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शनिवार, 30 अप्रैल 2016

ये दिल मांगे मोर

              ये दिल मांगे मोर 

हमने सारी उमर बिता दी ,करने में 'टू प्लस टू 'फोर '
जितना ज्यादा इसको मिलता ,उतना 'ये दिल मांगे मोर '
पहले पैदल ,बाद सायकल ,फिर स्कूटर,मोटरकार
ज्यों ज्यों करते रहे तरक्की ,त्यों त्यों बदला ये संसार
पहले 'सेकण्ड हेंड'मारुति,फिर 'टोयोटा' मर्सिडीज '
जैसे जैसे  पैसा आया ,'स्टेंडर्ड' में ,थी 'इनक्रीज '
छोड़ा गाँव,शहर आये थे ,लिया किराए ,एक मकान
और बाद में फ्लेट खरीदा ,अब बंगला है आलिशान
बदल गया परिवेश,हमेशा ,रहे  दिखाते   झूंठी शान
मंहगा सूट पहनते बाहर ,अंदर फटा हुआ बनियान
बाहर इन्सां ,कितना बदले ,अंदर बदल न पाता है
सब कुछ होता ,देख पराई,पर फिर भी ललचाता है
तुमने कभी नहीं सोचा ये ,नित इतनी खटपट करके
काली पीली करी कमाई , रखी तिजोरी में भरके
नहीं तुम्हारे काम आएगी,तुम्हारी  सारी  माया
जाता खाली हाथ आदमी ,खाली ही हाथों आया
बाहर का परिवेश न बदलो,अंतर्मन  बदलाओ तुम
प्रभु ने अगर समृद्धि दी है ,थोड़े पुण्य  कमाओ  तुम
क्योंकि एक यही पूँजी जो जानी साथ तुम्हारे  है
रिश्ते नाते ,धन और  दौलत ,यहीं छूटते सारे है
मेरा ये है,मेरा वो है ,जितनो  के गुण  गाओगे
जीर्णशीर्ण जब होगी काया ,फूटी आँख न भाओगे
दीन दलित की सेवा में तुम,हो देखो ,आनंद विभोर
वर्ना जितना इसको मिलता ,उतना'ये दिल मांगे मोर '

 मदन  मोहन बाहेती'घोटू'



विवाह की वर्षग्रन्थी पर

विवाह की वर्षग्रन्थी पर

मिलन का पर्व है ये ,आज बंधा था बंधन ,
ऐसा लगता है जैसे बात कोई हो कल की
बड़ी शर्माती तुम सिमटी थी मेरी बांहों में,
भुलाई जाती नहीं ,यादें सुहाने पल  की
तुम्हारे आने से ,गुलजार हुआ ये गुलशन,
बहारें छा गई,रंगीन  हुआ हर मौसम ,
बड़ा खुशहाल  हुआ,खुशनुमा मेरा जीवन,
मिली है जब से मुझे ,छाँव  तेरे आंचल की  

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 28 अप्रैल 2016

   'जस्य नारी पूज्यन्ते '

मेरा एक यार है
जो अपनी पत्नी से करता तो बहुत प्यार है
पर कभी भी ,अपने प्यार का प्रदर्शन नहीं करता
बीबी को है टाइट रखता
हमेशा रौब दिखलाता है
बेचारी का दिल जलाता है
एक दिन मैंने पूछ लिया यार
तू  भाभीजी से करता है इतना प्यार
तो सबके सामने ,
क्यों करता है एसा कटु व्यवहार
क्यों इस तरह से उसे रहा है सता
क्या तुझे नहीं पता
'जस्य नारी पूजयन्ते ,रमन्ते तत्र देवता '
पत्नी की पूजा कर , देवता आएंगे
तेरे घर को स्वर्ग बनाएंगे
मित्र बोला,बस बस ,ये ही तो कारण है
जिसकी वजह से ,
तुम्हारी भाभी को पूजने का ,
नहीं होता मेरा मन है
मै चाहता देवता आएं
मेरे घर के आसपास मंडराएं
क्योंकि स्वर्ग की अप्सराओं ने ,
उन्हें इतना दिया है बिगाड़
हमेशा मौके की तलाश में ,
ढूंढते  रहते है जुगाड़
और उनका राज इंद्र तो ख़ास
है एक नंबर का बदमाश
गौतम ऋषि का रूप धर ,
अहिल्या को भरमाया
बेचारी को श्राप से ,पत्थर की शिला बनाया
मै ,पत्नी को पूजूँगा तो ये,
 मेरे घर के आसपास करेंगे विचरण
मै ऐसे मनचलों को,क्यों दूँ  निमंत्रण
बड़े आशिक़ मिज़ाज़ है ये सारे के सारे
और मै  नहीं चाहता ,
मेरी बीबी पर कोई लाइन मारे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

पत्नीजी का ब्यूटी ट्रीटमेंट

        पत्नीजी का ब्यूटी ट्रीटमेंट
                      १
 मैंने पत्नी से कहा  ,तुम हो यार  गुलाब
पर रहती हो चिड़चिड़ी ,लगता बड़ा खराब
लगता बड़ा खराब ,पलट कर बोली   पत्नी
हंसमुख ,खुश जो रहती,हो जाती है हथिनी
मेरा चिडचिड करना ,तुमको लगता तीखा
पर स्लिम रहने का मेरा है यही  तरीका

पत्नी  अपनी  थी तनी ,उसे मनाने यार
हमने उनसे कह दिया ,गलती से एक बार
गलती से एक बार ,लगे है हमको प्यारा
गुस्से में दूना निखरे  है रूप   तुम्हारा  
कह तो दिया मगर अब घोटू कवि रोवे है
बात बात पर वो जालिम , गुस्सा होवे  है

घोटू
 

बुधवार, 27 अप्रैल 2016

सुबह सुबह -ऑरेंज काउंटी

सुबह सुबह -ऑरेंज काउंटी

कुछ अलसाए से चेहरे
कुछ मुरझाए से  चेहरे
कुछ चेहरे थके थके से
कुछ चेहरे पके पके  से
कुछ फर्राटे सी भरती
कुछ हंसती,बातें करती
कुछ कुत्तों को टहलाती
मोबाइल पर बतियाती
कुछ योगा कुछ जिम जाती
कुछ दूध ब्रेड, हित  आती
कुछ बालों की लट ,बिखरी
कुछ मेकअप करके निखरी
कुछ चलती गाने सुनती
कुछ टहले  ,सपने बुनती
कुछ  स्कूल बेग उठाए
बच्चों संग  दौड़ी  जाए
स्कूल बस में बैठाने
रस्ते में दे कुछ खाने
प्रातः के कई नज़ारे
लगते है मन को प्यारे
फुर्ती है तन में भरती
सेहत भी सुधरा करती
कुछ सेहत के दीवाने
कुछ बूढ़े और सयाने
मिल कर है कसरत करते
और लगा ठहाका हँसते
और कभी बजाते  ताली
ओ सी की सुबह निराली

