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रविवार, 31 जनवरी 2021

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कैसे जाता वक़्त गुजर है

मुझको खुद मालूम नहीं है ,कैसे जाता वक़्त गुजर है
सोना,जगना ,खाना,पीना ,क्या जीवन बस इतना भर है

कम्बल कभी रजाई चादर ,या फिर पंखा ,कूलर,ए सी
ठिठुरन ,सिहरन,तपन,बारिशें ,मौसम की गति बस है ऐसी
अलसाया तन ,मुरझाया मन ,बढ़ी उमर का हुआ असर है
मुझको खुद मालूम नहीं है ,कैसे जाता वक़्त गुजर है

सूरज उगता ,दिन भर तपता ,फिर ढल जाता अस्ताचल में
लेकिन वो बेबस होता जब ,बादल  ढक  लेते है पल में
कब ढक ले आ बादल कोई, पल पल लगता रहता डर है
मुझको खुद मालूम  नहीं है ,कैसे जाता वक़्त गुजर है

बीते दिन की यादों में मन, बस खोया ही रहता अक्सर
आते याद ख़यालों में वो,रख्खा जिनका ख्याल उमर भर  
नहीं मगर उनको अब रहता ,ख्याल हमारा ,रत्ती भर है
मुझको खुद मालूम नहीं है ,कैसे जाता वक़्त गुजर है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

शुक्रवार, 29 जनवरी 2021

मनौती

मन की कोई कामना पूरी होने पर ,
कुछ करने का संकल्प ,
होता है मनौती
पर गौर से देखा जाए  तो  ,
यह एक तरह की रिश्वत है होती
जो हम भगवान को देते है
और ये कहते है
कि प्रभु ,अगर आप
मेरा फलां फलां काम  दोगे साध
तो मैं आपको चढ़ाऊंगा इतना परशाद
या मैं आपको सोने या चांदी का छत्र चढ़ाऊंगा
आपके दर्शन के लिए ,परिवार संग आऊंगा
पर जब आप करते है कोई भी कामना
उसके पूरा होने की ,होती है ५०%सम्भावना
और इस तरह आधी मनोतियां पूर्ण हो जाती है
और उस देवता में ,आपकी श्रद्धा बढ़ जाती है
बचपन से ही हमारे संस्कार
ढल जाते है इस प्रकार
कि भगवान अगर परीक्षा में पास हो जाऊँगा
तो इतने रूपये का परशाद चढ़ाऊंगा
और पास होने पर आप प्रशाद चढ़ाएंगे
हालांकि आधी मिठाई खुद खाएंगे
ऐसे में माँ बाप भी मना नहीं करते
क्योंकि वो भी बचपन से ,
सत्यनारायण की कथा आये है सुनते  
और घबराते है कि मनौती पूरी नहीं करने पर
लीलावती कलावती का हश्र ,उन पर न जाए गुजर
हमारी ये ही अंध आस्था
खोल देती है रास्ता
कुछ ख़ास मंदिरों में भीड़ बढ़ाने का
मान्यता पूरी होने पर परशाद चढाने का
इस तरह फलां फलां मंदिर के चमत्कार
का करके प्रचार
हम भेड़धसान की तरह मंदिरो में भीड़ बढ़ा रहे है
परशाद चढ़ा रहे है
आप कितने भी बड़े बुद्धिजीवी हो या अज्ञानी
पर काम बन जाता है तो हो जाते दानी
क्योंकि अगर ५०%लोगों की ५०%मनोकामनाएं
अगर प्रोबेबिलिटी के सिंद्धांत से पूर्ण हो जाए
तो इसका श्रेय मिलता है उस भगवान को ,
और कहा जाता है मनौती का असर दिखा है
और अगर कामना पूरी नहीं होती ,
तो सोचते है भाग्य में नहीं  लिखा है
ये हमारी आस्था ही है ,जिस पर संसार टिका है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
इन्तजार

