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बुधवार, 30 नवंबर 2016

असमंजस

 
असमंजस 

प्रेमिका ने प्रेमी से फोन पर कहा 
प्रियतम ,तुम्हारे बिन न जाता रहा 
मै तुम्हे बहुत प्यार करती हूँ,
 तुम्हे दिलोजान से चाहती हूँ 
तुम्हारे हर कृत्य  में ,तुम्हारी ,
सहभागिनी होना चाहती हूँ 
इसलिए मेरे सनम 
मेरे साथ बाँट लो अपनी ख़ुशी और गम 
अगर तुम हंस रहे हो ,
तो अपनी थोड़ी सी मुस्कराहट देदो 
अगर उदास हो तो गमो की आहट दे दो 
अपने कुछ आंसू,मेरे गालों पर भी बहने दो
मुझे हमेशा अपना सहभागी रहने दो  
अगर कुछ खा रहे तो ,
उसका स्वाद ,मुझे भी चखादो 
अगर कुछ पी रहे तो थोड़ी ,
मुझे भी पिला दो 
हम दो जिस्म है मगर रहे एक दिल 
अपने हर काम में करलो मुझे शामिल 
प्रेमिका की बात सुन प्रेमी सकपकाया 
उसकी समझ में कुछ नहीं आया 
बोला यार ,मैं क्या बताऊँ,
बड़े असमंजस में पड़ा हूँ 
बताओ क्या करू,
इस समय मैं टॉयलेट में खड़ा हूँ 

घोटू 

रिश्तों में अदाकारी कभी अच्छी नहीं होती...


हम भूल गये

                
                हम भूल गये  
                         
हो गए आधुनिक हम इतने,संस्कृती पुरानी भूल गए 
मिनरल वाटर के चक्कर में,गंगा का पानी  भूल  गए 
पिज़ा बर्गर पर दिल आया ,ठुकराया पुवे ,पकोड़ी को,
यूं पोपकोर्न से प्यार हुआ ,कि हम  गुड़धानी  भूल गए 
एकल बच्चे के  फैशन में, हम भूल गए  रक्षाबन्धन ,
वो भाई बहन का मधुर प्यार ,और छेड़ाखानी भूल गए 
वो रिश्ते चाचा ,भुआ के, हर एक को आज नसीब नहीं,
परिवारनियोजन के मारे , मौसी  और मामी भूल गए 
मोबाइल में उलझे  रहते,मिलते है तो बस 'हाय 'हेल्लो',
रिश्ते  नाते ,भाईचारा ,वो प्रीत  निभानी  भूल गए 
हुंटा ,अद्धा, ढईया ,पोना ,ये सभी पहाड़े ,पहाड़ हुए,
केल्क्युलेटर के चक्कर में ,वो गणित पुरानी भूल गए 
जीवन की क्रिया बदल गयी,बदलाव हुआ दिनचर्या में,
रातों जगते,दिन में सोते वो सुबह सुहानी भूल गए 
कोड़ी कोड़ी जोड़ी माया ,ना कभी किसी के साथ गयी ,
बस चार दिनों की होती है, जीवन की कहानी भूल गए 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'   

शुक्रवार, 18 नवंबर 2016

मेरी कवितायें

 
मेरी कवितायें,
जलेबी की तरह ,
टेडी,मेड़ी ,अतुकांत है 
पर चख कर देखो,
इनमे कुछ बात है 
ये चासनी से भरी हुई है 
इनमे मिठास है
 
ये गोल गोल छंद नहीं,
रस में डूबे हुए ,गुलाबजामुन है 
जो एक नया स्वाद भर देंगे जीवन में  

जब भी जीवन में ,शीत  का मौसम सताये 
इन्हें गरम गरम पकोड़ियों की तरह ;
प्यार की चटनी के साथ खा लेना ,
बड़ी स्वादिष्ट लगेगी,मेरी कवितायें 

ये तो मन की विभिन्न भावनाओं की ,
मिली जुली भेलपुरी है 
बड़ी चटपटी और स्वाद से भरी है 