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

खीज

खीज

मेरे घर की बालकनी में ,
एक कबूतर आता जाता
 और हर दिन ही अपने संग में,
कोई  कबूतरनी भी लाता
दोनों संग संग दाना चुगते ,
चोंच लड़ाते ,उड़ जाते थे
कभी एक दूजे के संग मिल ,
अपने पंख फड़फड़ाते  थे
बड़ा मनचला ,रोमांटिक था ,
वह कपोत ,एसी करनी थी
हर चौथे दिन ,संग में उसके ,
होती नयी कबूतरनी थी
उसका यह रोमांस देख कर ,
मुझ को मज़ा लगा था आने
उसकी रोज प्रेमलीलायें ,
मुझे बाद में लगी खिजाने
क्योंकि मुझे चिढ़ाने लगता ,
मेरे अंदर ,छुपा कबूतर
ताने देता ,कहता देखो ,
उसमे,तुममे ,कितना अंतर
बंधे हुए इतने वर्षों से ,
तुम हो एक कबूतरनी संग
एक उसका जीने का ढंग है ,
एक तुम्हारे जीने का ढंग
क्या मन ना करता तुम्हारा ,
कभी,कहीं भी,किसी बहाने
मिले कबूतरनी भी तुमको ,
कोई नयी सी ,चोंच लड़ाने
तुम डरपोक और कायर हो,
संकोची हो ,घबराते हो
सद्चरित्र की बातें करके ,
अपने मन को समझाते हो
इसीलिए वो जब भी आता ,
ऐसा लगता ,मुझे चिढ़ाता 
मेरी मजबूरी ,कमजोरी ,
की रह रह कर याद दिलाता
अपने मन की खीज मिटाने ,
और छुपाने को बदहाली
कोई कबूतर ना आ पाये ,
इसीलिये ,जाली लगवाली

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

मंगलवार, 26 अप्रैल 2016

स्वाद

                स्वाद

हंसी ख़ुशी का स्वाद उठा कर,हमने जीवन जीना सीखा 
सभी चीज का रस ले लेकर ,घूँट घूँट कर , पीना  सीखा
वो ही दाल ,वो ही है चावल ,किन्तु दस  जगह यदि खाओगे
तो हर बार,हरेक खाने में,स्वाद अलग ही तुम  पाओगे
खाने में कम,स्वाद पकाने वाले  हाथों में  होता है
स्वाद भावना में होता है और जज्बातों में होता  है
मंदिर में चरणामृत का जल,लंगर,भंडारे का खाना
होता इनका स्वाद अनूठा,मुश्किल कहीं और है पाना
पांच सितारा होटल में तुम,कितने ही व्यंजन चखते हो
माँ के हाथों के खाने  का, स्वाद भुला क्या तुम सकते  हो
परिस्तिथियों पर भी अक्सर,स्वाद हुआ करता है निर्भर
कहते है कि भूख लगी हो,तो किवांड भी लगते  पापड़
अगर भरा हो पेट आपका,रखे सामने  लाखों व्यंजन
किन्तु एक दाना भी खाना ,नहीं चाहेगा ,तुम्हारा मन
है भगवान भाव के भूखे ,तुलसी में तृप्ती  पा लेते
भक्ति भाव से ,विदुर प्रिया के,केले के छिलके खा लेते
चखे हुए ,शबरी के जूंठे ,बैरों को भी खा सकते है
और सुदामा के चावल भी ,कच्चे यूं ही चबा सकते है
स्वाद समय के साथ बदलता ,स्वाद उम्र के साथ बदलता
जब कच्चा तो खट्टा होता ,मीठा आम वही पक बनता
चावल अगर पुराने होते ,तो दाना दाना खिलते है
पौधा लगा ,प्रतीक्षा करिये,तब ही मीठे फल मिलते है
रोटी जली और सब्जी में ,नमक नहीं या मिर्ची ज्यादा
लेकिन बीबी खिला रही तो ,बन्दा तारिफ ,कर कर खाता
माल अगर फ़ोकट का खाओ ,उसमे बड़ा स्वाद आता है
सुन कर दाम ,कई  चीजों के ,मुंह का स्वाद बिगड़ जाता है
जिसको देख ,भरे मुंह पानी ,चीज समझलो ,स्वाद भरी है
और बीबी यदि खट्टा मांगे ,तो समझो कुछ खुशखबरी है
लज्जतदार जवानी होती ,स्वाद बुढ़ापे का है तीखा 
हंसी ख़ुशी का स्वाद उठा कर ,हमने जीवन जीना सीखा   

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुधवार, 20 अप्रैल 2016

पत्नी को खुश रखना -मुसीबत

पत्नी को खुश रखना -मुसीबत

पत्नी को खुश रखो ,मुसीबत ऐसी आती है
तुम्हे ज्वेलरी शॉप,पटा कर ,वो ले जाती है
होती ढीली जेब ,बजट का भट्टा बिठता है,
तुम तो लुटते रहते हो और वो मुस्काती  है

पत्नी को खुश रखो ,मुसीबत ऐसी आती है
तरह तरह के बना तुम्हे पकवान खिलाती है
तारीफ़ करके ,ठूंस ठूंस कर ,खाना पड़ता है ,
मगर खून की 'शुगर' दूसरे दिन बढ़ जाती है

पत्नी को खुश रखो,मुसीबत ऐसी आती है
नए नए वो वस्त्र पहन कर तुम्हे रिझाती है
'ब्यूटी पार्लर 'मेकअप का खर्चा बढ़ जाता है,
तारीफ़ नहीं करो तो भी मुश्किल हो जाती है

पत्नी को खुश रखो ,मुसीबत ऐसी  आती है
पर कट जाते ,पति की आजादी छिन जाती है
पत्नी को परमेश्वर मान ,पूजना  पड़ता  है ,
ताक झाँक करने पर पाबंदी लग जाती  है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सब अपने में मस्त यहां

         सब अपने में मस्त यहां

नहीं किसी को,पड़ी किसी की ,सब अपने में मस्त यहां
अपने अपने मोबाइल पर ,चिपके ,रहते  व्यस्त   यहां
कई  रोजमर्रा की चीजें  ,रोज न मिलती मुश्किल से ,
बढ़ी हुई  मंहगाई  इतनी  ,हर कोई है   त्रस्त  यहां
सुबह उठे ,दफ्तर को भागे ,थके ,शाम को घर लौटे,
रोज रोज इस दिनचर्या का ,हर कोई  अभ्यस्त यहां
नकली हँसी ओढ़ कर सबको ,हमने जीते देखा है ,
पर अपनी अपनी चिंता से ,सब के सब है ग्रस्त यहां
काम धाम चाहे कम आये ,चमचागिरी में माहिर हो,
रहता उनके सर, साहब का ,सदा कृपा का हस्त यहां
बिगड़ी है क़ानून व्यवस्था ,अस्मत लुटती सड़कों पर ,
चौकीदार कर रहे चोरी ,चोर दे रहे  गश्त   यहां
युग बदला ,हम भी  बदलेंगे ,एक किरण आशा की है,
अच्छे दिन आने वाले है,यही सोच , आश्वस्त  यहां

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शादी के बाद-चार चित्र

  शादी के बाद-चार चित्र 

शादी के बाद ,
प्यार का आहार  पाकर
जब काया छरहरी
होती है हरी भरी
फूलती फलती है
तो ,तब बड़ी अखरती है
जब सगाई की अंगूठी ,
ऊँगली में आने से ,इंकार करती है

शादी के पहले ,
स्वच्छ्न्द उड़ने वाले पंछी,
शादी के बाद ,जब बनाते है घोंसले
तो जिम्मेदारी के बोझ से ,
पस्त  हो जाते है  उनके होंसले
वो भूल जाते है सारे चोंचले

एक नाजुक सी दुल्हन
जब अपने फूलों से कोमल हाथों से ,
 सानती  है आटा ,
या मांजती है बरतन
अपना सारा हुस्न और नज़ाकत भूल ,
बन जाती है पूरी गृहस्थन

गरम गरम तवे पर  ,
 रोटी सेकते सेकते,
जब गलती से ,नाजुक उँगलियाँ,
तवे से चिपक जाती है
तो मम्मीजी की ,बड़ी याद आती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 17 अप्रैल 2016

