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बुधवार, 15 फ़रवरी 2017

हमारे बुजुर्ग....


पुरानी वेलेंटाइन से प्रणय निवेदन 

जमाना वो भी था तुम हूर लगा करती थी 
जवानी,हुस्न  पे  मगरूर लगा करती  थी
कितने ही लोग तुमपे लाइन मारा करते थे 
नज़र बचा के प्रोफ़ेसर भी ताड़ा करते थे 
शोख,चंचल और बला की तुम खूबसूरत थी 
दूध से नहाई ,तुम संगेमरमर की मूरत थी 
वक़्त की मार ने कुछ ऐसा जुलम ढाया है 
क्या से क्या हो गयी तुम्हारी कंचन काया है 
तुम्हारा प्यारा सा वो गुलबदन है फूल गया 
सुराहीदार सी गरदन पे मांस  झूल  गया 
छरहरा था जो बदन आज थुलथुलाया है 
थोड़ी धूमिल सी लगी ,होने कंचन काया है   
तो क्या हुआ जो अगर ढल गयी जवानी है 
न रही चेहरे पे रौनक  वो ही पुरानी  है 
हुस्न की जिसके हर तरफ ही शोहरत थी कभी
खण्डहर बतलाते ,बुलन्द इमारत थी कभी 
बन गयी आज तुम इतिहास का एक पन्ना हो 
बुजुर्ग आशिकों की आज भी तमन्ना  हो 
वैसे भी हम तो पुरातत्व प्रेमी  है , पुराने  है
इसलिए आज भी हम आपके  दीवाने  है 
आरज़ू है कि हम पे नज़रें इनायत  कर दो 
बड़ी बेरंग जिंदगानी  है ,इसमें  रंग भर दो
तुम्हारे प्यार का हम ऐसा कुछ सिला देंगे 
कसम से याद जवानी की हम  दिला देंगे 

घोटू     

शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2017

माँ तुझे प्रणाम 

तूने मुझको पाला पोसा ,तू मेरी जननी है माता 
जब भी मुझे वेदना होती,नाम तेरा ही मुंह पर आता 
कैसे तुझे पता चल जाता,जब भी मुझको दर्द सताता 
अन्तरतल से बना हुआ है ,ऐसा तेरा मेरा  नाता 
तेरे चरणों में मौजूद है ,सारे तीरथ  धाम 
माँ तुझे प्रणाम 
नौ महीने तक रखा कोख में ,तूने कितना दर्द उठाया 
फिर जब मै दुनिया में आया,तूने अपना दूध पिलाया 
चिपका रखा मुझे छाती से ,तूने मुझको गोद उठाया 
ऊँगली पकड़ सिखाया चलना ,भले बुरे का बोध कराया 
इस दुनिया की उंच नीच का मुझे कराया ज्ञान 
माँ तुझे प्रणाम 
 धीरे धीरे ,बड़ा हुआ मैं ,गए बदलते कितने मौसम 
मुझको कुछ तकलीफ नहीं हो ,तूने ख्याल रखा ये हरदम 
मैं बीमार पड़ता तू रोती ,मैं हंसता तो खुश होती तुम 
करी कटौती खुद पर ताकि मुझको कुछ भी नहीं पड़े कम 
तूने मेरी खुशियों खातिर ,किया नहीं आराम 
माँ तुझे प्रणाम 
माँ तू ही मेरी ताक़त है ,मेरी शक्ति,मेरा बल है 
तेराआशीर्वाद हमेशा ,मेरे लिए बना सम्बल है 
मुझे बचाता ,हर पीड़ा से ,तेरा प्यार भरा आँचल है 
मैं उपकृत हूँ,ऋणी तुम्हारा ,मेरा रोम रोम हरपल है 
मुझ पर तेरी कृपा हमेशा ,बनी रहे अविराम 
माँ तुझे प्रणाम 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
              जिंदगी 

तमन्ना थी जिंदगी में ,फतह कर लूं हर किला 
मगर जो था मुकद्दर में, मुझे बस वो ही मिला 
हार जो झेली कभी तो,कामयाबी भी मिली,
यूं ही बस चलता रहा इस जिंदगी का सिलसिला 
 दुश्मनो ने राह में ,कांटे बिछाये तो कभी,
दोस्तों ने हर कदम पर ,फूल भी डाले खिला 
मेरी कुछ कमजोरियों की,भी हुई आलोचना ,
तो मेरी अच्छाइयों का भी मिला,मुझको सिला 
दुनियाभर की सारी खुशियां ,मिलगयी उसदिन मुझे ,
तेरे जैसे हमसफ़र का ,साथ जिस दिन से मिला 
अब तो हँसते गाते सारी उमर ये कट जायेगी ,
जिंदगी मुझको नहीं है ,तुझसे कोई भी गिला 