हर घड़ी  मैं घड़ी देखता ही रहा ,
तेरा दीदार हो ,आयी ना वो घड़ी
बेकरारी बढ़ी ,तू है प्यारी बड़ी ,
तेरी तस्वीर मैंने है दिल में मढ़ी
सपने बुनता रहा ,सर मैं धुनता रहा ,
थी निगाहें मेरी ,द्वार पर ही अड़ी
तू नहीं बेवफ़ा ,ना तू मुझसे खफ़ा ,
कौनसी बेबसी ,विपदा आ के पड़ी
मुश्किलें थी बड़ी ,सर उठाये खड़ी ,
कब कहाँ हो गयी है कोई गड़बड़ी
अश्क बहते रहे ,पीर सहते रहे ,
हर घडी लगता था ,सामने तू खड़ी

घोटू 
एक बेटी की फ़रियाद -माँ से

तेरी कोख में माँ ,पली और बढ़ी मैं
पकड़ तेरी ऊँगली,चली, हो खड़ी मैं
तेरे दिल का टुकड़ा हूँ ,मैं तेरी जायी
 नहीं होती बेटी ,कभी भी  परायी

तूने माँ मुझको ,पढ़ाया लिखाया  
सहीऔर गलत का है अंतर सिखाया  
नसीहत ने तेरी बनाया है  लायक
रही तू हमेशा ,मेरी मार्ग दर्शक
तूने संवारा है व्यक्तित्व मेरा    
तेरे ही कारण है अस्तित्व मेरा
तेरा रूप, तेरी छवि, प्यार हूँ मैं
जीवन सफ़र को अब तैयार हूँ मैं
मिले सुख हमेशा,यही करके आशा
मेरे लिए ,हमसफ़र है तलाशा
बड़े चाव से बाँध कर उससे बंधन
किया आज तूने ,विवाह का प्रयोजन
ख़ुशी से  करेगी ,तू मेरी बिदाई
नहीं होती बेटी ,कभी भी परायी

सभी रस्म मानूंगी ,जो है जरूरी
मगर दान कन्या की ,ना है मंजूरी
न सोना न चांदी ,इंसान मैं हूँ
नहीं चीज दी जाये ,जो दान में हूँ
मुझे दान दे तू ,नहीं मैं सहूंगी
तुम्हारी हूँ बेटी ,तुम्हारी रहूंगी
दे आशीष मुझको,सफल जिंदगी हो
किसी चीज की भी,कभी ना कमी हो
फलें और फूलें ,सदा खुश रहें हम
रहे मुस्कराते ,नहीं आये कोई ग़म
कटे जिंदगी का ,सफर ये सुहाना
मगर भूल कर भी ,मुझे ना भुलाना
रहे संग पति के ,हो माँ से जुदाई
नहीं होती बेटी ,कभी भी पराई

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
भूलने की बिमारी

बुढ़ापे में मुश्किल ये भारी हुई है
 मुझे भूलने की , बिमारी  हुई  है

रखूँ कुछ कहीं पर ,नहीं याद रहता
परेशां हो ढूँढूं ,किसी से न कहता
चश्मा कहीं पर भी रख भूल जाता
दवाई की गोली ,न टाइम से खाता
नहीं नाम लोगों के ,अब याद रहते
बिगड़े बहुत ही , है हालात रहते
बड़ी ही फ़जीयत  हमारी हुई है
मुझे भूलने की,  बिमारी हुई है  

नहीं याद रहती ,मुझे बात कल की
मगर याद ताज़ा ,कई बीते पल की
बचपन के दिन ,वो शरारत की बातें
जवानी के किस्से ,वो मस्ती की  रातें
वो भाई बहन संग ,लड़ना ,झगड़ना
वो माता की ममता ,पिताजी से डरना
वो जीवन्त ,सारी की सारी हुई है
मुझे भूलने की ,बिमारी  हुई   है  

अब जब सफ़र कट गया जिंदगी का  
संग याद आता है ,बिछड़े सभी का
हरेक दोस्त मुश्किल में जो काम आया  
 उन्हें  भूल कर भी ,भुला  मैं  न पाया  
नाम अब प्रभु का ,सुमरने  लगा हूँ
मोह माया से  अब  ,उबरने लगा  हूँ  
अंतिम सफर की ,तैयारी  हुई है
 मुझे भूलने की, बिमारी हुई है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

