँहों में बंधू ,
पर ये मुमकिन ना होगा ,कोई हरकत न करूं ,
छलकता जाम है ,मदिरा का ,ये तेरा यौवन,
होंठ से अपने लगाने नहीं देती   मुझको
जी तो करता है तुझे प्यार करूं ,जी भर के,
मगर तू पास भी आने नहीं देती मुझको

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

कांग्रेस का नया प्लान


           कांग्रेस का नया प्लान

अब तक सुनते थे जाप आप ,बस नमो नमो नारायण का ,
अब शीघ्र मिडिया वाले सब ,रागा का  राग अलापेंगे
जब से दिल्ली को दहलाया ,अनजान ऐ के सैतालिस ने,
कर खर्च करोड़ों ,भैया और ,पार्टी की छवि निखारेंगे
एम पी और राजस्थान गया ,छूटा छतीस गढ़ हाथों से ,
तब से ये हक़ीक़त पहचाने ,जनता न बहलती वादों से ,
अब इधर मुलायम सख्त हुए ,छिप कर पवार ,कर रहे वार ,
हम साम,दाम और दंड भेद से ,बिगड़ा भाग्य संवारेंगे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 8 जनवरी 2014

RE:REPLY AS URGENT

Mr. Alex Nadi
Acting Director,
Amuwo Odofin Local Government Council
Lagos - Nigeria
 
Dear Sir,
 
I apologize for disturbing you but if I can have your attention, we will make a fortune out of this.
 
I have US$12.5 million dollars that my former Director pulled from our Local Government Council crude oil allocation fund last three months for his personal use. The Director was removed by President Goodluck Jonathan one month ago before he could perfect his plan.
 
I am now the Acting Director and I have the opportunity to transfer the money to your bank account as if we are purchasing refuse disposal trucks through you as our agent. I have done such thing before with my friend Mr. John Eni but unfortunately he could not withdraw the money when it entered his account due to the fact that he gave me a dormant account and we needed to undergo so many protocols before we could draw this money.
 
I noticed the problem and quickly recalled the transfer. I have made several efforts to get in-touch with John for the past two weeks but all in vain and that is why I have contacted you for assistance. As soon as I have your attention, I will give you details and also discuss the sharing.
 
I look forward to your response.
 
Regards,
Alex Nadi

मंगलवार, 7 जनवरी 2014

हम इमोशनल फूल है

     हम इमोशनल फूल है

ब्रिटिश आर्मी के घोड़े ,
जब बूढ़े होते थे थोड़े ,
उन्हें कर दिया जाता था शूट
और गायें ,जब बंद ,कर देती देना दूध
भेज दी जाती  ,'स्लॉटर हाऊस '
और  माता पिता ,
जब बूढ़े और निर्बल हो जाते है
तो वो 'ओल्ड एज होम 'भेज दिए जाते है
अनुपयोगी चीजों का तिरस्कार
शायद है उनका प्रेक्टिकल व्यवहार
और हम लोग,बूढी गायों के लिए ,
गौशाला बनवाते है
बूढ़े माँ बाप की सेवा कर पुण्य कमाते है 
उनको हम देव तुल्य मानते है
और रिश्तों की अहमियत जानते है
हम ये सब क्यों करते फिजूल है 
क्या ये हमारी भूल है
नहीं नहीं ,हमें तो ये दिल से बड़ा अच्छा लगता है,
क्योंकि हम 'इमोशनल फूल'है ,

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

इंकलाब या चुप्पी

      इंकलाब या चुप्पी

फूंक यदि मारो  नहीं  तो बाँसुरी  चुपचाप है
ढोल भी बजते नहीं,जब तक न पड़ती थाप है 
बिना रोये ,माँ भी बच्चों को न देती दूध है ,
कौन  तुम्हारी सुनेगा ,मौन यदि जो आप है
जब तलक निज पक्ष ना रक्खोगे जोर और शोर से ,
मिलने वाला आपको ,तब तक नहीं इन्साफ है
मांगना अधिकार अपना ,आपका अधिकार है ,
एक आंदोलन है ये  या समझ लो इन्कलाब है
कहते है भगवान  भी करता है उनकी ही मदद ,
करते  रहते नाम का उसके जो हरदम जाप है 
हर जगह ये फारमूला ,मगर चल सकता नहीं,
कई  जगहे है जहाँ चुप रहने भी लाभ है
'घोटू'हमने गलती से कल डाट बीबी को दिया ,
भूखे रह कर ,कर रहे ,अब तक हम पश्चाताप है