पकोड़ी पुराण

                      पकोड़ी पुराण               

सीधासादा बेसन घोलो ,डाल मसाला,झट से तल लो
बारिश के भीगे मौसम में ,इसका स्वाद,आप जी भर लो
दादी,नानी पड़नानी का ,वह युग एक पकोड़ी युग था  
गरम गरम सबके मनभाती ,खाने का अपना ही सुख था
कालांतर में वही पकोड़ी ,पकी कढ़ी संग,स्वाद बढ़ाया
और दही में ,जब वो डूबी ,दहीबड़ा बन कर  ललचाया
पालक,गोभी ,आलू ,बेंगन ,सब संग मिलजुल स्वाद निखारा
हुआ समय संग,युग परिवर्तन,अब बर्गर का युग है प्यारा 
वडापाव बन यही पकोड़ी ,बड़ी हुई,पहुंची घर घर में
मेदुवडा रूप धारण कर ,डूबी रही ,स्वाद सांभर में
भजिया कहीं,बड़ा या पेटिस ,नाम अलग पर स्वाद प्रमुख था
दादी,नानी,पड़नानी का ,वह युग एक पकोड़ी  युग था
युग बदला तो नव पीढ़ी ने इसको नए रूप में ढाला
दिया तिकोना रूप ,मसाला भर कर,बना समोसा प्यारा
चली पश्चिमी हवा ,पकोड़ी ,बन 'कटलेट'बड़ी इतराई
  दुनिया भर में ,नए रूप धर ,इसने थी पहचान बनाई
दिल्ली में थी आलू टिक्की ,अमेरिका में बन कर 'बर्गर'
'स्प्रिंगरोल' चीन में है तो,अरब देश में बनी 'फलाफल'   
जिसने देखा,वो ललचाया ,खाने इसे हुआ उन्मुख था
दादी,नानी,पड़नानी का ,वह युग एक पकोड़ी युग था

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

वरदान

वरदान

एक आधुनिका कन्या ने ,
किताबों में ये पढ़ पढ़ कर
सच्चे मन से आराधना करने पर
भगवान दे देतें है अच्छा वर
तो दूर करने अच्छा पति पाने की समस्या
वह सच्चे मन से करने लगी ,
भगवान  की तपस्या
और एक दिन ,तपस्या से होकर प्रसन्न
अचानक प्रकट हो गए भगवन
और बोले 'वत्से ,वर मांग
किस से भरवाना चाहेगी ,
तू अपनी सूनी मांग
बोल,क्या तुझे राम सा पति चाहिए
कन्या बोली 'प्रभु,थोड़ा रुक जाइये
एक आदमी जो पिता का हो इतना आज्ञाकारी
कि त्याग दे ,हाथ में आया राजपाट ,
और दौलत सारी
और चौदह वर्षों तक जंगलों में रहे भटकता
आज के जमाने में ,
बिलकुल भी प्रेक्टिकल नहीं लगता
लोगों की बातों में आकर ,
अपनी 'इमेज'बनाने के लिए ,
'प्रेग्नेंट'बीबी का करदे त्याग
मै ,कदाचित भी नहीं भरवाना चाहूंगी,
ऐसे पति से अपनी मांग
और फिर आज के जमाने में,
तीन तीन सासों को झेलना ,
नहीं है मेरे बस की बात
प्रभु ,ये वरदान नहीं ,ये तो होगा श्राप
भगवान बोले ठीक है ,
चल तुझे दे देता हूँ कृष्ण सा जीवन साथी
कन्या बोली  घबराती
बोली नहीं नहीं प्रभू,ये भी 'टू मच' है
कृष्ण ,अच्छी 'पर्सनलिटी 'के,
 स्वामी है ,ये सच है
सोलह कलाओं के थे अवतार
पर ऐसा पति भी नहीं है मुझको स्वीकार
युद्ध मे जहां भी जाए ,जीत  कर आये
पर एक नयी पत्नी भी ,साथ में ले आये
मै ,ऐसे व्यक्ति को ,
नहीं बनाना चाहती अपना पिया
जिसकी हो सोलह हजार एक सौ आठ रानियां
मुझे अपने पति पर एकाधिकार चाहिए
खुद के लिए ,ढेर सारा प्यार चाहिए
'प्लेबॉय'वाली इमेज वाला वर
मुझे बिलकुल भी न चाहिए ईश्वर
भगवान बोले चल तुझे ,
विष्णु जैसा पति दिलवा दूँ
कन्या बोली 'नहीं नहीं नहीं प्रभु
मैं नहीं चाहती ,मेरा पति हमेशा ,
शेषशैया पर सोता नज़र आये
और हरदम मुझसे अपने पैर दबवाए
और अचानक बिना कहे सुने ,
अपने किसी भगत गज को ,
ग्राह् से बचाने निकल जाए ,
या दो दलों की लड़ाई में ,
अपने दल को अमृत बांटने ,
औरत का रूप बनाए
वो 'पुरुष पुरातन 'है ,
याने मेरे लिए 'टू ओल्ड' है
प्रभु भी समझ गए ,
ये कन्या बड़ी 'बोल्ड' है
बोले चल तुझे दे देता हूँ ,
ऐसा पति ,जो भोला भंडारी हो ,
जैसे शिव शंकर
नृत्य करने में नटवर
नाचेगा तेरे इशारों पर
तुम दोनों रहना अकेले ,
कैलाश पर्वत के 'हिलस्टेशन'पर
कन्या बोली 'प्रभु ,पर सुना है ,
उनका बड़ा हॉट है टेम्परामेंट'
मुझे नहीं चाहए ऐसा हसबैंड
उनका  'ड्रेस सेन्स ',
मुझे बिलकुल नहीं सुहाता है
जो अपने गले में सांप लटकाता है
ऐसा पति मै कभी भी न चाहूँ
जिसे मै बाहुपाश लेने में भी घबराऊँ 
भगवान ,कन्या के तर्कों से हो गए परेशान
बोले चल तू ही बता ,
कैसे वर का करूँ ,तेरे लिए इंतजाम
कन्या ने कहा प्रभु मुझे देवता नहीं,
आम आदमी से शादी करनी है
जिसके साथ ये पूरी जिंदगी गुजरनी है
ऐसा पति जो सीधासादा पर 'स्मार्ट'हो
जिसे  पत्नी को खुश रखने का आता आर्ट हो
इतना पैसा हो कि मौके बेमौके पत्नी को ,
गोल्ड या डायमंड का सेट दिलवाता रहे
हफ्ते में दो तीन बार ,होटल में खिलवाता रहे
हंसमुख हो ,चंचल हो
'प्लेबॉय'नहींहो ,पर सोशल हो
साल में एक दो बार ,
करवा दे मुझे फॉरेन टूर
कभी  एक दो पेग ले ले ,चलेगा,
पर हो व्यसन से दूर
तबियत का रंगीन हो
म्यूजिक और सिनेमा का शौक़ीन हो
कुकिंग जिसकी हॉबी हो
मुझ पर ना हाबी हो
मेरे इशारों पर चले ,मेरी हर बात माने
पत्नी की पूजा करे ,उसे परमेश्वर माने
कन्या कर  रही थी ,अपने होने वाले ,
पति में पाये जानेवाले गुणों का बखान
भगवान बोले रुक रुक ,बड़ा मुश्किल है ,
तेरे ' रिक्वायरमेंट ' का बन्दा ढूंढ पाना
आजकल बंद है ऐसा प्रोडक्ट बनाना
फिर भी कोशिश करता हूँ ,
अगर हो जाए इंतजाम
और फिर झट से प्रभुजी हो गए अंतर्ध्यान