बुधवार, 20 जनवरी 2021

पहले तो तुम ऐसी ना थी

अब तुमको क्या क्या बतलाऊँ ,अब तुम क्या हो ,पहले क्या थी
पहले तो तुम ऐसी ना थी

जब आयी थी दुल्हन बन कर ,तब तुम्हारा ,रूप ख़ास था
आँखों में लज्जा का पहरा ,अपनापन था और मिठास था
भोलीभाली सी सूरत से ,तुमने सबका मन लूटा था
तुमको पाकर ,मेरे मन में ,एक प्यार झरना फूटा था
आता याद ,मुझे वो कल जब ,तुम कल कल करती सरिता थी
पहले तो तुम ऐसी ना थी

तब तुम्हारे ,काले कुंतल , काँधे  पर झूमा करते थे
फूलों से कोमल गालों को ,भ्र्मरों  से चूमा करते थे
रक्तिम अधरों पर चुंबन था ,यौवन से थी ,तुम मदमाती
खिल जाते थे फूल हज़ारों ,जब तुम मस्ती में मुस्काती
यौवन से परिपूर्ण ,सुहानी ,सुंदरता की तुम प्रतिमा थी  
पहले तो तुम ऐसी ना थी

मेरे बिन बोले ही मेरे ,मन के भाव जान जाती थी
मेरे सारे प्रस्तावों  को ,नज़रें झुका ,मान जाती थी
ना तो करती ,कोई प्रश्न थी ,ना  गुंजाईश थी विवाद की
ना मन में मलाल रहता था ,अच्छी लगती ,सभी बात थी
निश्च्ल,चंचल,प्यारी प्यारी ,मुस्काती नन्ही गुड़िया थी
पहले तो तुम ऐसी ना थी

पहले कभी हुआ करती थी ,तुम सीधी सादी और भोली
अब सीधे मुंह बात न करती ,बहुत हो गयी हो बड़बोली
पहले प्यार लुटाती थी अब ,मुझे सताती ,बेदरदी  हो
पहले बासन्ती बहार थी ,अब तुम दिल्ली की सरदी हो
आपस में विचार मिलते थे ,मेरी हाँ तुम्हारी हाँ  थी
पहले तो तुम ऐसी ना थी

पहले पायल की रुनझुन थी ,अब तुम बादल की गर्जन हो
पहले नरम गर्म फुल्का थी ,हुई डबलरोटी अब तुम हो
अब ना तीर चलाते नयना ,अब न रहा वो रूप सलोना
हुई द्विगुणित काया अब तो ,फूला तन का कोना कोना
पहले तुम मेरी सुनती थी ,अब रहती हो मुझे सुनाती
पहले तो तुम ऐसी ना थी
पहले थी तुम कली महकती ,अब कुम्हलाया हुआ फूल हो
पहले कोमल ,कमल फूल सी ,अब चुभने वाला त्रिशूल हो
पहले शर्म हया की पुतली ,बहुत लजीली  और शरमीली
अब तेवर तीखे दिखलाती ,बहुत हो गयी हो रोबीली
 पहले सेवाभाव भरा था ,तुममे प्रेम भरी गरिमा थी
पहले तो तुम ऐसी ना थी

शांत और शीतल स्वभाव था ,सबके प्रति मन में दुलार था
एक पालतू गैया सी तुम ,देती थी बस दूध प्यार का
अब तो कितना ही पुचकारो ,बात बात पर बिगड़ झगड़ती
मन माफिक यदि कुछ न होता ,झट से सींग मारने लगती
कभी शरम से जो झुकती थी ,वो आँखें रहती ,दिखलाती
पहले तो तुम ऐसी ना थी

अब तो यही प्रार्थना प्रभु से ,कि तुम पहले सी हो जाओ
पहले सी ही प्रीत दिखाओ ,पहले जैसी ही मुस्काओ
बचे खुचे जीवन के कुछ दिन ,हम तुम ,ख़ुशी ख़ुशी मिल काटें
मेलजोल रख ,रहे प्यार से ,सबके संग में ,खुशियां बांटे
हो प्रयाग फिर से जब मिलती ,प्यार भरी गंगा यमुना थी
पहले तो तुम ऐसी ना थी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
 देवता और आदमी  