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 



सोमवार, 6 जनवरी 2014

खोदा पहाड़ और निकली चुहिया

 खोदा पहाड़ और निकली चुहिया

पता नहीं क्यों,
मुझे यह मुहावरा ,कुछ प्रेक्टिकल नहीं लगता,
क्योंकि,पहाड़ खोदने पर ,चुहिया नहीं निकलती ,
बल्कि मिटटी या पत्थर है निकलता
 चुहिया तो गरीबों के कच्चे घरों में ,
खेत खलिहानो में ,
या हलवाई की दूकान में ,
या वहाँ ,जहाँ उन्हें कुछ खाने को मिलता है
वहीँ रहती है अपना बिल बना कर
क्या करेगी पहाड़ों में रह कर ,जहाँ मिलते है पत्थर

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

गुरु जी गुड ही रहे …

        गुरु जी गुड ही रहे … 

जब गुरु से चेला   आगे निकल जाता था 
'गुरूजी गुड ही रहे ,चेले जी शक्कर हो गए '
ऐसा कहा जाता था
पर आज, जब लाला कि दूकान पर ,
गुड का भाव चालीस रूपये किलो
और शक्कर का भाव तेंतीस रूपये पाया ,
तो समझ में आया
कि गुरु आजकल सचमुच गुरु ही है
मंहगे  ,मीठे ,बंधे और स्वादिष्ट ,खाने में
और चेले,मीठे पर सस्ते, बिखरे दाने दाने में
आजकल 'कोचिंग क्लासेस'में,
 मिलनेवाली,गुरुओं की  कमाई से ,
क्या आपको  ऐसा नहीं लगता ?

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

 

'आप'के आने के बाद

          'आप'के  आने के बाद

एक प्रेमी का अपनी प्रेमिका के लिए ,
कहा गया ये शेर पड़ा प्रसिद्ध है
'वक़्त मेरी जिंदगी में ,दो ही गुजरे है खराब
एक आपके आने से पहले ,एक आप के जाने के बाद'
पर जबसे देहली की राजनीती में ,
आप पार्टी का वर्चस्व हुआ है ,
विरोधी दल यही शेर दूसरे अंदाज में कह रहे है
'वक़्त अपनी जिंदगी में ,ऐसा आया है खराब
हम कहीं के भी रहे ना ,'आप'के  आने के बाद '

'घोटू '     

बोतल में जिन

         बोतल में जिन

बोतल में जिन,व्हिस्की या रम
ये तो जानते है हम
और ये सब शराबें,
हमारे गले भी उतरती है
पर बोतल में ऐसा जिन भी होता है,
जो आपके इशारों पर ,
सारे काम देता है कर
ये बात  गले नहीं उतरती है
पर जबसे ,ये 'लेपटॉप' या 'टेबलेट 'आयी है,
ये बात हमें सच लगने लगी है
जब एक बटन दबाने से ,
सारी दुनिया मुठ्ठी में नज़र आने लगी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

दिन कब बदलेंगे ?

     दिन कब बदलेंगे ?

कभी दिन बड़ा होता है
कभी दिन छोटा होता है
कभी सर्दी का दिन
कभी गर्मी का दिन
कभी बरसात का दिन
यह है प्रकृति का नियम
मौसम के साथ बदलते है दिन
फिर भी हम,
ज्योतिषी,संत,और पंडितो से ,
यह पूछने क्यों जाते है ,
'हमारे दिन कब बदलेंगे ?'

'घोटू '

क्यों ?

