ये मन बृन्दावन हो जाता
तेरी गंगा, मेरी यमुना ,
मिल जाते,संगम हो जाता
तन का ,मन का ,जनम जनम का,
प्यार भरा बंधन हो जाता
जगमग दीप प्यार के जलते ,
ज्योतिर्मय जीवन हो जाता
रिमझिम रिमझिम प्यार बरसता ,
हर मौसन सावन हो जाता
प्यार नीर में घिस घिस ये तन,
महक भरा चन्दन हो जाता
इतने पुष्प प्यार के खिलते ,
जग नंदनकानन हो जाता
श्वास श्वास के मधुर स्वरों से,
बंसी का वादन हो जाता
रचता रास ,कालिंदी तीरे ,
ये मन वृन्दावन हो जाता
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
पतंजलि अष्टांगयोग का छठवां अंग धारणा
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पतंजलि विभूति पाद सूत्र : 1
अष्टांगयोग का छठवां अंग धारणा
देश बंधश्चित्तस्य धारणा
" देश (आलंबन ) से चित्तका बधे रहना , धारणा है "
सूत्र - भावार्थ म...
15 घंटे पहले
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