नहीं एक उसमे ,हजारों कमी है
नहीं देवता  वो  ,तभी आदमी है

फंसा मोह माया में ,होकर के अँधा
कई गलतियों का ,जो होता पुलंदा
करम से कमीना ,विचारों से गंदा
सदा भूल जाता ,जो अपनी जमीं है
नहीं देवता वो ,तभी आदमी है

समझ जो न पाता ,औरों की पीड़ा
करने की सेवा ,उठाता न  बीड़ा
भोगों में डूबा हुआ है जो कीड़ा
लालच और लिप्सा में काया रमी है
नहीं देवता वो ,तभी आदमी है

बसेगा ह्रदय में जब सत्य उसमे
छलकेगा जब प्यारअपनत्व उसमे
आयेगा तब ही तो देवत्व उसमे
अहम् से रहे दूर ,ये लाजमी है
नहीं देवता वो ,तभी आदमी है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
मैं तुमसे गुस्सा हूँ

हम है जनम जनम के साथी ,दिया बाती साथ हमारा
एक दूसरे के सुख दुःख में ,बन कर रहते ,सदा सहारा
पर तुम मन की बात छुपाते ,अपनी पीड़ा नहीं बताते
उसे बांटती ख़ुशी ख़ुशी मैं ,यदि कुछ अपनापन दिखलाते
एक जान जब कि हम तुम है ,मैं तुम्हारा ही हूँ हिस्सा
तुम अपना गम नहीं बांटते ,जाओ,मैं तुमसे हूँ गुस्सा  

तुम करते सागर का मंथन ,मेरु जैसी मथनी बन कर
मिलते रतन ,बाँट सब देते ,खुद विष पीते ,बन शिवशंकर
सुखी और खुशहाल रहे हम ,तुम दुःख सहते ,इसीलिये हो
हमें नहीं अपराध बोध हो ,कुछ ना कहते ,इसीलिये हो
खुद पर करते सभी कटौती ,रोज रोज का है ये किस्सा
तुम अपना गम नहीं बांटते , जाओ मैं हूँ तुम पर गुस्सा

तुम पैदल दफ्तर जाते हो ,ताकि कुछ पैसे बच जाये
फटे वस्त्र भी पहनो ताकि ,मेरी नव साड़ी आ जाए
तुमको शौक मिठाई का पर ,ना खाते कह,डाइबिटीज है
अपनी इच्छा दबा दबा कर ,ना खरीदते कोई चीज  है
तुमने ये किफायती फंदा ,खुद के ऊपर ही है कस्सा
तुम अपना गम नहीं बताते ,जाओ ,मैं तुम पर हूँ गुस्सा

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
रजनीचर्या

दिनभर काम में रह कर व्यस्त
थका हुआ मैं ,थकी हुई तुम ,
दोनों पस्त
अक्सर
जब हम लेटते है बिस्तर पर
तेरी बांह मुझको लपेट लेती है
अपने  पास समेट  लेती है
मैं तेरे सीने पर
सर रख कर
सो जाता हूँ
बड़ा सुकून पाता हूँ
जब तुम मेरे सर को थपथपाती हो
बालों में उँगलियाँ डाल ,सहलाती हो
मेरे दिल की धड़कन
हर क्षण
सुनाई देती है मधुर संगीत बन
और तुम्हारी साँसों के स्वर
मेरी साँसों से टकरा कर
देते है इतना नशा भर
कि मैं सो जाता हूँ ,
तेरी उँगलियों में ,अपनी उँगलियाँ फंसा कर
रोज रोज चलता है यही क्रम
तुम और हम
प्यार का बंधन
यही है जीवन

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
बुढ्ढों  का दम

सभी सीनियर के लिये ,बड़े गर्व की बात
राष्ट्रपति 'वाइडन 'बने ,मिली 'ट्रम्प 'को मात
मिली 'ट्रम्प' को मात ,उमर जिसकी अठहत्तर
चार साल तक राज्य करेगा ,अमेरिका पर
कह घोटू कविराय , नहीं क्या  ऐसा  लगता
बूढा हो इंसान ,बहुत कुछ पर कर सकता