          क्यों ?
             १
डेढ़ रूपये का सिनेमा टिकिट ,
डेढ़ सौ का होगया ,
दाम सौ गुना बढ़ गए
पर पब्लिक ने ,न हड़ताल की ,
न प्रदर्शन किये
पर प्याज की कीमत जब ,
थोड़ी बढ़ जाती है
तो इतना हो हल्ला और प्रदर्शन होते है,
कि सरकारे तक गिर जाती है
क्यों?
                २
बड़ी बड़ी होटलों में लाइन लगा कर,
चार सौ रूपये की एक प्लेट ,दाल या सब्जी पाकर ,
और चालीस पचास की एक रोटी खाकर
हम तृप्त होकर,बड़े खुश होते है
पर आलू ,प्याज थोड़े भी मंहगे हुए ,
तो मंहगाई का रोना रोते है
क्यों?

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

शनिवार, 4 जनवरी 2014

वरिष्ठ -गरिष्ठ

     वरिष्ठ -गरिष्ठ

वरिष्ठ हो गए है,गरिष्ठ हो गए है ,पचाने में हमको ,अब होती है मुश्किल
मियां, बीबी,बच्चा ,है परिवार अच्छा ,कोई अन्य घर में ,तो होती है मुश्किल 
सभी काम करते ,मगर डरते डरते ,रहो बैठे खाली ,तो होती है मुश्किल
जिन्हे पोसा पाला ,लिया  कर किनारा ,देने में निवाला ,अब होती है मुश्किल
चलाये जो टी वी ,कहे उनकी बीबी ,कि बिजली के खर्चे बहुत बढ़ गए है
कहीं आयें ,जाये ,तो वो मुंह फुलाये ,उनके दिमाग,आसमा चढ़ गए है
करो कुछ तो मुश्किल,करो ना तो मुश्किल,बुढ़ापे में कैसी ये दुर्गत हुई है
भले ही बड़े  है ,तिरस्कृत पड़े है ,न पूछो हमारी क्या हालत हुई है
हमारी ही संताने ,सुनाती हमें  ताने,भला खून के घूँट,पीयें तो कबतक
वो हमसे दुखी है ,हम उनसे दुखी है,भला जिंदगी ऐसी ,जीयें तो कब तक

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

अरज -पिया से

           अरज -पिया से

प्रियतम! तुम मुझे,
'प्रिया' कहो या 'प्रनवल्ल्भे '
'जीवनसंगिनी 'या 'अर्धांगिनी'
'पत्नी' या 'वामांगनी'
'भार्या' कहो या' भामा'
या बच्चों की माँ कह कर बुलाना
कह सकते हो 'बीबी' ,'वाईफ' या 'जोरू'
पर मैं आपके हाथ जोडूं
मुझे 'घरवाली'कह कर मत बुलाना 
वरना मैं कर दूंगी हंगामा
क्योंकि घरवाली कहने से ये होता है आभास
कोई बाहरवाली भी है आपके पास
और सौतन का बहम
भी मैं नहीं कर सकती सहन
और घरवाली शब्द में ,
घरवाली मुर्गी का होता है अहसास
जो लोग कहते है होती है दाल के बराबर
और मैं प्राणेश्वर !
दाल के बराबर नहीं ,
दिल के बराबर स्थान पाना चाहती हूँ
इसलिए ,आप कुछ भी पुकार ले,
घरवाली नहीं कहलाना चाहती हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

पत्नी का निवेदन -इंजिनीयर पति से

पत्नी का निवेदन -इंजिनीयर पति से

माय डियर
आप है इंजीनीयर
आप चाहे तो मेरे लिए बनाना
बहुत से कमरों का ,बँगला सुहाना
पर ,
अपने प्यार की ईंटें,
दुलार का सीमेंट ,
और प्रणय की करनी से ,
मेरी पतली सी  कमर को,
कमरा मत बनाना
वरना बेडोल हो जाएगा ,
मेरा रूप सुहाना


गोल गप्पे

              गोल गप्पे

कहीं पर है 'गोलगप्पा' ,तो कहीं 'पानीपताशा'
कहीं 'पानीपुरी' है तो  ,कहीं वो 'पुचका' कहाता
वही फूली,क्षीण काया ,रसीला  पानी भरा है
कभी खट्टा और मीठा ,तो कभी वह चरपरा है
वही हड्डी ,मांस मज्जा से मनुज काया बनी है
रक्त सबका लाल ही है ,फिर अलग क्यों आदमी है
हिन्दू मुस्लिम धर्म,पानी ,खट्टा मीठा स्वाद ज्यों है
एक से सब,धर्म पर फिर,व्यर्थ यह विवाद क्यों है ?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