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जीवन का स्वाद

जीवन का स्वाद

ना करी छेड़खानी कोई
ना हरकत तूफानी कोई
ना अपनी कुछ मनमानी की
और ना कोई नादानी की
ना इधर उधर ताका,झाँका
ना भिड़ा ,कहीं कोई टाँका
ना करी शरारत कोई से
ना करी मोहब्ब्त कोई से
कोई  पीछे ना भागे  तुम
सचमुच ही रहे अभागे तुम
तुममे उन्माद नहीं आया
जीवन का स्वाद नहीं आया
बस रहे यूं ही फीके फीके
दुनियादारी कुछ ना सीखे
तुमने है जीवन व्यर्थ जिया
बस अपना ही नुक्सान किया
तुमने निज काट दिया यौवन
बस रहे किताबी कीड़े बन
क्योंकि वो ही थी एक उमर
 'एन्जॉय'जिसे करते जी भर
पर तुमने व्यर्थ गंवा डाली
और पैरों में बेड़ी डाली
शादी करके परतंत्र हुए
पत्नीजी से आक्रांत हुए
जिंदगी अब यूं ही बितानी है
अब करना सदा गुलामी है
तिल तिल कर यूं ही घिसना है
दिन रात कामकर पिसना है
जो उमर थी मौज बहारों की
उच्श्रृंखलता की,यारों की
वैसे ही बीत जायेगी अब
चिड़िया चुग खेत जायेगी सब
क्या होगा अब पछताने से
बीते दिन ,लौट न आने के
जीवन का अब यूं कटे सफर
चूं चरर मरर ,चूं चरर मरर  

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

उनकी ख़ुशी-मेरा सुख

  उनकी ख़ुशी-मेरा सुख

कई बार ,
अपनी पत्नी के साथ ,
जब मै ,ताश खेलता हूँ ,
या कोई शर्त लगाता हूँ
तो जीती हुई बाजी भी,
जानबूझ कर हार जाता हूँ
क्योंकि जीतने पर मुझे ,
वो सुख नहीं मिलता है
जो  कि  मुझे तब मिलता है ,
जब  मुझे हरा कर ,
उनका चेहरा ख़ुशी से खिलता है
कई बार ,
मै जानबूझ कर गलतियां करता हूँ ,
क्योंकि उन्हें सुधार कर ,
उनके चेहरे पर ,
जो प्रसन्नता के भाव आते है
मुझे बहुत लुभाते है
कोई काम के लिए ,
जब वह मेरे  पीछे पड़ती है,
मनुहार करती  है
तो थोड़ी देर ना ना करने के बाद ,
जब मै हामी भरता हूँ
तो उनके चेहरे पर जो आती है ,
जीत भरी मुस्कान
जी चाहता है हो जाऊं कुर्बान
कई छोटी छोटी बातों के लिए ,
भले ही सिर्फ दिखाने के लिए ,
मै जब सहायता का हाथ बढ़ाता हूँ ,
उनके चेहरे की ख़ुशी देख,
अत्यन्त सुख पाता हूँ
ये छोटी छोटी बातें ,
जीवन के आनन्द को,
 चौगुना कर  देती है
रोजमर्रा की जिंदगी को,
खुशियों से भर देती है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'


बुधवार, 13 अप्रैल 2016

कोई मेरी बीबी से सीखे

कोई मेरी बीबी से सीखे

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बचे साबुन को नए से चिपका कर,

दो साबुनों की खुशबुओं का मजा उठाना

टूटी हुई झाड़ू की सूखी डंडियों से

घर के फ्लावर पोट को सजाना

रात की बची हुई खिचड़ी से

सुबह स्वादिष्ट कटलेट बनाना

कोई मेरी बीबी से सीखे

घर और कपड़ो की सफाई के साथ

मेरे पर्स की भी सफाई करना

मुझ जैसे शेर पति को डरा कर

खुद एक काक्रोच से डरना

रोंग नंबर के फोन काल पर भी

घंटों तक लम्बी बातचीत करना

कोई मेरी बीबी से सीखे

पुरानी साडी को काट कर

पर्दा या पेटीकोट बनाना

सेल के चक्कर में,जरुरत से चौगुना

सामान खरीद कर के ले आना

मीठी मीठी बातें बना कर के

मेरी पॉकेट को ढीली करवाना

कोई मेरी बीबी से सीखे

टीवी पर सीरियल के साथ साथ

क्रिकेट की कमेंट्री सुनना

पुराने स्वेटर को उधेड़ कर

नए डिजाईन में बुनना

मेरे पड़ोसिन की तारीफ करने पर

इर्षा से जलना ,भुनना

कोई मेरी बीबी से सीखे

रात को दूध का गिलास पिला कर

मेरी भूख को बढ़ाना

ठंडी ठंडी सी साँसे भर कर

मेरे दिल को जलाना

व्रत और पूजा आराधन करके

मेरे जैसा पति पाना

कोई मेरी बीबी से सीखे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

घोटूजी के भी अच्छे दिन आने वाले है

     घोटूजी के भी अच्छे दिन आने वाले है

कल हमसे हमारे एक दोस्त मिले
और बोले 'घोटूजी,आप दिख रहे हो कुछ पिलपिले
आपका तो टावर वन है
वो तो रेस्टोरेंट वालों का 'जंकशन'है
'सिनेमन किचन' है 
चल रहा नंबर वन है
'मिस्ट्री ऑफ़ फ़ूड' है
खाना भी 'टू गुड'है
'येलो चिलीज ' है
गजब की चीज है
सुना है'वी ,दी फूडिज 'भी आरहा है
अभी से ललचा रहा है
और खुलनेवाला 'पंजाबी तड़का'है
अभी से रहा भूख भड़का है
टावर टू वालों का 'देशी वाइब्स 'भी मजेदार है
कहते है खाना और सजावट दोनों जोरदार है
इसके बावजूद भी आपका ये हाल है
हो रही पतली दाल है
घोटू बोले यार ये सब तो बड़े बड़े नाम है
ऊंची दूकान है और मंहंगे दाम है
कोई भूले से भी 'इनवाइट ' नहीं करता है
घर की रोटी से ही पेट भरना पड़ता है
मोदीजी कहते है अच्छे दिन आएंगे
देखते है ये कब खाने पर बुलाएंगे
और अगर किस्मत ज्यादा ही जोर मारे
हो सकता है ये हमे ,
अपना 'ब्रांड अम्बेसेडर' ही बनाले

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

सोमवार, 11 अप्रैल 2016

ढलती उमर -पत्नीजी की दो सलाहें

ढलती उमर -पत्नीजी की दो सलाहें 

साजन
सूरज जब ढलने वाला होता है ,
आशिक़ मिजाज हो जाता है
अपनी माशूकाएं बदलियों पर ,
अपनी दरियादिली दिखलाता है
किसी को सुनहरी चूनर से सजाता है
किसी को स्वर्णिम 'नेकलेस' पहनाता है
प्रियतम ,
अब तुम्हारी भी उमर ढल रही है
तुम भी ढलते सूरज की तरह ,
आशिकमिजाज बन जाओ
अपनी दरियादिली दिखलाओ
मै ,तुम्हारी बदली ,
अब तक ना बदली ,
अब तो तुम भी मुझे ,
स्वर्णखचित वस्त्रों से सजाओ
मेरे लिए एक अच्छा सा ,
सोने का 'नेकलेस 'ले आओ 

प्रियतम ,
क्यों परेशान हो रहे हो तुम
अगर तुम्हारे तन में ,
बढ़ रही है 'शुगर'
तो ये क्यों भूलजाते हो ,
कि तुम्हारी बढ़ रही है उमर
अब तुम पक रहे हो
और जिस तरह पके हुए फलों में ,
आ जाता है मिठास
उसी तरह तुम्हारे जीवन में भी ,
मधुरता आ रही है ख़ास
और तुम व्यर्थ ही हो रहे हो उदास
जीवन में भर कर उल्लास
सब में बाटों अपनी मिठास
सबसे लगा लो नेह
अपने आप भाग जाएगा आपका मधुमेह


मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

रविवार, 10 अप्रैल 2016

जमना जमाना

    जमना जमाना

जमना,जम जाना या फिर जमा कराना
या मौका  पड़ने  पर कोई को अजमाना
 कई तरह  का ,हमने देखा यहाँ  जमाना
सभी चाहते ,अपना अपना रंग जमाना
 कोई जमाता है पानी को बर्फ    बनाता
कोई दूध को जावन देकर ,दही  जमाता
कोई दूध जमा कर  आइसक्रीम  बनाते
ले लेकर के मज़ा,प्यार से उसको खाते
पैसे कमा ,जमा कुछ मालामाल हो गए
पूँजी ,जमा लुटा दी ,कुछ कंगाल हो गए
सर्दी में लोगों की कुल्फी जम जाती है
सच्ची बातें होती,मन को जम जाती है
वो जब सजती धजती है ,काफी जमती है
उनकी और हमारी जोड़ी भी जमती है
वो जब महफ़िल में आये,तो  रंग  जमाया
पहले जम कर जाम पिए फिर जम कर खाया 
उनने  जम कर रिश्व्त खाई,बन कर नेता
आज जमाना ,उनको जमकर गाली देता
जमा करोड़ों,स्विस बैंकों में ,उनके खाते
बाहुबली  है ,सब पर अपनी धौंस जमाते
पाली पोसी ,सुंदर बेटी ,जमी जमाई
जिनके साथ ,ब्याहते  हम ,वो बने जमाई
और दहेज में संग देते है ,जमा किया धन
 जम कर उनकी ,आवाभगत करे हम हरदम
दुनिया भर के टैक्स जमा पड़ते है  करना
चूक हुई  ,तो पड़ता है  अंजाम  भुगतना
पीना जाम ,जीमना,जम कर मौज मनाना
क्या बतलाएं ,कैसा आया ,आज  जमाना

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

सांसें बहुएं एक सरीखी

            सांसें बहुएं एक सरीखी

औरत होकर भी औरत का ,साथ निभाना ये ना सीखी
सारी  सासें    एक सरीखी, सारी  बहुएं   एक  सरीखी
चाहे मीठी बात बना कर ,बातें करती हो शक्कर सी
पर जब भी मौका मिलता है ,आपस में देती टक्कर
हरी ,लाल हो चाहे काली , हर  मिरची  होती है तीखी
सारी सांसें  एक सरीखी ,सारी  बहुएं  एक  सरीखी
माँ  सोचे  बेटा बेगाना  हुआ , हुई  शादी  उस पल से
बहू सोचती कैसा पति है ,बंधा रहे माँ के   आंचल  से
 ऐसी ही तो तू तू,मै मै ,होती हर घर में है दिखी
 सारी  सांसें एक सरीखी,सारी   बहुएं  एक सरीखी
चाहे सास ,इजाजत के बिन,उसकी हिले न कोई पत्ता
बहू चाहे ,हो जाए रिटायर ,सास ,सौंप कर घर की सत्ता
बंद हो जाए टोका टाकी , ताने देना ,  बातें  तीखी
सारी  सांसें  एक सरीखी , सारी बहुएं एक सरीखी
उसको,खुद को,नहीं बहू की ,जो जो बातें कभी सुहाती
उल्टा सीधा पाठ पढ़ा कर ,बेटी को  वो ही सिखलाती 
इस चक्कर में ,दोनों रहती,इक दूजे से कटी कटी सी
सारी  सांसें एक सरीखी  ,सारी  बहुएँ   एक  सरीखी
 वो भी तो थी बहू एक दिन ,उसने भी सांसें झेली है
साँसों की बॉलिंग के आगे ,बेटिंग कर, पाली खेली है
'स्पिन'और' फास्ट' थी बॉलिंग,फिर भी है मैदान पर टिकी
सारी   सांसें  एक  सरीखी ,सारी  बहुएं  एक  सरीखी
बहू दूध है  ताज़ा ताज़ा ,सास  पुराना  जमा  दही  है
करे न तारीफ़ ,कोई किसी की ,उल्टी गंगा कभी बही है
माँ बीबी के बीच फजीहत ,होती है बेचारे  पति की
सारी   सांसें  एक  सरीखी ,सारी  बहुएं  एक सरीखी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2016

लेन देन

लेन देन

मैंने उनसे माँगा कुछ दो
वो बोली,मै क्या,तुम कुछ दो
मैंने कुछ ऐसा दे डाला
उनको लगा बहुत जो प्यारा
वो भी देती ,वैसा होता
बिलकुल मेरे जैसा होता
हुआ प्रफुल्लित दोनों का मन
मैंने उन्हें दिया था ...... ?

घोटू

तो कहो क्या बात है

             तो कहो क्या बात है

चाय तक की भी कभी ना ,पूछता कंजूस जो,
        घर बुला,बोतल भी  ही खोले ,तो कहो  क्या बात है 
कोई महिला रूपसी ,मुस्काये,तुमको लिफ्ट दे,
           और अंकल भी न बोले , तो  कहो क्या बात  है
करने को भगवान का दर्शन जो मंदिर जाओ तुम,
            खाने  भंडारा मिले जो , तो कहो  क्या बात है
भाग्य से बिल्ली के इसको कहते छींका टूटना,
            रहे चलते सिलसिले जो, तो कहो क्या बात है
पहने वो मलमल का कुरता ,और वो भी हो सफेद ,
            पानी में हो तरबतर जो ,तो कहो क्या बात है
इसको कहते, देता देने वाला छप्पर फाड़ के
       मुंह में फिर तो घी और शक्कर ,तो कहो क्या बात है  

 मदन मोहन बाहेती'घोटू'
         

 

यही अंजाम होता है

     यही अंजाम होता है

अगर शादी करो तुम तो ,यही अंजाम होता है
तुम्हारी बीबी के पीछे ,तुम्हारा  नाम होता है
प्रबल है बल नहीं होता,प्रबल स्थान होता है
गाँव की चीज ,मालों में ,चौगुना दाम होता है
सामने तारीफें करके ,किसीके चाटना तलवे,
बुराई पीठ  के पीछे , बुरा  ये  काम  होता  है
जहां पर आस्था होती,वहां शांति बरसती है ,
जहाँ पर राम ना होते, वहां कोहराम होता है
प्रेम से गाल तुम्हारे ,सिरफ सहलाती बीबी है ,
दूसरा जो ये कर सकता  ,वो हज्जाम होता है

घोटू 
 बदकिस्मती

मेरी बदकिस्मती की इंतहां अब और क्या होगी ,
       कि जब भी 'केच' लपका ,'बाल' वो 'नो बाल 'ही निकली
ख़रीदे टिकिट कितने ही ,बड़ी आशा लगा कर के,
          हमारी  लॉटरी  लेकिन ,नहीं  एक  बार ही  निकली
हमेशा जिंदगी में एक ऐसा दौर आता है ,
            हमे  मालूम  पड़ता जब कि क्या होती है बदहाली
सिखाता वो रहा हमको ,कि कैसे जीते मुश्किल में ,
               और हम व्यर्थ में  उसको ,यूं  ही  देते  रहे गाली
  