पत्नी ताने मारती ,थी हम पर हर बार
 कि हम अब बूढ़े हुये ,नाकामा ,लाचार
नाकामा ,लाचार ,बचा ना अब हममें दम
अमेरिका की राष्ट्रपति ,जब बने 'वाइडन '
 अठहत्तर का बूढा अब सब  पर है हावी
समझो मैडम , बुढ्ढों में दम रहता काफी

घोटू 

रविवार, 10 जनवरी 2021

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शुक्रवार, 8 जनवरी 2021

फुर्सत की ग़ज़ल

बैठे थे फुरसत में ,उनका दिल लगाने लग गये  
एक दिन जब हम उन्हें गाने सुनाने  लग गये
हमको ना सुर की पकड़ थी ,ना पकड़ थी ताल की ,
बेसुरे हम ,कान  उनके ,बस  पकाने लग गये
हमारे गाने की तानो  ने बिगाड़ा उनका मन ,
वो खफ़ा होकर हमें ,ताने सुनाने लग गये
बुढ़ापे में आशिक़ी का भूत कुछ ऐसा चढ़ा ,
मूड उनका सोने का था ,हम सताने लग गये
'घोटू 'कुछ ना काम है ना काज है ,हम क्या करें ,
वक़्त अपना इस तरह से ,हम बिताने लग गये  

घोटू 
रेवड़ी

रूप उनका सुनहरा था ,गुड़ की भेली की तरह ,
होश हमने खो दिये जब नज़र थी उन पर  पड़ी
इस तरह उनने पकाया ,गुड़ था अपने प्यार का ,
दिल हमारा ,तिल सा चिपका ,बन गया है रेवड़ी

घोटू 
नींद

हुस्न और उनकी अदाएं ,डगमगा पाती नहीं
आँख जब लगती है लगने ,तो वो खुल पाती नहीं
लाख लालच दे हमें ,फुसला मनाये प्यार से ,
नींद जब आती है तो आती है रुक पाती नहीं

घोटू 
कसूर और जुर्बाना

मूड उनका सोने का था ,हमने सोने ना दिया ,
जुर्बाने में सोने के जेवर दिलाना  पड़  गया
 गाने गा गा बेसुरे  ,उनको पकाया ,फल मिला ,
खाना उसदिन शाम को ,हमको पकाना पड़ गया
उलटी सीधी ,बेतुकी ,बातों से चाटा इस कदर ,
आलू टिक्की ,चाट सब ,उनको खिलाना पड़ गया
मार उनके प्यार की ,हम पर पड़ी कुछ इस तरह
मारकेटिंग के लिए ,उनको ले जाना पड़  गया

घोटू 
दो दो लाइना -खाते पीते

तू है मेरी गरम जलेबी ,मैं रबड़ी का लच्छा
दोनों संग मिल स्वाद बढ़ाते ,प्यार हमारा सच्चा  

फूला हुआ  गोलगप्पा मैं ,स्वाद भरा तू पानी
तू दिल में आ ,स्वाद चटपटा ,भर देती तूफानी

मैं हूँ पाव और तू भाजी ,सबके मन को भाती
कभी बड़ा बन ,बड़ा पाव हम ,बन जाते है साथी

तू इडली सी नरम मुलायम मैं मद्रासी डोसा
तू है फूली हुई कचौड़ी ,मैं हूँ गरम समोसा

मैं हूँ गरम भटूरे जैसा ,तू छोले सी शोला
तेरी मदमाती खुशबू से ,मन मेरा भी डोला

मैं आलू की टिक्की सा तू चाट पापड़ी प्यारी
दही बड़े सी स्वाद चटपटी ,सब पर पड़ती भारी

प्रियतम तू है दाल माखनी ,मैं भड़ता बैंगन का
मिस्सी रोटी सा प्यारा ,जलवा तेरे यौवन का