पति परमेश्वर

       पति परमेश्वर

बचपन से ही,बार बार
हम में भर दिए जाते है ये संस्कार
सच्चे मन से,
आराधन से और पूजन से ,
जो भी भगवान  को प्रसन्न करता है
परमेश्वर ,उसे वर देता है
 और उसकी हर इच्छा को पूरी करता है
तो बस एक बार परमेश्वर को पटा  लो
और फिर ,जो चाहो ,काम करा लो
इसी शिक्षा से अभिभूत होकर ,
औरतें वर पाती है
 पति को परमेश्वर कहती है 
और अपना हर काम कराती रहती है

घोटू

कौन आया ?

     कौन आया ?

सोई थी मैं ,द्वार किसने खटखटाया
                            कौन   आया?
पा अकेला ,सताने मिला मौका
याद तुम्हारी पवन का बनी झोंका
और उसने हृदयपट को थपथपाया
                            कौन आया ?
मूर्त होकर ,मिलन के सपने सुहाने
लगे उचटा ,नींद से मुझको  जगाने
बावरा,बेसुध हुआ,मन डगमगाया
                           कौन आया?
मधुर यादें,मदभरी  बौछार बन के
भिगोने मुझको लगी है प्यार बन के
बड़ी ठिठुरन ,मिलन को मन,कसमसाया
                                    कौन आया ?
या कि फिर विरहाग्नि की तीव्र लपटें
आगई ,मुझको जलाने ,सब झपट के
मुझे तो हर एक मौसम ने सताया
                            कौन आया ?
रात पूनम की लगी मुझको अमावस
बदलती करवट रही मैं ,मौन बेबस
चमक तारों ने मुझे ढाढस  बंधाया
                             कौन आया ?

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

शुक्रवार, 3 जनवरी 2014

मेरी तेरी ना बनती पर .. .

      मेरी तेरी ना बनती पर .. . 

कहा  बाल्टी   से  कूए  ने ,कि तू मुझे उलीच रही है
जनता खुश तू प्यास बुझाती ,सूखा उपवन सींच रही है
मेरी संचित जलनिधि को तू ,बार बार करती है खाली
मै चुपचाप सहा करता हूँ और  तू   देती रहती गाली
मैं जब चाहूँ ,तुझे डुबो दूं ,तुझे पता है मेरी  ताकत
लेकिन मेरी मजबूरी से बहुत बढ़ रही तेरी हिम्मत
अब लगता है,मैं मूरख  था या फिर मेरी थी नादानी
मैंने अब तक ,केवल ,अपने अपनों को ही बांटा पानी
मोटर पम्प ,हाथ में लेकर ,लोग खड़े है,लिए इरादे
पम्प लगा ,पानी उलीच दें,और कीचड में कमल खिला दें
पड़ा हुआ मैं ,शंशोपज में ,बड़ी राजनैतिक उलझन है
मुझको वो करना पड़ता जो ,नहीं मानता ,मेरा मन है
बड़े विकट हालात हो रहे ,आने को मौसम तूफानी
जोड़ तोड़ कर ,कैसे भी है ,मुझको अपनी साख बचानी
तभी बड़प्पन ,दिखा रहा मैं ,मरता भला क्या नहीं करता
तेरी मेरी ना  बनती पर ,मेरे बिना  काम ना चलता

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

गुरुवार, 2 जनवरी 2014

नया साल - नयी नज्म



सबकुछ न बदले
पर इतना तो बदले,
कि इन्सान अपनी ही
फितरत न बदले...
मौसम न बदले
तो तासीर बदले,
हवाओं का रुख और
खुशबू तो बदले...
जीना न बदले
मरना न बदले
मगर बीच की जंग
का मंजर तो बदले...
रिश्ते न बदलें
जमाना न बद्ले
मगर नकली दिखना
दिखाना तो बदले...
नेता न बदलें
सियासत न बदले
जनता का बातों
में आना तो बदले...
कहते हैं चर्चित
नये साल पर ये
कि यारों का यूं
मुस्कुराना न बदले...