 घोटू
                      

बुधवार, 6 अप्रैल 2016

गूगल पर सब कुछ मिल जाता

       गूगल पर सब कुछ मिल जाता

गूगल पर सब कुछ मिल जाता ,बस माँ बाप नहीं मिलते है
 आशीषों  की  वर्षा  करते  ,     बस वो हाथ नहीं   मिलते है
जानकारियां दुनिया भर की ,बटन दबाते, मिल जाती है
'गूगल अर्थ 'खोल कर देखो ,सारी  दुनिया  दिख जाती है
खोल 'फेसबुक',यार दोस्त से ,जितनी चाहो,बातें करलो
और 'ट्विटर' पर ,मन की बातें ,सारी कह,जी हल्का करलो
शादी का 'पोर्टल' खोलो तो ,ढूढ़ सकोगे  दूल्हा, दुल्हन
'स्काइप' पर ,साथ बात के ,कर सकते हो,उनका दर्शन
घर बैठे ही,दुनिया भर की ,शॉपिंग करना अब मुमकिन है
 जिसको चाहो,लाइन मारो ,सब कुछ यहाँ 'ऑन लाइन' है
पर दिल का अंदरूनी रिश्ता ,और जज्बात नहीं मिलते है
गूगल पर सब कुछ मिल जाता ,बस माँ बाप नहीं मिलते है
अब 'ई मेल' लिखी  जाती है ,प्रेम पत्र कर गए पलायन
दुनिया भर की ,हर घटना का ,होता है 'लाइव' प्रसारण
टिकिट सिनेमा,रेल,प्लेन के ,बुक हो जाते ,सभी यहाँ है
'जी पी एस' बता देता है ,मौजूद बन्दा ,कौन , कहाँ  है  
'व्हाट्स ऐप' पर,अपने ग्रुप की, सारी बातें ,करलो शेयर
अपने फोटो ,सेल्फी भेजो, बस लगता है ,केवल  पलभर
हर पेपर की,हर चैनल की,सारी  खबरें ,मिल जाती है
'लाइव क्रिकेट ''मैच देख कर,सबकी तबीयत खिल जाती है  
हो जाता  दीदार  आपका ,लेकिन  आप  नहीं  मिलते है
गूगल पर सबकुछ मिल जाता,बीएस माँ बाप ,नहीं मिलते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 5 अप्रैल 2016

सब नंगें है

      सब नंगें है

कपड़े उतारते है हम या तो  हमाम मे
खुद का जिसम निहारते ,शीशे के सामने
या फिर सताया करता जब गर्मी का मौसम
तब सुहाते है ,जिस्म पे ,कपड़े भी कम से कम
या मिलते है जब प्रेमी और होती मिलन की रात
कपड़े अगर हो दरमियाँ ,बनती नहीं है बात
लेकिन है अब माहौल कुछ  ऐसा बदल गया
कपड़े उतारने का एक फैशन सा चल गया
कुछ बाबाओं के गंदे जो धंधे थे ,खुल गए
कहते है लोग ,उनके सब कपड़े उतर गए
कुछ लोग नंगे हो रहे ,जात ओ धरम नाम
कुछ मिडिया भी कररहा है इस तरह का काम
फैशन के नए ट्रेंड ने भी कुछ कपड़े है  उतारे
कुछ कपड़े यूं ही उतरे , है  मंहगाई के मारे
नंगई  इस तरह से है सब और  बढ़ रही
सड़कों पे औरतों की है अस्मत उघड रही
आतंक ,लूट मार और  दंगे  है हो  रहे
दुनिया के इस हमाम मे ,सब नंगे हो रहे
 
घोटू

मेरी माँ

मेरी माँ

ये  मेरी माँ है ,प्यारी सी माँ है
मुझ से प्यार करती है ,मुझ पे मेहरबाँ है
उमर नब्बे के पार है
थोड़ी कमजोर और लाचार है
फिर भी हर काम करने को  तैयार है
कृषकाय शरीर में नहीं दम है
मगर हौंसले कहीं से भी नहीं कम है
घर में जब भी हरी सब्जी जैसे ,
मैथी,पालक या बथुआ आता है
वो खुश हो जाती है क्योंकि ,
उसे करने को कुछ काम मिल जाता है
वो एक एक पत्ता छांट छांट कर सुधारती है
मटर की फलियों से दाने निकालती है
ये सब करके उसे मिलता है संतोष
उसमे आ जाता है वही पुराना जोश 
हर काम करने के लिए आगे बढ़ती है
मना करो तो लड़ती है
जब हम कहते है कि अब आप की ,
ये सब काम करने की उमर नहीं है माता
तो वो कहती है कि कहने में क्या है जाता
काम करने की जिद कर  ,करती परेशाँ है
        ये मेरी  माँ है ,प्यारी सी माँ है                 
जब भी कोई मेहमान आता है
उसे बहुत सुहाता है
उनकी बातों में पूरी दिलचस्पी लेती है
बीच बीच में अपनी राय भी देती है
बहन,बेटियां या बहुए जब सामने पड़ती है
ये उनका ऊपर से नीचे तक निरीक्षण करती है
और अगर उनके हाथों में नहीं होती चूड़ियां
या पावों में न हो बिछूडियां
या फिर नहीं हो बिंदिया माथे पर
तो फिर ये लेती है उनकी खबर
उसे शुरू से ही छुवाछूत ,
व जातपात का बड़ा ख्याल है
इसलिए आज के जमाने में ,
इस मामले में उसका बुरा हाल है 
हालांकि समय के साथ साथ ,
उसे थोड़ा कम्प्रोमाइज करना पड़ा है 
और  उसका परहेज कड़ा है
  फिर भी दुखी रहती ख्वामखां   है
        ये मेरी माँ है ,प्यारी सी माँ है                       
रह रह के नींद आती है
बार बार उचट जाती है
जग जाती तो गीता या रामायण पढ़ती है
और पढ़ते पढ़ते फिर सोने लगती है
 खुद ही करती है अपने सब काम
आत्मविश्वास और स्वाभिमान
ये है उसकी पहचान
कभी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया
सब के लिए ,सब कुछ ,
सच्चे दिल से लुटाया
न पक्षपात है न बैरभाव है
सबके लिए मन में समभाव है
त्योंहार मनाने का चाव है
कब क्या पूजा करना व चढ़ाना
किस दिन क्या खाना बनाना
विधिविधान सी मनाती है हर त्योंहार
रीतिरिवाजों का उसके पास है भण्डार
यूं तो बुढ़ापे में कमजोर हो गई है याददास्त
पर अब भी याद है पुरानी सब बात
सुबह सूर्य को अर्घ्य देना,
या तुलसी को पानी चढ़ाना
शाम  और सवेरे ,
मंदिर में दीपक जलाना
पूजाघर में  चढ़ाना प्रसाद
खाने के पहले निकालना गौग्रास
बुढ़ापे में यही उसकी पूजा है
ये मेरी माँ है,प्यारी सी माँ है  
भूख कम लगती है
फिर भी खाने की कोशिश करती है
थाली में सब चीजें पुरुसवाती है
मगर खा नहीं पाती है
दांत बहुत कम रह गए है
 इसलिए चबा नहीं पाती है 
बहुत  पीछे पड़ने पर ,
थोड़ा बहुत निगल लेती है
रोटी के टुकड़ों को,
 कटोरी के नीचे छुपा देती है
और एक मासूम सी ,
मजबूरी भरी मुस्कान लिए ,
सारा खाना जूठा छोड़ देती है
और फिर  रौब  से कहती है ,
जितनी भूख है उतना खा पी रही हूँ
नहीं तो बिना खाये पीये ,
क्या ऐसे ही जी रही हूँ
सुबह और शाम उसकी
 स्पेशियल चाय बनती है  
एक कप में तीन चीनी चम्मच डलती है
इतनी है स्वाद की मारी
जरासा नमक या मिर्च कम हो
तो रिजेक्ट है चीजें सारी
जब एकादशी का व्रत करती है
तो फिर उसे बिलकुल भी भूख ना लगती है
वो सब पर ममता बरसाती है
अपना प्यार लुटाती है
उसने भगवान से अपने लिए कुछ नहीं माँगा
जो भी माँगा ,परिवार की ख़ुशी के लिए माँगा
वो सब पर अपना प्यार बांटती है 
नाराज होती है तो डाटती है
खुश होकर जब मुस्काती है
अपने स्वर्णदंत चमकाती है
उसके सब बच्चे ,अपने अपने घर सुखी है ,
इसलिए हमेशा उसकी आँखों  में संतोष झलका है
ये मेरी माँ है ,प्यारी सी माँ है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

अच्छे दिनों का संकेत

        अच्छे दिनों का संकेत

निकल कर के बिलों से सांप जो ये फनफनाते है
हमे बदलाव के लक्षण ,नज़र स्पष्ठ    आते  है