मैं राजस्थानी बाटी तू ,नरम चूरमे जैसी
बेसनगट्टे की सब्जी हो ,स्वाद लगे तू वैसी

मैं काले गुलाबजामुन सा ,रसमलाई तू प्यारी
स्लिम काजू की कतली ,तूने ,मेरी नियत बिगाड़ी
१०
मैं मलाई घेवर सा ,तेरा है  फीनी  सा जलवा
कलाकार मैं कलाकंद सा ,तू गाजर का हलवा
११
मैं मथुरा के पेड़े जैसा ,तू अंगूरी पेठा
खुर्जा की खुर्चन जैसा मैं तेरे दिल में बैठा
१२
सुबह नाश्ते में पोहे सी ,तू है सीधी  सादी
बारिश में तू गरम पकोड़ी ,बन जाती उन्मादी
१३
मैं हूँ चम्मच च्यवनप्राश का तू टॉनिक की गोली
तू मेरी ,मैं तेरी ताकत ,तू मेरी हमजोली
१४
मैं उबले चावल जैसा तू चटकीली बिरयानी
मैं हूँ भोजनभट्ट दिवाना ,तू रसोई की रानी

मदन मोहन बाहेती'घोटू ' 

गुरुवार, 7 जनवरी 2021

लगवाओ वेक्सीन रे

ये बिमारी कोरोना की ,जो लाया था चीन रे
आओ बचाएं ,खुद को इससे लगवायें वेक्सीन रे
 
घातक है ये बहुत बिमारी ,दुनिया को बर्बाद किया
भारतीय विज्ञानिक ने मिल ,ये टीका ईजाद किया
कोरोना की बिमारी से ,खुद को अगर बचाना  है
एक माह के अंतर से बस दो टीके लगवाना है
टीके लगवा ,रहे सुरक्षित ,बजे चैन की बीन रे
हमें रोकना है कोरोना ,जो लाया था  चीन रे

जनहित में मदन मोहन बहती 'घोटू' द्वारा जारी 

बुधवार, 6 जनवरी 2021

मैंने अपने अंदर झाँका

अब तक तो मैं औरों का ही ,मैला दामन करता ताका
पर एक दिन जब,मैंने अपने,उर अन्तर के अंदर झाँका
सहम गया मैं ,भौंचक्का सा ,भरी हुई थी ,कई बुराई ,
अहम और बेईमानी ने ,मचा रखा था ,वहां धमाका
मैंने मन के अंदर झाँका
अब तक मुझे ,नज़र आती थी ,औरों की बुराइयां केवल
समझा करता ,दूध धुला मैं ,मेरा हृदय ,स्वच्छ है निर्मल
मेरी सबसे बड़ी कमी थी ,मैं औरों की कमियां गिनता ,
कमियां भरा ,स्वयं को पाया ,जब मैंने अपने को आँका
मैंने मन के अंदर झाँका
मेरा अहम् कुंडली मारे छुपा हुआ था ,मेरे अंदर
एक दो नहीं ,कई बुराई ,का लहराता भरा समंदर
प्रकट नहीं ,अंदर ही अंदर ,स्पर्धा भी ,घर कर बैठी ,
लालच और लालसाओं ने ,डाल रखा था ,मन पर डाका
मैंने मन के अंदर झाँका
मोह और माया ,मुझे बरगला ,बैठी मुझ पर ,कैसे शिकंजा
रह रह कर ,अभिमान झूंठ भी ,मार रहे थे ,मुझ पर पंजा
अपने स्वार्थ पूर्ति की चाहत ,देती थी ईमान डगमगा ,
राह भले थी  सीधी सादी ,मैं चलता था ,आँका बांका
मैंने मन के अंदर झाँका
मन बोला  ,मत ढूंढ बुराई औरों में ,खुद को सुधार तू
अपने अंदर ,छुपे हुये सब ,राग द्वेष का ,कर संहार तू
तू सुधरेगा ,तेरी नज़रें ,देखेगी सबकी  अच्छाई ,
और फिर तेरे मन के अंदर ,लहरायेगी ,प्रेमपताका
मैंने मन के अंदर झाँका

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
चले थी जहाँ से ,वहीँ आ गये  है

