एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

रविवार, 22 मई 2022

टूटे सपने

मैंने पूछा सपनों से कि यार जवानी में,
रोज-रोज आ जाते थे तुम, अब क्यों रूठ गये सपने बोले ,तब पूरे होने की आशा थी ,
अब आने से क्या होगा, जब तुम ही टूट गये

एक उम्र होती थी जबकि मन यह कहता था,
ये भी कर ले वो भी कर ले सब कुछ हम कर ले आसमान में उड़े ,सितारों के संग खेल करें,
दुनिया भर की सब दौलत से हम झोली भर ले तब हिम्मत भी होती थी, जज्बा भी होता था, और खून में भी उबाल था, गर्मी होती थी 
तब यौवन था, अंग अंग में जोश भरा होता, 
और लक्ष्य को पाने की हठधर्मी होती थी 
पास तुम्हारे आते थे हम यह उम्मीद लिए ,
तुम कोशिश करोगे तो हम  सच हो जाएंगे 
पर अब जब तुम खुद ही एक डूबती नैया हो ,
पास तुम्हारे आएंगे तो हम क्या पाएंगे 
साथ तुम्हारा, तुम्हारे अपनों ने छोड़ दिया,
 वो यौवन के सुनहरे दिन, पीछे छूट गए 
 मैंने पूछा सपनों से कि यार जवानी में ,
 रोज-रोज आ जाते थे तुम अब क्यों रूठ गए

मदन मोहन बाहेती घोटू 

सपने

सपने सिर्फ जवानी में ही देखे जाते हैं ,
नहीं बुढ़ापे में सपनों का आना होता है
नींद उचट जाया करती जब काली रातों में ,
तो बस बीती यादों का दोहराना होता है 
 
कब क्या क्या सोचा था किससे क्या उम्मीदें थी, 
उन में कितनी पूर्ण हो गई ,कितनी टूट गई लेटे-लेटे ,सूनी आंखों से देखा करते ,
कितनी ही घटनाएं हैं जो पीछे छूट गई 
बीते हुए खुशी के लम्हे सुख दे जाते हैं ,
पर कुछ बीती बातों से पछताना होता है 
सपने सिर्फ जवानी में ही देखे जाते हैं,
नहीं बुढ़ापे में सपनों का आना होता है 

ढलती हुई उम्र में सपने देखे भी तो क्या,
पतझड़ में भी कहीं फूल का खिलना होता है जीवन की सरिता की कलकल मौन हो रही है,
क्योंकि शीघ्र सागर से उसको मिलना होता है
हंसते-हंसते जैसे तैसे गुजर जाए ये दिन,
बस मन को ढाढस देकर समझाना होता है 
सपने सिर्फ जवानी में ही देखे जाते हैं,
 नहीं बुढ़ापे में सपनों का आना होता है

मदन मोहन बाहेती घोटू 
ख्वाइश थी बनू रसीला मैं ,
पक कर के मीठा आम बनू 
स्वर्णिम आभा ले स्वाद भरा,
 तेरे होठों लग ,जाम बनू 
 पर देखो मेरी किस्मत ने,
 कितना मजबूर बना डाला 
 कच्चा ही टूटा डाली से ,
 मुझको अमचूर बना डाला

घोटू 

मंगलवार, 17 मई 2022

सुख की तलाश

क्यों ढूंढ रहे हो इधर उधर सुख तो तुम्हारे अंदर है 

झांको अपने अंतरतर में ,खुशियों का भरा समंदर है
 तुम को जीवन के जीने का, बस दृष्टिकोण बदलना है
 निज सोच सकारात्मक रखना, सुख के रस्ते पर चलना है 
 वो लोग दुखी हो जाते हैं ,सुख की तलाश में भटक भटक 
 जब लोग मोह के नाले में जाती है उनकी नाव अटक 
 लोगों की अच्छाई देखो , उनमें कमियां तुम ढूंढो
 मत 
 यदि जी भर प्यार लुटाओगे ,दूना आयेगा तुम्हे पलट
 बिखरे हैं मानसरोवर में , सुख के मोती , कंकर दुख के
बन करके तुमको राजहंस ,चुगना होगा मोती सुख के
इस जीवन की सुख ही सुख का ,झरना झर रहा निरंतर है 
क्यों ढूंढ रहे हो इधर उधर, सुख तो तुम्हारे अंदर है

घोटू 

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-