घोटू 
 
सपने देखो 

दिन में देखो,चाहे देखो रात में 
मिलते है सपने  यहाँ खैरात  में
जी में आये ,उतने सपने देखिये ,
सपनो पर अब तक लगा ना टेक्स है 
कभी भी मन में न डरना चाहिए 
आदमी को वो ही करना चाहिए ,
जिससे उसको मिलती हो थोड़ी ख़ुशी,
रहता मन मष्तिस्क भी 'रिलेक्स' है 

घोटू  
                      जड़े 

जो ऊपर से लहराते है और मुस्काते,महकाते है 
निज सुंदरता पर नाज़ किये जो किस्मत पर इतराते है 
होती है किन्तु जड़े इनकी ,सबकी जमीन के नीचे है 
ये सब तो तभी पनप पाते,जब कोई इनको सींचे  है 
जब तक इनकी मजबूत जड़ें,ये तब तक शान हुआ करते 
जो जड़े हिल गयी थोड़ी सी,तो ये कुरबान  हुआ करते 
इतना महत्व है जब जड़ का ,उनकी सोचो जो खुद जड़ है 
इन ऊपर उगने वालों से ,ये सब के सब होते बढ़  है 
आलू जमीन  के नीचे है, बारह महीनो का भोजन है 
नीचे जमीन के ही बढ़ते ,ये प्याज और गुणी लहसन है 
अदरक जमीन के नीचे है ,जो कितने ही गुण वाला है 
भू के अंदर उगती हल्दी ,जो भेषज और मसाला है 
धरती नीचे मूली ,सलाद और शलजम बड़ी भली लगती 
देती है तैल ,स्वाद वाली ,भू में ही मुंगफली  लगती 
कितनी ही जड़ीबूटियां भी उगती जमीन के अंदर है 
पैदा जमीन में होता है ,तब ही गुणवान चुकन्दर है 
हर बीज पनपता धरती में,माँ सीने की ऊष्मा पाकर 
जड़ से ही होता है विकास ,बनता तब वृक्ष घना जाकर 
ये सब ही भले दबे रहते ,भीतर ही भीतर बढ़ते है 
माँ धरती से चिपटे रहते ,तब ही गुण इनके बढ़ते है 
रहते जमीन के नीचे जो ,वो गुण की खान हुआ करते 
इनके जमीन से जुड़ने से ,इनके गुणगान हुआ करते 
इसलिए जुडो तुम धरती से,ये देश  तभी तो संवरेगा
तुम्हारा धरती से जुड़ना ,तुम में कितने गुण भर देगा 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2017

बहुएं तो बहुएं होती है 

बेटे की शादी होने पर ,कुछ ऐसी हालत होती है 
तुम लाख बेटियों सी समझो,बहुएं तो बहुएं होती है
जिसके आने की खुशियों की ,घर में गूंजी शहनाई थी  
अपनों से भी ज्यादा प्यारी ,कल तक जो नार पराई थी
अपने संग गाडी भर कर के ,लेकर दहेज़ जो आई थी 
 दिल और दिमाग में बेटे के ,जो जादू बन कर छाई थी
 अक्सर माँ बेटे के रिश्तों में ,बीज कलह के बोती  है 
तुम लाख बेटियों सी समझो ,बहुएं तो बहुएं  होती है 
फिर प्रेम जता कर के पति पर फेंका करती जादू ऐसा 
ना रहता है बेटे का भी ,व्यवहार वही पहले  जैसा 
कर छल प्रपंच कब्ज़ाती है ,वो घर का सब रुपया पैसा 
यह सब तो घर घर होता है ,इसमें हमको अचरज कैसा 
वह रौब जमाती ,घर भर के ,सर पर सवार वो होती है 
तुम लाख बेटियों सी समझो,बहुएं तो बहुएं होती है 
धीरे धीरे घर का सारा ,व्यवहार  बदलने लगता है 
बन कर गुलाम वो जोरू का,बेटा भी डरने लगता है 
जो रस्ता पत्नी दिखलाती,वह उस पर  चलने लगता है 
हो जाते है माँ बाप दुखी ,ये उनको खलने लगता है 
माँ के आंसू टेसुवे लगते ,बीबी के आंसू मोती  है 
तुम लाख बेटियों सी समझो,बहुएं तो बहुएं होती है 
धीरे धीरे ये घटनाएं ,परिवार विभाजन  लाती है 
घर के अंदर की राजनीती ,कुछ ऐसे से गरमाती है 
वो एक दुसरे को घर में ,आपस में फिर लड़वाती है 
जिसने उससे माँ छुड़वाई ,उसकी वो माँ छुड़वाती है 
ये किस्सा नहीं एक घर का ,घर घर ये हालत होती है 
तुम लाख बेटियों सी समझो,बहुएं तो बहुएं होती है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