अनजान थे हम ,जान आ गयी थी ,
हुआ था मिलन जब,हमारा,तुम्हारा
जीवन सफर की ,शुरुवात की थी ,
एक दूसरे का ,लिया था सहारा
बड़ी मुश्किलें थी ,कठिन रास्ता था ,
कहीं पर थे कांटे,कहीं ठोकरें थी
कभी सर्दी गर्मी ,कभी बारिशें थी ,
मौसम की गर्दिश ,हमे तंग करे थी
चमन में हमारे ,खिले फूल प्यारे ,
एक नन्ही  जूही ,एक गुलाब प्यारा
मधुर प्यार की जिनने खुशबू बिखेरी ,
महकाया जीवन ,सजाया ,संवारा
मगर वक़्त ने चक्र ,ऐसा चलाया ,
दामाद आया ,गया ले कर   बेटी
करी शादी बेटे की ,लाये बहू हम ,
बसा घर अलग ,दूर हमसे वो बैठी
बढ़ती उमर ने ,सितम ऐसा ढाया ,
बुढ़ापे में फिरसे ,हो तनहा गये  है
फिर से वही,दो के दो रह गए हम ,
चले थे जहाँ से ,वहीँ आ गये  है

घोटू  

सोमवार, 4 जनवरी 2021

इक्कीस का 'किस'

इक 'किस' लेकर इक्कीस आया ,ढेरों नेह भरा इसमें
मैं मुश्किल में पड़ा हुआ हूँ ,इसको बांटू किस किस में

एक मेरी प्यारी पत्नी जो जनम जनम की साथी है
एक मेरी प्यारी बेटी जो ,मुझ पर प्यार लुटाती है
एक मेरा अच्छा  बेटा  जो मेरा वंश  चलायेगा
प्यार लुटाते भाई बहन ,ये किस किसमे बंट पायेगा
किस को दूँ और किस को ना दूँ ,पड़ा हुआ इस बंदिश में
मैं मुश्किल में पड़ा हुआ हूँ ,इक 'किस 'बांटूं किस किस में

रिश्तेदार कई प्यारे है दोस्त और शुभचिंतक है
थोड़ा थोड़ा उनको भी दूँ ,उनका भी बनता हक़ है
सूरज ,चंदा और सितारे ,वृक्ष ,फूल पत्ते सारे
प्राणदायिनी हवा और जल ,सब लगते मुझको प्यारे
जी करता है ,सब में बांटूं ,प्यार लुटाया जिस जिस ने
मेरे इतने सारे प्रेमी ,इक 'किस' ,बांटूं  किस किस में  

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

रविवार, 3 जनवरी 2021

चलती है

नहीं है पैर ,नहीं सर है नहीं काया है
मगर कुदरत ने उसे इस तरह बनाया है
कभी हलकी है ,कभी तेज, हवा चलती है
दिखाई देती नहीं ,मगर चला करती है

बड़ी नाजुक है जिससे स्वाद हम चखा करते
जिसपे बत्तीस चौकीदार ,नज़र रखा करते
कोई न रोक पाता ,जब जुबान चलती है
एक स्थान पर रहती है मगर चलती है

एक जगह टिकती नहीं ,होती है बड़ी चंचल
देखती ही सदा रहती है इधर और उधर
चलाती तीर भी है ,खुद भी मगर चलती है
बड़ी ही कातिल हुआ करती ,नज़र चलती है

रौब साहब का बहुत चला करता ,दफ्तर में
मामला उल्टा ,मगर हुआ करता है घर में
कोई भी मसला हो बीबी की बात चलती है
साहब चुप रहते है ,बीबी की सदा चलती है

वक़्त अच्छा बुरा ,आता है चला जाता है
बदलता रहता है ,रोता है कभी  गाता है
चाल तारों की, पर तक़दीर को बदलती है
नज़र आती नहीं किस्मत जो चाल चलती है

घोटू 
युग परिवर्तन

हमने वो युग भी देखा था ,हमने ये युग भी देखा है

काली स्लेट ,खड़िया लेकर बच्चे अ आ ई पढ़ते थे  
स्याही और होल्डर से लिख कर आगे पढाई में बढ़ते थे
फिर फाउंटेन पेन आया ,और बाल पेन ने किया राज
अब पेपर लेस पढाई से ,चलता है सारा काम काज
कम्यूटर पर और ऑन लाइन ,बच्चे पढाई अब करते है
सारी दुनिया का वृहद ज्ञान ,निज लैपटॉप में  भरते है
छोटे बच्चों को बड़े बड़ों ,के कान काटते देखा है
हमने वो युग भी देखा था ,हमने ये युग भी देखा है
 