बिलों में छुपने वालों में ,संपोले ,नाग कितने है,
   बड़ा मुश्किल हुआ करता ,इन्हे पहचान यूं पाना
जरूरी इसलिए ये था ,निकाले जाय ये बिल से ,
    बिलों में जब भरा पानी ,पड़ा इनको निकल आना
निकल आये है ये विषधर ,बिलों से अपने जब बाहर ,
    कोई ना कोई लाठी तो ,कुचल  ही देगी ,इनका फन
हुई जमुना थी जहरीली ,जहाँ पर वास था इनका,
     कोई कान्हा फनों पर चढ़,करेगा कालिया मर्दन
जो तक्षक ,स्वांग रक्षक का ,धरे भक्षक बने सब थे ,
      परीक्षित को न डस पाएंगे ,ले कोशिश कितनी कर
बिलों में जो दबा कर के ,रखी थी नाग मणियां सब ,
      निकलते ही सब निकलेगी ,सबर रखना पड़ेगा पर
किसीने दक्षिणा इतनी ,दिला दी नारदो  को है  ,
       उन्ही का कर  रहे कीर्तन,उन्ही के गीत गाते है
उन्ही की शह पे फुँफकारा ,किया करते संपोले कुछ,
       है बूढ़े नाग चुप बैठे  ,समझ अपनी दिखाते है
तुम्हे क्या ये नहीं लगता ,बदलने वाला है मौसम ,
      घटाएं  आसमां में छा रही थी ,हट रही  सब है
उजाले की किरण ,रोशन हमारा नाम है करती,
       हमे विश्वास अच्छे दिन ,शीघ्र ही आ रहे  अब है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'   
         

पत्नियां -पांच चतुष्पदियां

     पत्नियां -पांच चतुष्पदियां
                      १
नहीं समझो कभी इनको ,कि ये जंजाल जी का है
है इनका स्वाद मतवाला ,चटपटा और तीखा है
पचहत्तर वर्षों में मैंने , तजुर्बा  ये  ही  सीखा है
प्यार से ग़र जो खाओगे ,ये हलवा देशी घी का है
                     २
न सुनना बात   बीबी  की ,बड़ी  ये  भूल होती है
सिखाती तुमको अनुशासन ,ये वो स्कूल होती है  
कभी भी सोचना मत ये ,चरण की धूल  होती है
समझना डाट उसकी भी ,बरसता फूल होती है 
                         ३
 अगर तुमसे वो कुछ बोले ,उसे आदेश समझो तुम    
 हरेक उनके इशारे में , छुपा  संदेश  समझो  तुम
करो तारीफ़ तुम उनकी ,मिटेंगे   क्लेश,समझो तुम
करो ना काम ,पहुँचाये जो उनको  ठेस ,समझो तुम 
                         ४
 नहीं समझो ये आफत है,खुदा की ये नियामत है
 मुसीबत में  पड़ोगे  जो ,कहोगे  ये  मुसीबत  है
तुम्हारे घर की हर दौलत ,उसी की ही बदौलत है
है बीबी जो ,तो घर जन्नत ,यही सच है,हक़ीक़त है
                              ५
बतंगड़ बात का बनता ,राई का पहाड़ बन जाता
पकड़ती तूल जब बातें ,तो तिल का ताड़ बन जाता 
मान कर बात बीबी की ,जरा तारीफ़ तुम कर दो ,
उफनता उनका गुस्सा भी ,उमड़ता लाड़ बन जाता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
                        
            

                    

पत्नी -सौ टंच खरा सोना

    पत्नी -सौ टंच खरा सोना

मैं पति हूँ,
दुनिया का सबसे निरीह प्राणी
जिसे जली कटी ,
सिर्फ सुननी ही नहीं पड़ती ,
जलीकटी पड़ती भी है खानी
और वो भी तारीफ़ कर कर  के
रहना पड़ता है डर डर के
ये पति शब्द ही एसा  है,
जो 'विपति ' से जुड़ा है
इसलिए उसका रंग ,
हमेशा रहता उड़ा है
पत्नियां पुचकार करके
थोड़ा सा प्यार कर के,
पति को पटाया करती है
बेवकूफ बनाया करती है
और वो भी ख़ुशी ख़ुशी ,
बेवकूफ बन जाता है
उसे ,इसमें भी मज़ा आता है
उनका कभी कभी प्यार से 'डियर' कहना ,
बड़ा 'डीयर',याने मँहगा पड़ने वाला है ,
ये सन्देशा है
और जिस दिन वो प्यार से कहे 'जानू',
समझ लो ,जान और माल ,
दोनो की हानि का अंदेशा है
और जब वो'जरा सुनिए'कह कर बुलाती है
तो समझलो ,कोई आदेश सुनाती है
अपनी सहेलियों के बीच ,जब यह कह कर ,
कि 'हमारे ये तो बड़े सीधे है '
आपका गुणगान करती है
तो वह अपने वर्चस्व का बयान करती है 
 उनके हाथों का बनाया हुआ कोई भी खाना,
आपको 'टेस्टी'पड़ता है बतलाना
और जब वो सजधज कर,तैयार हो कर,
आपसे पूछे कि 'मै लग रही हूँ कैसी'
आपको तारीफ़ करनी ही पड़ती है ,
वरना हो जाती है ऐसी  की तैसी
कभी आइना देखकर वो बोले
क़ि 'सुनोजी ,लगता है मैं हो रही हूँ मोटी'
मरा बजन बढ़ रहा है '
तो खैरियत इसी में है की आप कहें,
'अब तुम  कली से फूलबन कर खिल रही हो,
तुमपर यौवन चढ़ रहा है'
कभी भी आपकी चलने नहीं देती ,
घर का हर फ़ैसला लेनेवाली,वो सरपंच होती है
पर ये बात भी सही है
आपकी सबसे बड़ी हितेषी भी वही है ,
वो खरा सोना है ,सौ टंच होती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

मै क्या पहनूं ?

       मै क्या पहनूं ?

अल्मारी में भरे हुए है,
कितने कपड़े ,कितने गहने
पर बाहर जाने के पहले ,
पत्नीजी ने हमसे पूछा ,
'हम क्या पहने ?
हम ने धीरे से कह डाला
'कुछ ना पहनो '
काहे को तुम करती हो,
 इतनी  माथापच्ची
बिन कुछ पहने भी तुम,
 मुझको लगती अच्छी
क्यों कपड़ों का बोझ,
 उठाती हो तुम तन  पर
वैसे ही साम्राज्य तुम्हारा,
 मेरे मन पर
लाख आवरण में ढक  लो ,
पर छुप ना पाती ,
तुम्हारे तन का ,
ये सौष्ठव और सुगढ़ता
सभी रूप मे तुम
 मुझको प्यारी लगती हो ,
कुछ भी पहनो ,
मुझको कोई फरक ना पड़ता

घोटू  
 

गुब्बारा

गुब्बारा

मै गुब्बारा ,हवा है तू ,
अगर मुझमे समाएगी
ख़ुशी से फूल ,हो पागल ,
हवाओं में उड़ेंगे हम
कोई नन्हा ,हमे बाहों में,
ले लेकर के चहकेगा ,
जरा सा जो चुभा काँटा ,
न तुम होगी,न होंगे हम

घोटू

वाह वाही

        वाह  वाही

कभी कभी ,ज्यादा वाहवाही
भी ला सकती है तबाही
गर्व के मारे आदमी ,
गुब्बारे सा फूल जाता है
अपने परायों का भेद भूल जाता है
पर जरा सा काँटा चुभने पर,
जब गुब्बारा फूटता है
तब भरम टूटता है
पर तब तक ,
बड़ी देर बड़ी हो चुकी होती है
पर क्या करें ,
वाहवाही आदमी की ,
सबसे बड़ी कमजोरी होती थी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सोमवार, 4 अप्रैल 2016