या इन्हें आलूबड़ा समझ कर ,
रोज रोज की ऑफिस और घर की 
भागदौड़ के पाव के बीच में खा लेना 
अपनी क्षुधा मिटा लेना 

ये तवे पर सिकती हुई ,आलूटिक्कीयाँ है ,
जिनकी सौंधी सौंधी खुशबू तुम्हे लुभाएगी 
ये गरम गरम और चटपटी ,
तुम्हे बहुत भायेगी 

ये गोलगप्पे की तरह ,फूली फूली लगती है 
पर बड़ी हलकी है 
इनमे थोड़ी सी खुशियां,
और थोड़ी सी परेशानियों का खट्टा मीठा पानी ,
भर कर के खाओगे 
बड़ी तृप्ति पाओगे 

ये कोकोकोला की तरह झागीली नहीं है ,
कि ढक्कन  खोल कर बोतल से पियो,
ये तो प्याऊ का पानी है ,
अपने हाथों की ओक से ,
अंजलि भर भर पीना 
मिटा देगी  तुम्हारी तृषणाये 
मेरी कवितायें   

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हर दुःख का उपचार समय है


हृदयविदारक समाचार है जब से आया 
मुश्किल से भी ,कुछ ना खाया 
चाय हो या दूध,चपाती 
नीचे गले उतर ना पाती 
पिछले कुछ दिन ऐसे बीते 
यूं ही आंसू पीते पीते 
झल्ली गम की ,
बीच गले में एक बन गयी 
भूख थम गयी 
एसा सदमा
 हृदय में जमा 
हिचकी भर भर रोते जाते 
दुःख के आंसू सूख न पाते 
साथ समय के धीरे धीरे 
कम हो जाती मन की पीरें 
चलता गतिक्रम वही  पुराना 
खाना ,पीना,.हंसना ,गाना 
फिर से वही पुरानी लय है 
हर दुःख का उपचार समय है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

कोई नहीं चाहता बंधना

 
























कोई नहीं चाहता बंधना ,परवारिक बन्धन में 
फटी जीन्स से फटे हुए से,रिश्ते है फैशन में 

छोड़ ओढ़नी गयी लाज का पहरा फैशन मारी 
अब शादी और त्योंहारों पर ही दिखती है साडी 
वो भी नाभि,कटि दर्शना ,बस नितंब पर अटकी 
अंग प्रदर्शित करती नारी, संस्कार  से  भटकी 
खुली खुली सी चोली  पहने ,पूरी पीठ दिखाए 
अर्धा स्तन का करे प्रदर्शन और उस पर इतराये 
ना आँखों में शरम हया है,ना घूंघट प्रचलन में 
कोई नहीं चाहता  बंधना परिवारिक बन्धन में 
चाचा,चाची ,ताऊ ताई ,रिश्ते सब  दूरी  के 
अब तो दादा दादी के भी रिश्ते मजबूरी के 
गली मोहल्ले,पास पड़ोसी ,रिश्ते हुए सफाया 
मैं और मेरी मुनिया में है अब संसार समाया 
ऐसी चली हवा पश्चिम की ,हम अपनों को भूले 
 पैसे चार कमाए क्या बस  गर्वित होकर फूले
हुए सेल्फिश,सेल्फी खींचें अहम भर गया मन में 
फटी जीन्स से,फटे हुए  से,रिश्ते  अब फैशन में 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'