बुधवार, 8 फ़रवरी 2017

धंधा पॉलिटिक्स का 

ना तो डिग्री की जरूरत,ना ही पूँजी चाहिए ,
ना किसी की नौकरी ,ना काम कोई रिस्क का 
बोलने में हो पटुता ,आता हो दंदफंद अगर,
सबसे ज्यादा फायदेमंद ,धंधा पॉलिटिक्स का 
इसलिए ऐ दोस्त हमतुम ,मिल के कुछ ऐसा करें ,
एक दूजे के ओपोजिट ,करे हम नेतागिरी 
चन्द अपने अपने चमचों की जुटाएं भीड़ हम ,
धरना दे,वादे करें ,हर चीज कर देंगे फ्री 
बनने कॉमनमैन ज्यों गाँधी ने त्यागे वस्त्र थे ,
हुआ केजरीवाल जनप्रिय बाँध मफलर कान पर 
वैसे ही हमतुम बनाने ,छवि कॉमन मेन की ,
जब भी पब्लिक में जो जाएँ,फट कपड़े पहनकर
तुम मेरी बखिया उधेड़ो,मैं तुम्हे ऊँगली करू,
एक दूजे को यूं ही हम ,रहे देते गालियां 
इस तरह से हमारी दूकान भी चलती  रहे ,
मज़ा पब्लिक को मिले ,हम तुम बटोरें तालियां 
तुम किसी से ,मुझ पे जूता ,उछलवाओ सभा में,
क्योंकि ब्रेकिंग न्यूज़ बनते,इस तरह के वाकिये 
और हम तुम टीवी पर आते रहेंगे रोज ही ,
मिडिया को तो हमेशा ,कुछ मसाला चाहिये 
इस तरह पॉपुलरिटी हमारी बढ़ जायेगी ,
और फायरब्रांड नेता ,सब हमे बतलायेंगे 
हमारी भी छवि बनेगी ,लड़ेगे हम इलेक्शन ,
हमे है विश्वास कि हम ,जीत निश्चित  जाएंगे 
कितने ही मतभेद हममें तुममे दिखते हो मगर,
दोस्त बन सत्ता के खातिर ,मिलाएंगे हाथ हम 
भरेंगे तिजोरियां ,जनता को जी भर लूट कर,
पांच सालों तक अगर ,यूं ही रहे जो साथ हम 
यूं तो संग में बैठ कर ,मिल कर पियेंगे जाम हम ,
मगर पब्लिक को दिखाने ,करेंगे हम दुश्मनी 
धंधा पॉलिटिक्स का अपना चलाने वास्ते,
बहुत होती फायदेमंद ,इस तरह की अनबनी 
कोई गर जो फस भी जाए ,किसी रिश्वत काण्ड में,
दूसरा पावर में हो तो,मदद वो उसकी करे 
इस तरह बेख़ौफ़ होकर ,देश हम चरते रहें ,
सैया हो कोतवाल तो फिर,हम किसी से क्यों डरे 
राजनेता करे जो भी,होता है जायज सभी ,
राजनीति में न होता ,काम कुछ 'इथिक्स ' का 
इसमें होता ही नहीं है ,रिटायर कोई,कभी ,
सबसे ज्यादा फायदेमंद,धंधा पॉलिटिक्स का 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 

गुरुवार, 2 फ़रवरी 2017

अब तो शिद्दत हो गयी 

चर्चा  करते  करते  मुद्दों की ,तो  मुद्दत  हो  गयी 
नतीजा कुछ भी न निकला ,अब तो शिद्दत हो गयी  
अभी तक भी कंवारा ,बैठा है मेरा  यार वो ,
रोज कहता था फलां से ,उसको उल्फत हो गयी 
शमा जलती ही रही ,कुछ फर्क ना उसको पड़ा,
मुफ्त  में  परवाने कितनो , की शहादत हो गयी 
सीमा पर कितने ही सैनिक मरे ,सब चलता रहा ,
एक  एम पी मर गया  तो बन्द   संसद हो गयी 
करोड़ों का काला पैसा ,जमा जिनके पास था ,
नोटबन्दी क्या हुई ,उनको तो हाजत  हो गयी 
दे दिया औरों के हाथों ,साइकिल का हेंडिल,
बाप बेटे लड़ लिए , कुर्सी  मुसीबत हो गयी 
जबसे पिछड़ापन तरक्की की  गारन्टी बन गया ,
लाभ लेने वालों की ,लम्बी सी पंगत  हो गयी 
निगलते भी नहीं बनता ,ना ही बनता उगलते,
अब तो इस माहौल में ,रहने की आदत हो गयी 

मदन मोहन बाहेती;घोटू;

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