- VISHAAL CHARCHCHIT

बुधवार, 1 जनवरी 2014

झूंठ बोलिये


      झूंठ बोलिये

यदि जीवन सुख से जीना है
हंसी खुशी का रस पीना है
ना मालूम किसी के दिल को क्या चुभ जाए ,
मन की बातें ,मन में रखिये ,नहीं खोलिए
झूंठ बोलिये!झूंठ बोलिये! झूंठ बोलिये!
सच्चे बोल कड़े लगते है
झूंठे बोल भले लगते है
मौका देखो,वैसा बोलो
चाहे ऐसा वैसा   बोलो
जरुरत है तो डट कर बोलो
मन के भाव सिमट कर बोलो
थोडा उलट पुलट कर बोलो
डर है,पीछे हट कर   बोलो
लेकिन ये है जो भी बोलो
सबके मन में मिश्री  घोलो
आप पाओगे ,ये दुनिया काफी भोली है
झूंठ बोलिये!झूंठ बोलिये!झूंठ बोलिये!
वो जो अगर सामने आये
आँख मिलाये या शरमाये
हो सकता है तुमसे पूछे
क्योंजी कैसी लगती हूँ मैं ?
अच्छा तुमको नहीं लगा हो
भले पाऊडर पोत  रखा हो
चुपड़ी हो गालों पर लाली
नज़र आरही गर्दन काली
पर जो करना उन्हें सुखी है
कहो आप तो चंद्रमुखी   है
झूंठी तारीफ़ करी,प्यार के बीज बोलिये
झूंठ बोलिये!झूंठ बोलिये!झूंठ बोलिये!
 अगर पड़ोसन घर आती है
चीजें मांग न लौटती   है
चीज लौट जब भी आती है
बिगड़ी ही पायी ही  जाती है
इसीलिये तुम ऐसा  करिये
झूंठ बोलने में ना डरिये
अब मांगे  तो यही कीजिये
कोई बहाना   बना  दीजिये
बिगड़ गयी या टूट  गयी है
समझो आफत छूट  गयी है
चीज भी बची ,झंझट से भी दूर हो लिये
झूंठ बोलिये!झूंठ बोलिये!झूंठ बोलिये!
भैया ये  तो प्रजातंत्र है
राज्य झूंठ का यत्र तत्र है
झूंठे है भाषण,आश्वासन
झूंठ बोलने वाला ,शासन
झूंठा धंधा  ,चोर बाज़ारी
झूंठे है नर,झूंठी   नारी
रहो रोम में रोमन जैसे
वरना काम चलेगा कैसे
तभी तरक्की कर जाओगे
जबकि झूंठ को अपनाओगे
देख हवा का रुख,उसके ही साथ हो लिये
झूंठ बोलिये!झूंठ बोलिये !झूंठ बोलिये!
जीवन जियो हंसी खुशी का
आज ज़माना चापलूसी का
चापलूसी या मख्खनबाजी
पाकर सब ही होते  राजी
ये तुम तब ही कर सकते हो
माहिर झूंठ बोलने में हो
साहब आगे पीछे डोलो
हाँ को हाँ,ना को ना बोलो
अगर झूंठ पर ना लगाम है
जिव्हा सोने की खदान है
मतलब पूरा करिये,सुख के द्वार खोलिए
झूंठ बोलिये!झूंठ बोलिये!झूंठ बोलिये!
केवल आप युधिष्ठिर होकर
सत्य सत्य का रोना रोकर
जी न पाओगे ,इस दुनिया में
आज ज़माना बदल गया है
अब सौ क्या ,लाखों कौरव है
झूंठ बोलना ही गौरव है
और युधिष्ठिर भी मौके  पर
झूंठ युद्ध में बोल गये  पर
कहा गया अश्वस्थामा मर
यह न बताया ,नारी या नर
तो जब मतलब आये,मन की हिचक खोलिए
झूंठ बोलिये!झूंठ बोलिये!झूंठ बोलिये!
इस जीवन में कितने सारे
ऐसे मौके आते प्यारे
झूंठ बोलना ही है पड़ता
वरना सारा काम बिगड़ता
तुम्ही बताओ,दशरथ राजा
झूंठ बोलते ,अगर ज़रा सा
केकैयी के वचन भुलाते
अपने वादे से टल जाते
तो क्या चौदह बरस राम जी
खाक  छानते फिर जंगल की
सच के खातिर,कितने झंझट मोल ले लिये
झूंठ बोलिये!झूंठ बोलिये!झूंठ बोलिये!