रविवार, 13 नवंबर 2016

मोदीजी तुम्हारी मारी-मैं अब हूँ कंगाल बिचारी


मोदीजी तुम्हारी मारी-मैं  अब हूँ कंगाल बिचारी 


मेरी कुछ भी खता नहीं थी ,फिर भी मुझको गया सताया 
बुरे वक़्त के लिए बचाया ,पैसा  कुछ भी  काम न आया 
बूँद बूँद कर बचत  करी थी,कभी इधर से ,कभी उधर से 
तनिक बचाई घर खर्चों से ,बिदा मिली कुछ माँ के घर से 
कुछ उपहार मिली भैया से ,जब उसको राखी बाँधी थी 
पति से छुपा रखी कुछ पूँजी ,लेकिन क्या मैं अपराधी थी 
नए पांच सौ और हज़ार के ,कडक नोट में बदल रखी थी 
वक़्त जरूरत काम आएगी ,अब तक सबसे रही ढकी थी 
आठ नवम्बर ,आठ  बजे  पर ,ऐसी  आयी  रात   घनेरी 
मोदीजी के एक कदम ने  ,सारी  पोल  खोल दी   मेरी 
मेरे सारे  अरमानो   पर,,वज्रपात  कुछ  बरपा    ऐसा 
सारा धन हो  गया उजागर , कागज मात्र  रह गया पैसा 
चोरी छुपे बचाये पैसे  ,गिनने की  वो ख़ुशी खो  गयी 
मालामाल हुआ करती थी  ,पल भर में  कंगाल हो गयी 
अब मैं ,मइके में जाकर के ,खुला खर्च  ना कर पाउंगी 
अब  बेटी को ,चुपके चुपके , गहने  नहीं दिला पाउंगी 
छोटी मोटी  हर जरुरत पर ,हाथ पसारूँगी ,पति आगे 
'सेल' लगी तो जा न पाऊँगी ,बिना पति से पैसा  मांगे 
भले देश हित में मोदीजी, तुमने  अच्छा कदम उठाया 
लेकिन बचत प्रिया गृहणी को  ,पैसे पैसे को तरसाया 
कोड़ी कोड़ी जोड़ी मेरी ,बचत तो नहीं थी धन काला 
फिर क्यों इतनी बेदर्दी से  ,अलमारी से उसे निकाला 
बैंको की लम्बी लाइन में ,लग कर पड़ा जमा करवाना 
ज्यादा पैसे अगर हुए तो ,  देना  पड़  सकता  जुर्बाना  
पैसा था जब तलक गाँठ में ,तब तक थी गर्वीली,सबला 
मुझसी  सीधी सादी गृहणी, आज हो गयी ,फिर से अबला 
रूपये रूपये ,मोहताज हो गयी ,देखो कैसी है लाचारी  
मोदीजी ,तुम्हारी  मारी, अब मैं  हूँ   कंगाल  बिचारी 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

गुरुवार, 10 नवंबर 2016

शुद्ध यदि जो भावना है


ह्रदय निर्मल ,शुद्ध यदि जो भावना है 
सफलता की पूर्ण  तब सम्भावना है 
खोट यदि ना जो तुम्हारे प्यार में हैं 
कलुषता कोई  नहीं  आचार  में  है
किसी का कोई बुरा सोचा    नहीं  है 
तुम्हारा व्यवहार भी ओछा नहीं  है 
मानसिकता में नहीं  संकीर्णता  है 
विचारों  में यदि  इन जो  जीर्णता है 
प्रयासों   में तुम्हारे , सच्ची लगन है 
सादगी है सोच में ,निःस्वार्थ  मन है 
लाख विपदाएं तुम्हारी राह रोके 
लोग  कितना ही सताएं  और टोके 
चाँद सूरज ,खुद करेंगे ,पथ प्रदर्शित 
करोगे तुम ,कीर्ती और यश सदा अर्जित 
प्रगति का पथ ,तुम्हारे ही हित बना है 
सफलता की पूर्ण तब सम्भावना है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 





सेल्फी


आत्मनिर्भरता कहो या स्वार्थ 
आप कुछ भी निकालो अर्थ 
 पर सीधीसादी ,सच्ची है बात 
कि 'सेल्फी ' याने अपना हाथ,जगन्नाथ 
मनचाही मुद्रा ,ख़ुशी और मस्ती 
या साथ में हो कोई बड़ी हस्ती 
अपने मोबाइल से क्लिक करे  एक बार 
वो पल बन जाएंगे एक यादगार 

घोटू 
 

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