कोई छेड़े बुढ़ापे में

         कोई छेड़े बुढ़ापे में

बहुत सी आग होती है ,जवां सूरज के सीने में ,
मगर जब ढलने लगता तो नजारे और होते है
कली खिलती ,महकती है तो मंडराते कई भंवरें,
मगर मुरझाए फूलों के वो प्यारे और  होते है
बहारों में ,दरख्तों पर ,अलग ही नूर होता है ,
मज़ा तब है कि पतझड़ में भी ,वो हमको लगे प्यारे
सभी के मन लुभाती ,हर हसीना है जवानी में,
मज़ा आता बुढ़ापे में  ,कोई लाइन  जब मारे
चाहने वालों की जिनकी ,बड़ी फेहरिश्त होती थी ,
सुने फिकरे जवानी में ,न जाने कितने दिल तोड़े
बुढ़ापे में भी रह रह कर ,सताया करती  है उनको,
जवानी वाली वो यादें ,कभी पीछा  नहीं छोड़े
गयी रौनक ,गयी मस्ती ,उमर का मोड़ ये ऐसा ,
अगर इसमें भी दीवाना ,कोई  दिल को लुटाता है
तसल्ली मिलती है दिल को ,अभी भी बाकी हम में दम ,
शगल ये छेड़खानी का ,बड़ा दिल को सुहाता  है
किसी ने मुस्करा कर के ,अगर दो बात जो करली ,
न पड़ता फर्क मियां को ,न दुनिया को ही होता शक
भले तन में नहीं हिम्मत ,बदलना स्वाद पर चाहें ,
दबी दिल की तमन्नाएं ,भड़कती रहती है जब तब
पुराने राजमहलों की भी अपनी शान होती है ,
करे तारीफ़ कोई तो,दीवारें मुस्कराती है
हम हंस हंस कर उठाते है ,मज़ा ये छेड़खानी का ,
हमें बीती हुई अपनी  ,जवानी  याद आती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'


 

यूं ही तो बात ना बनती

      यूं ही तो बात ना बनती

कोई पत्ता ,कहीं एक डाल का ,पीला पड़ा होगा ,
समझ ये लोग बैठे कि ,आगई ऋतू है बासंती
                             यूं ही  तो बात ना बनती
 अगर फैला है अंधियारा तो सूरज ढल गया होगा,
दिखी है रौशनी थोड़ी , कहीं दीपक जला  होगा
उछलती कूदती गंगा ,जो उतरी है  पहाड़ों से ,
किसी हिमखंड का सीना,कहीं से तो गला होगा
निमंत्रण कुछ तो लहरों ने समंदर की दिया होगा ,
नहीं तो बावरी नदियां ,मिलन को यूं नहीं भगती
                                   यूं ही तो बात ना बनती
कोई चिंगारी उड़ कर के,कहीं से आई तो होगी ,
समझ कर आग लोगों ने ,यूं ही हलचल मचा डाली
और कुछ नारदो  की टोलियों ने लगा कर  तिकड़म ,
जरा सी बात जो भी थी ,बतंगड़ सी बना  डाली
बहुत कोशिश थी जल जाए लेकिन थोड़ा ही सुलगा ,
नहीं तो धुवाँ ना उठता   ,ये थोड़ी आग ना लगती
                                   यूं ही तो बात ना बनती
दबा था बीज छोटा सा ,पनपता देख कर उसको ,
पुराने बरगदों में चिंताएं अस्तित्व की छायी
आसुरी ताक़तों ने पनपता देवत्व जब देखा ,
बिलों से भीड़ साँपों की,तिलमिला कर निकल आई
किसी इन्दर ने छलबल से धरा था रूप गौतम का,
अहिल्या सी सती  नारी ,यूं ही पाषाण ना बनती
                                  यूं ही तो बात ना बनती  

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
                                   

खस्ता

        खस्ता

खस्ता रोटी अच्छी लगती,स्वाद गजक खस्ता का बढ़िया
खस्ता सिकी मूंगफली अच्छी,भाती खस्ता  आलूटिकिया
मन आनन्दित होजाता यदि ,खस्ता मिले कचोडी  खाने
खस्ता भुजिया ,पापड़,मठरी  , खाने  के सब ही दीवाने
खस्ता  सभी चीज मनभावन ,उनका स्वाद जुबां पर बसता
तो क्यों जब हालत बिगड़ी हो ,हम कहते हालत है खस्ता

घोटू  

भड़ास

        भड़ास

यह एक कटु सत्य है ,
कि हर पति की तरह ,
मै भी अपनी पत्नी से डरता हूँ
और उनकी उँगलियों के ,
इशारों पर नाचा करता हूँ
चाहे किसी की भी हो गलती
डाट मुझ पर ही पड़ती
पत्नी के आगे मेरी एक नहीं चलती
रह जाता हूँ मन मसोस
और अपनी तक़दीर को कोस
सोचता हूँ कि मै अकेला ही नहीं हूँ,
जिसे झेलनी पड़ती ये मुसीबत है
हर पति की ये ही हालत है
फिर भी निकालने को मन के भड़ास
मै भिंडी की सब्जी बनाता हूँ ख़ास
लम्बी लम्बी भिंडियों को काट कर ,
फिर उनमे चीरा लगा कर
मिर्च और मसाला देता हूँ भर
फिर उन्हें गरम गरम तेल में पकाता हूँ
और दबा दबा कर खाता हूँ
क्योंकि भिंडियों को अंग्रेजी में ,
कहते है लेडी फिंगर
याने औरत की उँगलियाँ ,
और यही सोच कर
कि मेरे ऊपर  जो उंगलियों के
इशारों ने किया है अत्याचार
उसका मैं लेता हूँ  प्रतिकार
चाहे गलत है या सही है
मेरा भड़ास निकालने का तरीका यही है
और कुछ कर सकने की ,
मुझमे हिम्मत ही नहीं है
या फिर टी वी का रिमोट लेकर ,
बार बार चैनल हूँ बदलता
और दूर करता हूँ अपनी व्याकुलता
और यही सोच कर मन बहलाता हूँ ,
कि कोई तो है जो मेरे इशारों पर चलता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सांसें बहुएं एक सरीखी

            सांसें बहुएं एक सरीखी

औरत होकर भी औरत का ,साथ निभाना ये ना सीखी
सारी  सासें    एक सरीखी, सारी  बहुएं   एक  सरीखी
चाहे मीठी बात बना कर ,बातें करती हो शक्कर सी
पर जब भी मौका मिलता है ,आपस में देती टक्कर 
हरी ,लाल हो चाहे काली , हर  मिरची  होती है तीखी
सारी सांसें  एक सरीखी ,सारी  बहुएं  एक  सरीखी
माँ  सोचे  बेटा बेगाना  हुआ , हुई  शादी  उस पल से
बहू सोचती कैसा पति है ,बंधा रहे माँ के   आंचल  से
 ऐसी ही तो तू तू,मै मै ,होती हर घर में है दिखी
 सारी  सांसें एक सरीखी,सारी   बहुएं  एक सरीखी
वो भी तो थी बहू एक दिन ,उसने भी सांसें झेली है
साँसों की बॉलिंग के आगे ,बेटिंग कर, पाली खेली है
स्पिन और फास्ट थी बालिग़ ,फिर भी है मैदान पर टिकी
 सारी   सांसें  एक  सरीखी ,सारी  बहुएं  एक  सरीखी
बहू दूध है  ताज़ा ताज़ा ,सास  पुराना  जमा  दही  है
करे न तारीफ़ ,कोई किसी की ,उल्टी गंगा कभी बही है
माँ बीबी के बीच फजीहत ,होती है बेचारे  पति की
सारी   सांसें  एक  सरीखी ,सारी  बहुएं  एक सरीखी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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