उन दिनों सास का शासन था ,बहुएं सासों से डर रहती
करती थी दिन भर काम और उनके ताने भी थी सहती
बच्चे उन्मुक्त खेलते थे ,बस्तों का बोझा भी कम था
चाचा ,ताऊ सब संग रहते ,और मस्तीवाला आलम था
माहौल इस तरह अब बदला ,बहुओं से डरती थी सासें
और मात पिता भी बच्चों से ,डर  कर रहते,अच्छे खासे
परिवार नहीं संयुक्त रहे ,अब खिंची बीच में  रेखा है
हमने वो युग भी देखा था ,हमने ये युग भी देखा है

तब गावों के कुछ घर में ही ,रखते थे रेडियो लोगबाग
फिर ट्रांजिस्टर ले बड़ी शान से घूमा करते उसे टांग
काले सफ़ेद टेलीविज़न ने नयी क्रांति का बोध दिया
रंगीन हुआ टेलीविजन ,लोगो ने हाथों हाथ लिया
सबको पछाड़ जब मोबाईल ,आया तो सबके मन भाया
रेडियो ,कैमरा और टीवी ,अब सबकी मुट्ठी में आया
यह छोटा उपकरण काम का है और बड़े मजे का है
हमने वो युग भी देखा था ,हमने ये युग भी देखा है

तब सिगरेट पांचसोपचपन का , डिब्बा निज हाथों में लेकर
कुछ लोग शान से धूम्रपान ,करते रहते है रह रह कर
फिर पान मसाले ने  आकर ,ऐसा लोगों का रुख बदला
सबके हाथों की शान बना,डिब्बा एक पानपराग  भरा
वो युग बीता ,कोरोना ने ,फिर फैलाया ऐसा डर है
कि उससे बचने ,लोगों के ,हाथों में सेनेटाइजर है
बदले हालातों के आगे ,हमने घुटनो को टेका है
हमने वो युग भी देखा था ,हमने ये युग भी देखा है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
 

शुक्रवार, 1 जनवरी 2021

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दो दो लाइना

पहली सुबह धुंध वाली है ,सूरज भी है बुझा बुझा
जैसे हो नाराज बहू से ,मुंह सास का सुझा सुझा

ख़ामोशी जैसी छाई है ,लगते है हालत वही
पतिदेव नाराज हो गए ,मिली सुबह की चाय नहीं

बिगड़ा वातावरण ठंड में ,आयी है आफत गहरी
घर गंदा ,बर्तन जूंठे है ,छुट्टी चली गयी मेहरी

कोहरे की चादर ओढ़े है ,ये पृथ्वी चुपचाप पड़ी
मुझे रजाई छोड़,जगाने की जिद पर तुम मगर अड़ी

ओस पेड़ पत्तों से टपके ,तनिक हवा जो चल जाए
जैसे याद पिया की आये ,विरहन आंसूं टपकाये

मुड़े तुड़े घर के कोने में ,बिखरे है कल के अखबार
ज्यों किसान आंदोलन करते ,हो दिल्ली की सीमा पार

घोटू 
बीस की बिदाई

जाओ बीस तुम,लेकर जाओ ,कोरोना को साथ में
ताकि फिर से सुख और शांति आ जाए हालात में

आया कोरोना ,एक बहेलिया ,फंसा जाल में हमे लिया
हम उन्मुक्त गगन में उड़ने वालों को था कैद किया
रहे फड़फड़ा पंख ,बंद हम ,पिंजरे में ही सारे थे
भूल चहकना गये ,मौन सब ,परेशानियों मारे थे
दहशत छोड़ ,मिले आजादी ,उड़े खुले आकाश में
जाओ बीस तुम ,लेकर जाओ ,कोरोना को साथ में

हटे बंदिशें ,बाजारों में ,पहले जैसी रौनक हो
हंसी ख़ुशी मिल ,सभी मनाये ,त्योंहारों में रंगत हो
खुलें सिनेमाहाल ,रेस्त्रां,मस्ती हो और चहल पहल
फिर से वही पुराने ढर्रे ,आये जिंदगी की हलचल
ऐसा इक्कीस आये ,भिगो दे ,खुशियों की बरसात में
जाओ बीस तुम ,लेकर जाओ ,कोरोना को साथ में

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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