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

चमचा

     चमचा

दुनिया देखी ,कुछ ना सूझा
एक साहब ने मुझसे पूछा
यार,अजब है दुनियादारी
चक्कर खाती ,अकल हमारी
वही तरक्की कर पाता है
जो कि चमचा कहलाता है
होता अरे तमाशा क्या है
 चमचे की परिभाषा क्या है 
ना  मैं अफसर,ना मैं नेता
बोलो फिर क्या उत्तर देता
किन्तु समझ में जो भी आया
मैंने उसको साफ़ बताया
'च' से चुगलखोर  हो जाता
'म'से 'मख्खनबाज' कहाता
'चा'से 'चापलूस' होता है
सब गुण मिल चमचा होता है
या फिर'च'से चतुर जानिये
और 'म'से 'मक्कार'मानिये
'चा'से जो 'चालू'होता है
समझो वह 'चमचा' होता है
जो मुंह लगा हुआ होता है
बस वो ही चमचा होता है
चमचा होता सुख का दाता
जो ना केवल हमें खिलाता
बल्कि परसता भी है जाता
काम पकाने के भी आता
सरे आम ,सुन्दर से सुन्दर
चाहे नारी हो चाहे नर
सबका मुख चुम्बन करता है
चमचा वह हिम्मत रखता है
और बड़े से बड़े कड़ाहों ,
के भी गरम गरम पकवानो,
को वह हिला दिया करता है
सब कुछ मिला दिया करता है
चमचे में 'चम' लगा यार है
'चम 'में काफी चमत्कार है
जिसका वह होता है चमचा
'चम 'उसको देता है चमका
और चमचे का अंत 'मचा'है
देता उसकी धूम मचा  है
बेलन को पिसना पड़ता है
चकले को घिसना पड़ता है
तवा अंगीठी पर जलता है
सबको कुछ करना पड़ता है
चमचा ना कुछ करता धरता
लेकिन फिर भी उसको मिलता
पका पकाया माल ताल है
यह सब चमचे का कमाल है
मालिक के मुख में पहुंचाता
सारा यश है खुद पा जाता
और जो कुछ चिपका रह  जाता
वह भी चमचे का हो जाता
समझदार कुछ खानेवाले
चमचे को अपनाने वाले
बिना हाथ से अपने छूकर
बिलकुल शुद्ध ,पवित्तर रह कर
जो खाना है ,खा लेते है
अपना काम बना लेते है
चमचा उसके हाथ लगा है
और इशारों पर चलता है
उसके भाग्य सदा खिलते है
सब पकवान उसे मिलते है
पहले जिसके पास कभी भी
जितनी अधिक जमीं होती थी
वही बड़ा माना जाता था
जितना ज्यादा धन पाता था
अधिक औरतें रख पाता था  
बड़ा आदमी कहलाता था
किन्तु आज के इस समाज मे
ज्यादा चमचे रखे पास में
वही बड़ा माना जाता है
बड़ा आदमी कहलाता है
क्योंकि अगर चमचे अच्छे है
तो धन भी है ,बड़े मजे है
तो जमीन भी मिल जाती है
और औरतें भी आती  है
सच,चमचे में बड़ा तेज है
अंगरेजी में एक फ्रेज़ है
भाग्यवान वो होता, मुंह में
रख चांदी का चमचा ,जन्मे
भाग्यवान वह क्यों कहलाता
चमचा मुंह में रख कर आता
अब चमचों के भी चमचे है
हर चमचे के बड़े मजे है
मालिक के संग आते जाते
चमचे भी है पूजे जाते
चमचे रखना ही गौरव है
चमचे रखना ही  वैभव है
ऐश्वर्य है और बड़प्पन
होती है चमचो की खन खन
आज तरक्की की सीढ़ी पर
चमचों की ही भीड़ रही बढ
चहल पहल है तो चमचों की
चमक दमक है तो चमचों की
इसीलिये तुम मेरी सुनिये
चमचे बनिये !चमचे बनिये !

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
  


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